बिहार के बदलते सियासी हालात में जीतन राम मांझी एक बार फिर मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स का हिस्सा नजर आ रहे हैं. एक तरफ लालू प्रसाद उन पर डोरे डाल रहे हैं तो दूसरी तरफ उनके जानी दुश्मन नीतीश कुमार भी तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं.
जब मांझी के गांव पहुंचे नीतीश
गया जिले के महकार गांव में लोगों को उल्टी गंगा बहती दिखी. इस गंगा के बहाव में नीतीश कुमार और जीतन राम मांझी दोनों बराबर उफान लेते देखे गये. अतंर सिर्फ इतना था कि दोनों धारा के खिलाफ आगे बढ़ते देखे गये. महकार मांझी का गांव है और नीतीश कुमार उद्घाटन के लिए उन्हीं के बुलावे पर पहुंचे थे.
देखा जाय तो जब भी नीतीश को लगता है कि लालू उन्हें उन्हीं की मांद में घुस कर शिकस्त देने की कोशिश कर रहे हैं वो अलर्ट हो जाते हैं. महागठबंधन छोड़ कर बीजेपी से हाथ मिलाते वक्त भी कुछ ऐसा ही हुआ था. जब नीतीश को लगा कि लालू बीजेपी के साथ मिल कर उन्हें हाशिये पर धकेल सकते हैं - फौरन उन्होंने पाला बदल लिया. लगता है नीतीश को इस बात की भनक लग गयी है कि लालू मांझी पर डोरे डाल रहे हैं.मांझी के गांव पहुंचे नीतीश बोले कि उनके प्रति मन में स्नेह और सम्मान का भाव हमेशा रहा है. सुन कर तो मजाक जैसा लगता है लेकिन सच यही है. सबसे ज्यादा हैरानी तो तब हुई जब नीतीश ने मांझी के मुख्यमंत्रित्व काल की भी तारीफ कर दी. बिहार ही नहीं बल्कि बाहर के लोग भी नहीं भूले होंगे कि किस तरह मांझी से मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल करने के लिए नीतीश कुमार पूरी ताकत झोंक दी थी. तब लालू के साथ दोस्ताना था इसलिए जब भी लगता कहीं मांझी महागठबंधन में घुसपैठ न कर लें, नीतीश कुमार सारी कोशिशें नाकाम कर देते रहे.
नीतीश की ओर से मांझी के लिए इस तरह का बयान ताज्जुब की बात थी. मगर...
बिहार के बदलते सियासी हालात में जीतन राम मांझी एक बार फिर मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स का हिस्सा नजर आ रहे हैं. एक तरफ लालू प्रसाद उन पर डोरे डाल रहे हैं तो दूसरी तरफ उनके जानी दुश्मन नीतीश कुमार भी तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं.
जब मांझी के गांव पहुंचे नीतीश
गया जिले के महकार गांव में लोगों को उल्टी गंगा बहती दिखी. इस गंगा के बहाव में नीतीश कुमार और जीतन राम मांझी दोनों बराबर उफान लेते देखे गये. अतंर सिर्फ इतना था कि दोनों धारा के खिलाफ आगे बढ़ते देखे गये. महकार मांझी का गांव है और नीतीश कुमार उद्घाटन के लिए उन्हीं के बुलावे पर पहुंचे थे.
देखा जाय तो जब भी नीतीश को लगता है कि लालू उन्हें उन्हीं की मांद में घुस कर शिकस्त देने की कोशिश कर रहे हैं वो अलर्ट हो जाते हैं. महागठबंधन छोड़ कर बीजेपी से हाथ मिलाते वक्त भी कुछ ऐसा ही हुआ था. जब नीतीश को लगा कि लालू बीजेपी के साथ मिल कर उन्हें हाशिये पर धकेल सकते हैं - फौरन उन्होंने पाला बदल लिया. लगता है नीतीश को इस बात की भनक लग गयी है कि लालू मांझी पर डोरे डाल रहे हैं.मांझी के गांव पहुंचे नीतीश बोले कि उनके प्रति मन में स्नेह और सम्मान का भाव हमेशा रहा है. सुन कर तो मजाक जैसा लगता है लेकिन सच यही है. सबसे ज्यादा हैरानी तो तब हुई जब नीतीश ने मांझी के मुख्यमंत्रित्व काल की भी तारीफ कर दी. बिहार ही नहीं बल्कि बाहर के लोग भी नहीं भूले होंगे कि किस तरह मांझी से मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल करने के लिए नीतीश कुमार पूरी ताकत झोंक दी थी. तब लालू के साथ दोस्ताना था इसलिए जब भी लगता कहीं मांझी महागठबंधन में घुसपैठ न कर लें, नीतीश कुमार सारी कोशिशें नाकाम कर देते रहे.
नीतीश की ओर से मांझी के लिए इस तरह का बयान ताज्जुब की बात थी. मगर मांझी कहां पीछे रहने वाले, उन्होंने भी अपनी बातों से लोगों को हैरान कर दिया. अपने भाषण में वो नीतीश पर ही बरसने लगे और शिकायतों का अंबार लगा दिया. मांझी के पूरे भाषण में उनका अपना दुखड़ा और सरकार की आलोचना ही थी. कानून व्यवस्था को लेकर भी मांझी ने सवाल उठाये. हालांकि, बाद में मांझी ने मान भी लिया कि अगर नीतीश ने उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया होता तब शायद उनके गांव का इतना विकास नहीं होता. तभी नीतीश के कान में मांझी को कुछ कहते भी देखा गया.
फौरन ही, नीतीश ने ऐलान कर दिया - 'सभा मंच पर मांझी जी ने मेरे कान में जो कुछ भी कहा, उसे मैं पूरा करने की घोषणा कर रहा हूं.' बतौर सीएम मांझी के विकास कार्य की सराहना करते हुए नीतीश ने साफ किया कि मांझी ने जो भी वादे किये थे, उनकी सरकार उसे पूरा करेगी.
मांझी को मिलाने की फिराक में लालू
नीतीश के महागठबंधन छोड़ कर जाने जाने के बाद लालू लगातार इसी ताक में हैं कि कैसे बीजेपी और नीतीश कुमार के गठजोड़ को नुकसान पहुंचाया जाये. मुसीबतों के अंबार में दबे लालू की मुश्किल यही है कि फिलहाल उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है. इस बीच, लालू के मांझी और एनडीए के एक और नेता उपेंद्र कुशवाहा से संपर्क की भी खबर है. कहा तो यहां तक जा रहा है कि गुपचुप मुलाकात भी हो चुकी है.
दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश के रिश्ते भी वैसे ही कड़वे रहे हैं जैसे मांझी के बारे में माना जाता रहा. जब तक नीतीश एनडीए से बाहर रहे, उपेंद्र कुशवाहा को कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई. कुशवाहा को भी डर है 2019 में नीतीश सीटों के बंटवारे में बड़े हिस्सेदार तो बनेंगे ही उन्हें हाशिये पर पहुंचाने में कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे. यही वजह है कि कुशवाहा बाकी दरवाजे भी खुला रखना चाहते हैं. लालू से नजदीकियों के पीछे भी यही वजह मानी जा रही है.
मांझी की भी दर्द भरी कहानी कुछ ऐसी ही है जिसे लालू मौका समझ रहे हैं. तारीफों के पुल भले भी बन रहे हों लेकिन मांझी नीतीश के रवैये से नाखुश ही चल रहे हैं. नाखुश तो वो बीजेपी से भी होंगे. उनके बेटे को मंत्री पद तक न मिला. मांझी के खाते का मंत्री पद पासवान के भाई को नीतीश कैबिनेट में दे दिया गया.
इन्हें भी पढ़ें :
नीतीश के लिए नयी चुनौती - राबड़ी देवी रिटर्न्स!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.