ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) का नया तेवर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को डराने लगा है. RSS को नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 123वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में ममता बनर्जी का राजनीतिक अंदाज बीजेपी के खिलाफ जाते समझ आ रहा है. तभी तो संघ की बंगाल यूनिट ने नेताजी के कार्यक्रम में जय श्रीराम (Jai Shriram) के नारे लगाने पर नाराजगी जतायी है.
अव्वल तो संघ को जय श्रीराम के नारे लगने पर खुशी महसूस होनी चाहिये, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में ममता बनर्जी का राजनीतिक विरोध परेशान कर बैठा है. वरना, संघ को ऐसी घटनाओं पर रिएक्ट करने की जरूरत ही क्यों होनी चाहिये?
बीजेपी ने तो ममता बनर्जी के जय श्रीराम के नारे पर रिएक्ट करने पर तृणमूल कांग्रेस नेता को ही कठघरे में खड़ा कर दिया था. पश्चिम बंगाल के प्रभारी बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने तो ममता बनर्जी के स्टैंड को अल्पसंख्यकों लोगों को खुश करने की तुष्टिकरण की नीति करार दी थी.
देखा जाये तो केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के साथ से ही बीजेपी ने नेताजी की विरासत और उनसे जुड़े मसले को भुनाने के मकसद से अपनी सक्रियता कुछ ज्यादा ही बढ़ा दी है - और कांग्रेस या दूसरे दल नेताजी के मामले में कभी भी बीजेपी जितना एक्टिव नहीं देखने को मिले हैं.
नेताजी के बंगाल से जुड़े होने के नाते ममता बनर्जी उनकी विरासत से जुड़ने की स्वाभाविक हकदार हैं - और चुनावी माहौल में भावनाओं को भुनाने की बात हो तो तृणमूल कांग्रेस बीजेपी पर इस मामले में भारी भी पड़ सकती है - क्या संघ की फिक्र की बस इतनी ही वजह हो सकती है?
ममता बनर्जी के सामने जय श्रीराम नारेबाजी से संघ नाराज
पश्चिम बंगाल विधानसभा में किसान आंदोलन के समर्थन और कृषि कानूनों कि विरोध में प्रस्ताव के साथ ही नेताजी जयंती पर जय श्रीराम के नारे लगाने पर भी निंदा प्रस्ताव लाया गया तो बीजेपी विधायकों ने भी उसी तरीके से विरोध जताया - प्रस्ताव की बात सुनते ही बीजेपी विधायकों ने जोर जोर से जय श्रीराम के नारे लगाने शुरू कर...
ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) का नया तेवर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को डराने लगा है. RSS को नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 123वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में ममता बनर्जी का राजनीतिक अंदाज बीजेपी के खिलाफ जाते समझ आ रहा है. तभी तो संघ की बंगाल यूनिट ने नेताजी के कार्यक्रम में जय श्रीराम (Jai Shriram) के नारे लगाने पर नाराजगी जतायी है.
अव्वल तो संघ को जय श्रीराम के नारे लगने पर खुशी महसूस होनी चाहिये, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में ममता बनर्जी का राजनीतिक विरोध परेशान कर बैठा है. वरना, संघ को ऐसी घटनाओं पर रिएक्ट करने की जरूरत ही क्यों होनी चाहिये?
बीजेपी ने तो ममता बनर्जी के जय श्रीराम के नारे पर रिएक्ट करने पर तृणमूल कांग्रेस नेता को ही कठघरे में खड़ा कर दिया था. पश्चिम बंगाल के प्रभारी बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने तो ममता बनर्जी के स्टैंड को अल्पसंख्यकों लोगों को खुश करने की तुष्टिकरण की नीति करार दी थी.
देखा जाये तो केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के साथ से ही बीजेपी ने नेताजी की विरासत और उनसे जुड़े मसले को भुनाने के मकसद से अपनी सक्रियता कुछ ज्यादा ही बढ़ा दी है - और कांग्रेस या दूसरे दल नेताजी के मामले में कभी भी बीजेपी जितना एक्टिव नहीं देखने को मिले हैं.
नेताजी के बंगाल से जुड़े होने के नाते ममता बनर्जी उनकी विरासत से जुड़ने की स्वाभाविक हकदार हैं - और चुनावी माहौल में भावनाओं को भुनाने की बात हो तो तृणमूल कांग्रेस बीजेपी पर इस मामले में भारी भी पड़ सकती है - क्या संघ की फिक्र की बस इतनी ही वजह हो सकती है?
ममता बनर्जी के सामने जय श्रीराम नारेबाजी से संघ नाराज
पश्चिम बंगाल विधानसभा में किसान आंदोलन के समर्थन और कृषि कानूनों कि विरोध में प्रस्ताव के साथ ही नेताजी जयंती पर जय श्रीराम के नारे लगाने पर भी निंदा प्रस्ताव लाया गया तो बीजेपी विधायकों ने भी उसी तरीके से विरोध जताया - प्रस्ताव की बात सुनते ही बीजेपी विधायकों ने जोर जोर से जय श्रीराम के नारे लगाने शुरू कर दिये.
ये तो अभी नहीं मालूम कि बीजेपी विधायकों का ये अंदाज संघ को कैसा लगा है, लेकिन कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हाल में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती समारोह में कुछ बीजेपी कार्यकर्ताओं का जय श्रीराम के नारे लगाना संघ की पश्चिम बंगाल इकाई को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा है.
ममता बनर्जी के सामने जय श्रीराम का नारा लगाये जाने की वो कोई पहली घटना नहीं थी, लेकिन उनका रिएक्शन वैसा तो बिलकुल नहीं था जैसा आमतौर पर देखने को मिलता रहा है. उस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ भी शामिल थे.
जैसे ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को बोलने के लिए बुलाया गया, दर्शकों के बीच से कुछ लोगों ने 'जय श्रीराम' के नारे लगाने शुरू कर दिये. कार्यक्रम संचालक ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की तब भी वे चुप नहीं हुए. फिर भी ममता बनर्जी ने वैसे तो बिलकुल भी नहीं रिएक्ट किया जैसे सड़क चलते जय श्रीराम के नारे सुनने के बाद ममता बनर्जी के रिएक्शन देखने को मिलते रहे हैं. नारेबाजी के बाद ममता बनर्जी को मंच पर बस इतना ही कहते सुना गया - "ना बोलबे ना...आमी बोलबे ना..."
कार्यक्रम संचालक के आग्रह पर ममता बनर्जी उठीं और डायस तक जाकर बोलीं भी, 'मुझे लगता है कि सरकार के कार्यक्रम की कोई मर्यादा होनी चाहिये... ये सरकार का कार्यक्रम है, किसी राजनीतिक पार्टी का नहीं... मैं तो प्रधानमंत्री जी और संस्कृति मंत्रालय की आभारी हूं कि आप लोगों ने कोलकाता में कार्यक्रम किया - लेकिन किसी को आमंत्रण देकर उसको बेइज्जत करना आपको शोभा नहीं देता... मैं फिर आप लोगों से कहती हूं... इसके विरोध में मैं कुछ नहीं बोलूंगी... जय हिंद. जय बांग्ला.'
ममता बनर्जी ने इंडिया टुडे को दिये एक इंटरव्यू में बताया कि वो अपने छोटे से भाषण के बाद भी वहीं बैठी रहीं. चाय भी पी, लेकिन किसी से कोई शिकायत नहीं की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी नहीं. बीजेपी की तरफ से ममता बनर्जी के व्यवहार को कार्यक्रम बहिष्कार के तौर पेश किये जाने की कोशिश रही.
पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रभारी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने इस घटना को ममता बनर्जी के राजनीतिक एजेंडा सेट करने से लेकर मुस्लिम तुष्टिकरण तक से जोड़ दिया था, लेकिन बीजेपी का ये स्टैंड संघ को ही ठीक नहीं लगा है.
पश्चिम बंगाल में दक्षिण बंग प्रांत के प्रमुख डॉक्टर जिष्णु बसु ने उन लोगों की पहचान करने की मांग की है जिन लोगों ने कार्यक्रम में नारेबाजी की थी. जिष्णु बसु ने साफ तौर पर कहा है कि संघ इस वाकये से नाराज है. कहते हैं, 'जिन लोगों ने जय श्रीराम का उद्घोष किया वे न ही नेताजी का सम्मान करते हैं और न ही भगवान श्रीराम का.'
RSS नेता का कहना है कि ये कार्यक्रम एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की याद में रखा गया था, इसलिए कार्यक्रम में जय श्रीराम के नारे का वो समर्थन नहीं कर रहा है.
संघ को किस बात का डर है
बीजेपी के बचाव में संघ का ये बयान तो ठीक है, लेकिन प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में शामिल लोगों की पहचान के लिए बयानबाजी अजीब लगती है. प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में वो भी मंच के नजदीक कोई यूं ही तो पहुंचा नहीं होगा. बहरहाल, इसके जरिये संघ की चिंता जरूर समझ में आती है.
पश्चिम बंगाल में संघ ने अपनी मौजूदगी तो वाम मोर्चे के शासन के दौरान ही दर्ज करायी थी, लेकिन 2011 में ममता बनर्जी की सरकार बनने के बाद एक्टिव हुआ और 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद तो सुपर एक्टिव हो चला है - और यही वजह है कि पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले ही करीब सवा साल के अंतराल में संघ प्रमुख मोहन भागवत पांच बार पश्चिम बंगाल का दौरा कर चुके हैं. मोहन भागवत की आखिरी यात्रा अमित शाह के 19 दिसंबर की विस्फोटक यात्रा से ठीक पहले हुई है. अमित शाह के दौरे उसी दौरे में टीएमसी छोड़ कर शुभेंदु अधिकारी ने सदल बल बीजेपी ज्वाइन किया था.
सवाल ये है कि जब बीजेपी को ममता बनर्जी के रिएक्शन की परवाह नहीं है, तो संघ के इतना चिंतित होने की क्या वजह हो सकती है?
बीजेपी की राजनीति अपनी जगह है, लेकिन संघ के प्रचारक लोगों के बीच होते हैं और उनके मन की बात वो बीजेपी कार्यकर्ताओं और नेताओं के मुकाबले कहीं ज्यादा ठीक से सुन और समझ पाते हैं. संघ के कार्यकर्ता लोगों के बीच पैठ बना कर बीजेपी के पक्ष में माहौल गढ़ने की कोशिश करते हैं. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में संघ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने संसदीय क्षेत्र के इलाकों पर ज्यादा ध्यान देने की सलाह दी थी. तब टिकट बंटवारे को लेकर बीजेपी कार्यकर्ताओं में भारी गुस्सा देखा गया था. फिर प्रधानमंत्री मोदी ने वहां कैंप किया - एक बड़ा सा रोड शो भी किया था. स्थिति संभल भी गयी थी.
पश्चिम बंगाल को लेकर भी संघ की चिंता कुछ कुछ वैसी ही लगती है. नेताजी के साथ पश्चिम बंगाल के लोगों की भावनाएं गहरायी तक जुड़ी हुई हैं - और प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में मंच से ही ममता बनर्जी ने अपने समर्थकों को ये मैसेज तो दे ही दिया है कि बीजेपी नेताजी के नाम पर कार्यक्रम करती है, लेकिन उसका एजेंडा नहीं बदलता. ममता बनर्जी के छोटे से भाषण में यही बताने और जताने की कोशिश रही कि वो नेताजी का सम्मान करती हैं, इसीलिए वैसा रौद्र रूप नहीं दिखा रही हैं जैसा सड़क पर जय श्रीराम सुनते ही उनका रिएक्शन होता है.
इंडिया टुडे के साथ इंटरव्यू में ममता बनर्जी का दावा रहा कि जय श्रीराम ही नहीं वहां और भी नारे लगाये गये थे. बातचीत में ममता बनर्जी ने मोदी-मोदी का भी जिक्र किया और ये समझाने की कोशिश की कि उनको भगवान राम से नहीं बल्कि बीजेपी के जय श्रीराम के राजनीतिक स्लोगन से चिढ़ है.
ममता बनर्जी बोलीं, 'मैं भी हिंदू हूं' और भगवान राम जिसकी पूजा करते हैं उसी दुर्गा की वो भी पूजा करती हैं. सीधे सीधे तो नहीं लेकिन इशारों इशारों में ही ममता बनर्जी ने ये भी बताया कि किस तरह फोटो शॉप का कमाल दिखा कर बीजेपी का आईटी सेल उनको बदनाम करने की कोशिश करता है, लेकिन वो स्ट्रीट फाइटर हैं और हमेशा फाइटर ही रहेंगी.
ममता बनर्जी ने अमित शाह को 'भइया' संबोधित करते हुए हिंदुत्व पर बहस के लिए भी चैलेंज किया और कहा कि सिर्फ वही क्यों वो किसी से भी हिंदुत्व पर डिबेट करने को तैयार हैं - क्या ममता बनर्जी का यही तेवर संघ को डराने लगा है?
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