प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीच कहने वाले मणिशंकर अय्यर पहले भी अपनी बदजुमानी को लेकर फंसते रहे हैं. जिसमें सबसे गंभीर मामला सन् 2000 का है. दिल्ली की एक पार्टी में मणिशंकर अय्यर और अमर सिंह दोनों मौजूद थे. शराब के दौर चल रहे थे. किसी बात पर इन दोनों नेताओं में बहस होने लगी. फिर बात इतनी बढ़ी कि जो न होना था, वो सब हुआ. उस पूरे वाकये को अमरसिंह ने कुछ यूं बयां किया है:
- सतीश गुजराल के घर वह पार्टी प्रधानमंत्री के प्रेस सलाहकार एच.के. दुआ के सम्मान में दी गई थी, जिनकी हाल ही में शादी हुई थी. वे मेरे भी अच्छे दोस्त थे. उस पार्टी में शहर के नामी-गिरामी लोग मौजूद थे. तभी मणि आए. नशे में धुत. वे मेरी तरफ बढ़े और आरोप लगाने लगे- 'तुम रेसिस्ट हो. तुमने सोनिया गांधी को सिर्फ इसलिए प्रधानमंत्री बनने से रोका, क्योंकि वो विदेशी हैं.' मैं चुप रहा.
- हकीकत यह थी कि सोनिया गांधी को मैंने प्रधानमंत्री बनने से नहीं रोका था, बल्कि यह समाजवादी पार्टी के सांसदों और विधायकों का सामूहिक फैसला था. मैंने तो सिर्फ पार्टी के विचार को सार्वजनिक रूप से व्यक्त किया था.
- लेकिन, मणि मेरी चुप्पी के बावजूद शांत नहीं हुए. वे मुझे 'अवसरवादी', 'रंग बदलने वाला' कहते रहे. इस पर मैंने सिर्फ इतना ही कहा कि 'मैं पहले भी मुलायम के साथ था और अब भी हूं. लेकिन, ये तुम ही हो जिसे कांग्रेस में सीट नहीं मिली तो ममता के पास चले गए. जब ममता ने दुत्कारा तो उन्हें कोसते हुए कांग्रेस में वापस चले आए'. मणि ने दोबारा हमला बोला- 'तुम उद्योगपतियों के दलाल हो. तुम अंबानी के कुत्ते हो.' मैंने उनकी बात को हंसी में उड़ाते हुए कहा कि 'चलो मैं मान लेता हूं कि अंबानी के मामले में तुम वर्जिन हो. तुम्हारी पार्टी ने तो जैसे अंबानी से कभी एक पैसा नहीं लिया. उद्योगपतियों से जितने रिश्ते कांग्रेस के रहे हैं, उतने किसी के नहीं रहे.' मैंने मणि को आखिर में इतना...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीच कहने वाले मणिशंकर अय्यर पहले भी अपनी बदजुमानी को लेकर फंसते रहे हैं. जिसमें सबसे गंभीर मामला सन् 2000 का है. दिल्ली की एक पार्टी में मणिशंकर अय्यर और अमर सिंह दोनों मौजूद थे. शराब के दौर चल रहे थे. किसी बात पर इन दोनों नेताओं में बहस होने लगी. फिर बात इतनी बढ़ी कि जो न होना था, वो सब हुआ. उस पूरे वाकये को अमरसिंह ने कुछ यूं बयां किया है:
- सतीश गुजराल के घर वह पार्टी प्रधानमंत्री के प्रेस सलाहकार एच.के. दुआ के सम्मान में दी गई थी, जिनकी हाल ही में शादी हुई थी. वे मेरे भी अच्छे दोस्त थे. उस पार्टी में शहर के नामी-गिरामी लोग मौजूद थे. तभी मणि आए. नशे में धुत. वे मेरी तरफ बढ़े और आरोप लगाने लगे- 'तुम रेसिस्ट हो. तुमने सोनिया गांधी को सिर्फ इसलिए प्रधानमंत्री बनने से रोका, क्योंकि वो विदेशी हैं.' मैं चुप रहा.
- हकीकत यह थी कि सोनिया गांधी को मैंने प्रधानमंत्री बनने से नहीं रोका था, बल्कि यह समाजवादी पार्टी के सांसदों और विधायकों का सामूहिक फैसला था. मैंने तो सिर्फ पार्टी के विचार को सार्वजनिक रूप से व्यक्त किया था.
- लेकिन, मणि मेरी चुप्पी के बावजूद शांत नहीं हुए. वे मुझे 'अवसरवादी', 'रंग बदलने वाला' कहते रहे. इस पर मैंने सिर्फ इतना ही कहा कि 'मैं पहले भी मुलायम के साथ था और अब भी हूं. लेकिन, ये तुम ही हो जिसे कांग्रेस में सीट नहीं मिली तो ममता के पास चले गए. जब ममता ने दुत्कारा तो उन्हें कोसते हुए कांग्रेस में वापस चले आए'. मणि ने दोबारा हमला बोला- 'तुम उद्योगपतियों के दलाल हो. तुम अंबानी के कुत्ते हो.' मैंने उनकी बात को हंसी में उड़ाते हुए कहा कि 'चलो मैं मान लेता हूं कि अंबानी के मामले में तुम वर्जिन हो. तुम्हारी पार्टी ने तो जैसे अंबानी से कभी एक पैसा नहीं लिया. उद्योगपतियों से जितने रिश्ते कांग्रेस के रहे हैं, उतने किसी के नहीं रहे.' मैंने मणि को आखिर में इतना ही कहा: 'ये तुम नहीं, तुम्हारी शराब बोल रही है'. इस पर मणि ने पलटवार करते हुए कहा: 'ये मेरा दिल और दिमाग बोल रहा है'. लेकिन मैंने भी लगे हाथ कह दिया: 'मोटे मणि शंकर, शराब के नशे में धुत तेरा सारा शरीर डोल रहा है'.
- मणि मुझे उकसाना चाहते थे. लेकिन मैंने जब अपना आपा नहीं खोया तो झुंझलाए हुए मणि ने कहा- 'तुम कैसे ठाकुर हो ?' मणि सिर्फ मुझसे उलझने के लिए उतावले हो रहे थे. ताकि वे जाकर सोनिया गांधी को बता सकें कि उन्होंने अमर सिंह से बदला ले लिया है. और इसके बदले उन्हें कांग्रेस वर्किंग कमेटी में जगह मिल सके. लेकिन, मैंने मणि से कह दिया कि मैं तुम्हारा गेम प्लान समझता हूं. और तुम्हें सफल नहीं होने दूंगा. इस पर मणि बोले- 'तुम सोनिया गांधी से मेरी नजदीकी नहीं जानते. मैं उनके सारे भाषण लिखता हूं. मैंने राजीव के भाषण लिखे हैं.' मैंने मजा लेने के लिए कह दिया कि 'हां, कौन भूल सकता है कि वह मशहूर लाइनें जब राजीव ने कहा था कि मैं वीपी सिंह की नानी याद करा दूंगा. भगवान उस पार्टी की रक्षा करे, जिसके पास तुम जैसा भाषण लिखने वाला हो'. इस पर मणि ने मुझे मां की गाली दी. मैंने सख्त अंदाज में मणि को चेतावनी दी कि मैं भी तुम्हें मां की गाली दे सकता हूं, लेकिन मैं तुम्हारी हद तक नहीं गिर सकता.
लेकिन, मणि नहीं रुके. 'मैं ऑक्सफोर्ड-कैंब्रिज में पढ़ा हूं... तुम्हारे नेता को तो ठीक से हिंदी बोलना भी नहीं आती... और हां, वो मुलायम... वो मुझ जैसे ही दिखते हैं. शायद इसलिए क्योंकि मेरे पिताजी किसी समय यूपी गए थे. तुम मुलायम की मां क्यों नहीं पूछते'. मणि शंकर की इस बात ने सारे हदें लांघ दीं. मैंने मणि की गर्दन पकड़ ली. और फिर मुझे जो करना था किया. (इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि अमर ने मणि को जमीन पर पटक दिया, उन पर चढ़कर घूंसे बरसाए).
अमरसिंह उस घटना को याद करते हुए कहते हैं कि मुलायम सिंह उनके दिल के काफी करीब रहे हैं. वे उनके खिलाफ किसी बदजुबानी को बर्दाश्त नहीं कर सकते थे. अमर कहते हैं कि जब मणि ने मेरे नेता की मां के बारे में अपशब्द कहे तो मैं उस समय सही-गलत सब भूल गया था. आमतौर पर जिसकी पिटाई होती है, उसे सहानुभूति मिलती है. लेकिन उस मामले में मणि के साथ ऐसा नहीं हुआ.
और अब...
मणिशंकर और अमरसिंह दोनों ही भारतीय राजनीति में अपने नेताओं की वजह से ज्यादा चर्चा में रहे हैं. स्वामीभक्ति निभाने में दोनों ही नेताओं ने राजनीति की नई-नई हदें कायम की हैं. दिलचस्प यह है कि दोनों ही नेताओं को अपने नेताओं से ही मुंह की खानी पड़ी है. अमर सिंह को पहले मुलायम ने ठुकराया था. मणि शंकर को अब राहुल गांधी दरवाजा दिखा चुके हैं.
[ घटना का ब्योरा टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित अमर सिंह के इंटरव्यू का अनुवाद कर लिया गया है. ]
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