कोरोना वायरस (Coronavirus) से आयी वैश्विक महामारी में पश्चिम बंगाल और केरल राजनीतिक तौर पर एक ही मोड़ पर खड़े देखे जा सकते हैं - लेकिन राजनीतिक हिसाब से देखें तो आपस में दोनों ही अलग अलग छोर पर खड़े नजर आ रहे हैं. ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को भी मालूम है कि 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की नजर दोनों ही राज्यों पर बराबर मजबूती से टिकी हुई है - लेकिन कोरोना वायरस के खिलाफ सभी देख रहे हैं कि ममता बनर्जी और पी. विजयन दोनों की लड़ाई अलग अलग तरीके की है.
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से तो ममता बनर्जी की तनातनी अरसे से चली आ रही है, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को ये तो मालूम होना ही चाहिये कि आयुष्मान भारत योजना और कोरोना को लेकर हो रहे उपायों में फर्क है. ममता बनर्जी की केंद्र सरकार से हालिया नाराजगी की पहली वजह लॉकडाउन का ठीक से पालन न होने को लेकर गृह मंत्रालय का नोटिस रहा - और अब कोरोना वायरस संक्रमण के जमीनी हालात का जायजा लेने के लिए अमित शाह की तरफ से भेजी गयी केंद्रीय टीम है. ममता बनर्जी की नजर में ये सब संघीय ढांचे पर राजनीतिक हमला है.
ऐसा लगता है मोदी-शाह से दो-दो करने में ममता बनर्जी खुद की सामर्थ्य को अकेले अपर्याप्त पा रही हैं - और यही वजह है कि विशेष तौर संदेश भेज कर अपने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) को कोलकाता बुला लिया है - फिर तो ये समझने में कोई मुश्किल नहीं होनी चाहिये सब सारी ऊर्जा राजनीति में झोंक दी जाएगी सवाल यही है कि सियासत के इस खेल में पश्चिम बंगाल के लोगों को कोरोना वायरस से कौन बचाएगा?
ममता बनर्जी मोदी-शाह से नाराज क्यों हैं
कोरोना वायरस के ज्यादा संक्रमण वाले इलाकों के जमीनी हालात जानने के मकसद से केंद्र सरकार ने कई टीम बनायी है. ये टीमें कोरोना प्रभावित इलाकों का दौरा कर अपनी रिपोर्ट पेश करेंगी जिसके आधार पर वहां के लिए जरूरी इंतजाम किये जा सकें. केंद्र की तरफ से ऐसी टीम चार राज्यों में भेजी गयी है उनमें से तीन राज्यों गैर बीजेपी सरकारें...
कोरोना वायरस (Coronavirus) से आयी वैश्विक महामारी में पश्चिम बंगाल और केरल राजनीतिक तौर पर एक ही मोड़ पर खड़े देखे जा सकते हैं - लेकिन राजनीतिक हिसाब से देखें तो आपस में दोनों ही अलग अलग छोर पर खड़े नजर आ रहे हैं. ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को भी मालूम है कि 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की नजर दोनों ही राज्यों पर बराबर मजबूती से टिकी हुई है - लेकिन कोरोना वायरस के खिलाफ सभी देख रहे हैं कि ममता बनर्जी और पी. विजयन दोनों की लड़ाई अलग अलग तरीके की है.
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से तो ममता बनर्जी की तनातनी अरसे से चली आ रही है, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को ये तो मालूम होना ही चाहिये कि आयुष्मान भारत योजना और कोरोना को लेकर हो रहे उपायों में फर्क है. ममता बनर्जी की केंद्र सरकार से हालिया नाराजगी की पहली वजह लॉकडाउन का ठीक से पालन न होने को लेकर गृह मंत्रालय का नोटिस रहा - और अब कोरोना वायरस संक्रमण के जमीनी हालात का जायजा लेने के लिए अमित शाह की तरफ से भेजी गयी केंद्रीय टीम है. ममता बनर्जी की नजर में ये सब संघीय ढांचे पर राजनीतिक हमला है.
ऐसा लगता है मोदी-शाह से दो-दो करने में ममता बनर्जी खुद की सामर्थ्य को अकेले अपर्याप्त पा रही हैं - और यही वजह है कि विशेष तौर संदेश भेज कर अपने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) को कोलकाता बुला लिया है - फिर तो ये समझने में कोई मुश्किल नहीं होनी चाहिये सब सारी ऊर्जा राजनीति में झोंक दी जाएगी सवाल यही है कि सियासत के इस खेल में पश्चिम बंगाल के लोगों को कोरोना वायरस से कौन बचाएगा?
ममता बनर्जी मोदी-शाह से नाराज क्यों हैं
कोरोना वायरस के ज्यादा संक्रमण वाले इलाकों के जमीनी हालात जानने के मकसद से केंद्र सरकार ने कई टीम बनायी है. ये टीमें कोरोना प्रभावित इलाकों का दौरा कर अपनी रिपोर्ट पेश करेंगी जिसके आधार पर वहां के लिए जरूरी इंतजाम किये जा सकें. केंद्र की तरफ से ऐसी टीम चार राज्यों में भेजी गयी है उनमें से तीन राज्यों गैर बीजेपी सरकारें हैं.
ऐसी ही एक टीम पश्चिम बंगाल भेजी गयी है. पश्चिम बंगाल के अलावा जिन राज्यों में ये टीमें भेजी गयी हैं, वे हैं - महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान. सिर्फ मध्य प्रदेश ऐसा राज्य है जहां बीजेपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं. वो भी देश में संपूर्ण लॉकडाउन लागू होने से दो दिन पहले ही शपथ लिये थे.
बाकी राज्यों में तो केंद्रीय टीमों का कोई विरोध नहीं हुआ है लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार ने पहले से ही सहयोग करने से इंकार कर रखा है. कोलाकाता और जलपाई गुड़ी जिलों से कोरोना वायरस संक्रमण के ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं जिनके दौरे पर ये टीम निकली है, लेकिन ममता बनर्जी इसे देश की संघीय व्यवस्था के खिलाफ बता रही हैं. ममता बनर्जी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से पूछा है कि किस आधार पर ये टीम पश्चिम बंगाल भेजी गयी है.
ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओब्रायन का दावा है कि उनकी सरकार अच्छे से काम कर रही है - मरीजों की संख्या कम इसलिए है क्योंकि राज्य की सरकारी मशीनरी ने मेहनत की है. आरोप है कि पश्चिम बंगाल में कोरोना के टेस्ट में लापरवाही बरती जा रही है और आंकड़े दर्ज करने में भी हेरफेर हो रही है.
डेरेक ओब्रायन कहते हैं, 'पश्चिम बंगाल में कोरोना के मामले इसलिए कम हैं क्योंकि राज्य सरकार ने मेहनत की है - और हमने कोरोना की जांच और मरीजों की पहचान बहुत पहले ही शुरू कर दी थी.'
पश्चिम बंगाल सरकार के मुख्य सचिव राजीव सिन्हा सारा दोष ICMR पर मढ़ने की कोशिश करते हैं. डेरेक ओब्रायन से अलग सिन्हा बताते हैं कि टेस्ट की संख्या इसलिए कम है क्योंकि जांच वे लैब ही कर सकती है जिनको ICMR की मान्यता मिली है और ऐसी लैब काफी कम हैं. कहते हैं कि जैसे जैसे मान्यता प्राप्त लैब की संख्या बढ़ती जाएगी जांच भी तेज हो जाएगी.
कुछ बातें इस बीच ऐसी भी सामने आ रही हैं जो सरकारी दावों की हवा निकाल रही हैं. सोशल मीडिया पर डाले गये वीडियो और पोस्ट से मालूम होता है कि सरकारी दावों से हकीकत काफी दूर है - और मीडिया के साथ बातचीत में बगैर नाम बताये डॉक्टर भी कई चौंकाने वाली जाकारियां शेयर कर रहे हैं.
1. ममता सरकार पर आरोप है कि मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में लॉकडाउन के बावजूद काफी ढिलायी दी गयी है. तब्लीगी जमात के लोगों के लौटने पर क्वारंटीन की कौन कहे उनको भी घूमिने की छूट दी गयी - जब पूरे देश में कोरोना वायरस ऐसा करने से बढ़ा हो फिर पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए ये कितना जोखिम भरा होगा आसानी से समझा जा सकता है.
2. डॉक्टरों को कोरोना से जंग में अपनी सुरक्षा स्वयं करनी पड़ रही है. जरूरत के हिसाब से उनको PPE किट, मास्क और ग्लव नहीं मिल रहे हैं. ममता बनर्जी ने इसका ठीकरा भी केंद्र सरकार पर ही फोड़ दिया है - ये कह कर कि उनके राज्य को तो मिला ही नहीं.
3. डॉक्टर खुद को बहुत ही असुरक्षित माहौल में काम करते पा रहे हैं और हर संभव तरीके से वे अपनी पीड़ा साझा करने की कोशिश भी कर रहे हैं. कई डॉक्टरों ने ये चीजें सोशल मीडिया पर शेयर भी की है.
सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात तो ये है कि डॉक्टरों ने मेडिकल एथिक्स के खिलाफ काम कराये जाने का इल्जाम लगया है. डॉक्टरों के मुताबिक, वे डेथ सर्टिफिकेट जारी करते वक्त भी मौत की वजह न मरीजों के घरवालों को बता पा रहे हैं और न ही सार्वजनिक तौर पर - मतलब, इस तरह के दबाव में डॉक्टरों को काम करने को मजबूर होना पड़ रहा है.
प्रशांत किशोर कैसी मदद करेंगे?
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रशांत किशोर कार्गो फ्लाइट से कोलकाता उसी वक्त पहुंचे जब केंद्र सरकार की इंटर मिनिस्ट्रियल सेंट्रल टीम (IMCT) वहां पहुंची. दरअसल, प्रशांत किशोर काफी पहले से 2021 में होने वाले पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव की रणनीति तैयार काम कर रहे हैं. बीच में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को भी अपनी सेवाएं दे रहे थे और लॉकडाउन से पहले अपने गृह राज्य में 'बात बिहार की' मुहिम चला रहे थे. कोलकाता पहुंचते ही प्रशांत किशोर जेडीयू के अपने पुराने साथी के निशाने पर फिर से आ गये हैं.
माना जा रहा है कि प्रशांत किशोर बचाव की मुद्रा में आ चुकी तृणमूल कांग्रेस की सोशल मीडिया पर छवि निखारने की कोशिश करने वाले हैं. ऐसा लगता है कि हर तरफ से घिरी होने के चलते ममता बनर्जी ने मदद के लिए प्रशांत किशोर को बुलाया है. अगर प्रशांत किशोर मोर्चा संभाल लेते हैं तो वो सारे काम छोड़ कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से पूरी ऊर्जा के साथ लड़ाई लड़ सकेंगी.
हाल फिलहाल कई बीजेपी नेताओं ने ममता बनर्जी पर हमले तेज भी कर दिये हैं. केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो, बीजेपी के राज्य सभा सदस्य स्वपन दासगुप्ता और प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष लगातार ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल के लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ करने जैसे आरोपों के कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करते आ रहे हैं. पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ के साथ तो तनातनी जारी रहती ही है.
केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ आंदोलन को हवा देने में प्रशांत किशोर की खासी भूमिका देखने को मिली थी. तब समझा गया कि वो अरविंद केजरीवाल के पक्ष में माहौल गढ़ने के लिए विपक्षी खेमे के राजनीतिक दलों को लामबंद करने की कोशिश कर रहे हैं - अब सवाल है कि प्रशांत किशोर कोरोना संक्रमण काल में ममता बनर्जी को सियासी क्वारंटीन में रखने के लिए क्या जुगाड़ लेकर पहुंचे हो सकते हैं?
1. लॉकडाउन पर सवाल: लॉकडाउन बढ़ाये जाने को लेकर प्रशांत किशोर पहले ही सवाल उठा चुके हैं. लॉकडाउन पर प्रशांत किशोर का सवाल उठाना भी सवालों के घेरे में ही लगता है. मुख्यधारा की राजनीति और उससे पहले चुनावी रणनीति का काम शुरू करने से पहले प्रशांत किशोर संयुक्त राष्ट्र के लिए स्वास्थ्य के क्षेत्र में ही काम करते थे.
पूरी दुनिया में कोरोना के खिलाफ लॉकडाउन सबसे प्रभावी उपायों में से एक है और WHO के प्रमुख ने तो इसे आगे भी जारी रखने की सिफारिश की है - ऐसे में प्रशांत किशोर का लॉकडाउन बढ़ाये जाने पर सवाल उठाना उनके पुराने काम तो नहीं, हां - नये काम को सूट जरूर करता है. एक नये ट्वीट में लॉकडाउन को लेकर नये सिरे से सरकार के फैसले की आलोचना की है
संभव है केंद्र के टीम भेजने के फैसले को काउंटर करने के लिए प्रशांत किशोर नये सिरे से ऐसे ही सवालिया निशान लगाने की कोशिश करें. ये भी हो सकता है कि लॉकडाउन को लेकर भी विरोध का कोई नया तरीका पेश करें.
2. सोशल मीडिया काउंटर स्ट्रैटेजी: ममता बनर्जी सबसे ज्यादा परेशान सोशल मीडिया पर अपने खिलाफ बन रहे माहौल से हैं. डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ भी अपनी मुश्किल साझा करने के लिए सोशल मीडिया का ही सहारा ले रहे हैं - अब प्रशांत किशोर कोई काउंटर नैरेटिव तैयार करेंगे जिससे ममता बनर्जी के खिलाफ चल रही मुहिम से बराबरी पर मुकाबला किया जा सके.
3. कोरोना पर भी CAA की तरह एकजुटता की कोशिश: हाल फिलहाल देखने को मिला है कि क्लाइंट को खामोश कर प्रशांत किशोर खुद बयान देते हैं. फायदा ये होता है कि बात भी हो जाती है और क्लाइंट भी निशाने पर आने से बच जाता है. दिल्ली चुनाव के दौरान सीएए के मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल चुप्पी साधे हुए थे और प्रशांत किशोर विपक्ष के मुख्यमंत्रियों को ललकार रहे थे. फिर कांग्रेस नेतृत्व को भी सलाह दिये - और अपनी बात मानने के लिए राहुल गांधी और सोनिया गांधी को शुक्रिया भी कहा.
कोरोना को लेकर भी तो राजनीति शुरू हो ही गयी है - प्रशांत किशोर की कोशिश होगी कि वो दूसरी छोर पर खड़े होकर मोदी सरकार से भिड़ने को तैयार मुख्यमंत्रियों को फिर से खड़ा करने की कोशिश करें. मुश्किल ये है कि फिलहाल शायद ही कोई मुख्यमंत्री खुल कर प्रशांत किशोर के बहकावे में आ पाये - सभी को मालूम है कि ऐसे मुश्किल घड़ी में एक भी गलत कदम से लेने के देने पड़ सकते हैं.
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