तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों की पूरी सूची आ चुकी है - और ये भी साफ हो चुका है कि पश्चिम बंगाल के चुनावी मैदान में आर पार की लड़ाई होने जा रही है और इसका सबसे बड़ा सबूत है ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) का अपनी परंपरागत सीट तक छोड़ देना.
ममता बनर्जी को या तो खुद के साथ साथ नंदीग्राम ((Nandigram)) के लोगों पर हद से भी ज्यादा भरोसा है या फिर वो राजनीतिक जुआ खेलने का फैसला कर चुकी हैं. कह भी रखा है कि इस बार 'खेला होबे.' ये तो एक जुआ है ही. या कहें कि बिलकुल जुए जैसा है. ममता बनर्जी के पास फिलहाल कोई विकल्प भी नहीं है. भवानीपुर में जमे रह कर नंदीग्राम का मैदान छोड़ देने का. जब दूसरा रास्ता नहीं होता तो जुआ खेलना ही होता है. ममता बनर्जी भी वही कर रही हैं.
बीजेपी जहां अभी विचार कर रही है, ममता बनर्जी ने अपने सारे पत्ते खोल दिये हैं. डंके की चोट पर. जो करना है कर लो. परवाह नहीं है. न हार की न जीत की. ममता बनर्जी हाल फिलहाल भी बार बार दोहराती रही हैं कि वो फाइटर हैं और वो आखिरी दम तक यूं ही लड़ती रहेगीं. कुछ कुछ वैसे ही जैसे - कोरबो, लोड़बो, जीतबो. भले ही पुराना चेला ही सामने मैदान में क्यों न हो. वैसे नंदीग्राम से शुभेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) का टिकट अभी फाइनल नहीं है.
तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों की लिस्ट भी बता रही है कि वो बीजेपी नेतृत्व के 'आसोल पोरिबोर्तन' के नारे से जरा भी विचलित नहीं हैं. बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किये जाने के बाद भी 2014 में नरेंद्र मोदी दो-दो लोकसभा सीटों से चुनाव लड़े थे - वाराणसी और वडोदरा. दोनों सीटों से जीते भी और बाद में वडोदरा सीट छोड़ दी थी. 2019 में राहुल गांधी भी अमेठी के साथ साथ केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़े थे, लेकिन हार के बाद बरसों पुरानी अमेठी छूट गयी. हाल ही में राहुल गांधी के उत्तर और दक्षिण वाले बयान में अमेठी के लोगों के प्रति गुस्से की बू भी आ रही थी.
ममता बनर्जी को भी ऐसी कोई परवाह है, लगता नहीं है. जीत हो या हार हो, ममता बनर्जी सिर्फ और...
तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों की पूरी सूची आ चुकी है - और ये भी साफ हो चुका है कि पश्चिम बंगाल के चुनावी मैदान में आर पार की लड़ाई होने जा रही है और इसका सबसे बड़ा सबूत है ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) का अपनी परंपरागत सीट तक छोड़ देना.
ममता बनर्जी को या तो खुद के साथ साथ नंदीग्राम ((Nandigram)) के लोगों पर हद से भी ज्यादा भरोसा है या फिर वो राजनीतिक जुआ खेलने का फैसला कर चुकी हैं. कह भी रखा है कि इस बार 'खेला होबे.' ये तो एक जुआ है ही. या कहें कि बिलकुल जुए जैसा है. ममता बनर्जी के पास फिलहाल कोई विकल्प भी नहीं है. भवानीपुर में जमे रह कर नंदीग्राम का मैदान छोड़ देने का. जब दूसरा रास्ता नहीं होता तो जुआ खेलना ही होता है. ममता बनर्जी भी वही कर रही हैं.
बीजेपी जहां अभी विचार कर रही है, ममता बनर्जी ने अपने सारे पत्ते खोल दिये हैं. डंके की चोट पर. जो करना है कर लो. परवाह नहीं है. न हार की न जीत की. ममता बनर्जी हाल फिलहाल भी बार बार दोहराती रही हैं कि वो फाइटर हैं और वो आखिरी दम तक यूं ही लड़ती रहेगीं. कुछ कुछ वैसे ही जैसे - कोरबो, लोड़बो, जीतबो. भले ही पुराना चेला ही सामने मैदान में क्यों न हो. वैसे नंदीग्राम से शुभेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) का टिकट अभी फाइनल नहीं है.
तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों की लिस्ट भी बता रही है कि वो बीजेपी नेतृत्व के 'आसोल पोरिबोर्तन' के नारे से जरा भी विचलित नहीं हैं. बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किये जाने के बाद भी 2014 में नरेंद्र मोदी दो-दो लोकसभा सीटों से चुनाव लड़े थे - वाराणसी और वडोदरा. दोनों सीटों से जीते भी और बाद में वडोदरा सीट छोड़ दी थी. 2019 में राहुल गांधी भी अमेठी के साथ साथ केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़े थे, लेकिन हार के बाद बरसों पुरानी अमेठी छूट गयी. हाल ही में राहुल गांधी के उत्तर और दक्षिण वाले बयान में अमेठी के लोगों के प्रति गुस्से की बू भी आ रही थी.
ममता बनर्जी को भी ऐसी कोई परवाह है, लगता नहीं है. जीत हो या हार हो, ममता बनर्जी सिर्फ और सिर्फ एक ही सीट से चुनाव लड़ने जा रही हैं - नंदीग्राम. वही नंदीग्राम जहां से वो हर बार अपनी चुनावी मुहिम का आगाज करती हैं. वही नंदीग्राम जहां पर विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई पुलिस फायरिंग में किसानों की मौत के बाद ममता बनर्जी ने लड़ाई तेज की और बरसों से सत्ता पर काबिज लेफ्ट फ्रंट की सत्ता को उखाड़ फेंका था.
ममता बनर्जी ने अपने राजनीतिक जीवन की सबसे मुश्किल घड़ी में भी नंदीग्राम की जनता पर ही भरोसा किया है - और ये सिर्फ ममता बनर्जी की उम्मीदवारी की बात नहीं है, तृणमूल कांग्रेस नेता ने सत्ता को ही दांव पर लगा दिया है. ये लड़ाई एक बार फिर से कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग पर कब्जे की जंग बन चुकी है.
ममता बनर्जी और नंदीग्राम का जोखिम
राजनीति में कोशिश तो यही होती है कि कैसे विरोधियों की मुश्किल बढ़ायी जाये, लेकिन ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में बीजेपी का काम कुछ आसान कर दिया है.
पहले ममता बनर्जी के नंदीग्राम के साथ साथ उनकी परंपरागत सीट भवानीपुर से भी चुनाव लड़ने की संभावना जतायी जा रही थी - और बीजेपी नेतृत्व उसी हिसाब से दोनों विधानसभा सीटों पर ममता बनर्जी की घेरेबंदी की रणनीति तैयार कर रहा था, लेकिन ममता बनर्जी की तरफ से बीजेपी को सरप्राइज देने की कोशिश की गयी है.
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए 291 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करते हुए ममता बनर्जी ने खुद ये सरप्राइज दिया - 'मैं नंदीग्राम से चुनाव लड़ूगीं, भवानीपुर सीट छोड़ रही हूं.' भवानीपुर से ममता बनर्जी की जगह तृणमूल कांग्रेस ने सोवनदेब चटर्जी को उम्मीदवार बनाया गया है.
तृणमूल कांग्रेस ने दो दर्ज से ज्यादा विधायकों के टिकट भी काटे हैं, लेकिन उनको निराश होने की जरूरत नहीं है. ममता बनर्जी ने कहा है कि जिन पुराने नेताओं को टिकट नहीं दिया गया है वे विधान परिषद भेजे जाएंगे. ये भी ममता बनर्जी की काउंटर पॉलिटिक्स का ही हिस्सा है क्योंकि चर्चा थी कि टीएमसी के कई नाराज विधायक बीजेपी ज्वाइन कर सकते हैं. ममता बनर्जी ने ये भी बताया कि 80 साल से ज्यादा उम्र वालों को भी टिकट नहीं दिया गया है.
अब टीएमसी के वे नेता जिनकी विधान परिषद में दिलचस्पी नहीं है और वे भी जिनकी उम्र 80 से ज्यादा है, शुभेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय से बीजेपी में जाने को लेकर संपर्क कर सकते हैं. ऐसे नेताओं को ये भी ध्यान रखना होगा कि पश्चिम बंगाल केरल नहीं है और केरल में भी बीजेपी मेट्रोमैन ई. श्रीधरन की मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को लेकर नये सिरे से विचार करने लगी है.
बीजेपी की तरफ आकर्षित टीएमसी नेताओं की सोच विचार का एक आधार ये भी तो हो सकता है कि अगर पार्टी सत्ता में वापसी नहीं कर पायी तो ममता बनर्जी के आश्वासन का क्या होगा?
तृणमूल कांग्रेस ने सहयोगी दलों के नाम पर सिर्फ तीन सीटें छोड़ी हैं - और वे सीटें भी दार्जिलिंग की हैं. मतलब ये हुआ कि ममता बनर्जी ने आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की 6 सीटों की डिमांड भी खारिज कर दी है. फिर तो ये भी कह सकते हैं कि ममता बनर्जी ने बीजेपी के साथ साथ एक और राजनीतिक विरोधी कांग्रेस की भी मु्श्किल आसान कर दी है. बिहार में कांग्रेस के साथ होकर भी आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने ममता बनर्जी का सपोर्ट करने का फैसला किया था.
ममता बनर्जी के मुताबिक, तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों की की सूची में 50 महिलाओं, 42 मुस्लिमों, अनुसूचित जाति के 79 नेताओं और अनुसूचित जनजाति के 17 उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है. टिकट हासिल करने वालों में कई नेता ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी के भी विश्वासपात्र बताये जा रहे हैं.
ममता बनर्जी ने तो नंदीग्राम विधानसभा सीट से अपनी उम्मीदवारी पक्की कर दी है - लेकिन बीजेपी ने अभी शुभेंदु अधिकारी की उम्मीदवारी को फाइनल नहीं किया है.
नंदीग्राम का संग्राम, बोले तो - आर या पार
तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची जारी करते हुए ममता बनर्जी ने ये भी बताया कि वो 10 मार्च को अपना नामांकन दाखिल करेंगी. ममता बनर्जी ने कहा, 'मैं 9 मार्च को नंदीग्राम जा रही हूं... 10 मार्च को हल्दिया में नामांकन दाखिल करूंगी.'
नंदीग्राम में 1 अप्रैल को दूसरे फेज में वोटिंग होनी है. पश्चिम बंगाल में 27 मार्च से शुरू होकर 29 अप्रैल तक कुल 8 चरणों में वोटिंग होनी है - और नतीजे देश के पांचों राज्यों की विधानसभा चुनाव के साथ ही 2 मई को आएंगे.
ममता बनर्जी के लिए नंदीग्राम में एक ठिकाने की तलाश पहले से ही चल रही थी और एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जो भी मकान देखे गये हैं उनमें से ही किसी एक को फाइनल कर दिया जाना है. ममता बनर्जी के लिए घर देखने टीएमसी नेता फरहाद हकीम गये थे और जरूरत के हिसाब से कई जगह देखे भी. ममता बनर्जी के लिए जो घर फाइनल किये जाने के बारे में सोचा जा रहा है वो एक टीएमसी नेता सूफियान के पड़ोस में ही है. ये दोमंजिला मकान है जो गली में है और पीछे फलों का एक छोटा सा बगीचा भी है और चारों तरफ धान के खेतों के चलते हरियाली भी है.
इस बीच, टीएमसी की ओर से बताया गया है कि 8 मार्च को महिला दिवस के मौके पर यानी नामांकन दाखिल करने नंदीग्राम जाने से पहले ममता बनर्जी कोलकाता में रोड शो करेंगी. ध्यान रहे 7 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में रैली होने वाली है. ये भी बार बार देखने को मिल रहा है कि ममता बनर्जी बीजेपी के तीनों बड़े नेताओं प्रधानमंत्री मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के ठीक बाद उन इलाकों का ही रुख करती हैं जहां बीजेपी नेताओं के चुनावी दौरे, रोड शो या रैली हुई होती है.
मेदिनीपुर के ही खड़कपुर की एक चुनावी रैली में शुभेंदु अधिकारी कह रहे थे, 'मैं ममता बनर्जी को नंदीग्राम में हरा दूंगा... अगर बीजेपी मुझे इस सीट से टिकट देती है तो मैं ममता को चुनाव में हरा दूंगा... और अगर मुझे टिकट न देकर किसी और को उम्मीदवार बनाया जाता है, तो भी मैं इस बात की जिम्मेदारी लूंगा कि ममता बनर्जी हार जायें - और विधानसभा सीट पर कमल खिले.'
सुनने में आ रहा है कि बीजेपी की चुनाव समिति ने नंदीग्राम सहित दर्जन भर सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का फैसला बीजेपी नेतृत्व पर छोड़ दिया है. यानी प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा को ही ये फैसले लेने हैं.
देखा जाये तो नंदीग्राम पश्चिम बंगाल में एक आदर्श चुनावी प्रयोगशाला जैसा ही है - और ये बीजेपी के एजेंडे में फिट तो बैठता ही है, ममता बनर्जी को भी उनके सपोर्ट बेस के हिसाब से काफी सूट करता है.
नंदीग्राम में करीब दो लाख हिंदू वोटर हैं, जबकि करीब 70 हजार मुस्लिम मतदाता. अगर दोनों राजनीतिक विरोधी अपने अपने हिसाब से ध्रुवीकरण और एंटी पोलराइजेशन की कोशिश करते हैं तो दोनों ही के लिए पूरा मौका मिलता है. नंदीग्राम में 17 फीसदी SC-ST वोटर भी हैं. रिहाइशी आबादी के हिसाब से देखें तो 3.35 फीसदी शहरी और 96.65 फीसदी ग्रामीण वोटर हैं.
1967 से लेकर 2016 तक नंदीग्राम सीट पर उपचुनाव सहित कुल 12 बार चुनाव हुए हैं, जिसमें 5 बार सीपीआई और तीन बार तृणमूल कांग्रेस को जीत हासिल हुई है. नंदीग्राम सीट पर तृणमूल कांग्रेस का 2009 से ही कब्जा रहा है - और इस बार भी ममता बनर्जी चुनान नतीजे को बदलने देना नहीं चाहती हैं. यही वजह है कि वो बीजेपी नेतृत्व को चैलेंज करते हुए खुद ही मैदान में उतर रही हैं. शुभेंदु अधिकारी से पहले टीएमसी की फिरोज बीबी ने 2009 में उपचुनाव जीता था. 2011 से शुभेंदु अधिकारी जीतते आ रहे हैं.
2016 के विधानसभा चुनाव में बतौर टीएमसी उम्मीदवार शुवेंदु अधिकारी ने 87 फीसदी वोटों के साथ नंदीग्राम से बड़ी जीत दर्ज की थी. तब शुभेंदु अधिकारी ने CPI के अब्दुल कबीर को 81 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था.
अब वही शुभेंदु अधिकारी बार बार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को 50 हजार वोटों से हराने का दावा कर रहे हैं, जबकि अभी तक उनका टिकट पक्का भी नहीं हुआ है.
ये तो तय है कि बीजेपी अगर शुभेंदु को मैदान में उतारती है तो सारे बड़े नेता सारी ताकत झोंक देने वाले हैं. शुभेंदु अधिकारी के बीजेपी में जाने की वजह भी और अभी तक पूरा भाव मिलते रहने की वजह भी उनका जनाधार ही है. हालांकि, ये तो वो भी समझते ही होंगे कि उनकी राजनीति में ममता बनर्जी का ठप्पा लगा होना भी काफी अहम रोल अदा करता ही होगा.
ऐसे भी समझ सकते हैं कि नंदीग्राम में ममता बनर्जी ने तो जोखिम उठाया ही है, शुभेंदु अधिकारी का राजनीतिक कॅरियर भी ठीक वैसे ही दांव पर लगा है. जीत गये तो बल्ले बल्ले. असम के हिमंता बिस्व सरमा जैसी हैसियत और पूछ होने लगेगी, लेकिन अगर हार गये तो पुराने साथी मुकुल रॉय ही सबसे बड़ी मिसाल हैं.
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