अरविंद केजरीवाल फिर से मुख्यमंत्री बन चुके हैं, लेकिन विधानसभा चुनावों के दौरान हुए विवादों का साया पीछा दिल्ली का पीछा नहीं छोड़ रहा है. नया विवाद अमेरिकी फर्स्ट लेडी मेलानिया ट्रंप (Melania Trump school visit) के एक कार्यक्रम को लेकर हो रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ भारत दौरे में साथ आ रहीं मेलानिया ने दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में 'हैप्पीनेस क्लास' देखने का कार्यक्रम भी बनाया है. विवाद इस बात पर हो रहा है कि मौका विशेष पर न तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और न ही शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया (Arvind Kejriwal and Manish Sisodia) को ही बुलाया जा रहा है.
आम आदमी पार्टी ने इसके लिए केंद्र की मोदी सरकार पर हमला बोला है, लेकिन बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा (Sambit Patra) का कहना है कि कार्यक्रम तय करने में मोदी सरकार की कोई भूमिका है ही नहीं. असल बात जो भी हो, एक बात तो साफ है सरकारी स्कूल भले ही दिल्ली में चुनाव जिताने की कुव्वत रखते हों, लेकिन वे इतने भी सक्षम नहीं कि मेलानिया ट्रंप से मुलाकात करा सकें.
खुशी की क्लास - और सियासत का खलल!
पूरे चुनाव में दिल्ली के सरकारी स्कूलों का मुद्दा छाया रहा. जब अरविंद केजरीवाल अपनी सरकार के कामों के साथ स्कूलों का जिक्र करते तो बीजेपी को बर्दाश्त नहीं होता. अगले ही दिन दिल्ली के बीजेपी सांसदों की टीम स्कूलों के दौरे पर निकल जाती और फिर अमित शाह ट्विटर पर वीडियो पोस्ट कर सवाल पूछ डालते. जवाब देने अरविंद केजरीवाल आते और कहते कि वीडियो फर्जी है. नतीजा ये हुआ कि लोगों ने अरविंद केजरीवाल की बात मान ली और वीडियो की तरफ ध्यान ही नहीं दिया. चुनाव नतीजे तो यही बताते हैं.
मेलानिया ट्रंप ने दिल्ली के सरकारी स्कूलों में बच्चों से मिलने का कार्यक्रम बना रखा है - और साथ ही वहां चल रहे हैप्पीनेस क्लास को देखने में भी उनकी दिलचस्पी है. दिल्ली के सरकारी स्कूलों में जुलाई, 2018 में इस तरह का क्लास शुरू किया गया था जिसका मकसद बच्चों को तनाव से दूर रखते हुए खुशनुमा माहौल...
अरविंद केजरीवाल फिर से मुख्यमंत्री बन चुके हैं, लेकिन विधानसभा चुनावों के दौरान हुए विवादों का साया पीछा दिल्ली का पीछा नहीं छोड़ रहा है. नया विवाद अमेरिकी फर्स्ट लेडी मेलानिया ट्रंप (Melania Trump school visit) के एक कार्यक्रम को लेकर हो रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ भारत दौरे में साथ आ रहीं मेलानिया ने दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में 'हैप्पीनेस क्लास' देखने का कार्यक्रम भी बनाया है. विवाद इस बात पर हो रहा है कि मौका विशेष पर न तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और न ही शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया (Arvind Kejriwal and Manish Sisodia) को ही बुलाया जा रहा है.
आम आदमी पार्टी ने इसके लिए केंद्र की मोदी सरकार पर हमला बोला है, लेकिन बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा (Sambit Patra) का कहना है कि कार्यक्रम तय करने में मोदी सरकार की कोई भूमिका है ही नहीं. असल बात जो भी हो, एक बात तो साफ है सरकारी स्कूल भले ही दिल्ली में चुनाव जिताने की कुव्वत रखते हों, लेकिन वे इतने भी सक्षम नहीं कि मेलानिया ट्रंप से मुलाकात करा सकें.
खुशी की क्लास - और सियासत का खलल!
पूरे चुनाव में दिल्ली के सरकारी स्कूलों का मुद्दा छाया रहा. जब अरविंद केजरीवाल अपनी सरकार के कामों के साथ स्कूलों का जिक्र करते तो बीजेपी को बर्दाश्त नहीं होता. अगले ही दिन दिल्ली के बीजेपी सांसदों की टीम स्कूलों के दौरे पर निकल जाती और फिर अमित शाह ट्विटर पर वीडियो पोस्ट कर सवाल पूछ डालते. जवाब देने अरविंद केजरीवाल आते और कहते कि वीडियो फर्जी है. नतीजा ये हुआ कि लोगों ने अरविंद केजरीवाल की बात मान ली और वीडियो की तरफ ध्यान ही नहीं दिया. चुनाव नतीजे तो यही बताते हैं.
मेलानिया ट्रंप ने दिल्ली के सरकारी स्कूलों में बच्चों से मिलने का कार्यक्रम बना रखा है - और साथ ही वहां चल रहे हैप्पीनेस क्लास को देखने में भी उनकी दिलचस्पी है. दिल्ली के सरकारी स्कूलों में जुलाई, 2018 में इस तरह का क्लास शुरू किया गया था जिसका मकसद बच्चों को तनाव से दूर रखते हुए खुशनुमा माहौल में पढ़ाने की कोशिश होती है. तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने इस क्लास की शुरुआत की थी और इसके पीछे आप विधायक आतिशी मार्लेना की सोच बतायी जाती है.
पहले खबर थी कि मेलानिया ट्रंप के कार्यक्रम के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी वहां मौजूद रहेंगे, लेकिन बाद में सूत्रों के हवाले से मालूम हुआ कि ऐसा नहीं हो रहा है. फिर क्या था ट्विटर पर रिएक्शन आने शुरू हो गये.
आप नेता प्रीति शर्मा मेनन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टैग करते हुए कहा कि न्योता मिले न मिले सिसोदिया का काम बोलता है.
मनीष सिसोदिया के ट्वीट में भी निशाने पर मोदी सरकार रही, 'हैप्पीनेस क्लास हर तरह की नफरत और छोटी मानसिकता का समाधान है.'
केजरीवाल और सिसोदिया के सपोर्ट में कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी ट्विटर पर इसे सस्ती राजनीति और लोकतंत्र के लिए हानिकारक और देश को कमजोर करने वाला बताया. सरकार की तरफ से बचाव में आये बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने तो केंद्र सरकार के इस मामले में हाथ होने से ही इंकार कर दिया. बोले, 'जरूरी मौकों पर ऐसे राजनीति नहीं करनी चाहिए. भारत सरकार ने S को सलाह नहीं दी है कि किसे बुलाना है और किसे नहीं - हम इस तू-तू मैं-मैं में नहीं पड़ना चाहते.'
मेलानिया सरकारी स्कूल में देखना क्या चाहती हैं?
पता चला है कि मेलानिया ट्रंप दिल्ली के सरकारी स्कूल में करीब एक घंटे बिताने वाली हैं. दरअसल, ये वो वक्त होगा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच मीटिंग चल रही होगी.
सूत्रों के हवाले से ही खबर ये भी है कि ये अमेरिकी दूतावास की ही इच्छा है कि मेलानिया ट्रंप के कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री या डिप्टी सीएम न हों. बताते हैं कि अमेरिकी दूतावास की तरफ से ही ये अनुरोध किया गया है.
वैसे ये कोई पहला मौका तो है नहीं जब अमेरिकी फर्स्ट लेडी किसी स्कूल के कार्यक्रम में जा रही हों. 2010 में भारत दौरे पर आये तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल ओबामा ने मुंबई के एक स्कूल में बच्चों से मुलाकात की और उनके साथ डांस भी किया जिसका फोटो खूब वायरल भी हुआ था.
अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के बधाई वाले ट्वीट के जवाब में लिखा था कि दिल्ली को मिलजुल कर वर्ल्ड क्लास सिटी बनाएंगे. अमित शाह से मुलाकात के बाद भी अरविंद केजरीवाल ने ऐसा ही बताया था - लेकिन ये जो शुरू हुआ है उसे भला क्या समझें. लक्षण तो अच्छे नहीं दिखते.
अगर आम आदमी पार्टी की तरफ से किसी ने रिएक्ट किया होता तो बात अलग होती. यहां तक कि अरविंद केजरीवाल सरकार में मंत्री गोपाल राय ने भी रिएक्ट करने से इंकार कर दिया. शशि थरूर की टिप्पणी में भी कोई बात नहीं, राजनीति में मौके का फायदा उठाना कोई बुराई नहीं होती, लेकिन मनीष सिसोदिया का रिएक्शन थोड़ा अजीब लगा.
अगर मेलानिया की जगह दिल्ली के सरकारी स्कूल में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कार्यक्रम होता और वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या केंद्र सरकार के कोई मंत्री या फिर दिल्ली के ही उप राज्यपाल को बुलाया गया होता और उससे अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को अलग रखा जाता तो बात अलग होती.
अरविंद केजरीवाल या मनीष सिसोदिया की गैरमौजूदगी में भी अगर दिल्ली के स्कूलों की तस्वीर पूरी दुनिया में दिखायी जाती है तो वो तो भारत की तस्वीर है - और लगता नहीं कि इसमें केजरीवाल या सिसोदिया को कोई आपत्ति होनी चाहिये. अगर दिल्ली में हुए किसी अच्छी चीज का श्रेय भी दुनिया के बाहर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लेते हैं तो गलत क्या है, है तो वो भारत का ही. ये कोई आयुष्मान भारत जैसा मामला तो है नहीं कि फंड राज्य सरकार भी देती है और फोटो सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी का दिखायी देता है. ममता बनर्जी की तो दलील यही है, दिल्ली में आयुष्मान भारत योजना नहीं लागू किये जाने के पीछे अरविंद केजरीवाल की भी ऐसी ही सोच होगी.
दिल्ली के सरकारी स्कूलों का कलेवर बदलने का क्रेडिट अगर अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया लेते हैं तो उनका ये एहसान भी मानना चाहिये कि चुनाव जिताने में भी उनकी काफी अहम भूमिका रही है - फिर भी मनीष सिसोदिया को इसे दिल पर लेने की जरूरत नहीं थी. अभी तो पूरे पांच साल पड़े हैं केंद्र सरकार से दो-दो हाथ करने के लिए.
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