ममता बनर्जी (Mamata Banerjee protests CAA-NRC) का तेवर ही नहीं उनकी राजनीति की तासीर में भी विरोध का ही ज्यादा असर है - और वो बिलकुल अपने उसी खास अंदाज में ही नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के साथ साथ NRC के खिलाफ सड़क पर उतर चुकी हैं. NRC और CAA का विरोध करने वाले तो बीजेपी के सारे विरोधी दल (Congress like Muslim Party TMC) हैं, लेकिन ममता बनर्जी सबसे चार कदम आगे नजर आने लगी हैं.
नागरिकता कानून पर अभी तक अधिसूचना नहीं जारी हुई है, हालांकि, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी इसे 12 दिसंबर को ही मिल गई थी. CAA को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी है और अदालत उन याचिकाओं पर 22 जनवरी को सुनवाई करने वाली है. खबर है कि केंद्र सरकार विशेषज्ञों से सलाह ले रही है और उसके बाद ही अधिसूचना जारी हो सकती है. तब तक सरकार की ओर से मंत्री और बीजेपी नेता अपने अपने स्तर पर कानून पर तस्वीर साफ करने की कोशिश कर रहे हैं.
अब तक यही देखने में आया है कि जब भी ममता बनर्जी किसी चीज को लेकर प्रोटेस्ट करती हैं, विपक्ष के कई नेता उनके साथ खड़े हो जाते हैं. CAA पर जनमत संग्रह की मांग पर अभी तक ममता बनर्जी के सपोर्ट में कोई सामने नहीं आया है - क्या वजह इसकी ममता का संयुक्त राष्ट्र (Referendum nder N Supervision) को शामिल करने की मांग है?
ममता भी BJP की राजनीति में घिर गयीं
लोगों के बीच खड़े होकर उनके मन की बात कहना, उनकी आवाज को तेज स्वर देना और आखिर तक उनके साथ डटे रहना ही ममता बनर्जी की असली ताकत है - यही वजह है कि जनता भी उनके साथ बनी रहती है. 2016 में विधानसभा चुनाव के ऐन पहले नारदा स्टिंग ने हड़कंप मचा दिया था. स्टिंग में जिस घोटाले का जिक्र था उसके लपेटे में ममता बनर्जी के कई साथी आ गये थे, लेकिन ममता बनर्जी ने न सिर्फ उन्हें चुनाव लड़ाया और जिताया बल्कि दोबारा सत्ता संभाली तो बाकायद कैबिनेट में जगह भी दी. अप्रैल-मई में हुए आम चुनाव में जनता का एक हिस्सा लगता है ममता बनर्जी की बातों में नहीं आया और अलग फैसला लेते हुए पश्चिम बंगाल में...
ममता बनर्जी (Mamata Banerjee protests CAA-NRC) का तेवर ही नहीं उनकी राजनीति की तासीर में भी विरोध का ही ज्यादा असर है - और वो बिलकुल अपने उसी खास अंदाज में ही नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के साथ साथ NRC के खिलाफ सड़क पर उतर चुकी हैं. NRC और CAA का विरोध करने वाले तो बीजेपी के सारे विरोधी दल (Congress like Muslim Party TMC) हैं, लेकिन ममता बनर्जी सबसे चार कदम आगे नजर आने लगी हैं.
नागरिकता कानून पर अभी तक अधिसूचना नहीं जारी हुई है, हालांकि, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी इसे 12 दिसंबर को ही मिल गई थी. CAA को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी है और अदालत उन याचिकाओं पर 22 जनवरी को सुनवाई करने वाली है. खबर है कि केंद्र सरकार विशेषज्ञों से सलाह ले रही है और उसके बाद ही अधिसूचना जारी हो सकती है. तब तक सरकार की ओर से मंत्री और बीजेपी नेता अपने अपने स्तर पर कानून पर तस्वीर साफ करने की कोशिश कर रहे हैं.
अब तक यही देखने में आया है कि जब भी ममता बनर्जी किसी चीज को लेकर प्रोटेस्ट करती हैं, विपक्ष के कई नेता उनके साथ खड़े हो जाते हैं. CAA पर जनमत संग्रह की मांग पर अभी तक ममता बनर्जी के सपोर्ट में कोई सामने नहीं आया है - क्या वजह इसकी ममता का संयुक्त राष्ट्र (Referendum nder N Supervision) को शामिल करने की मांग है?
ममता भी BJP की राजनीति में घिर गयीं
लोगों के बीच खड़े होकर उनके मन की बात कहना, उनकी आवाज को तेज स्वर देना और आखिर तक उनके साथ डटे रहना ही ममता बनर्जी की असली ताकत है - यही वजह है कि जनता भी उनके साथ बनी रहती है. 2016 में विधानसभा चुनाव के ऐन पहले नारदा स्टिंग ने हड़कंप मचा दिया था. स्टिंग में जिस घोटाले का जिक्र था उसके लपेटे में ममता बनर्जी के कई साथी आ गये थे, लेकिन ममता बनर्जी ने न सिर्फ उन्हें चुनाव लड़ाया और जिताया बल्कि दोबारा सत्ता संभाली तो बाकायद कैबिनेट में जगह भी दी. अप्रैल-मई में हुए आम चुनाव में जनता का एक हिस्सा लगता है ममता बनर्जी की बातों में नहीं आया और अलग फैसला लेते हुए पश्चिम बंगाल में बीजेपी को भी पैर जमाने का पूरा मौका दे डाला. ममता बनर्जी के लिए ये बड़ी शिकस्त रही. पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव में अभी काफी वक्त है, लेकिन आम चुनाव का झटका ममता बनर्जी को चैन से बैठने न देने के लिए मजबूर कर रहा है.
तभी तो CAA और NRC के विरोध में ममता बनर्जी रोज 10 किलोमीटर पैदल मार्च कर रही हैं. मार्च के दौरान ममता बनर्जी लोगों से नागरिकता कानून पर उनके विचार जानने और समझने की कोशिश करती हैं और फिर अपने तरीके से लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की राजनीति को लेकर समझाती भी हैं.
पहले तो ममता बनर्जी ने कहा था कि पश्चिम बंगाल में CAA और NRC लागू करने के लिए उनकी लाश पर से गुजरना होगा - लेकिन ममता बनर्जी की ताजा डिमांड दोनों मुद्दों पर जनमत संग्रह कराये जाने को लेकर है, लेकिन वो भी संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में.
बीजेपी के अलावा ममता बनर्जी की ताजा मांग पर किसी और ने रिएक्ट नहीं किया है. न विरोध किया है, न ही सपोर्ट. पहले ज्यादातर मामलों में देखने को मिला है जब भी ममता बनर्जी ने कोई कदम उठाया है अरविंद केजरीवाल से लेकर अखिलेश यादव तक ट्वीट कर या बयान देकर ही सपोर्ट किया है - लेकिन जनमत संग्रह की मांग में ममता बनर्जी अकेले नजर आ रही हैं.
नागरिकता कानून पर ममता बनर्जी वैसे ही फंस गयी लगती हैं जैसे कांग्रेस सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट एयर स्ट्राइक और धारा 370 पर फंस गयी थी. कांग्रेस को सबसे बड़ा मलाल रहा है कि बीजेपी ने उसे मुस्लिम पार्टी के तौर पर स्थापित कर दिया - और उससे निजात पाने के लिए कांग्रेस ने झाड़-फूंक जैसे न जाने कितने उपाय किये. राहुल गांधी का सॉफ्ट हिंदुत्व एक्सपेरिमेंट भी तो उसी की वजह से रहा. अब तो अरसा हो गया राहुल गांधी के जनेऊधारी और शिवभक्त हिंदुत्व का पुजारी सुने और देखे.
जनमत संग्रह में संयुक्त राष्ट्र की निगरानी की डिमांड ऐसी है कि किसी भी दूसरी पार्टी के लिए ममता का सपोर्ट करना मुश्किल होगा - अब तक बीजेपी कांग्रेस नेतृत्व और उसके तमाम नेताओं पर पाकिस्तान की भाषा बोलने का इल्जाम लगाती रही - अब तो ममता बनर्जी ने खुद ही ये मौका दे दिया है.
'पाकिस्तान की भाषा' और ममता बनर्जी
बीजेपी के खिलाफ ममता बनर्जी किस कदर आपे से बाहर हो जाती हैं, मई, 2019 का ही एक वाकया मिसाल है. एक दिन ममता बनर्जी तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ धरना देने जा रही थीं. तभी कुछ लोग ममता बनर्जी के काफिले के सामने आ गये और 'जय श्रीराम' का नारा लगाने लगे. ये देखते ही ममता बनर्जी गाड़ीं से उतरीं और बरस पड़ीं.
ममता बनर्जी को जितना गुस्सा आया सब एक साथ उड़ेल दिया, 'यहां आओ.. हिम्मत है तो सामने आओ.. मुझे फेस करो... बीजेपी के गुंडों... यहां पर तुम लोग हमारे कारण रह रहे हो... तुम जैसे लोगों को यहां से भगा भी सकती हूं... तुम लोग सारे बदमाश लोग हो... तुम लोगों की हिम्मत कैसे हुई मेरे काफिले पर हमला करने की... मैं तुम लोगों की चमड़ी उधेड़ दूंगी...'
'जय श्रीराम' का विरोध और संसद से पास किये गये किसी कानून के विरोध में संयुक्त राष्ट्र से जनमत संग्रह कराने की मांग में बुनियादी फर्क है. एक धर्म के विरुद्ध है और दूसरा राष्ट्र के विरोध के दायरे में आ जाता है. धर्म का विरोध तो लोग बर्दाश्त भी कर सकते हैं, लेकिन राष्ट्र का विरोध - सामने कोई भी हो बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल होता है.
बीजेपी ने अयोध्या में राम मंदिर को चुनावी मुद्दा बनाना तो पहले ही छोड़ दिया था, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तो अब 6 दिसंबर को जश्न भी नहीं मना रही है. अब बीजेपी का अटैक 'पाकिस्तान की भाषा' को लेकर होता है. पाकिस्तान की भाषा बोलने वाला यानी देशद्रोही. बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद यही बोल कर दूसरे दलों के नेता बीजेपी ज्वाइन कर रहे थे, जिनमें तृणमूल कांग्रेस से भी कई नेता थे.
संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में जनमत संग्रह की ममता बनर्जी की मांग पर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने कड़ा ऐतराज जताया है और मुख्यमंत्री से अपना बयान वापस लेने की सलाह दी है.
ममता बनर्जी के बयान को बीजेपी कैसे ले रही है और आगे किस रूप में ले जाएगी, पश्चिम बंगाल में पार्टी अध्यक्ष दिलीप घोष की बातों से साफ हो जाता है. दिलीप घोष ने बोल दिया है कि ममता बनर्जी पाकिस्तान की भाषा बोल रही हैं और वो राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों को अंजाम दे रही हैं क्योंकि वो न तो संसद को मानती हैं और न ही राष्ट्रपति को.
फिलहाल ममता बनर्जी के लिए तृणमूल कांग्रेस की चुनावी मुहिम को आगे बढ़ा रहे प्रशांत किशोर पहले एनआरसी और नागरिकता कानून दोनों के खिलाफ विरोध का बिगुल बजा रहे थे, लेकिन नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद से NRC पर उनका जोर ज्यादा नजर आने लगा है. असल में मुलाकात के ही आसपास खबर आयी थी कि नीतीश कुमार एनआरसी के पक्ष में तो नहीं हैं लेकिन नागरिकता कानून में उन्हें कोई गड़बड़ी नहीं नजर आ रही है. ममता बनर्जी तो नागरिकता कानून पर ही जनमत संग्रह की मांग कर रही हैं - ऐसे में नीतीश तो ममता बनर्जी के साथ नहीं ही आने वाले. शायद एनडीए छोड़ देने की स्थिति में भी.
हाल फिलहाल चर्चा रही कि ममता बनर्जी हाव-भाव और बात-व्यवहार में काफी बदलाव आया है. लोगों के बीच ममता बनर्जी हमेशा मुस्कुराते रहने की कोशिश करती हैं और हर किसी से बड़े धैर्य के साथ संवाद करने लगी हैं. ममता बनर्जी की कई सार्वजनिक सभाओं में मौजूद लोगों ने ये महसूस भी किया. अब अगर ममता बनर्जी के ताजा बयान में भी प्रशांत किशोर की वास्तव में कोई भूमिका है तो तृणमूल कांग्रेस नेता को पक्का मान लेना चाहिये कि PK उनसे फीस लेकर बीजेपी के पक्ष में काम कर रहे हैं.
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