10.45 AM, कोलकाता - 2 मई को आये चुनाव नतीजों के तीन दिन बाद पश्चिम बंगाल में एक साथ समानांतर दो-दो शपथग्रहण समारोह चल रहे थे - एक राजभवन में और दूसरा बीजेपी दफ्तर में.
राजभवन में गवर्नर जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) जहां ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को मुख्यमंत्री पद और गोपनीयता की शपथ दिला रहे थे, ऐन उसी वक्त बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) पार्टी दफ्तर में चुनाव जीत कर आये सभी विधायकों को शपथ दिला रहे थे कि कैसे रोड मैप के साथ विपक्ष की भूमिका निभानी है - एक खास बात और देखने को मिली, ममता बनर्जी की ही तरह बीजेपी विधायकों को भी बांग्ला भाषा में ही शपथ दिलायी गयी.
क्या ये देश भर में 'जय श्रीराम' से इतर पश्चिम बंगाल में 'जय बांग्ला' की राह अख्तियार कर लेने का संकेत है?
जेपी नड्डा का कहना है, 'प्रजातंत्र में सबको शपथ लेने का अधिकार है - लेकिन हम भी शपथ लेते हैं कि बंगाल की धरती से राजनीतिक हिंसा खत्म करेंगे.' बंगाल में नतीजे आने के बाद हुई हिंसा के विरोध में बीजेपी नेता देश भर में धरना दे रहे हैं.
शपथ समारोह के आखिर में जो कुछ हुआ वो कुछ लोगों को अचरज भरा लगा. मान भी लेते हैं कि गवर्नर जगदीप धनखड़ ने जिस तरीके से शपथ लेते ही ममता बनर्जी को बधाई की जगह नसीहतें दी हैं, थोड़ा हैरान तो करता है, लेकिन एक बेहद नाजुक माहौल में तात्कालिक चुनौतियों को समझना भी उतना ही जरूरी है - राज्यपाल के कटाक्ष पर आगे भी बहस के बहुतेरे मौके मिलेंगे. तब तक धैर्य बनाये रखें.
बेशक ममता बनर्जी ने 'एक पैर' से बंगाल जीत लिया है, लेकिन 'दो पैरों' से दिल्ली को लेकर अगर कोई दिली ख्वाहिश है तो आने वाले दिनों में काफी संयम से काम लेना होगा और वही बात तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं और समर्थकों को भी समझाना होगा - क्योंकि दिल्ली दूर ही नहीं होती राह काफी दुरूह भी होती है.
ममता को राज्यपाल ने दी राजधर्म नसीहत
ममता बनर्जी ने भी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव बिलकुल वैसे ही जीता है जैसे प्रधानमंत्री बनने से पहले 2012 में नरेंद्र मोदी गुजरात विधानसभा का चुनाव तीसरी बार जीत कर मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने पास कायम रखने में कामयाब रहे थे - अगर ममता बनर्जी ये मान कर चल रही हैं कि अब तक उनका सफर काफी मुश्किल रहा है तो ये भी अभी से समझ ही लेना होगा कि आगे का सफर और भी मुश्किलों भरा है. कटाक्ष और राजनीति से प्रेरित ही सही, लेकिन गवर्नर जगदीप धनखड़ ने ममता बनर्जी के शपथग्रहण के ठीक बाद जो बातें कही हैं - वे यूं ही खारिज भी नहीं की जा सकती हैं.
मुख्यमंत्री पद की हैट्रिक शपथ के फौरन बाद ही ममता बनर्जी मीडिया से मुखातिब हुईं और बोलीं, 'हमारी पहली प्राथमिकता कोरोना संकट को काबू में लाना है.' साथ ही, ममता बनर्जी ने कहा कि बंगाल को अशांति नहीं पसंद है, इसलिए सभी संयम बनाये रखें और हिंसा न करें. ममता बनर्जी ने कहा भी, 'आज से हमारी सरकार कानून व्यवस्था को अपने हाथ में ले रही है - जो लोग हिंसा फैलाने में शामिल हैं उन पर कड़ा एक्शन लिया जाएगा.'
राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने पर ममता बनर्जी को बधायी तो दी, लेकिन साथ में कई सीख भी दे डाली, 'उम्मीद है सरकार संविधान और कानून के हिसाब से चलेगी... भारत के एक महान लोकतंत्र वाला देश है... चुनाव के बाद जो हिंसा शुरू हुई है, वो लोकतंत्र के लिए खतरा है.'
आगे बोले, 'मुझे पूरी उम्मीद है, मुख्यमंत्री फौरन ही राज्य में कानून का राज लागू करेंगी... मुख्य रूप से महिलाओं और बच्चों को जो नुकसान पहुंचा है, उनकी मदद की जाएगी... मैं नयी सरकार से उम्मीद करता हूं, वो संघीय ढांचे का सम्मान करेगी.'
ममता बनर्जी राज्यपाल की बातें बड़े गौर से सुन रही थीं, 'मेरी छोटी बहन ममता बनर्जी हिंसा पर एक्शन लेंगी और उम्मीद है आप नये तरीके से शासन करेंगी.'
कानून-व्यवस्था ही नहीं, ममता बनर्जी को बंगाल में मिसाल पेश करनी होगी अगर दो पैरों से दिल्ली जीतने का इरादा है.
राज्यपाल के पद की गरिमा को देखते हुए सम्मानजनक स्थिति तो वही होती कि ममता बनर्जी आगे बगैर कुछ बोले रह जातीं - क्योंकि राज्यपाल ने कुछ बोल ही दिया था तो वो भी एक तरीके से राज्यपाल का संबोधन था और उसके बाद मुख्यमंत्री अमूमन नहीं ही बोलता. मगर, राज्यपाल भी जगदीप धनखड़ हों और मुख्यमंत्री भी ममता बनर्जी हों तो कोई चुप कैसे रहे - ऐसा हुआ तो ट्रैक रिकॉर्ड ही खराब हो जाएगा. ममता बनर्जी ने राज्यपाल से जो भी सीख मिली थी मौके पर ही लौटा भी दिया.
माइक थामते ही बोलीं, 'मैंने आज ही शपथ ली है... तीन महीने से राज्य का पूरा सिस्टम चुनाव आयोग के हाथ में है. आयोग ने इस दौरान कई अफसरों का तबादला किया, नियुक्ति भी की.' ममता बनर्जी ने गवर्नर की बातों का मौके पर ही काउंटर करते हुए साफ कर दिया - चुनाव नतीजे आने के बाद जिस हिंसा को लेकर बीजेपी शोर मचा रही है - या बाकी लोग भी शोर मचा रहे हैं, उस हिंसा को न रोक पाने की जिम्मेदारी उनकी नहीं थी... आगे से जरूर होगी.
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के शपथ लेने और दिलाने के बाद नंदीग्राम में ममता बनर्जी को शिकस्त देने वाले बीजेपी विधायक शुभेंदु अधिकारी अलग ही झंडा बुलंद करते नजर आये, 'स्थिति बहुत गंभीर है... खासकर एक समुदाय के लोगों पर हमला हो रहा है... केंद्र को हस्तक्षेप करना चाहिये - हम लोगों ने शपथ लिया है कि हम लोकतांत्रिक तरीके से बंगाल में सामान्य स्थिति बहाल कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं.'
एक और गौर करने वाली बता दिखी. ममता बनर्जी शपथ लेने अभिषेक बनर्जी को लेकर भी पहुंची थीं. ये भी एक तरीके से राजनीतिक संदेश देने का मकसद ही लगता है. पूरे चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और जेपी नड्डा या दूसरे बीजेपी नेता अभिषेक बनर्जी को टारगेट करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते थे. ममता सरकार में भ्रष्टाचार के आरोपों की धुरी की तरह और परिवारवाद की राजनीति में 'राज कुमार' बताकर निशाने पर लेते रहे - 'भाइपो और पीशी' के जिक्र के बगैर तो शायद ही किसी बीजेपी नेता की कोई चुनावी सभा पूरी हुई हो.
तृणमूल कांग्रेस सांसद अभिषेक बनर्जी के साथ ही चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर को भी पहली लाइन में सीट दी गयी थी - ममता बनर्जी को शपथ दिलाने के बाद राज्यपाल जगदीप धनखड़ को काफी देर तक अभिषेक बनर्जी और प्रशांत किशोर से बातचीत करते देखा गया.
...और भी कसमें जरूरी हैं
राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने अपना धर्म समझ कर भले ही सलाहियत दी हो, लेकिन ममता बनर्जी के लिए सबसे जरूरी तत्काल प्रभाव से एक्शन में आना और पूरी सरकारी मशीनरी को एक्टिव करना बेहद जरूरी रहा. हुआ भी वैसा ही है.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सभी SP और कमिश्नर को तुरंत हिंसा रोकने का आदेश दिया है - और कड़े कदम उठाने की भी सलाह दी है. मुख्य्मंत्री ने चुनाव आयोग की तरफ से नियुक्त डीजीपी और एडीजी को हटाकर नये अफसरों को मोर्चे पर लगाया है. कोरोना संकट को देखते हुए कुछ पाबंदियों की भी घोषणा मुख्यमंत्री की तरफ से की गयी है.
पश्चिम बंगाल में अब मास्क लगाना अनिवार्य कर दिया गया है. लोकल ट्रेन की आवाजाही बंद होने जा रही है. सामाजिक और राजनीतिक समारोहों पर रोक लगा दी गयी है - और बाजार दो शिफ्टों में खोलने के आदेश दिये गये हैं.
ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार से कोरोना पॉलिसी को सुधारने की अपील की है और कहा है कि हिंसा उसी जगह ज्यादा हो रही है जहां बीजेपी जीती है - और बीजेपी के लोग फेक न्यूज फैला रहे हैं!
जो भी जिम्मेदार हो, कानून के हिसाब से कार्रवाई होनी चाहिये. हिंसा तो हर हाल में रुकनी चाहिये. बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिये. ये भी ममता बनर्जी को ही सुनिश्चित करना होगा कि आने वाले दिनों में जब बी कॉर्पोरेशन के चुनाव हों बीजेपी को किसी भी सूरत में राजनीतिक हिंसा को मुद्दा बनाने का मौका न मिले. ऐसा तभी हो पाएगा जब ममता बनर्जी सरकार कानून-व्यवस्था को सख्ती के साथ लागू करेगी.
चुनावों से पहले जेपी नड्डा के काफिले पर हमला हुआ था. बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को भी चोट लगी, लेकिन ममता बनर्जी ने मजाक ही उड़ाया था - वो चुनावी माहौल था, ये सब अब और नहीं चलेगा.
ममता बनर्जी को ये कभी नहीं भूलना चाहिये कि बंगाल के लोगों ने तृणमूल कांग्रेस नेता पर हद से ज्यादा भरोसा किया है - अगर ममता ने ध्यान नहीं दिया तो ये भरोसा हमेशा के लिए टूट जाएगा. अगर वास्तव में ऐसा हुआ तो वो किसी के लिए ठीक नहीं होगा. न ममता बनर्जी के लिए, न लोगों के लिए और न ही लोकतंत्र के लिए.
शपथ लेने से पहले एक इंटरव्यू में ममता बनर्जी ने माना कि ये उनके लिए सबसे बड़ी जीत है - क्योंकि इस लड़ाई में एक तरफ ममता बनर्जी खुद थीं और दूसरी तरफ हर कोई था और तब भी ममता बनर्जी उसमें से जीत कर निकली हैं.
ममता बनर्जी ने एक बार फिर अगले पांच साल के लिए मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है - कुछ और बातों के लिए भी ममता बनर्जी को और भी कसमें खा लेनी चाहिये -
1. हिंसा तत्काल रुकनी चाहिये - और कभी नहीं होनी चाहिये: ममता बनर्जी ने किसी और को नहीं बल्कि, देश के दो सबसे ताकतवर नेताओं को शिकस्त दी है. 2015 में भी ऐसा हुआ था. तब नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद के साथ हाथ मिलाकर ये काम किया था, लेकिन वो ज्यादा दिन टिक नहीं सके.
सवाल ये है कि ममता बनर्जी ने ये बड़ा मुकाम किसके बूते हासिल किया है - और जवाब है, पश्चिम बंगाल के लोगों के बल पर.
क्या आम बंगाली समाज या भद्र-लोक अभी हो रही हिंसा का भी वैसे ही सपोर्ट कर सकेगा जैसे चुनावों में ममता बनर्जी को समर्धन दिया है?
बीजेपी पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ अपराध के आरोप लगा रही है. अराजकता की बात कर रही है. टीएमसी कार्यकर्ताओं पर हिंसा फैलाने, हमला बोल देने और बलात्कार के आरोप लग रहे हैं. कोई भी सभ्य समाज इसे स्वीकार नहीं करेगा और ममता बनर्जी खुद भी ये मानती हैं, लेकिन मानने भर से नहीं, कानून का राज कायम करने से ये ठीक होगा.
कोई शक नहीं कि ये सब सुधर नहीं सकता. बिलकुल सुधर सकता है - महिलाओं के वोट की बात हो रही है ममता बनर्जी की जीत में. और अगर ममता बनर्जी ही ऐसे अपराध नहीं रोकेंगी तो आगे क्या होगा?
2. भ्रष्टाचार के प्रति वास्तव में जीरो टॉलरेंस हो: प्रधानमंत्री मोदी और शाह पूरे चुनाव में कट मनी और तोलाबाजी का जिक्र करते रहे. पश्चिम बंगाल के लोगों से बात होती है तो वे भी इन चीजों से आजिज आ चुके हैं. ये भी सही है कि किसी न किसी नाम से या किसी न किसी रूप में ये देश के हर हिस्से में देखने को मिल जाता है - लेकिन ममता बनर्जी को तो इसे खत्म करना ही होगा. ममता बनर्जी को बंगाल के लोगों ने यही सोच कर एक बार फिर मौका दिया है.
3. अभिषेक बनर्जी सही हैं तो ममता बनर्जी को ही बेदाग साबित करना होगा: अभिषेक बनर्जी को ममता बनर्जी का ब्लाइंट सपोर्ट मिलता रहा है. चाहे वो शपथग्रहण के मौके पर अभिषेक बनर्जी को राजभवन साथ ले गयी हों, या फिर उनकी पत्नी से सीबीआई की पूछताछ से पहले उनके घर पहुंच कर पॉलिटिकल मैसेज देने की कोशिश की हों, लेकिन अगर भ्रष्टाचार के आरोपों पर ममता बनर्जी स्थिति स्पष्ट करनी ही होगी - वैसे तो इस सिलसिले में उनके एक बयान को ही बंगाल के लोग श्वेत पत्र समझ लेंगे.
आखिर क्या वजह है कि सीबीआई अभिषेक की पत्नी से पूछताछ करती है, करीबियों को गिरफ्तार भी करती है, उनके अफसरों तक की जांच पड़ताल करती है - सिर्फ इसीलिए ना कि ममता बनर्जी की तरह उनमें से कोई भी अपनी बेदाग छवि कायम नहीं रख पाया है?
अगर ममता बनर्जी के खिलाफ भी कुछ होता तो क्या पिंजरे का तोता खामोश रह पाता - बरसों से मुलायम सिंह यादव और मायावती के साथ तो ये सब होता ही रहा है.
4. मुस्लिम तुष्टिकरण के कितने भारी पड़ते हैं कोई कांग्रेस से पूछे: कोई दो राय नहीं कि ममता बनर्जी ने बंगाल का मुस्लिम वोट बैंक बंटने नहीं दिया है. असदुद्दीन ओवैसी से लेकर फुरफुरा शरीफ वाले पीरजादा अब्बास सिद्दीकी तक, किसी ने भी अपनी तरफ से कोई कसर बाकी तो रखी नहीं. ओवैसी के उम्मीदवार तो अपनी जमानत भी नहीं बचा पाये.
बीजेपी का ममता बनर्जी पर पहले की ही तरह आगे भी मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप कायम रहेगा. सोनिया गांधी ने एक बार बड़े ही भारी मन से कहा था कि बीजेपीवालों नै कांग्रेस को मुस्लिमों की पार्टी कह कर पेश कर दिया और लोग मान लिये - ये ठप्पा धोने के लिए राहुल गांधी को न जाने क्या क्या नहीं करना पड़ा. करने को तो चंडीपाठ ममता बनर्जी भी कर चुकी हैं, लेकिन बंगाल से आगे अगर कुछ बड़ा करने की सोच रही हैं तो सबका साथ और सबका विकास जैसा ही कसम खाना होगा. बीजेपी के लिए भले ही महज एक स्लोगन हो, ममता बनर्जी के लिए सबसे बड़ा टास्क होना चाहिये.
5. कोरोना कंट्रोल का मॉडल पेश करना होगा: पूरा देश इस वक्त कोरोना संकट से बुरी तरह जूझ रहा है. चुनावी रैलियों के चलते पश्चिम बंगाल में भी कोविड के मामले काफी बढ़े हुए हैं.
ममता बनर्जी ने नये सिरे से चार्ज संभालते ही सख्ती और कई पाबंदियां लागू की है, लेकिन इतने भर से काम नहीं चलने वाला. अगर वाकई ममता बनर्जी कोई बड़ा सपना देख रही हैं और आगे चल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टक्कर देने का मन बना चुकी हैं तो कसम खाकर कोरोना कंट्रोल का कोई कारगर मॉडल पेश करना चाहिये - ताकि बंगाल से बाहर भी लोग ममता बनर्जी की नेतृत्व क्षमता पर गंभीरता से विचार करें.
फिलहाल ये देश ममता बनर्जी को बहुत ही उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है. अगर ममता बनर्जी ने ये सब कर दिखाया तो भविष्य में गैर हिंदी भाषी होने के बावजूद ये देश उनको भी मौका दे सकता है - अगर ये देश राम मंदिर निर्माण के लिए किसी को प्रधानमंत्री बना सकता है तो आगे ऑक्सीजन के लिए भी किसी को एक मौका तो दे ही सकता है.
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