सुप्रीम कोर्ट ने मराठा समुदाय को शिक्षा और रोजगार में आरक्षण देने वाले महाराष्ट्र के कानून को 'असंवैधानिक' करार दे दिया है. सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद महाराष्ट्र की 'सियासी चाय' में एक नया उबाल आने के संकेत मिलने लगे हैं. एंटीलिया केस और 100 करोड़ के कथित वसूली मामले की 'आग' फिलहाल ठंडी पड़ती नजर आ रही है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से भाजपा को महाराष्ट्र में राजनीति करने के लिए एक और मुद्दा मिल गया है. वैसे, भाजपा के लिए मराठा आरक्षण केवल सियासी मुद्दा नहीं है, यह उसकी जरूरत है.
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना से मिले धोखे की टीस रह-रहकर भाजपा को सालती रहती है. सुशांत सिंह राजपूत के मामले से लेकर सिंडिकेट राज तक महाविकास आघाड़ी सरकार को घेरने का कोई भी मौका भाजपा ने छोड़ा नही है. महाराष्ट्र में उद्धव सरकार फिलहाल बिना किसी समस्या के चल रही है और सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी भाजपा इस सब पर नाराजगी जताने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकती है.
वैसे, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मराठा आरक्षण की डगर काफी कठिन है. गुजरात में पाटीदार आंदोलन के सहारे पटेल आरक्षण और हरियाणा व राजस्थान में जाट आरक्षण की मांग उठती रही है. मराठा आंदोलन को लेकर भी राज्य में बड़ा आंदोलन हो चुका है और यह हिंसक तक हो गया था. महाराष्ट्र की 32 फीसदी मराठा आबादी आरक्षण के सहारे ही सही जिसके पक्ष में रहेगी, राज्य में उस पार्टी का राजनीतिक वर्चस्व शायद ही कोई तोड़ सके.
मराठा आरक्षण के लिए धारा 370 हटाने जैसी हिम्मत
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आरक्षण के मामले पर महाविकास आघाड़ी सरकार के मराठा समुदाय के साथ...
सुप्रीम कोर्ट ने मराठा समुदाय को शिक्षा और रोजगार में आरक्षण देने वाले महाराष्ट्र के कानून को 'असंवैधानिक' करार दे दिया है. सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद महाराष्ट्र की 'सियासी चाय' में एक नया उबाल आने के संकेत मिलने लगे हैं. एंटीलिया केस और 100 करोड़ के कथित वसूली मामले की 'आग' फिलहाल ठंडी पड़ती नजर आ रही है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से भाजपा को महाराष्ट्र में राजनीति करने के लिए एक और मुद्दा मिल गया है. वैसे, भाजपा के लिए मराठा आरक्षण केवल सियासी मुद्दा नहीं है, यह उसकी जरूरत है.
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना से मिले धोखे की टीस रह-रहकर भाजपा को सालती रहती है. सुशांत सिंह राजपूत के मामले से लेकर सिंडिकेट राज तक महाविकास आघाड़ी सरकार को घेरने का कोई भी मौका भाजपा ने छोड़ा नही है. महाराष्ट्र में उद्धव सरकार फिलहाल बिना किसी समस्या के चल रही है और सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी भाजपा इस सब पर नाराजगी जताने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकती है.
वैसे, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मराठा आरक्षण की डगर काफी कठिन है. गुजरात में पाटीदार आंदोलन के सहारे पटेल आरक्षण और हरियाणा व राजस्थान में जाट आरक्षण की मांग उठती रही है. मराठा आंदोलन को लेकर भी राज्य में बड़ा आंदोलन हो चुका है और यह हिंसक तक हो गया था. महाराष्ट्र की 32 फीसदी मराठा आबादी आरक्षण के सहारे ही सही जिसके पक्ष में रहेगी, राज्य में उस पार्टी का राजनीतिक वर्चस्व शायद ही कोई तोड़ सके.
मराठा आरक्षण के लिए धारा 370 हटाने जैसी हिम्मत
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आरक्षण के मामले पर महाविकास आघाड़ी सरकार के मराठा समुदाय के साथ होने की बात कही है. उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बाबत पत्र लिखने की जानकारी देते हुए कहा कि धारा 370 हटाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने जैसी हिम्मत दिखाई थी, वैसी ही मराठा आरक्षण के लिए भी दिखाएं. महाराष्ट्र की हर राजनीतिक पार्टी के लिए मराठा आरक्षण एक जरूरी मामला है. यही वजह है कि इस प्रस्ताव को पारित करने का समर्थन सभी सियासी दलों ने किया था. ये आरक्षण ठीक वैसा ही है, जैसा केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को दिया था. सवर्णों को मिलने वाले आरक्षण पर भी सभी राजनीतिक दलों ने सहमति जताई थी.
मराठी मानुष की राजनीति करने वाली शिवसेना के लिए भी मराठा आरक्षण परीक्षा के एक 'अनिवार्य विषय' की तरह है. वह इससे अलग होती है, तो उसकी राजनीति ही खत्म हो जाएगी. शिवसेना की महाराष्ट्र से बाहर केंद्र की राजनीति करने में कभी दिलचस्पी नजर नहीं आई है. वह महाराष्ट्र और खासकर औद्योगिक नगरी मुंबई में ही खुद का प्रभाव स्थापित करने की पक्षधर रही है. शिवसेना के कब्जे वाली बीएमसी में भ्रष्टाचार के हाल जगजाहिर हैं. शिवसेना इस 'खेल' से ही खुद को मजबूत करती रही है. मराठी कार्ड शिवसेना के लिए 'तुरुप का पत्ता' है और वह इसे आसानी से अपने हाथ से जाने नहीं देगी.
भाजपा के 'दर्द' के लिए 'संजीवनी बूटी'
मराठा आरक्षण को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी धारा 370 हटाने जैसी ताकत का इस्तेमाल करेंगे या नहीं, ये बात वक्त की गर्त में छिपी है. लेकिन, भाजपा के लिए यह मुद्दा भविष्य में भाजपा के लिए 'संजीवनी बूटी' हो सकता है. यही वजह है कि भाजपा ने उद्धव ठाकरे नीत महाविकास आघाड़ी सरकार पर सुप्रीम कोर्ट को अपनी बात नहीं समझा पाने का आरोप लगाया है. कोरोना महामारी के चरम पर होने के बावजूद महाराष्ट्र भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने उद्धव सरकार को घेरने के लिए मराठा आरक्षण पर सर्वदलीय बैठक और विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है.
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अगर केंद्र सरकार मराठा आरक्षण पर कोई फैसला लेती है, तो महाराष्ट्र की 32 फीसदी मराठा आबादी एक झटके में भाजपा की झोली में आ सकते हैं. लेकिन, इतना तो कहा ही जा सकता है कि भाजपा ये फैसला अभी नहीं करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने मराठा समुदाय का आरक्षण 'असाधारण परिस्थिति' न होते हुए कहकर खारिज किया है. भाजपा के लिए यह एक असाधारण मौका है, जो राज्य में उसकी राजनीति की दिशा और दशा दोनों तय करने की क्षमता रखता है.
मराठा आरक्षण का श्रेय लेने की होड़ में चंद्रकांत पाटिल कहते नजर आते हैं कि देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली पिछली सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग बनाकर मराठा समुदाय को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े मानने की सिफारिश की. फडणवीस सरकार ने ही मराठाओं के लिए कानून बनाया और जब इसे हाईकोर्ट में चुनौती मिली, तो फडणवीस सरकार ने ही कोर्ट को इसे जारी रखने के लिए समझाया था. अब महाविकास आघाड़ी सरकार ने मराठा समुदाय को विफल कर दिया है. पाटिल ने अप्रत्यक्ष रूप से मराठा समुदाय को एक बार फिर से आंदोलन करने की हिदायत दे डाली है. उन्होंने कहा कि मराठा समुदाय को इस मुद्दे पर अपना खुलकर आवाज उठानी चाहिए और उद्धव ठाकरे सरकार पर दबाव बनाना चाहिए.
मराठी मानुष का जुड़ाव निश्चित तौर पर शिवसेना के साथ रहा है. लेकिन, भाजपा और शिवसेना दोनों ही राजनीतिक दलों का एजेंडा राष्ट्रवाद ही है. इस मुद्दे पर भाजपा को मराठी मानुष से जुड़ने का मौका दिखाई दे रहा है. नागपुर स्थित संघ मुख्यालय केंद्र की भाजपा सरकार को अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, लेकिन दिशा-निर्देश देता रहता है. आरक्षण पर संघ की सोच क्या है, ये बताने की जरूरत नहीं है. लेकिन, महाराष्ट्र में शिवसेना के 'दंश' का इलाज करने के लिए भाजपा के हाथ एक बड़ा मौका आ गया है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.