RSS की तारीफ के पीछे ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की मंशा अपनी जगह हो सकती है, लेकिन राजनीतिक प्रतिक्रिया खूब हुई है. अपनी अपनी यादों के पिटारे से राजनीतिक दलों के नेता (Opposition Leaders) ममता बनर्जी को पुराने वाकयों से जोड़ कर उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि पर सवाल खड़ा कर रहे हैं - और संघ ने भी किसी तरह का आभार न जता कर पश्चिम बंगाल की हिंसक घटनाओं पर ही नसीहत दे डाली है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को लेकर ममता बनर्जी के बयान में उनके राजनीतिक विरोधियों के दिलचस्पी लेने की खास वजह भी है. ममता बनर्जी का ये बयान ऐसे वक्त आया है जब पार्थ चटर्जी को गिरफ्तार करने के बाद कोयला घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी को बुलाकर पूछताछ कर रहा है.
हालांकि ममता बनर्जी ने पहले ही पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को अपने खिलाफ जांच का आदेश दे रखा है. अपनी संपत्तियों की जांच के आदेश के साथ ही ममता बनर्जी ने मुख्य सचिव से कहा है कि अगर कहीं कोई संपत्ति अवैध पायी जाती है तो वो उस पर बुलडोजर चला दें. ऐसे मामलों में अगर शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश में और हिमंत बिस्वा सरमा असम में बुलडोजर चलवाते हैं तो उनको यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की राह चलने की संज्ञा दी जाती है - ममता बनर्जी के बयान के बाद क्या कहा जाएगा?
अपने खिलाफ जांच के आदेश की जानकारी ममता बनर्जी न तब दी जब प्रेस कांफ्रेंस के दौरान मुख्यमंत्री और उनके परिवार की बढ़ी संपत्ति को लेकर विपक्षी दलों के नेताओं के आरोपों पर रिएक्शन मांगा गया था.
ममता बनर्जी ने बीजेपी नेता दिलीप घोष की सेटिंग वाली टिप्पणी का भी जिक्र किया और जवाब दिया. महीने भर पहले ममता बनर्जी ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी, तभी दिलीप घोष ने कहा था कि ममता बनर्जी प्रधानमंत्री मोदी के साथ...
RSS की तारीफ के पीछे ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की मंशा अपनी जगह हो सकती है, लेकिन राजनीतिक प्रतिक्रिया खूब हुई है. अपनी अपनी यादों के पिटारे से राजनीतिक दलों के नेता (Opposition Leaders) ममता बनर्जी को पुराने वाकयों से जोड़ कर उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि पर सवाल खड़ा कर रहे हैं - और संघ ने भी किसी तरह का आभार न जता कर पश्चिम बंगाल की हिंसक घटनाओं पर ही नसीहत दे डाली है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को लेकर ममता बनर्जी के बयान में उनके राजनीतिक विरोधियों के दिलचस्पी लेने की खास वजह भी है. ममता बनर्जी का ये बयान ऐसे वक्त आया है जब पार्थ चटर्जी को गिरफ्तार करने के बाद कोयला घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी को बुलाकर पूछताछ कर रहा है.
हालांकि ममता बनर्जी ने पहले ही पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को अपने खिलाफ जांच का आदेश दे रखा है. अपनी संपत्तियों की जांच के आदेश के साथ ही ममता बनर्जी ने मुख्य सचिव से कहा है कि अगर कहीं कोई संपत्ति अवैध पायी जाती है तो वो उस पर बुलडोजर चला दें. ऐसे मामलों में अगर शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश में और हिमंत बिस्वा सरमा असम में बुलडोजर चलवाते हैं तो उनको यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की राह चलने की संज्ञा दी जाती है - ममता बनर्जी के बयान के बाद क्या कहा जाएगा?
अपने खिलाफ जांच के आदेश की जानकारी ममता बनर्जी न तब दी जब प्रेस कांफ्रेंस के दौरान मुख्यमंत्री और उनके परिवार की बढ़ी संपत्ति को लेकर विपक्षी दलों के नेताओं के आरोपों पर रिएक्शन मांगा गया था.
ममता बनर्जी ने बीजेपी नेता दिलीप घोष की सेटिंग वाली टिप्पणी का भी जिक्र किया और जवाब दिया. महीने भर पहले ममता बनर्जी ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी, तभी दिलीप घोष ने कहा था कि ममता बनर्जी प्रधानमंत्री मोदी के साथ अपनी मीटिंग का इस्तेमाल ये मैसेज देने के लिए करती हैं कि सेटिंग हो गयी है... केंद्र सरकार को ध्यान देना चाहिये और ममता बनर्जी के झांसे में नहीं आना चाहिये.
ममता बनर्जी कहती हैं, 'मैं बात करने प्रधानमंत्री के पास जाती हूं तो बीजेपी के लोग कहते हैं कि मैं सेटिंग करने गई हूं... लेकिन मैं सेटिंग करने में सक्षम नहीं हूं... ये खूबी मेरे अंदर नहीं है.'
हाल ही में ममता बनर्जी का कहना था कि RSS उतना खराब नहीं है. जिस संगठन और उसके पॉलिटिकल विंग के साथ आला दर्जे की दुश्मनी चली आ रही हो, उसके बारे एक टिप्पणी से सॉफ्ट कॉर्नर दिखाना भला किसी को कैसे हजम हो, लिहाजा जितने मुंह उतनी बातें होने लगी हैं - बड़ा सवाल ये है कि आखिर ममता बनर्जी को संघ के लिए ऐसा कैरेक्टर सर्टिफिकेट जारी करने की जरूरत क्यों आ पड़ी?
संघ की तारीफ पर तो ममता को फंसना ही था
2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के काफी पहले से आरएसएस राज्य में काम कर रहा था. किसी भी चुनावी राज्य में संघ का काम बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाना होता है. कई बार लोगों को साफ साफ बता कर और कई बार बगैर पार्टी का नाम लिए ही.
आरएसएस के प्रचारक जमीनी स्तर पर काम तो कर ही रहे थे, संघ प्रमुख मोहन भागवत भी ताबड़तोड़ दौरे कर रहे थे - और एक बार तो बीजेपी के लिए मिथुन चक्रवर्ती के घर तक चले गये थे. हालांकि, एक मौका ऐसा भी देखने को मिला जब संघ की बंगाल यूनिट ममता बनर्जी के पक्ष में खड़ी नजर आयी थी.
जब ममता के सपोर्ट में खड़ा हुआ संघ: आपको नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती वाला वो समारोह तो याद ही होगा. कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हाल में हुए कार्यक्रम के दौरान कुछ बीजेपी कार्यकर्ताओं का जय श्रीराम के नारे लगाये थे.
कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो पहुंचे ही थे, न्योता मिलने पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी शामिल हुईं, लेकिन मंच पर हुई नारेबाजी से उनको गुस्सा आ गया. फिर भी गुस्से पर काबू रखा और ममता बनर्जी का वैसा रूप नहीं देखने को मिला जैसा सड़कों पर जय श्रीराम के नारे सुनने के बाद भड़क जाती रही हैं. नारेबाजी के बाद ममता बनर्जी को मंच पर बस इतना ही कहते सुना गया - "ना बोलबे ना...आमी बोलबे ना..." बाद में संचालक के बार बार आग्रह करने पर ममता बनर्जी बोलीं जरूर लेकिन राजनीतिक स्लोगन को लेकर आपत्ति भी जता डाली.
बाद में बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय को तो हमेशा की ही तरह ममता बनर्जी के प्रति हमलावर देखा गया, लेकिन नारे लगाना संघ की पश्चिम बंगाल इकाई को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा था. एक RSS नेता का कहना रहा, चूंकि कार्यक्रम एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की याद में रखा गया था, इसलिए कार्यक्रम में जय श्रीराम के नारे का वो समर्थन नहीं कर रहा है.
पश्चिम बंगाल में दक्षिण बंग प्रांत के प्रमुख जिष्णु बसु ने साफ तौर पर कहा था कि संघ उस वाकये से नाराज है. उनका कहना था, 'जिन लोगों ने जय श्रीराम का उद्घोष किया वे न ही नेताजी का सम्मान करते हैं और न ही भगवान श्रीराम का.'
पश्चिम बंगाल में आरएसएस ने अपनी मौजूदगी तो तभी दर्ज करा दी थी जब वाम मोर्चे का शासन हुआ करता था. 2011 में ममता बनर्जी की सरकार बनने के बाद से संघ थोड़ा थोड़ा एक्टिव होने लगा और 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद तो ज्यादा ही सक्रिय नजर आने लगा.
ममता ने संघ की तारीफ में क्या कहा: ममता बनर्जी ने संघ की तारीफ तो की है, लेकिन बीच का रास्ता निकालते हुए बीजेपी को उससे अलग कर दिया है. बल्कि कहें कि बीजेपी को नहीं बख्शा है.
जैसे उद्धव ठाकरे भी कभी कभी बीजेपी को कठघरे में खड़ा करने के लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत की नसीहतों की अपनी रैलियों में मिसाल देते रहे हैं, ये भी कह सकते हैं कि ममता बनर्जी ने भी बीजेपी को वैसे ही घेरने की कोशिश की है. अभी तो ऐसा ही लगता है, बाकी आगे कुछ भी हो सकता है.
तृणमूल कांग्रेस नेता ने कहा है, "आरएसएस पहले इतना बुरा नहीं था... मैं नहीं मानती कि वे बुरे हैं... आरएसएस में कई अच्छे लोग हैं - और वे बीजेपी का समर्थन नहीं करते हैं."
लेकिन ममता बनर्जी के बयान पर जिष्णु बसु का ताजा रिएक्शन बिलकुल अलग है. ममता बनर्जी की बात का जिक्र करते हुए जिष्णु बसु कहते हैं, हम उनसे कहना चाहेंगे कि राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं... लेकिन इसका मतलब विरोधियों की हत्या करने में राजनीतिक कार्यकर्ताओं को शामिल करना नहीं है.
जिष्णु बसु का दावा है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हुई हिंसा की घटनाओं में करीब 60 लोग मारे गये हैं. और कहते हैं, 'उन्हें कानून व्यवस्था कायम रखनी चाहिये... जिन्होंने उन्हें वोट दिया और जिन्होंने नहीं दिया... उनकी भी वो मुख्यमंत्री हैं."
ममता बनर्जी के बयान पर बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष का कहना है कि न तो आरएसएस को... और न ही भाजपा को ममता से प्रमाण पत्र की जरूरत है.
ममता से जुड़ी पुरानी बातों की चर्चा: ममता बनर्जी के सदाबहार राजनीतिक विरोधी कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी का कहना है कि ऐसा पहली बार नहीं जब ममता बनर्जी ने संघ की तारीफ की है... ममता बनर्जी एक बार फिर बेनकाब हो गयी हैं.
2003 में एक किताब के रिलीज के मौके पर ममता बनर्जी के बयान का दावा करते हुए अधीर रंजन का कहना है, 'उन्होंने राज्य में तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए संघ का समर्थन मांगा था.'
सीपीएम नेता मोहम्मद सलीम ने भी बीती बातों के हवाले से कहा है, 'आरएसएस ने उन्हें दुर्गा कहा और वो उसके लिए दुर्गा की भूमिका निभा रही हैं.'
और AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी भी वही बात याद दिला रहे हैं, '2003 में भी उन्होंने आरएसएस को देशभक्त कहा था... और बदले में आरएसएस ने उन्हें दुर्गा कहा था.'
ये तभी की बातें हैं जब ममता बनर्जी सितंबर, 2003 में एनडीए में लौटी थीं. 2001 की शुरुआत में ममता बनर्जी ने तहलका स्टिंग ऑपरेशन के बाद एनडीए छोड़ दिया था. दोबारा एनडीए में शामिल होने पर वो तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री भी बनी थीं.
संघ से ममता को कोई अपेक्षा है क्या?
ममता बनर्जी के राजनीतिक विरोधी तो यही साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि संघ से उनका पुराना रिश्ता रहा है और वो विरोध के नाम पर सिर्फ दिखावा करती हैं - ऐसे में ये सवाल तो उठता ही है कि क्या ममता बीजेपी से पैचअप करना चाहती हैं?
ममता बनर्जी की मौजूदा राजनीति को देखें तो लगता है जैसे वो खुद को विपक्षी खेमे से अलग कर चुकी हैं - या कहें कि विपक्षी खेमे में अलग थलग पड़ने के चलते ममता बनर्जी ने खुद को समेट लिया है.
हाल के राष्ट्रपति चुनाव में ममता बनर्जी को अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार से दूरी बनाते देखा गया. उपराष्ट्रपति चुनाव से दूरी बना कर तो जैसे ममता बनर्जी बीजेपी की परोक्ष रूप से मददगार ही बन गयीं - और तब राजनीतिक विरोधियों ने दार्जिलिंग में हुई पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल (अब उपराष्ट्रपति बन चुके) जगदीप धनखड़ और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा से हुई ममता बनर्जी की मुलाकात से जोड़ कर पेश कर रहे थे.
ममता बनर्जी हाल तक खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प मानती थीं और उसी रूप में प्रोजक्ट भी कर रही थीं. खुद को मोदी का चैलेंजर नंबर 1 बनाने के लिए ही वो कांग्रेस को भी किनारे करने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन शरद पवार के साथ न देने की वजह से मामला लटक कर रह गया.
जैसे ही शरद पवार की मदद मिली कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी आगे बढ़ीं और ममता बनर्जी पिछड़ने लगीं. राष्ट्रपति चुनाव में सोनिया गांधी के बीमार पड़ जाने और प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ में राहुल गांधी के फंस जाने के चलते ममता बनर्जी को मौका जरूर मिला था, लेकिन वो उसका ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पायीं.
प्रधानमंत्री मोदी से पिछली मुलाकात को लेकर दिलीप घोष ने ममता बनर्जी को लेकर सेटिंग की बात की थी. ममता बनर्जी का कहना है कि न तो वो ऐसा काम करती हैं, न ही उनके साथ ये सब संभव है.
फिर भी जिस तरह से ममता बनर्जी के करीबी जांच एजेंसियों के घेरे में फंसे हुए हैं, असर तो ममता पर भी पड़ता ही होगा. पार्थ चटर्जी को पकड़ने के बाद प्रवर्तन निदेशालय अभिषेक बनर्जी से भी पूछताछ कर ही रहा है.
ये ठीक है कि ममता बनर्जी ने आरएसएस की तारीफ के बीच बीजेपी को बख्शा नहीं है, लेकिन अगली बार ऐसा नहीं हो सकता भला कौन दावा कर सकता है?
इन्हें भी पढ़ें :
ममता बनर्जी की तैयारी 2024 नहीं, 2029 के लिए है
ममता बनर्जी को विपक्ष की राजनीति में घुटन क्यों महसूस होने लगी?
ममता बनर्जी हमेशा मोदी-शाह को शक की बुनियाद पर चैलेंज नहीं कर सकतीं!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.