एक न्यूज़ चैनल के अनुसार देश के विपक्षी दलों के लगभग 100 सांसद सामूहिक इस्तीफे की रणनीति बना रहे हैं. इन सामूहिक इस्तीफों का प्रायोजन मोदी सरकार पर दबाव डालकर, आगामी लोकसभा चुनावों को जल्दी कराने का है. बजट सत्र के दौरान भी विपक्ष ने सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने का प्रयास किया था. कांग्रेस पार्टी भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव भी लाना चाहती थी. संसद में एनडीए का पूर्ण बहुमत है, जिसके कारण सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव और दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग दोनो विचार सिर्फ़ विचार बनकर ही रह गए.
संसद का बजट सत्र पंजाब नेशनल बैंक - नीरव मोदी घोटाले, आंध्र प्रदेश के विशेष राज्य के दर्जे की मांग, अविश्वास प्रस्ताव, मुख्य न्यायाधीश पर महाभियोग, उच्चतम न्यायालय द्वारा एसटी-एसटी कानून में बदलाव, कावेरी जल विवाद, जैसे मुद्दों से ग्रसित रहा. पूरे सत्र में विपक्ष यह दिखना चाहता था की मोदी सरकार लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास नहीं रखती है.
सांसदों के सामूहिक इस्तीफे की कवायद से विपक्ष यह संदेश देना चाहता है कि वर्तमान सरकार ने जनता का भरोसा खो दिया है. सामूहिक इस्तीफों से विपक्ष मोदी सरकार के प्रति अविश्वास प्रस्ताव जैसा माहौल बनाना चाहता है.
केवल मोदी विरोध का मंत्र ही विपक्ष को प्रेरित कर रहा है. इसके अलावा उन्हें एक साथ जोड़े रखने का कोई भी कारण नज़र नहीं आता है. विपक्ष का सामूहिक इस्तीफों का कथित निर्णय उनके लिए ही हानिकारक होगा क्योंकि इन इस्तीफों के पीछे कोई तर्क या मुद्दा नहीं होगा. मोदी विरोध के नाम पर दिए इस्तीफों को आम नागरिक स्वीकार नहीं करेगी. विपक्ष से इन इस्तीफों की आवश्यकता पर प्रश्न...
एक न्यूज़ चैनल के अनुसार देश के विपक्षी दलों के लगभग 100 सांसद सामूहिक इस्तीफे की रणनीति बना रहे हैं. इन सामूहिक इस्तीफों का प्रायोजन मोदी सरकार पर दबाव डालकर, आगामी लोकसभा चुनावों को जल्दी कराने का है. बजट सत्र के दौरान भी विपक्ष ने सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने का प्रयास किया था. कांग्रेस पार्टी भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव भी लाना चाहती थी. संसद में एनडीए का पूर्ण बहुमत है, जिसके कारण सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव और दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग दोनो विचार सिर्फ़ विचार बनकर ही रह गए.
संसद का बजट सत्र पंजाब नेशनल बैंक - नीरव मोदी घोटाले, आंध्र प्रदेश के विशेष राज्य के दर्जे की मांग, अविश्वास प्रस्ताव, मुख्य न्यायाधीश पर महाभियोग, उच्चतम न्यायालय द्वारा एसटी-एसटी कानून में बदलाव, कावेरी जल विवाद, जैसे मुद्दों से ग्रसित रहा. पूरे सत्र में विपक्ष यह दिखना चाहता था की मोदी सरकार लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास नहीं रखती है.
सांसदों के सामूहिक इस्तीफे की कवायद से विपक्ष यह संदेश देना चाहता है कि वर्तमान सरकार ने जनता का भरोसा खो दिया है. सामूहिक इस्तीफों से विपक्ष मोदी सरकार के प्रति अविश्वास प्रस्ताव जैसा माहौल बनाना चाहता है.
केवल मोदी विरोध का मंत्र ही विपक्ष को प्रेरित कर रहा है. इसके अलावा उन्हें एक साथ जोड़े रखने का कोई भी कारण नज़र नहीं आता है. विपक्ष का सामूहिक इस्तीफों का कथित निर्णय उनके लिए ही हानिकारक होगा क्योंकि इन इस्तीफों के पीछे कोई तर्क या मुद्दा नहीं होगा. मोदी विरोध के नाम पर दिए इस्तीफों को आम नागरिक स्वीकार नहीं करेगी. विपक्ष से इन इस्तीफों की आवश्यकता पर प्रश्न पूछे जाएंगे जिनका विपक्ष के पास कोई उत्तर नहीं होगा.
लोकतंत्र में विपक्ष का काम सरकार की नीतियों और कार्यों पर पैनी नज़र रखने का होता है. सरकार की ग़लतियां उजागर कर उन्हें जनता तक पहुंचना विपक्ष का ही कर्तव्य है. सरकार की कमियां निकालना तो ठीक है परंतु यदि कमियां निकालने के नाम पर संसद को ही न चलने दिया जाए तो उसका क्या इलाज़ है?
वर्तमान में विपक्ष मोदी सरकार पर दबाव बनाने के नाम पर एक तरह की चाल चल रहा है. विपक्ष दिखाना चाहता है कि केंद्र सरकार ने जनता का भरोसा खो दिया है. विपक्ष दिखाना चाहता है कि आज देश में फिर 2013 जैसी स्थिति पैदा हो गई है, तथा एक बार फिर 2013 की तरह सरकार पंगु हो गई है. विपक्ष की यह कोशिश वास्तविकता और सच्चाई से कोसों दूर है. यदि विपक्ष यह सोच रहा है कि वर्तमान में वह सामूहिक इस्तीफा देकर मोदी सरकर को चौंका देंगे तो यह उनकी भूल होगी.
इस समय राम जन्म भूमि, तीन तलाक़, मुस्लिम समाज में बहू विवाह- हलाला, अनुछेद 370, आधार जैसे अहम मुद्दे चर्चा में हैं. विपक्ष यदि आखरी एक साल में लोक सभा से गायब हो गया तो मोदी सरकार को इन सब विषयों पर अपने अनुसार काम करने का सुनहरा मौका मिल जाएगा.
विपक्ष को सरकार पर दबाव तो डालना चाहिए पर ब्लैकमेल नहीं करना चाहिए. यह बात राहुल गांधी जैसे नेताओं को समझनी होगी.
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