मेनका गांधी (Maneka Gandhi) पर्यावरण और पशु अधिकारों के लिए हमेशा ही अलर्ट देखी जाती हैं - और इसी चक्कर में अक्सर विवादों में भी फंस जाती हैं. अक्सर ही उनके ऑडियो वायरल होते रहते हैं, जिनमें वो पशुओं के लिए किसी न किसी को डांटती डपटती सुनी जाती रही हैं.
केंद्रीय मंत्री रह चुकीं मेनका गांधी का दिल्ली के स्टेडियम में आईएएस अफसर के डॉग वॉक (IAS Officer Stadium Dog Walk) पर बयान भी काफी दिलचस्प लगता है. हालांकि, ये पशुओं अधिकार (Animal Rights) से जुड़ा मामला नहीं लगता. हो सकता है, उनका अपना कोई नजरिया हो, लेकिन मोटे तौर पर तो ऐसा कुछ नहीं ही लगता.
मेनका गांधी ने स्टेडियम खाली करा कर टहलने वाले आईएएस अफसर संजीव खिरवार और उनकी पत्नी रिंकू दुग्गा के ट्रांसफर को गलत बताया है. मेनका गांधी को दोनों अफसरों के तबादले में साजिश का भी शक है.
हाल ही में एक मीडिया रिपोर्ट में आईएएस कपल के अपने पालतू कुत्ते के साथ खाली स्टेडियम में टहलने की तस्वीर आने के बाद दोनों का अलग अलग जगह ट्रांसफर कर दिया गया. संजीव खिरवार को लद्दाख और रिंकू दुग्गा को अरुणाचल प्रदेश भेज दिया गया है.
दोनों अफसरों के तबादले को लेकर तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और नेशलन कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने केंद्र सरकार की आलोचना भी की थी, ये कहते हुए कि अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख कोई पनिशमेंट पोस्टिंग की जगह हैं क्या? महुआ मोइत्रा ने इसे अरुणाचल प्रदेश का अपमान माना था. ट्विटर पर अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू और केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजु को टैग करते हुए महुआ मोइत्रा ने सलाह दी थी कि दोनों नेताओं को केंद्र सरकार के इस कदम का विरोध करना चाहिये.
मेनका गांधी ने आईएएस अफसर पर लगे आरोप को सिरे से खारिज करते हुए पूरी तरह झूठा बताया है - और यहां तक कहा है कि अफसर के तबादले से दिल्ली को ही नुकसान पहुंचेगा. अफसर के तबादले को तो पूर्व आईपीएस अफसर किरण बेदी भी सही नहीं मानतीं, लेकिन उनका नजरिया मेनका गांधी से अलग है.
सवाल ये है कि मेनका गांधी एक ऐसे आईएएस अफसर का बचाव क्यों कर रही हैं? ऐसे अफसर का बचाव करने का क्या तुक हो सकता है जो सरेआम अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग करते पकड़ा गया हो? कहीं मेनका गांधी के स्टैंड में 'कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना' वाल मोटिव तो नहीं है?
मेनका को साजिश का शक क्यों?
त्यागराज स्टेडियम को लेकर रिपोर्ट में एक कोच का कहना था, 'पहले हम यहां रोशनी में से 8.30 बजे तक खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देते थे... लेकिन अब हमें शाम 7 बजे तक स्टेडियम खाली करने को कहा जाता है... ताकि अफसर अपने कुत्ते को टहला सकें... हमारा रूटीन और हमारी ट्रेनिंग बाधित हो गयी है.'
अफसर की गलती पर परदा - और खिलाड़ियों की परवाह तक नहीं, लेकिन क्यों?
पहले तो आईएएस अफसर संजीव खिरवार स्टेडियम में कुत्ते के साथ वॉक करने की बात से साफ ही मुकर गये थे, लेकिन जब इंडियन एक्सप्रेस ने तस्वीर सहित खबर छाप दी तो कोई रास्ता नहीं सूझ रहा होगा. क्योंकि मीडिया रिपोर्ट देख कर केंद्र सरकार ने भी एक सीनियर अफसर को जांच का जिम्मा सौंप दिया था - और मामला सही पाये जाने पर एक्शन भी हुआ.
बाद में एक मीडिया रिपोर्ट में संजीव खिरवार का खेद जताते हुए बयान जरूर आया था, "मैं किसी एथलीट को स्टेडियम छोड़ने के लिए कभी नहीं कहूंगा..."
हालांकि, अपना पक्ष रखते हुए संजीव खिरवार का कहना रहा, 'मैं स्टेडियम के बंद होने के बाद जाता हूं... हम उसे ट्रैक पर नहीं छोड़ते... जब कोई आसपास नहीं होता तो हम उसे छोड़ देते हैं, लेकिन किसी एथलीट की कीमत पर कभी नहीं... अगर, इसमें कुछ आपत्तिजनक है... तो मैं इसे रोक दूंगा.'
संजीव खिरवार का ये कहना बिलकुल सही था कि वो स्टेडियम बंद हो जाने के बाद वहां जाते थे, लेकिन ये नहीं बताया कि स्टेडियम बंद कैसे होता था. अखबार की रिपोर्ट में बताया गया कि रिपोर्टर ने कई दिन जाकर देखा कि वहां तैनात सिक्योरिटी गार्ड सीटी बजाकर खिलाड़ियों और कोच को जबरन भगा दिया करते थे. मतलब, संजीव खिरवार सपत्नीक स्टेडियम को जबरन बंद कराये जाने के बाद अपने पालतू कुत्ते के साथ टहलने जाया करते थे.
काबिल और इमानदार होने से क्या होता है: मेनका गांधी की नजर में संजीव खिरवार एक काबिल और इमानदार अफसर हैं. अच्छी बात है. होनी भी चाहिये. किसी अफसर का काबिल और इमानदार होना कोई एक्ट्रा खासियत नहीं है, ऐसा तो हर हाल में होना ही चाहिये. नाकाबिल और बेइमान अफसरों को तो सेवा में होना ही नहीं चाहिये.
मेनका गांधी को अफसरों के साथ हुए व्यवहार पर आपत्ति हो सकती है. अगर उनको लगता है कि पति-पत्नी को अलग अलग भेजे जाने की जगह उनको भूल सुधार का मौका दिया जाना चाहिये था, तो ये भी बिलकुल वाजिब है, लेकिन जो सवाल वो उठा रही हैं और जिस तरीके से संजीव खिरवार का बचाव कर रही हैं, उसे कैसे समझा जाएगा?
संजीव खिरवार को लेकर, मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मेनका गांधी का कहना है, ‘मैं आईएएस खिरवार को अच्छी तरह से जानती हूं - और उन पर जो आरोप लगे हैं वो बिलकुल झूठे हैं... वो बहुत ही काबिल, अच्छे और ईमानदार अधिकारी हैं.'
बीजेपी नेता मेनका गांधी का कहना है कि जब वो दिल्ली में पर्यावरण विभाग के सचिव थे तो दिल्ली को उनसे बहुत फायदा हुआ था. गहरी नाराजगी जताते हुए मेनका गांधी कहती हैं, ये तरीका क्या हुआ कि किसी को उठाकर यहां फेंक दिया... वहां फेंक दिया. ये हमें शोभा नहीं देता... इससे दिल्ली का नुकसान हुआ है. साजिश के तौर पर उनको निकाला गया है.'
हो सकता है संजीव खिरवार ने पर्यावरण के लिए अच्छे काम किये हों, लेकिन उस बिनाह पर उनको खिलाड़ियों की प्रैक्टिस में बाधा बनने की छूट तो नहीं ही दी जा सकती है? जहां तक दिल्ली को होने वाले नुकसान की बात है, वो तो खिलाड़ियों के प्रैक्टिस से वंचित होने से भी हो रहा था - आखिर मेनका गांधी को आईएएस अफसर का कारनाम क्यों नहीं दिखायी देता?
कहीं ऐसा तो नहीं कि मेनका गांधी को IAS कपल के कुत्ते के साथ खाली स्टेडियम में टहलते हुए दिखाने वाली तस्वीर पर ही शक हो रहा हो? वैसे भी राजनीतिक वजहों से व्हाट्सऐप पर बहुतेरी फोटोशॉप तस्वीरें शेयर और फॉरवर्ड की जा रही हैं - और हर राजनीतिक दल का आईटी सेल ये काम शिद्दत से कर रहा है. ये भी राजनीति में अपराधियों के संरक्षण जैसा ही लगता है.
मेनका गांधी ने संजीव खिरवार की खूबियां भी बतायी है. कहती हैं, संजीव खिरवार लोगों की बात सुनते हैं और उस पर कार्रवाई भी करते हैं... इसलिए उन पर जो कार्रवाई की गई है वो बिल्कुल गलत है.
हो सकता है संजीव खिरवार लोगों की बात सुनते रहे हों और उसके हिसाब से जरूरी एक्शन भी लेते रहे हों, लेकिन अफसोस तो इस बात का है कि त्यागराज स्टेडिम में प्रैक्टिस के लिए जाने वाले खिलाड़ियों और कोच की बातें वो नहीं सुन सके.
ऐसा कैसे हो सकता है कि आईएएस अफसर को इस बात की भनक ही नहीं लगी हो कि उनके स्टेडिम में आराम से घूमने के लिए सिक्योरिटी गार्ड क्या करते हैं? क्या एक बार भी ऐसा नहीं हुआ होगा कि आईएएस कपल अपने कुत्ते के साथ घूमने के लिए स्टेडियम पहुंच गये हों और सिक्योरिटी गार्ड अभी सीटी बजा कर लोगों को भगा ही रहे हों - भला ऐसा कैसे हो सकता है कि ऐसा कोई वाकया एक बार भी देखने को न मिला हो?
किरण बेदी भी तबादले को गलत मान रही हैं: आईएएस कपल के तबादले को गलत तो किरण बेदी भी मान रही हैं, लेकिन उनकी राय मेनका गांधी से काफी अलग है. किरण बेदी की नजर में ये पनिशमेंट पोस्टिंग नहीं है.
किरण बेदी का कहना है कि अफसर दंपति पर लगे आरोपों की जांच सही पाये जाने पर उनको छुट्टी पर भेजा जाना चाहिये था. अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख भेज दिया जाना कोई पनिशमेंट पोस्टिंग तो है नहीं.
किरण बेदी की नजर में सजा तो तब समझी जाती जब उनको कोई काम नहीं दिया जाता. किरण बेदी की राय में काम न देकर उनको आत्ममंथन का मौका दिया जाना चाहिये था. ऐसा होने पर कुछ दिनों में उनको पछतावा होता और फिर वे पब्लिक से अपने किये के लिए माफी मांगते.
मेनका निशाने पर मोदी सरकार तो नहीं
त्यागराज स्टेडियम दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है - अफसर कपल की शाम की सैर को लेकर आई रिपोर्ट के बाद फटाफट दो एक्शन हुए. दिल्ली सरकार ने स्टेडियम के खुलने का समय बढ़ा दिया और केंद्र सरकार ने तबादले का आदेश जारी कर दिया.
महुआ मोइत्रा और उमर अब्दुल्ला ने जहां केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल खड़े किये, केंद्रीय खेल और युवा मामलों के मंत्री अनुराग ठाकुर तो दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार पर ही बरस पड़े, 'दिल्ली सरकार ने कुछ नहीं किया, लेकिन केंद्र ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और दोनों को दूर वाली जगहों पर ट्रांसफर कर दिया... एथलीट देश के लिए पदक जीतते हैं... इसमें किसी को दखल नहीं देना चाहिये.'
फिर क्या था, आण आदमी पार्टी की तरफ से पलटवार शुरू हो गया. नियमों की दुहाई दी जाने लगी. दरअसल, अफसरों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास नहीं है - और आम आदमी पार्टी की ये सदाबहार शिकायत रही है.
'कहीं पे निगाहें, कहीं में निशाना': मेनका गांधी के बेटे और बीजेपी सांसद वरुण गांधी अक्सर ही बीजेपी नेतृत्व पर हमलावर देखे जाते हैं. मोदी सरकार की कई नीतियों की खुलेआम आलोचना करते हैं - और अब तो मेनका गांधी भी वैसा ही रास्ता अख्तियार कर चुकी हैं.
यूपी चुनाव के पहले से ही वरुण गांधी किसानों के मुद्दे पर हमलावर रहे. योगी सरकार पर भी हमलावर रहे - कभी कोरोना की वजह से तो कभी अन्य कारणों से.
मेनका गांधी 2019 के चुनाव के दौरान अपने एक विवादित बयान को लेकर काफी चर्चा में रहीं - और माना गया कि मोदी मंत्रिमंडल 2.0 में उसी के चलते जगह बना पाने में असफल रहीं. काफी दिनों से ये देखने को मिला है कि वरुण गांधी और मेनका गांधी दोनों ही मौजूदा बीजेपी नेतृत्व के कोपभाजन के चलते हाशिये पर भेज दिये गये हैं.
तो क्या मोदी और योगी सरकार को कठघरे में खड़ा करने के मामले में मेनका गांधी भी अब वरुण गांधी की राह पकड़ रही हैं?
ऐसा क्यों लगता है कि मेनका गांधी को IAS कपल के तबादले के केंद्र सरकार के फैसले को गलत बताने के लिए ये सब करना पड़ रहा है?
सबसे ज्यादा ताज्जुब की बात तो ये है कि IAS कपल को बेकसूर साबित करने के चक्कर में मेनका गांधी को युवा खिलाड़ियों का भी ख्याल नहीं रहता? ऐसा कैसे हो सकता है कि बेजुबान पशु-पक्षियों की बुलंद आवाज बनी कोई शख्सियत को देश के खिलाड़ियों की जरा भी परवाह न हो - क्या कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना जैसा मामला नहीं लगता?
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