राजनीति में परिवारवाद का विरोध भाजपा का बुनियादी मुद्दा रहा है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में इसे और भी ताज़ा किया, साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफ तौर से कहा कि भाजपाई अपने परिजनों के लिए टिकट ना मांगे. बावजूद इसके लखनऊ के मेयर पद के टिकट के लिए भाजपा के प्रभावशाली नेताओं की पत्नियों की लाइन लग गई. इस दौरान ही लखनऊ की मेयर सीट के लिए सपा ने कमजोर समाज की मजबूत आवाज़ बनने वाली कलमकार, प्रखर वक्ता, विचारक, जानी-पहचानी एक्टीविस्ट,पढ़ी लिखी ग़ैर सियासी महिला वंदना मिश्रा को अपना प्रत्याशी घोषित करने के बाद भाजपा की मुश्किल बढ़ा दी हैं. वंदना ब्राह्मण हैं और भाजपा इस जाति के वोट को अपना सुरक्षित वोट मानकर यूपी में पिछड़ी जातियों के चेहरों को एहमियत ज्यादा देती रही है. हो सकता है कि लखनऊ मेयर उम्मीदवार के चयन के लिए पिछड़ी जाति की किसी महिला को टिकट देने को प्राथमिकता देने पर विचार चल रहा हो.
भाजपा ने यदि पिछड़ी जाति की महिला को टिकट दिया तो पार्टी का पारंपरिक ब्राह्मण वोटों का रुझान सपा प्रत्याशी वंदना मिश्रा की तरह खिसक सकता है. जो भी हो पर राजनीतिक परिवार की महिलाओं या भाजपा नेताओं की पत्नियों की चर्चाओं के बाद अब मुश्किल है कि पूर्व डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा और मौजूदा डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक की पत्नियों से किसी को उम्मीदवार बनाया जाए. चर्चा ये भी है कि पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की बहु अर्पणा यादव भी टिकट की लाइम में हैं.
क्योंकि उनका ताल्लुक बड़े सियासी घराने से है इसलिए उनका कामयाब होना भी बेहद मुश्किल है. इसी तरह पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय अखिलेश दास की पत्नी अलका दास भी लाइम हैं, ये भी...
राजनीति में परिवारवाद का विरोध भाजपा का बुनियादी मुद्दा रहा है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में इसे और भी ताज़ा किया, साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफ तौर से कहा कि भाजपाई अपने परिजनों के लिए टिकट ना मांगे. बावजूद इसके लखनऊ के मेयर पद के टिकट के लिए भाजपा के प्रभावशाली नेताओं की पत्नियों की लाइन लग गई. इस दौरान ही लखनऊ की मेयर सीट के लिए सपा ने कमजोर समाज की मजबूत आवाज़ बनने वाली कलमकार, प्रखर वक्ता, विचारक, जानी-पहचानी एक्टीविस्ट,पढ़ी लिखी ग़ैर सियासी महिला वंदना मिश्रा को अपना प्रत्याशी घोषित करने के बाद भाजपा की मुश्किल बढ़ा दी हैं. वंदना ब्राह्मण हैं और भाजपा इस जाति के वोट को अपना सुरक्षित वोट मानकर यूपी में पिछड़ी जातियों के चेहरों को एहमियत ज्यादा देती रही है. हो सकता है कि लखनऊ मेयर उम्मीदवार के चयन के लिए पिछड़ी जाति की किसी महिला को टिकट देने को प्राथमिकता देने पर विचार चल रहा हो.
भाजपा ने यदि पिछड़ी जाति की महिला को टिकट दिया तो पार्टी का पारंपरिक ब्राह्मण वोटों का रुझान सपा प्रत्याशी वंदना मिश्रा की तरह खिसक सकता है. जो भी हो पर राजनीतिक परिवार की महिलाओं या भाजपा नेताओं की पत्नियों की चर्चाओं के बाद अब मुश्किल है कि पूर्व डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा और मौजूदा डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक की पत्नियों से किसी को उम्मीदवार बनाया जाए. चर्चा ये भी है कि पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की बहु अर्पणा यादव भी टिकट की लाइम में हैं.
क्योंकि उनका ताल्लुक बड़े सियासी घराने से है इसलिए उनका कामयाब होना भी बेहद मुश्किल है. इसी तरह पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय अखिलेश दास की पत्नी अलका दास भी लाइम हैं, ये भी चर्चा है.कांग्रेस पहले ही पार्टी प्रवक्ता प्रियंका गुप्ता को यहां से उम्मीद घोषित कर चुकी है. बसपा प्रदेश की राजधानी से किसी खड़ा करेगी इसकी अभी तक कोई ख़ास चर्चा नहीं है. इतना जरूर अनुमान लगाया जा रहा है की बसपा कोई मुस्लिम महिला चेहरे के जरिए मुस्लिम समाज का वोट कतर कर सपा को नुकसान पंहुचाने का प्रयास करेगी.
सपा ने जिस तरह ब्राह्मण चेहरे का ट्रंप कार्ड खेला है इसके मद्देनजर ही भाजपा लखनऊ मेयर का प्रत्याशी का चयन करेगी.बताते चलें कि लखनऊ की बड़ी एहमियत है. लखनऊ स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई की राजनीति विरासत का केंद्र है. दिल्ली की कुर्सी यदि यूपी तय करता है तो यूपी का सियासी मरकज राजधानी लखनऊ है.संभावना जताई जा रही है कि किसी नेता की बीवी के बजाए ग़ैर सियासी परिवार की किसी पढ़ी-लिखी ऐसी महिला को भाजपा लखनऊ मेयर का उम्मीदवार बनाएगी जिसकी समाज में विशिष्ट पहचान हो.
वंदना मिश्रा पत्रकारिता के उच्च घराने की नुमाइंदगी करती हैं. वो ख़ुद खाटी पत्रकार रहीं, बतौर एक्टिविस्ट समाज के लिए काम कर रही हैं. उनके पिता अखिलेश मिश्र निष्पक्ष, निर्भीक और मजबूत रीढ़ वाली पत्रकारिता की मिसाल कहे जाते रहे हैं. वंदना जी के पति रमेश दीक्षित लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रहे और शहर के उन सक्रिय बुद्धिजीवियों के समूह में प्रमुख हैं जो समूह समाज में फैलाई जा रही किसी भी क़िस्म की संकीर्णता के खिलाफ ज्ञान की तलवार से लड़ता है.
हालांकि ये सच है कि पिता और पति से ही नहीं वंदना मिश्रा की पहचान उनके खुद के सामाजिक कार्यों से है.पिता अखिलेश मिश्र की ईमानदारी की विरासत उनकी ताकत ज़रूर है. स्वर्गीय अखिलेश मिश्र ने जीवनभर सामाजिक सरोकारों की पत्रकारिता की. एक प्रमुख अखबार में लम्बे समय तक वो संपादक रहे.
हवाई चप्पल और मामूली सस्ते कुर्ते में उन्हें देखकर कोई भी कह सकता था कि ये मामूली हैसियत वाला मामूली इंसान हैं. लेकिन अखिलेश जी के सिद्धांतों ने हिन्दी पत्रकारिता को गैर मामूली बना दिया था. पत्रकारिता के बड़े मीडिया घराने में सबसे बड़े ओहदे पर रहने वाले अखिलेश मिश्र के पास निजी वाहन तक नहीं था लेकिन सरकार की गाड़ी चलाने वाला कोई मुख्यमंत्री भी इस सम्पादक से एक मुलाकात के लिए तरसता था.
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