अंसारी बंधुओं को टिकट देने के साथ ही मायावती का शतक पूरा हो गया है. बीएसपी द्वारा यूपी चुनाव मैदान में उतारे जाने वाले मुस्लिम उम्मीदवारों की तादाद 100 पहुंच चुकी है. इसमें तीन आखिरी नाम हैं - मुख्तार अंसारी, अब्बास अंसारी और सिगबतुल्ला अंसारी.
पश्चिम यूपी में नसीमुद्दीन सिद्दीकी की ही तरह मायावती ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुख्तार अंसारी पर भरोसा जताया है. अंसारी की बीएसपी में ये दूसरी पारी है. समाजवादी पार्टी के झगड़े में अंसारी के कौमी एकता दल का विलय भी एक बड़ा फैक्टर रहा लेकिन अखिलेश द्वारा नो एंट्री का बोर्ड दिखा देने के बाद उन्होंने बीएसपी का रुख किया है.
अब मैं हूं 'नेता'जी
बीजेपी ने अब तक एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है. अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी भी अब मुलायम की तरह नहीं रही. हाल तक घर के झगड़े के बीच भी मुलायम सिंह अयोध्या में कारसेवकों पर गोलियां चलाने का जिक्र जोर शोर से करते रहे. अखिलेश उससे आगे बढ़ने की कोशिश में हैं. वो न तो प्रो-मुस्लिम रहना चाहते हैं और न ही एंटी-हिंदू नेता के तौर पर खुद की छवि बनने देना चाहते हैं. अखिलेश भी काफी हद तक नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी जैसे नेताओं की जमात में फिट होना चाहते हैं जिनके सेक्युलरिज्म की थ्योरी थोड़ी अलग है. वो चाहते हैं कि सवर्ण हिंदू भी उनसे परहेज न करें और मुस्लिम भी उनकी तरक्की पसंद राजनीति में यकीन कायम रखे.
मायावती और उनके सलाहकारों का मानना रहा कि 2012 में मुस्लिम वोटों का पूरी तरह समाजवादी पार्टी को वोट दे देना उनकी हार की बड़ी वजह रहा. ये बात मायावती को बहुत सालती रही - और फिर काफी सोच विचार कर उन्होंने इसके लिए लंबा एक्शन प्लान बनाया. वैसे तो कई मुस्लिम नेताओं को उन्होंने जोन के हिसाब से जिम्मेदारी दी लेकिन खास दायित्व उन्होंने बहुत पहले ही नसीमुद्दीन सिद्दीकी को सौंप दी.
सुधार गृह में कितने दिन की मोहलत?
बदले हालात में मायावती बार बार खुद को कुछ वैसी ही पोजीशन में पेश कर रही हैं जिस जगह कभी मुलायम सिंह का कब्जा हुआ करता था और जिस वजह से उन्हें 'मौलाना मुलायम' तक कहा जाने लगा.
फिर बीएसपी के मुख्तार
मायावती के एक्शन प्लान के तहत मुस्लिम वोटरों से सीधे संवाद के लिए बीएसपी की ओर से भाईचारा मीटिंग के आयोजन किये गये. इस दौरान ये भी सुनिश्चित किया जाता कि ऐसी हर मीटिंग के पहले कुरान की आयतें जरूर पढ़ी जायें. फिर मीटिंग में मौजूद लोगों को समझाया जाता कि क्यों किसी भी मंजिल तक पहुंचने के लिए एक 'कायद' यानी नेता की जरूरत होती है.
तमाम तरकीबें अपनाने के बाद बीएसपी नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी को एक मजबूत कायद के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाता. उनकी हैसियत और रुतबे से रूबरू कराने के लिए मौजूद लोगों को समझाया जाता कि किस तरह मायावती शासन में उनके पास 18 पोर्टफोलियो रहे. इस टास्क में नसीमुद्दीन के बेटे अफजल सिद्दीकी का भी बड़ा रोल रहा जिन्हें मायावती ने बीएसपी के युवा मुस्लिम चेहरे के रूप में स्थापित करने की कोशिश की है.
जो बीड़ा नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने पश्चिम यूपी में उठा रखा है वही दारोमदार अब पूर्वी यूपी में मुख्तार अंसारी को मिलने जा रहा है. 2009 के लोक सभा चुनाव से पहले मुख्तार ने मायावती की एक रैली में बीएसपी ज्वाइन की. 2007 में वो मऊ सदर सीट से निर्दल विधायक चुने गये थे. रैली में मायावती ने उन्हें गरीबों का मसीहा तक बताया. बाद में बीएसपी के टिकट पर मुख्तार वाराणसी लोक सभा सीट से चुनाव लड़े लेकिन बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी से हार गये. मुख्तार के साथ उनके एक भाई अफजाल भी बीएसपी में शामिल हुए और समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधायक बने दूसरे भाई सिगबतुल्ला ने मायावती का सपोर्ट किया था.
मुश्किल से साल भर ही बीते होंगे कि मायावती ने मुख्तार और उनके भाई को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया और सिगबतुल्ला से भी नाता तोड़ लिया. लखनऊ में इसका ऐलान करते हुए बीएसपी प्रवक्ता ने अंसारी भाइयों पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया. प्रवक्ता के मुताबिक अंसारी बंधुओं ने बीएसपी में शामिल होते वक्त वादा किया था, कि वे आपराधिक गतिविधियां छोड़कर जनसेवा करेंगे, लेकिन वे लगातार आपराधिक गतिविधियों में शामिल पाये गये जिससे जनता के बीच पार्टी की छवि खराब हो रही थी. तब प्रवक्ता ने कहा था कि गाजीपुर जिला जेल में छापेमारी के दौरान पता चला कि अंसारी बंधु जेल में रहकर आपराधिक गतिविधियां चलाते थे.
ये वाकया 2010 का है - और अब दोनों पक्षों ने वो बातें भुला दी हैं. ऐसी बातों के लिए भी सात साल का वक्त काफी होता है. अंसारी बंधु अब मायावती के दलित मुस्लिम राजनीति एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए मैदान में कूद पड़े हैं.
अपराध की दुनिया से राजनीति में आये मुख्तार अंसारी के दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे - और फिलहाल पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़, बलिया और वाराणसी जिलों की कम से कम 20 विधानसभा सीटों पर अंसारी बंधुओं के असर की बात कही जाती है. मायावती मुख्तार अंसारी को मऊ, मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी को घोसी और भाई सिगबतुल्ला को मोहम्मदाबाद से टिकट दिया है. जाहिर है इसके लिए बीएसपी उम्मीदवारों की कुर्बानी भी देनी पड़ी होगी.
बीएसपी ज्वाइन करने पर मायावती ने इस बार मुख्तार को गरीबों का मसीहा नहीं बताया. मुख्तार के अपराधिक इतिहास पर सफाई देते हुए मायावती ने कहा बीएसपी सबको सुधरने का मौका देती है. देखना होगा सुधार गृह इस बार मुख्तार को कितनी मोहलत देता है.
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