ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के नंदीग्राम (Nandigram) से चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद हफ्ते भर के अंतर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीनियर बीजेपी नेता अमित शाह (Modi Shah) दोनों ही पश्चिम बंगाल का दौरान करने वाले हैं.
प्रधानमंत्री मोदी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के मौके पर कोलकाता पहुंच रहे हैं, तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 30 जनवरी को दो दिन के दौरे पर जाने वाले हैं - और 24 परगना के ठाकुरनगर के साथ ही हावड़ा का भी दौरा करेंगे. अमित शाह उल्बेरिया में रोड शो करेंगे जबकि हावड़ा में बीजेपी की रैली होने वाली है.
मुद्दा कोई भी हो ममता बनर्जी टकराव की लाइन पहले ही तय कर लेती हैं, वैसे भी ये तो चुनावी सीजन ही है. बीजेपी ने नेताजी जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर रखी है, लेकिन ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ये दिन देशनायक दिवस के तौर पर मनाने जा रही है.
ये तो आसानी से समझा जा सकता है कि मोदी-शाह के दौरे को लेकर पश्चिम बंगाल में राजनीतिक गहमागहमी महीने के आखिरी हफ्ते जोरों पर रहने वाली है, लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिये कि नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की ममता बनर्जी की घोषणा मोदी-शाह (Modi Shah) की मुश्किलें बढ़ाने वाली है.
शुभेंदु को भी मुकुल रॉय बनाने की है ममता की तैयारी
पश्चिम बंगाल को लेकर सर्वे एजेंसी सी-वोटर की रिपोर्ट मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए मिले जुले एहसास वाला है - थोड़ी खुशी, थोड़े गम जैसा. ममता बनर्जी के लिए खुशी की बात ये है कि सत्ता विरोधी लहर के बावजूद सर्वे के हिसाब से उनकी वापसी का इशारा है. लोकप्रियता के मामले में भी वो पश्चिम बंगाल के लोगों की पहली पसंद बनी हुई हैं - और अपने संभावित प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले काफी आगे हैं.
खुशी के साथ साथ ममता बनर्जी के लिए गम वाली बात ये है कि बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष लोगों की दूसरी पसंद हैं, जबकि बीजेपी नेतृत्व की नजर में वो मुख्यमंत्री पद के चेहरे के लायक भी नहीं हैं. कुछ कुछ वैसे ही जैसे...
ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के नंदीग्राम (Nandigram) से चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद हफ्ते भर के अंतर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीनियर बीजेपी नेता अमित शाह (Modi Shah) दोनों ही पश्चिम बंगाल का दौरान करने वाले हैं.
प्रधानमंत्री मोदी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के मौके पर कोलकाता पहुंच रहे हैं, तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 30 जनवरी को दो दिन के दौरे पर जाने वाले हैं - और 24 परगना के ठाकुरनगर के साथ ही हावड़ा का भी दौरा करेंगे. अमित शाह उल्बेरिया में रोड शो करेंगे जबकि हावड़ा में बीजेपी की रैली होने वाली है.
मुद्दा कोई भी हो ममता बनर्जी टकराव की लाइन पहले ही तय कर लेती हैं, वैसे भी ये तो चुनावी सीजन ही है. बीजेपी ने नेताजी जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर रखी है, लेकिन ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ये दिन देशनायक दिवस के तौर पर मनाने जा रही है.
ये तो आसानी से समझा जा सकता है कि मोदी-शाह के दौरे को लेकर पश्चिम बंगाल में राजनीतिक गहमागहमी महीने के आखिरी हफ्ते जोरों पर रहने वाली है, लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिये कि नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की ममता बनर्जी की घोषणा मोदी-शाह (Modi Shah) की मुश्किलें बढ़ाने वाली है.
शुभेंदु को भी मुकुल रॉय बनाने की है ममता की तैयारी
पश्चिम बंगाल को लेकर सर्वे एजेंसी सी-वोटर की रिपोर्ट मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए मिले जुले एहसास वाला है - थोड़ी खुशी, थोड़े गम जैसा. ममता बनर्जी के लिए खुशी की बात ये है कि सत्ता विरोधी लहर के बावजूद सर्वे के हिसाब से उनकी वापसी का इशारा है. लोकप्रियता के मामले में भी वो पश्चिम बंगाल के लोगों की पहली पसंद बनी हुई हैं - और अपने संभावित प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले काफी आगे हैं.
खुशी के साथ साथ ममता बनर्जी के लिए गम वाली बात ये है कि बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष लोगों की दूसरी पसंद हैं, जबकि बीजेपी नेतृत्व की नजर में वो मुख्यमंत्री पद के चेहरे के लायक भी नहीं हैं. कुछ कुछ वैसे ही जैसे दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी को लेकर बीजेपी नेतृत्व का नजरिया रहा. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ जब अमित शाह को बहस के लिए नेता दिमाग में आया तो वो मनोज तिवारी न होकर प्रवेश वर्मा सामने आये.
ऐसे में जबकि ममता बनर्जी ने शुभेंदु अधिकारी को पूरी तरह घेर लेने की कोशिश की है, सर्वे में सौरव गांगुली का मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में तीसरे नंबर पर आना तृणमूल कांग्रेस नेता के लिए विरोधाभासी पहेली जैसा लगता है. ममता बनर्जी के लिए राहत की बात ये है कि बीजेपी की तरफ से सौरव गांगुली को चेहरा बनाने के संकेत देने के बावजूद वो दिलीप घोष से भी पिछड़ जाते हैं - और चिंता की बात ये है कि बगैर बीजेपी या खुद सौरव गांगुली की तरफ से कुछ कहे लोग अपने क्रिकेटर को भविष्य के नेता के तौर पर देख रहे हैं, खारिज नहीं कर रहे.
देखा जाये तो बीजेपी के आम चुनाव के प्रदर्शन से पार्टी को राइटर्स बिल्डिंग की राह को करीब कर सकने वाले अब तक तीन चेहरे ही नजर आये हैं - पहले नंबर पर तो इस सूची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही नाम आता है. दूसरे नंबर पर टीएमसी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हुए शुभेंदु अधिकारी और तीसरे नंबर पर बीजेपी के तुरूप के पत्ते समझे जा रहे सौरव गांगुली ही हैं.
बीजेपी नेता अमित शाह खुद सड़क पर उतर कर तो ममता बनर्जी को घेर ही रहे हैं, प्रधानमंत्री मोदी, शुभेंदु अधिकारी और सौरव गांगुली को संकेतों पेश कर ममता बनर्जी के सामने अब तक की सबसे बड़ी चुनौती पेश कर चुके हैं.
लेकिन ममता बनर्जी के लिए तो ये सब पॉलिटिकल रूटीन का हिस्सा है. जब भी उनके सामने कोई मुश्किल चुनौती उभरती है वो सीधे मोर्चे पर खड़ी हो जाती हैं और डट कर मुकाबला करती हैं.
ये सही है कि ममता बनर्जी ने अमित शाह के खुल कर खेलने उतरने से पहले ही ममता बनर्जी ने अपने पत्ते खोलने शुरू कर दिये हैं, लेकिन नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का ऐलान, तृणमूल कांग्रेस की तरफ से बंगाल की बिसात पर बीजेपी को दिया गया अब तक का सबसे बड़ा शह भी है.
जो बीजेपी नेतृत्व शुभेंदु अधिकारी को ममता बनर्जी के पाले से झटक कर इतरा रहा था, ममता बनर्जी के एक ही दांव से वो अंदर ही अंदर सहम भी गया होगा, ये समझना कोई कठिन चीज नहीं है. ममता के इस दांव के बाद बीजेपी नेतृत्व के लिए शुभेंदु अधिकारी जैसे मोहरे को बचाये रखना जरूरी हो गया है. बीजेपी को भी अच्छी तरह समझ आ गया होगा कि ममता बनर्जी ने शुभेंदु अधिकारी को अभिमन्यु जैसा ट्रीट किया है और उनको अपने चक्रव्यूह में उलझा तो दिया ही है.
अपने बयानों से शुभेंदु अधिकारी ने लोगों के बीच ये मैसेज देने की कोशिश तो की ही है कि वो डरने वाले नहीं हैं, बल्कि डट कर मुकाबला करने जा रहे हैं. तभी तो शुभेंदु बनर्जी ने कह डाला है कि ममता बनर्जी को 50 हजार वोटों से नहीं हराया तो राजनीति से संन्यास ले लूंगा. सुनने में तो यहां तक आया है कि शुभेंदु बनर्जी ममता बनर्जी को भवानीपुर तक जाकर चैलेंज करने की बातें कर रहे हैं, लेकिन चर्चा ये भी है कि बीजेपी नंदीग्राम से शुभेंदु अधिकारी की जगह किसी और के बारे में भी सोचने लगी है.
असल में बीजेपी को भी मालूम है कि शुभेंदु अधिकारी कोई अरविंद केजरीवाल नहीं हैं और ममता बनर्जी भी शीला दीक्षित नहीं हैं. ऐसे में जोश में होश गंवा कर भिड़ जाने का कोई मतलब भी नहीं है. 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल अपनी लोकप्रियता का फायदा उठाते हुए शीला दीक्षित के इलाके में जाकर उनको चैलेंज किया और शिकस्त दे डाली थी. हालांकि, ये दंभ भी देर तक कायम न रह सका और 2014 के आम चुनाव आते आते ढेर भी हो गया जब वो वाराणसी में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को चुनौती दे बैठे. वो भूल गये कि लोग बार बार किसी को सिर आंखों पर नहीं बिठाते, वाराणसी के लोगों ने अरविंद केजरीवाल का सीधे सीधे चलता कर दिया था.
अब तो लगता है, ममता बनर्जी ने तो शुभेंदु अधिकारी को भी मुकुल रॉय बनाने की ठान ली है. मुकुल रॉय को भी भगवा ओढ़ा कर बीजेपी मन ही मन खूब इतराती रही, लेकिन अब तक तो वो फेल ही रहे हैं. मुकुल रॉय के जरिये बीजेपी तृणमूल कांग्रेस को तोड़ डालने की उम्मीद लगाये बैठी थी, लेकिन ममता बनर्जी पर भरोसा करने वाले तृणमूल कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता मुकुल रॉय के झांसे में नहीं आये.
ममता बनर्जी अब शुभेंदु अधिकारी का भी प्रभाव खत्म करने की तैयारी कर चुकी हैं. नंदीग्राम के नतीजे जो भी हों, लेकिन ममता बनर्जी के इस ऐलान से तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का हौसला फिर से बुलंद हो जाएगा. खास कर उन कार्यकर्ताओं का जो शुभेंदु अधिकारी के बीजेपी में शामिल हो जाने के बाद थोड़े असहज महसूस कर रहे थे और कुछ हद तक असमंजस में रहे.
ममता बनर्जी के नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का असर ये होगा कि आस पास के पूरे इलाके में अलग प्रभाव पड़ेगा. अगर बीजेपी ने शुभेंदु अधिकारी और उनके परिवार के राजनीतिक दबदबे का फायदा उठाने की सोच रखी है तो निराश भी होना पड़ सकता है. मुमकिन है, नंदीग्राम के नतीजे ममता बनर्जी के मनमाफिक न भी हों, लेकिन उसके आस पास के नतीजे तो निश्चित तौर पर पहले जैसे नहीं रहने वाले हैं.
ममता बनर्जी ने एक बार फिर 2016 की तरह ही मोर्चा संभाल लिया है. 2016 में जब कई पार्टी नेताओं पर घोटाले के आरोप लगे तो ममता बनर्जी ने आगे बढ़ कर ऐसे ही मोर्चा संभाला था - और सत्ता में अकेले बूते जोरदार वापसी की. अकेले इसलिए क्योंकि 2011 का चुनाव ममता बनर्जी ने कांग्रेस की मदद से जीता था.
जो होता है अच्छा ही होता है
कहते हैं जो होता है वो अच्छा ही होता है और शुभेंदु अधिकारी के मामले में भी ऐसा ही लगता है. वो तृणमूल कांग्रेस में घुटने से लगे थे. ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी के बढ़ते प्रभाव से तो परेशान थे ही, प्रशांत किशोर ने जब से चुनावी मुहिम की निगरानी शुरू की, शुभेंदु का बचा खुचा असर भी खत्म होने लगा था. शुभेंदु अधिकारी को एक फ्रेश शुरुआत की जरूरत थी, बीजेपी ने मुहैया करा दिया.
ये तो साफ है कि शुभेंदु अधिकारी को जो अहमियत बीजेपी में अभी मिल रही है, उसके लिए तो तृणमूल कांग्रेस में अब तरसने ही लगे होंगे. वैसे भी ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद से लगता है बाहरी नेताओं की पूछ थोड़ा ज्यादा बढ़ने लगी है. नहीं तो एसएम कृष्णा, रीता बहुगुणा जोशी और टॉम वडक्कन जैसे नेता तो प्रासंगिक बने रहने के लिए ही जूझते नजर आते हैं.
ये शुभेंदु अधिकारी के बीजेपी की तरफ हाथ बढ़ाने का संकेत मिलना ही रहा कि मुकुल रॉय को भी उपाध्यक्ष पद मिल गया, वरना वो तो बस दिलीप घोष और कैलाश विजयवर्गीय के पीछे पीछे खामोशी से बने रहने भर से ही संतोष करने लगे थे. अब तो मुकुल राय का महत्व भी बढ़ गया है.
थोड़ा हट कर देखा जाये तो शुभेंदु अधिकारी का बीजेपी ज्वाइन करना भी सबके लिए अच्छा रहा, ऐसा लगता है. अगर कहीं शुभेंदु अधिकारी बीजेपी में न जाकर अपनी पार्टी बना लिये होते तो ममता बनर्जी के लिए भी अभी के मुकाबले बड़ी चुनौती साबित हो सकते थे. खुद शुभेंदु अधिकारी को भी अपनी पार्टी को मुख्यधारा में खड़ा करने के लिए काफी संघर्ष करने पड़ते और वैसी स्थिति में जरूरी नहीं कि बीजेपी की तरफ से भी ऐसी ही तवज्जो मिल पाती.
ये शुभेंदु अधिकारी के बीजेपी ज्वाइन करने का ही असर है कि सूफियान और अबू ताम्र जैसे नेताओं को तृणमूल कांग्रेस में महत्व मिलने लगा है. ये शुभेंदु अधिकारी प्रभाव ही है जो शताब्दी रॉय को टीएमसी का उपाध्यक्ष बना दिया गया - और ये शुभेंदु अधिकारी इफेक्ट ही रहा कि अपने बारे सफाई देते देते परेशान सौगत रॉय को ममता बनर्जी ने फ्रंट पर तैनात कर रखा है.
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