सचमुच, ये ईदी नायाब और बेशक़ीमती है. मुंह बोली बुआ मायावती ने अपने भतीजे अखिलेश यादव को सही वक्त और मौक़े पर एक बड़े सबक़ की ईदी दी है. दूसरों से जुड़ने से पहले अपनों से ना टूटने की नसीहत दी है. खुद का परिवार तोड़कर दूसरे के परिवार से जुड़ने के नुकसान से वाक़िफ किया है. अपने खून के रिश्तों से, जड़ों से और शाखाओं से जुड़े रहने का अप्रत्यक्ष ज्ञान बेशकीमती ईदी है.
जो अपने परिवार के रिश्तों को धैर्य, संयम और समझौते की क़ूबत से बचा लेगा वो ही नये रिश्ते बनाने के काबिल है.
अखिलेश यादव कमजोर पड़ गये हैं. जनाधार में भी, सीटों में भी और पिता-चाचा के सपोर्ट में भी. स्वार्थ के पहियों से चलने वाली सियासत कमजोर से दूरी बना ले तो ताज्जुब की बात नहीं. ऐसे में बसपा कमजोर सपा से गठबंधन के रिश्ते का बोझ क्यों ढोयेगी ! भतीजे अखिलेश से अलग होने के लिए मुंहबोली बुआ मायावती ने सही समय चुना.
इम्तिहान में पास होने के लिए त्याग और संयम में विजय प्राप्त करने के जश्न को ही ईद कहते है.
ईद से पहले रमजान के रोज़े संयम, त्याग और धैर्य सिखाते हैं. सियासत मे भी ये खूबियां जरूरी हैं. अखिलेश यादव में धैर्य और सयम होता...समझौते का माद्दा होता तो उनके चाचा और पिता उनकी ताकत होते. वो पूरी तरह से साथ होते तो शायद सपा का बेस वोट बैंक नहीं खिसकता.
राजनीतिक रिश्ता तोड़कर बसपा सुप्रीमो बुआ मायावती ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से सियासी दूरी बनाकर ईदी रूपी बड़ी सीख दी है.
अखिलेश यादव अपनी बुआ की इस अप्रत्यक्ष नसीहत का पालन कर लें तो शायद सबकुछ ठीक हो जाए. अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव और पिता मुलायम सिंह यादव से खून का रिश्ता ही नहीं बलेकि ये लोग उनके राजनीतिक...
सचमुच, ये ईदी नायाब और बेशक़ीमती है. मुंह बोली बुआ मायावती ने अपने भतीजे अखिलेश यादव को सही वक्त और मौक़े पर एक बड़े सबक़ की ईदी दी है. दूसरों से जुड़ने से पहले अपनों से ना टूटने की नसीहत दी है. खुद का परिवार तोड़कर दूसरे के परिवार से जुड़ने के नुकसान से वाक़िफ किया है. अपने खून के रिश्तों से, जड़ों से और शाखाओं से जुड़े रहने का अप्रत्यक्ष ज्ञान बेशकीमती ईदी है.
जो अपने परिवार के रिश्तों को धैर्य, संयम और समझौते की क़ूबत से बचा लेगा वो ही नये रिश्ते बनाने के काबिल है.
अखिलेश यादव कमजोर पड़ गये हैं. जनाधार में भी, सीटों में भी और पिता-चाचा के सपोर्ट में भी. स्वार्थ के पहियों से चलने वाली सियासत कमजोर से दूरी बना ले तो ताज्जुब की बात नहीं. ऐसे में बसपा कमजोर सपा से गठबंधन के रिश्ते का बोझ क्यों ढोयेगी ! भतीजे अखिलेश से अलग होने के लिए मुंहबोली बुआ मायावती ने सही समय चुना.
इम्तिहान में पास होने के लिए त्याग और संयम में विजय प्राप्त करने के जश्न को ही ईद कहते है.
ईद से पहले रमजान के रोज़े संयम, त्याग और धैर्य सिखाते हैं. सियासत मे भी ये खूबियां जरूरी हैं. अखिलेश यादव में धैर्य और सयम होता...समझौते का माद्दा होता तो उनके चाचा और पिता उनकी ताकत होते. वो पूरी तरह से साथ होते तो शायद सपा का बेस वोट बैंक नहीं खिसकता.
राजनीतिक रिश्ता तोड़कर बसपा सुप्रीमो बुआ मायावती ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से सियासी दूरी बनाकर ईदी रूपी बड़ी सीख दी है.
अखिलेश यादव अपनी बुआ की इस अप्रत्यक्ष नसीहत का पालन कर लें तो शायद सबकुछ ठीक हो जाए. अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव और पिता मुलायम सिंह यादव से खून का रिश्ता ही नहीं बलेकि ये लोग उनके राजनीतिक गुरु भी हैं. पिता की गुजारिश मानकर चाचा की घर वापसी करवाकर अखिलेश यादव उनको सम्मान देकर टूटे रिश्तों को जोड़ सकते हैं. पार्टी का बिखरा जनाधार समेट सकते हैं.
मुलायमवादी और शिवपालवादी एकबार फिर समाजवादियों को एक छतरी के नीचे आकर समाजवादी पार्टी को मजबूत कर सकते हैं.
ईद की चांद रात वाले दिन सपा से किनारा करने वाले बसपा के तल्ख़ फैसले को अखिलेश यादव बुआ मायावती की ईदी समझें. ये कड़वी ईदी अपनों से जुड़ने की मिठास का सबब बन सकती है. और फिर सख्त वख्त वाले रोजों का दौर खत्म करके खुशियों के द्वार पर सफलताएं दस्तक दे सकती हैं.
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