सत्यपाल मलिक (Satyapal Malik) के रिश्वत के आरोपों सीबीआई जांच हो रही है. रिश्वत की पेशकश का ये आरोप जम्मू-कश्मीर से जुड़ा है. रिश्वत की पेशकश करने वाली दो पार्टियां है - और खास बात ये है कि एक पार्टी अंबानी से जुड़ी है और दूसरी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सम्बद्ध है.
जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा (Manoj Sinha) का कहना है कि वो चाहते हैं कि सच सामने आये - बिलकुल सही बात है, सच सामने आना ही चाहिये. उम्मीद की जानी चाहिये कि सीबीआई 'पिंजरे के तोते' की छवि को लांघ कर मनोज सिन्हा की अपेक्षा के मुताबिक सच का पता लगाने की कोशिश करेगी, भले ही इस दौरान उसे कदम कदम पर नये नये सच से सामना क्यों न करना पड़े.
रिश्वत का ये मामला तब का है जब सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर के गवर्नर हुआ करते थे. फिलहाल वो मेघालय के राज्यपाल हैं. सत्यपाल मलिक के कार्यकाल के दौरान ही जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को खत्म किया गया था और एक पूर्ण राज्य के दर्जे वाले जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित क्षेत्र घोषित कर दिया गया.
मलिक ने रिश्वत की पेशकश वाला वाकया काफी बाद में शेयर किया था. समझने वाली बात ये है कि सत्यपाल मलिक ने ये खुलासा तब जाकर किया जब देश में किसान आंदोलन चल रहा था. किसान आंदोलन के दौरान सत्यपाल मलिक न सिर्फ मुखर देखे गये बल्कि मोदी सरकार के खिलाफ कृषि कानूनों को लेकर हमलावर भी रहे. बाद में, विधानसभा चुनावों से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस ले लिये थे.
सत्यपाल मलिक ने रिश्वत को लेकर जो बयान दिया था, अगर उसे सच मान लें तो बहुत कुछ छिपाया नहीं था. जहां तक सीबीआई जांच की बात है, सच के सामने आने का मतलब सबूतों के साथ सच्चाई मालूम होने से है - चूंकि ये मामला विधानसभा चुनावों के बीत जाने के बाद नये सिरे से...
सत्यपाल मलिक (Satyapal Malik) के रिश्वत के आरोपों सीबीआई जांच हो रही है. रिश्वत की पेशकश का ये आरोप जम्मू-कश्मीर से जुड़ा है. रिश्वत की पेशकश करने वाली दो पार्टियां है - और खास बात ये है कि एक पार्टी अंबानी से जुड़ी है और दूसरी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सम्बद्ध है.
जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा (Manoj Sinha) का कहना है कि वो चाहते हैं कि सच सामने आये - बिलकुल सही बात है, सच सामने आना ही चाहिये. उम्मीद की जानी चाहिये कि सीबीआई 'पिंजरे के तोते' की छवि को लांघ कर मनोज सिन्हा की अपेक्षा के मुताबिक सच का पता लगाने की कोशिश करेगी, भले ही इस दौरान उसे कदम कदम पर नये नये सच से सामना क्यों न करना पड़े.
रिश्वत का ये मामला तब का है जब सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर के गवर्नर हुआ करते थे. फिलहाल वो मेघालय के राज्यपाल हैं. सत्यपाल मलिक के कार्यकाल के दौरान ही जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को खत्म किया गया था और एक पूर्ण राज्य के दर्जे वाले जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित क्षेत्र घोषित कर दिया गया.
मलिक ने रिश्वत की पेशकश वाला वाकया काफी बाद में शेयर किया था. समझने वाली बात ये है कि सत्यपाल मलिक ने ये खुलासा तब जाकर किया जब देश में किसान आंदोलन चल रहा था. किसान आंदोलन के दौरान सत्यपाल मलिक न सिर्फ मुखर देखे गये बल्कि मोदी सरकार के खिलाफ कृषि कानूनों को लेकर हमलावर भी रहे. बाद में, विधानसभा चुनावों से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस ले लिये थे.
सत्यपाल मलिक ने रिश्वत को लेकर जो बयान दिया था, अगर उसे सच मान लें तो बहुत कुछ छिपाया नहीं था. जहां तक सीबीआई जांच की बात है, सच के सामने आने का मतलब सबूतों के साथ सच्चाई मालूम होने से है - चूंकि ये मामला विधानसभा चुनावों के बीत जाने के बाद नये सिरे से आगे बढ़ाया जा रहा है, इसलिए ये सच, सिर्फ सच नहीं बल्कि राजनीतिक ज्यादा लगता है!
सीबीआई कितना सच सामने ला पाएगी?
सीबीआई देश की सबसे ज्यादा डिमांड वाली केंद्रीय जांच एजेंसी है - और हाल फिलहाल यूपी से जुड़े उन्नाव और हाथरस गैंगरेप केस में सीबीआई जांच ने यूपी पुलिस को ही कठघरे में खड़ा कर दिया था. जिस बात का शक था और जिन चीजों से यूपी पुलिस इनकार करती रही, सीबीआई ने वही सच सामने लाया. बीजेपी का विधायक रहा कुलदीप सिंह सेंगर और डेरा सच्चा सौदा वाला राम रहीम को अगर सजा मिली है तो वो सीबीआई अफसरों की मेहनत और इमानदारी की बदौलत ही संभव हुआ है.
लेकिन जिस तरीके से सत्ता पक्ष से जुड़े कई मामलों में सीबीआई खुद पर सवाल उठने से नहीं रोक पाती, संदेह की गुंजाइश भी स्वाभाविक है. ये वही सीबीआई है जिसे सुप्रीम कोर्ट से पिंजरे के तोता होने का तमगा और एक वक्त मोदी सरकार के एक मंत्रियों सीबीआई अफसरों को बिल्लियों की तरह लड़ते बता चुके हैं. ये सीबीआई ही है जिसके एक्शन को लेकर सीधे सत्ता पक्ष पर उंगली उठ जाती है - और सत्ता में जो भी पार्टी रहे तोहमत यही लगती है कि विपक्ष को राजनीतिक वजहों से परेशान किया जा रहा है.
सच ये भी है कि सत्यपाल मलिक ने जम्मू-कश्मीर में रिश्वत का इल्जाम भी राजनीतिक वजहों से ही लगाया है - और सच ये भी है कि राजनीतिक वजहों से ही रिश्वत के उस इल्जाम की सीबीआई जांच हो रही है.
सत्यपाल मलिक का संगीन इल्जाम: सत्यपाल मलिक ने दो फाइलों का किस्सा तो सुनाया ही, लगे हाथ ये भी बता दिया कि जम्मू-कश्मीर और देश के बाकी हिस्सों में तब कमीशन का क्या रेट चल रहा था!
1. ‘कश्मीर जाने के बाद मेरे सामने दो फाइलें लाई गईं... एक अंबानी और दूसरी आरएसएस से सम्बद्ध एक व्यक्ति की थी... जो महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली तत्कालीन पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार में मंत्री थे - और प्रधानमंत्री के काफी करीबी थे.’
2. ‘दोनों विभागों के सचिवों ने मुझे बताया था कि आपको प्रत्येक फाइल को मंजूरी देने के लिए 150-150 करोड़ रुपये मिलेंगे, लेकिन मैंने उनसे कहा कि मैं पांच जोड़ी कुर्ता-पायजामा लेकर आया था और केवल उन्हें ही वापस लेकर जाऊंगा.’
3. ‘एहतियात के तौर पर मैंने प्रधानमंत्री से मिलने का समय लिया और दोनों फाइलों के बारे में बताया. मैंने सीधे बता दिया कि मैं पद छोड़ने के लिए तैयार हूं लेकिन अगर मैं पद पर बना रहूंगा तो इन फाइलों को मंजूरी नहीं दूंगा.’
4. ‘पूरे देश में चार से पांच फीसद कमीशन मांगा जाता है, लेकिन जम्मू कश्मीर में 15 फीसदी तक कमीशन की मांग की जाती है.’
कश्मीर से जुड़े इस बेहद संगीन रिश्वत प्रकरण में सत्यपाल मलिक ने प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका की सराहना भी की है, "मैं प्रधानमंत्री की तारीफ करूंगा... उन्होंने मुझसे कहा कि सत्यपाल करप्शन पर कोई समझौता करने की जरूरत नहीं है.
अगर सवाल ये है कि संघ से संबद्ध वो नेता कौन था? जो बात सत्यपाल मलिक की तरह से कई टुकड़ों में बतायी गयी है, उसमें थोड़ा विरोधाभास भी नजर आता है. राजस्थान के कार्यक्रम में वो महबूबा सरकार में मंत्री की बात करते हैं - और इंडियन एक्सप्रेस से सूबे में संघ के प्रभारी की तरफ उंगली उठाते हैं.
ये विरोधाभास इसलिए लगता है क्योंकि संघ का कोई नेता सीधे सीधे किसी सरकार में मंत्री नहीं बनता. भले ही वो नेता बीजेपी में संघ से आया हो, लेकिन मंत्री बीजेपी नेता ही बनता है - हो सकता है वो प्रधानमंत्री मोदी का करीबी हो या ऐसा होने का दावा करता हो, लेकिन अगर वो मंत्री बना है तो उसके संघ के प्रभारी होने का सवाल ही पैदा नहीं होता.
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में तो सत्यपाल मलिक ने आरएसएस के उस नेता के सवाल पर कहा था, ‘नाम लेना सही नहीं होगा... वैसे आप पता कर सकते हैं कि जम्मू कश्मीर में आरएसएस प्रभारी कौन था - मुझे खेद है, मुझे आरएसएस का नाम नहीं लेना चाहिये था.’
मनोज सिन्हा के सच का दायरा कहां तक है
17 अक्टूबर 2021 को सत्यपाल मलिक ने राजस्थान में एक समारोह में ये बोल कर सनसनी मचा दी थी कि कैसे जम्मू कश्मीर के राज्यपाल रहते उनके पास मंजूरी के लिए दो फाइलें आयी थीं - और कैसे वो ये बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुंचाये और 300 करोड़ की रिश्वत ठुकरा दी.
जो बातें सत्यपाल मलिक ने बतायीं, सुन कर उनके कट्टर विरोधी भी उनके कायल हो जाते, "मैंने ये कहते हुए प्रस्ताव को ठुकरा दिया कि मैं कश्मीर में पांच कुर्ता-पायजामा के साथ आया हूं - और उसी के साथ यहां से चला जाऊंगा."
एक पूर्व राज्यपाल के ऐसे गंभीर आरोपों के बाद, जम्मू-कश्मीर सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश की ताकि तथ्यों और विवरणों का पता लगाया जा सके - लेकिन पांच महीने बाद. अदालतों में तो देर से दर्ज कराये गये FIR पर भी सवाल जवाब होते हैं और कई बार देर के चलते सच को लंबा संघर्ष भी करना पड़ता है. कई बार झूठ भी भारी पड़ता है - क्योंकि हर बार देर का मतलब दुरूस्त नहीं होता.
सबसे बड़ा सवाल यही है कि मनोज सिन्हा को सच जानने की तलब इतनी देर से क्यों हुई? मानते हैं कि उनके इलाके में चुनाव होने की वजह से अनौपचारिक व्यस्तता रही होगी, लेकिन प्रशासनिक कार्यों के लिए या ऐसी बातों के लिए तो उनके पास पूरा वक्त रहा. वैसे यूपी में गाजीपुर और मऊ की कई सीटें बीजेपी के हार जाने के बाद टिकट बंटवारे पर सवाल उठाये जा रहे हैं - और उनकी अपनी ही कम्युनिटी के लोग बातचीत में घुमाफिरा कर हार के लिए उनको ही जिम्मेदार मानते हैं.
बहरहाल, इससे अच्छी बात क्या होगी कि जम्मू-कश्मीर के मौजूदा लेफ्टिनेंट गवर्नर सच जानना चाहते हैं. जाहिर है उनकी दिलचस्पी सत्यपाल मलिक के रिश्वत के रेट बताये जाने के बाद भी बढ़ी होगी कि आखिर जम्मू-कश्मीर में कमीशन तीन गुणा क्यों है? निश्चित तौर पर मनोज सिन्हा ये जरूर जानना चाहते होंगे कि कहीं ऐसा तो नहीं कि वो ये मान कर चल रहे हैं कि सब ठीक ठाक चल रहा है, लेकिन उनको अंधेरे में रख कर कहीं ऐसा कोई खेल अब भी तो नहीं जारी है?
सत्यपाल मलिक ने एक केस के जरिये ये भी बता दिया है कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस के अपने वादे के पक्के हैं - और ये भी कैसे वो खुद भी भ्रष्टाचार के सख्त विरोधी हैं, लेकिन जो अन्य बातें सत्यपाल मलिक ने बतायी हैं वे जरूर कान खड़े कर देती हैं.
हैरानी तो इस बात पर भी होती है कि सत्यपाल मलिक ने मामले को प्रधानमंत्री मोदी तक पहुंचाने का फैसला कर लिया, लेकिन जांच कराने से परहेज क्यों किया. जो काम अभी मनोज सिन्हा कर रहे हैं, सत्यपाल मलिक भी तो कर सकते थे.
अगर वक्त रहते रिश्वत की पेशकश की जांच का फैसला लिया गया होता तो सारे सबूत मिल जाने की भी गारंटी तो रहती ही, भ्रष्टाचार के रास्ते काम कराने वाले भी जेल की सलाखों के पीछे होते. वो चाहते तो प्रधानमंत्री मोदी से भी सीबीआई जांच की मांग कर सकते थे. भले ही बाद में श्रीनगर लौट कर अपने कार्यालय से केंद्र सरकार को एक पत्र लिख देते और प्रेस विज्ञप्ति के जरिये जानकारी भी दे देते.
अगर सत्यपाल मलिक को पता चला कि रिश्वत की पेशकश करने वालों में से एक संघ का आदमी है और दूसरा अंबानी का तो क्या वो डर गये कि बस जैसे तैसे खुद निकल जाने का रास्ता निकाल लिया और बाकी चीजों से आंख मूंद ली.
विपक्ष, खासकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की जबान से हमेशा ही ये दोनों ही नाम सुनने को मिलते रहे हैं. बेशक राहुल गांधी भी कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगाते, लेकिन बार बार यही बताने की कोशिश करते हैं अपने दोस्तों के लिए वो आंख मूंद लेते हैं. भ्रष्टाचार के आरोप तो राहुल गांधी संघ पर भी नहीं लगाते. राहुल गांधी संघ पर देश में लोगों के बीच नफरत फैलाने का आरोप लगाते हैं और महात्मा गांधी की हत्या में हाथ होने का शक जताने के बाद मानहानि का आपराधिक मुकदमा भी फेस कर रहे हैं.
मामला जब इतना आगे बढ़ चुका है तो ये अपेक्षा तो बढ़ ही जाती है कि जितना जल्द हो सके सच सामने आ जाये - लेकिन ये नहीं समझ में आता कि वो सच वास्तव में सच ही होगा या राजनीतिक तौर पर दुरूस्त कोई 'सच' होगा?
और बाद में ट्विटर पर 'सत्यमेव जयते' लिख कर उसका स्वागत और जोर शोर से प्रचार प्रसार किया जाएगा?
कुछ सवाल और भी हैं - मलिक भी जवाब नहीं दिये!
बकौल सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर के गवर्नर रहते रिश्वत का मामला वो प्रधानमंत्री मोदी तक ले गये. जैसा वो सोच रहे थे वैसा ही हुआ, प्रधानमंत्री मोदी की भी सलाहियत वही रही जो उनके मन में चल रहा था.
1. ये सारी बातें हमें सत्यपाल मलिक के जरिये ही मालूम हुई हैं और वो भी किसान आंदोलन की बदौल पैदा हुए राजनीतिक माहौल के बीच. सत्यपाल मलिक प्रधानमंत्री मोदी के बड़प्पन और भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस के वादे पर अडिग रहने की बात तो बताते हैं, लेकिन ऐसा लगता है जैसे मलिक घुमा फिरा कर कह रहे हों कि प्रधानमंत्री मोदी भी ऐसी बातों को बस मना करके छोड़ देते हैं. बातों बातों में मलिक क्या ये समझाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं कि ये सब जानने के बाद भी ये कोशिश नहीं होती कि कहां कहां ऐसा हो रहा है और कौन कौन लोग इसके पीछे हैं?
2. सवाल ये भी है कि सत्यपाल मलिक तो सीधे प्रधानमंत्री मोदी के पास पहुंच गये, लेकिन ऐसे कितने लोग होंगे जो वहां तक पहुंचने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाते होंगे - सीधी पहुंच वाली पोजीशन में होने के बाद भी. कैसे समझ में आएगा कि ऐसे मामलों में क्या होता होगा?
3. अगर किसान आंदोलन नहीं होता और सत्यपाल मलिक का ये बयान नहीं आता तो ये सब मालूम भी नहीं होता? वैसे भी सत्यपाल मलिक ने ये सब तब बताया जब किसान आंदोलन की वजह से उनके राजनीतिक हित टकराने लगे - वरना, वो भी चुप ही बैठे रहते. राजनीति वजहों से ऐसे कितने मामले होंगे जो वैसी ही कारणों से फाइलों में ही सिमट कर रह जाते होंगे?
मामले की गंभीरता को देखते हुए सीबीआई से ये अपेक्षा है कि 'पिंजरे का तोता' बने रहने के बजाय जांच एजेंसी के अफसर मामले की तह तक जायें - और पता करें कि ऐसे मामलों के तार कहां तक जुड़े हैं या किस स्तर पर बिछाये जा चुके हैं?
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