ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने पश्चिम बंगाल में वोटिंग के पहले दौर से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को लेकर ऐसा बयान दिया है, जिसका राजनीतिक फायदा कम और चुनावी नुकसान ज्यादा होने का अंदेशा है.
बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष की ममता बनर्जी को लेकर टिप्पणी से पार्टी थोड़ी सहमी हुई लग रही थी. तृणमूल कांग्रेस नेता ने प्रधानमंत्री मोदी को लेकर जो कुछ कहा है उसका राजनीतिक फायदा कितना होगा, कहना मुश्किल है, लेकिन नुकसान का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. प्रधानमंत्री मोदी को लेकर ममता बनर्जी ने जो बात कही है, उसका असर 2014 से पहले के गुजरात चुनाव में और 2019 के आम चुनाव में भी देखा जा चुका है.
मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते विधानसभा चुनाव के दौरान एक बार सोनिया गांधी ने उनके बारे में जो निजी टिप्पणी की, बाद में हमेशा ही परहेज करते देखा गया - और 2019 के आम चुनाव में राहुल गांधी के एक ही स्लोगन पर पूरी ताकत झोंक देने का नतीजा ये हुआ कि रिजल्ट आने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी छोड़े तो अब तक बैठने का नाम नहीं ले रहे हैं.
ममता बनर्जी को दिलीप घोष की टिप्पणी से स्वाभाविक तौर पर गुस्सा आया होगा, लेकिन उसकी भरपाई मालूम नहीं वो प्रधानमंत्री मोदी को टारगेट कर क्यों करना चाहती हैं. अच्छा तो ये होता कि ममता बनर्जी सोनिया गांधी और राहुल गांधी (Sonia and Rahul Gandhi) जैसे हमलावर रुख अपनाने की बजाये दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को फॉलो करतीं.
लगता तो नहीं कि ममता बनर्जी ने अपने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सलाह पर ऐसा बयान दिया होगा, वो भी तब जब पश्चिम बंगाल में पहले चरण की वोटिंग के दौरान प्रधानमंत्री मोदी बांग्लादेश के दौरे पर होंगे और वोट डालने के लिए घरों से निकलते वक्त लोग टीवी पर उनको मंदिरों में दर्शन पूजन करते देख रहे होंगे.
मोदी पर ममता के बेकार बोल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ममता बनर्जी के ताजा बयान से पहले पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष की...
ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने पश्चिम बंगाल में वोटिंग के पहले दौर से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को लेकर ऐसा बयान दिया है, जिसका राजनीतिक फायदा कम और चुनावी नुकसान ज्यादा होने का अंदेशा है.
बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष की ममता बनर्जी को लेकर टिप्पणी से पार्टी थोड़ी सहमी हुई लग रही थी. तृणमूल कांग्रेस नेता ने प्रधानमंत्री मोदी को लेकर जो कुछ कहा है उसका राजनीतिक फायदा कितना होगा, कहना मुश्किल है, लेकिन नुकसान का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. प्रधानमंत्री मोदी को लेकर ममता बनर्जी ने जो बात कही है, उसका असर 2014 से पहले के गुजरात चुनाव में और 2019 के आम चुनाव में भी देखा जा चुका है.
मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते विधानसभा चुनाव के दौरान एक बार सोनिया गांधी ने उनके बारे में जो निजी टिप्पणी की, बाद में हमेशा ही परहेज करते देखा गया - और 2019 के आम चुनाव में राहुल गांधी के एक ही स्लोगन पर पूरी ताकत झोंक देने का नतीजा ये हुआ कि रिजल्ट आने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी छोड़े तो अब तक बैठने का नाम नहीं ले रहे हैं.
ममता बनर्जी को दिलीप घोष की टिप्पणी से स्वाभाविक तौर पर गुस्सा आया होगा, लेकिन उसकी भरपाई मालूम नहीं वो प्रधानमंत्री मोदी को टारगेट कर क्यों करना चाहती हैं. अच्छा तो ये होता कि ममता बनर्जी सोनिया गांधी और राहुल गांधी (Sonia and Rahul Gandhi) जैसे हमलावर रुख अपनाने की बजाये दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को फॉलो करतीं.
लगता तो नहीं कि ममता बनर्जी ने अपने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सलाह पर ऐसा बयान दिया होगा, वो भी तब जब पश्चिम बंगाल में पहले चरण की वोटिंग के दौरान प्रधानमंत्री मोदी बांग्लादेश के दौरे पर होंगे और वोट डालने के लिए घरों से निकलते वक्त लोग टीवी पर उनको मंदिरों में दर्शन पूजन करते देख रहे होंगे.
मोदी पर ममता के बेकार बोल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ममता बनर्जी के ताजा बयान से पहले पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष की बातें जान लेते हैं. दिलीप घोष, एक चुनावी रैली में ममता बनर्जी के पैर में लगी चोट का जिक्र कर रहे थे - और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को बरमूडा पहनने की सलाह दे रहे थे.
दिलीप घोष ने कहा, 'ममता बनर्जी को साड़ी की जगह बरमूडा पहनना चाहिए... उनका प्लास्टर कट चुका है... क्रेप बैंडेज बंधा है... पांव उठाकर लोगों को दिखा रही हैं... साड़ी पहने हैं, एक पांव ढका है और दूसरा खुला है - जब उनको अपना पांव खुला ही रखना है तो साड़ी की जगह बरमूडा पहन सकती हैं.'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को छोड़ कर बाकी सभी ने ममता बनर्जी की चोट को ड्राम और नौटंकी ही करार दिया था, लेकिन दिलीप घोष जैसी टिप्पणी तो किसी के भी मुंह से सुनने को नहीं मिली.
लेकिन प्रधानमंत्री मोदी को लेकर जो कुछ भी ममता बनर्जी ने कहा है, वो क्या दिलीप घोष से बदला समझ कर बोला है?
ममता बनर्जी को ये तो नहीं ही भूलना चाहिये कि जब उनके सारे विरोधी उनके पैर की चोट का मजाक उड़ा रहे थे, प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी चोट पर दुख जताते हुए उनको भारत की बेटी बताया और जल्दी से ठीक हो जाने की शुभकामनाएं भी दी. हो सकता है ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री मोदी की बातें बहुत अच्छी नहीं लगी हों - क्योंकि तृणमूल कांग्रेस के चुनावी गीत में तो ममता बनर्जी को बंगाल की बेटी के रूप में प्रोजेक्ट किया जा रहा है.
24 परगना में एक चुनावी रैली में ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मोदी को 'खूनियों का राजा' और 'खूनियों का जमींदार' कह कर संबोधित किया. ममता बनर्जी के इस बयान ने सोनिया गांधी के उस चुनावी बयान की याद दिला दी है जिसमें मोदी को 'मौत का सौदागर' बताया गया था.
2007 के विधानसभा चुनाव में में नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रचार करने पहुंची कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नवसारी की रैली में कहा था, 'गुजरात की सरकार चलाने वाले झूठे, बेईमान, मौत के सौदागर हैं.'
दरअसल, कांग्रेस नेतृत्व 2002 के गुजरात दंगों को लेकर मोदी के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाये रहता था. कांग्रेस की तरफ से मोदी पर हमले तो कम नहीं हुए, लेकिन उसके बाद चुनाव नतीजों का असर ये हुआ कि सोनिया गांधी ने कभी वैसा बयान नहीं दिया.
सोनिया गांधी के बयान पर मोदी ने तो रिएक्ट किया ही, जनता ने भी चुनाव नतीजों में कांग्रेस नेतृत्व को जवाब दे दिया था - 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा में बीजेपी ने जहां 117 सीटें जीती, वहीं कांग्रेस के हिस्से में महज 59 सीटें ही आ सकी.
सिर्फ सोनिया गांधी ही क्यों - ममता बनर्जी को 2019 के आम चुनाव में राहुल गांधी की नारेबाजी भी नहीं भूलनी चाहिये - 'चौकीदार चोर है' - ये नारा लगाने और लगवाने का क्या हाल हुआ वो जानती ही हैं. आम चुनाव से पहले ममता बनर्जी भी प्रधानमंत्री पद की दावेदार हुआ करती रहीं. अगर कांग्रेस थोड़ी बेहतर स्थिति में रहती तो ममता बनर्जी के लिए भी संभावनाएं खत्म नहीं हुई होतीं.
कोई दो राय नहीं होनी चाहिये कि प्रधानमंत्री मोदी को लेकर सोनिया गांधी के बयान का जो मकसद रहा, ममता बनर्जी का भी बिलकुल वही होगा - लेकिन थोड़े से वोटों के चक्कर में ममता बनर्जी भला बड़ा नुकसान उठाने को तैयार क्यों हो जाती हैं.
महीने भर पहले की ही तो बात है. फरवरी, 2021 में ममता बनर्जी हुगली में चुनावी रैली कर रही थीं. ये नंदीग्राम में उनके पैर में चोट लगने से पहले की बात है. बीजेपी को गुंडा बताते हुए ममता बनर्जी ने ऊंची आवाज में कहा कि गुंडे बंगाल पर शासन नहीं करेंगे. बंगाल पर बंगाल का ही शासन रहेगा. बंगाल पर गुजरात का शासन नहीं होगा.
प्रधानमंत्री मोदी सहित बीजेपी नेताओं अमित शाह और जेपी नड्डा के चुनाव प्रचार से खफा ममता बनर्जी ने कहा कि बीजेपी उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस को हमेशा ही टोलाबाज कह कर बुलाती है, लेकिन 'मैं कहती हूं बीजेपी दंगाबाज है और धंधाबाज है.'
पहले तो लगा कि ममता बनर्जी प्रधानमंत्री मोदी को बख्शते हुए बाकी बीजेपी नेताओं को टारगेट कर रही हैं, लेकिन जैसे ही तृणमूल कांग्रेस नेता ने खुद को गोलकीपर बताया, साफ हो गया कि उनके निशाने पर प्रधानमंत्री मोदी ही हैं. असल में उससे कुछ ही दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी ने एक रैली में बंगाल के लोगों को फुटबाल की भाषा में समझाते हुए राम-कार्ड चलने की बात कही थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने हिसाब से ममता बनर्जी के जय श्रीराम के नारे के विरोध का जवाब दे रहे थे. नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लेकर आयोजित एक कार्यक्रम में जय श्रीराम के नारे लगाये जाने पर ममता बनर्जी काफी भड़क गयी थीं.
फौरन ही ममता बनर्जी ने पूरी तरह साफ कर दिया कि वो गुंडे और दंगाबाज किसी और को नहीं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी को ही बता रही हैं. ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश का सबसे बड़ा दंगाबाज तक बता डाला है - और बोलीं, 'जैसा अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ हुआ, मोदी के साथ उससे भी बुरा होगा...'
अगर ममता बनर्जी की बात सही भी होने की संभावना बनती है तो अभी वैसी स्थिति आने में काफी वक्त है. कम से कम तीन साल और लगेंगे - लेकिन ममता बनर्जी के लिए तो इम्तिहान की घड़ी बिलकुल सामने है.
बांग्लादेश से बंगाल पर नजर तो रहेगी ही
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी को लेकर फिलहाल ममता बनर्जी जो कुछ भी कह रही हैं, उसका सीधा सीधा सिर्फ दो मतलब है. पहला, पश्चिम बंगाल के मुस्लिम वोट बैंक को बंटने से बचाना और दूसरा, नेताओं के तृणमूल कांग्रेस छोड़ कर चले जाने के बाद कार्यकर्ताओं का जोश जैसे तैसे बनाये रखना. सोनिया गांधी हों या राहुल गांधी, सभी का मकसद एक ही है.
पश्चिम बंगाल जैसा तो नहीं लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल की भी चुनौतियां ममता बनर्जी से कम नहीं थीं. ऐसा भी नहीं कि बीजेपी सिर्फ टीएमसी नेताओं का ही शिकार कर रही हो, जब भी मौका मिला है बीजेपी ने आम आदमी पार्टी के विधायकों तक को झटक लिया है - और उपचुनावों में पार्टी का टिकट देकर मैदान भी उतार दिया है. आंकड़े अलग अलग हो सकते हैं.
जब दिल्ली में चुनाव हो रहे थे तो शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ धरना प्रदर्शन चल रहा था - और बीजेपी नेता बार बार ललकाते हुए अरविंद केजरीवाल को गलती करने के लिए उकसा रहे थे. मगर, अरविंद केजरीवाल ने भी तय कर लिया था कि नहीं बोलेंगे तो नहीं ही बोले - बल्कि, लाइव टीवी पर मौका देख कर बीजेपी को काउंटर करने के मकसद से हनुमान चालीसा भी पढ़ डाले.
खास बात ये भी है कि अरविंद केजरीवाल की चुनावी मुहिम भी प्रशांत किशोर ही संभाल रहे थे, जबकि ममता बनर्जी के लिए वो 2019 के आम चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही जुटे हुए हैं. कई बार रैलियों में ममता बनर्जी के बात व्यवहार में प्रशांत किशोर का असर भी देखा गया है, लेकिन ममता बनर्जी का ताजा बयान थोड़ा संदेह पैदा करता है कि प्रशांत किशोर टीएमसी नेता को ऐसे सलाह देने लगे हैं. संभव तो कुछ भी है, खासकर तब जब प्रशांत किशोर खुद ही कह चुके हों कि अगर बीजेपी बंगाल में 100 सीटों से ज्यादा पा गयी तो वो ये धंधा ही छोड़ देंगे. वैसे पंजाब से भी खबर आ रही है कि वो कांग्रेस विधायकों की क्लास लेने लगे हैं.
27 मार्च को जब पश्चिम बंगाल की 30 सीटों के लिए लोग वोट डाल रहे होंगे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश में मंदिरों में दर्शन कर रहे होंगे. मई, 2018 में भी प्रधानमंत्री मोदी को नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में ऐसे ही पूजा अर्चना करते देखने को मिला था - खास बात ये रही कि उस दिन कर्नाटक में लोग विधानसभा के लिए वोट डाल रहे थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश की आजादी की सालगिरह पर आयोजित स्वर्ण जयंती समारोह में हिस्सा लेने ढाका पहुंचे हैं और वहां का करीब 36 घंटे का कार्यक्रम है. इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी का बरीसाल में सुगंधा शक्तिपीठ और ओरकंडी मंदिर जाने का भी कार्यक्रम है.
सुगंधा शक्तिपीठ दौरे का भी पॉलिटिकल मैसेज होगा. बीजेपी ममता बनर्जी के चंडीपाठ को लेकर हमलावर रही है. योगी आदित्यनाथ तो कह रहे हैं कि मोदी सरस्वती पाठ में गलती करती हैं, लेकिन कलमा बिलकुल सही पढ़ती हैं.
ठीक वैसे ही ओरकांडी मंदिर, मतुआ महासंघ के संस्थापक हरिचंद्र ठाकुर से जुड़ा है. मतुआ समुदाय का पश्चिम बंगाल में काफी प्रभाव है. 2016 के विधानसभा चुनाव में तो टीएमसी को मतुआ समुदाय के प्रभाव वाले इलाकों में 21 में से 18 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन आम चुनाव के बाद स्थिति बदली बतायी जा रही है. बीजेपी कम से कम 9 सीटों पर बढ़त बनाने में सफल रही है.
जब हालत ये हो रखी है कि तृणमूल कांग्रेस को कदम कदम पर बीजेपी के प्रभाव से जूझना पड़ रहा है. ओपिनियन पोल में बीजेपी बहुमत के करीब पहुंची देखी जा रही है - और मूड ऑफ द नेशन सर्वे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के मुकाबले खुद ममता बनर्जी भी कहीं आस पास नहीं खड़ी हो पा रही हैं, तो भला वो कुल्हाड़ी पर पांव क्यों मार रही हैं - जैसे महाराष्ट्र में कंगना रनौत मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से पंगा लेती रहती हैं.
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