कांग्रेस को अपनी तरफ से सच का सामना करा चुके गुलाम नबी आजाद से राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का माफी मांगना उतना हैरान नहीं करता. लेकिन जम्मू-कश्मीर के डोगरा स्वाभिमान संगठन के नेता लाल सिंह से राहुल गांधी का माफी मांगना ज्यादा हैरान करता है - क्योंकि राहुल गांधी का ऐसा करना कठुआ गैंगरेप पर उनके पुराने स्टैंड से यूटर्न ले लेने जैसा लगता है.
सबसे ज्यादा हैरान तो राहुल गांधी का दिग्विजय सिंह के बयान से असहमत होना करता है, क्योंकि ऐसा करके राहुल गांधी सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर अपने पुराने रुख से यूटर्न लेते नजर आ रहे हैं. आपको याद होगा सर्जिकल स्ट्राइक पर राहुल गांधी बयान को लेकर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा भी अपनी तरफ से जैसे को तैसा जैसी टिप्पणी कर चुके हैं.
आखिर राहुल गांधी एक के बाद एक ऐसे कदम क्यों बढ़ाते चले जा रहे हैं जिससे कांग्रेस नेता के अपनी बातों के पक्के होने पर ही शक पैदा होने लगे? क्या ऐसा करने के पीछे कोई खास रणनीति है, या कांग्रेस संवेदनशील मुद्दों पर फिर से विचार करके आगे बढ़ रही है?
ये तो हर कोई महसूस कर रहा है कि भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी में काफी बदलाव आया है, लेकिन क्या कांग्रेस अपनी पॉलिटिकल लाइन इस कदर बदलने का फैसला कर चुकी है, जिससे लोगों को लगे कि पूरे घर को बदल डाला है?
जम्मू-कश्मीर से जुड़ी धारा 370 को लेकर तो राहुल गांधी कहते हैं, कांग्रेस कार्यकारिणी का जो प्रस्ताव तब पास हुआ था, कांग्रेस का स्टैंड आज भी बिलकुल वही है - लेकिन और मामलों में बड़ी बड़ी विसंगतियां क्यों देखने को मिल रही हैं?
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि हाल ही में भारत जोड़ो यात्रा के संयोजक दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) ने पाकिस्तान के खिलाफ सेना के सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर नये सिरे से...
कांग्रेस को अपनी तरफ से सच का सामना करा चुके गुलाम नबी आजाद से राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का माफी मांगना उतना हैरान नहीं करता. लेकिन जम्मू-कश्मीर के डोगरा स्वाभिमान संगठन के नेता लाल सिंह से राहुल गांधी का माफी मांगना ज्यादा हैरान करता है - क्योंकि राहुल गांधी का ऐसा करना कठुआ गैंगरेप पर उनके पुराने स्टैंड से यूटर्न ले लेने जैसा लगता है.
सबसे ज्यादा हैरान तो राहुल गांधी का दिग्विजय सिंह के बयान से असहमत होना करता है, क्योंकि ऐसा करके राहुल गांधी सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर अपने पुराने रुख से यूटर्न लेते नजर आ रहे हैं. आपको याद होगा सर्जिकल स्ट्राइक पर राहुल गांधी बयान को लेकर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा भी अपनी तरफ से जैसे को तैसा जैसी टिप्पणी कर चुके हैं.
आखिर राहुल गांधी एक के बाद एक ऐसे कदम क्यों बढ़ाते चले जा रहे हैं जिससे कांग्रेस नेता के अपनी बातों के पक्के होने पर ही शक पैदा होने लगे? क्या ऐसा करने के पीछे कोई खास रणनीति है, या कांग्रेस संवेदनशील मुद्दों पर फिर से विचार करके आगे बढ़ रही है?
ये तो हर कोई महसूस कर रहा है कि भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी में काफी बदलाव आया है, लेकिन क्या कांग्रेस अपनी पॉलिटिकल लाइन इस कदर बदलने का फैसला कर चुकी है, जिससे लोगों को लगे कि पूरे घर को बदल डाला है?
जम्मू-कश्मीर से जुड़ी धारा 370 को लेकर तो राहुल गांधी कहते हैं, कांग्रेस कार्यकारिणी का जो प्रस्ताव तब पास हुआ था, कांग्रेस का स्टैंड आज भी बिलकुल वही है - लेकिन और मामलों में बड़ी बड़ी विसंगतियां क्यों देखने को मिल रही हैं?
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि हाल ही में भारत जोड़ो यात्रा के संयोजक दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) ने पाकिस्तान के खिलाफ सेना के सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर नये सिरे से सबूत मांगा था. केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार सरकार को घेरते हुए, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने बीजेपी पर झूठ बोलने का इल्जाम दोहराया था.
ऐसा भी नहीं कि दिग्विजय सिंह कोई अकेले नेता हैं जो सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांग रहे हों, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव तक बारी बारी सभी सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांग चुके हैं - और बाकियों की कौन कहे, ठीक यही काम तो राहुल गांधी भी कर चुके हैं.
बहरहाल, सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांगने वाले किसी भी नेता को अब बार बार परेशान और बेचैन होने की जरूरत नहीं पड़ेगी. अगर वे वीडियो ही देखने पर आमादा हैं तो बात अलग है, वरना - उस वाकये से जुड़े काफी सारे विवरण पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो (Mike Pompeo) की आने वाली किताब में मिल सकता है.
लो जी, अमेरिका से सबूत आया है
असल बात तो ये है कि माइक पॉम्पियो ने भी भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक का कोई विस्तृत विवरण नहीं दिया है. विस्तृत कौन कहे किताब में ऐसा कोई छोटा सा भी विवरण नहीं है, जिससे मालूम हो कि सेना ने किस तरीके से सर्जिकल स्ट्राइक की तैयारी की या सेना की कार्रवाई से पाकिस्तान या वहां पर जमे आतंकवादियों को कितना नुकसान हुआ - फिर तो सवाल ये उठता है कि किताब में ऐसे सबूत मिलने की हम बात क्यों कर रहे हैं?
जवाब ये है कि सीधे सीधे तो नहीं, लेकिन जिस तरीके से माइक पॉम्पियो ने सर्जिकल स्ट्राइक के इर्द-गिर्द की घटनाओं के बारे में बारीकी के साथ बताया है, तस्वीर काफी हद तक साफ हो जाती है - हां, अगर किताब को ठीक से पढ़ा न जाये तो भी निराश होना पड़ सकता है. किताब पढ़ने का सही तरीका ये है कि जो कुछ माइक पॉम्पियो ने बताया है उसे और उसके आस पास के माहौल को गहराई से समझने की कोशिश हो.
कांग्रेस का दावा रहा है कि देश में जब मनमोहन सिंह सरकार हुआ करती थी, कई बार पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की गयी, लेकिन बीजेपी की तरह ढिंढोरा नहीं पीटा गया. 2014 में सत्ता परिवर्तन के बाद से पाकिस्तान के खिलाफ सेना को दो बार सर्जिकल स्ट्राइक करनी पड़ी है. ये जानकारी भी सेना की तरफ से ही दी गयी है.
सितंबर, 2016 आतंकवादियों के उरी अटैक के बाद किया गया था, और फिर फरवरी, 2019 के सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकी हमले के बाद एक बार सर्जिकल स्ट्राइक हुआ था. हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गये थे और उसके बाद सेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों को टारगेट किया था.
बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव इस कदर बढ़ गया था कि युद्ध जैसे हालात पैदा हो गये थे. एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान की तरफ से भी हमले की कोशिश की गयी थी, जिसमें एफ 16 विमानों का इस्तेमाल हुआ था. पाकिस्तानी हमले की कोशिश को न्यूट्रलाइज करने के दौरान ही फाइटर प्लेन उड़ा रहे अभिनंदन वर्तमान सरहद पार चले गये - और पाकिस्तान ने पकड़ लिया. बाद में हालात ऐसे बने कि पाकिस्तान ने खुद ही अभिनंदन वर्तमान को वाघा बॉर्डर तक पहुंचा भी दिया.
तब अमेरिका के विदेश मंत्री रहे माइक पॉम्पियो ने उस घटना के बाद की परिस्थियों का जिक्र करते हुए बताया है कि कैसे भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध का खतरा पैदा हो गया था. माइक पॉम्पियो अपनी किताब Never Give an Inch: Fighting for the America I Love में लिखते हैं, 'मुझे नहीं लगता कि दुनिया ठीक से जानती है कि फरवरी, 2019 में भारत-पाकिस्तान की लड़ाई परमाणु विस्फोट में कितनी करीब आ गई थी... सच तो ये है, मुझे भी इसका ठीक-ठीक जवाब नहीं पता है.'
लेकिन किताब जिन हालात में भारत और पाकिस्तान के बीच पैदा हुई परिस्थितियों के बारे में माइक पॉम्पियो ने बताया है, उनको अच्छे से समझना बहुत जरूरी है. माइक पॉम्पियो के मुताबकि, तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से ही उनको मालूम हुआ कि पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ अपने परमाणु हथियार इस्तेमाल करने को लेकर तैयारी शुरू कर दी थी.
माइक पॉम्पियो का दावा है कि सुषमा स्वराज से ही उनको मालूम हुआ कि भारत भी अपनी तरह से पूरी तैयारी कर रहा है. माइक पॉम्पियो बताते हैं कि सुषमा स्वराज से ये आश्वासन लेने में कि फिलहाल कुछ करने की जरूरत नहीं है, और पूरा विवाद सुलझाने के लिए अमेरिकी प्रशासन को तब बहुत मेहनत करनी पड़ी थी.
भारत की आशंका को लेकर जब माइक पॉम्पियो ने पाकिस्तानी आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा से संपर्क किया. माइक पॉम्पियो का कहना है कि जनरल बाजवा ने उनको बताया था कि जो बात वो कर रहे हैं, वो सच नहीं है.
पाकिस्तान क्या कर रहा था और क्या माइक पॉम्पियो को बताया, ये सब बहुत महत्वपूर्ण नहीं है. सबसे महत्वपूर्ण कहीं ये समझना है कि माइक पॉम्पियो ये बता रहे हैं कि कैसे भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध की नौबत आ गयी थी - और तभी सवाल ये भी उठता है कि दोनों मुल्कों के बीच ऐसी परिस्थिति पैदा ही क्यों हुई?
ये तो कॉमन सेंस से भी समझा जा सकता है कि सीआरपीएफ के कैंप पर आतंकवादी हमला होने तक पाकिस्तान के लिए कोई खास बात नहीं रही होगी, क्योंकि ये तो आईएसआई के रूटीन के कामकाज का हिस्सा है.
अपनी तरफ से पाकिस्तान हमेशा की तरह नकार ही चुका था कि पुलवामा आतंकी हमले में उसका भी कोई हाथ है. ये रस्म निभाने के बाद वो आराम से भारत के खिलाफ नये मिशन पर लग गया होगा - लेकिन तभी अचानक सब कुछ बदल गया होगा.
अब अगर बालाकोट एयर स्ट्राइक नहीं हुआ होता तो क्या माइक पॉम्पियो अपनी किताब में ये सब लिखते - अगर किस्सा ही सुनाना होता तो वो फिक्शन लिखते और फिर इंतजार करते कि उनके नॉवेल को पुलित्जर प्राइज मिल जाये तो क्या कहने.
राहुल गांधी ने दिग्विजय सिंह का साथ क्यों नहीं दिया
दिग्विजय सिंह के सर्जिकल स्ट्राइक से जुड़ा सबूत मांगने को लेकर कांग्रेस की तरफ से पहले ही साफ कर दिया गया था कि वो उनका निजी बयान है. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश का कहना रहा कि दिग्विजय सिंह ने निजी तौर पर टिप्पणी की है, और कांग्रेस पार्टी ने उसका समर्थन नहीं किया है. जयराम रमेश ने ये भी कहा था कि 2014 से पहले भी यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार ने भी सर्जिकल स्ट्राइक की थी. जयराम रमेश ने जोर देकर कहा, ऐसी सैन्य कार्रवाइयां जो राष्ट्रीय हित में हैं, कांग्रेस ने सभी का समर्थन किया है और आगे भी करती रहेगी.
और जब राहुल गांधी से प्रेस कांफ्रेंस के दौरान दिग्विजय सिंह के बयान पर रिएक्शन मांगा गया तो सुनते ही बोले कि वो ऐसी बातों से इत्तेफाक नहीं रखते. देश की सेना पर पूरे भरोसे की बात करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि देश की सेना जो भी ऑपरेशन करे, सबूत देने की जरूरत नहीं है.
अब सवाल ये है कि राहुल गांधी जो बातें अभी कर रहे हैं, वैसी बातें पहले क्यों नहीं करते थे? उरी हमले के बाद राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर खून की दलाली करने का आरोप लगाया था - और पुलवामा हमले पर भी राहुल गांधी के बयान पर काफी बवाल मच चुका है.
2019 के पुलवामा हमले को लेकर जरा राहलु गांधी का ये ट्वीट तो देखिये, "पुलवामा के शहीदों को हम कभी भुला नहीं सकते... उनका और उनके परिवारों का बलिदान बेकार नहीं जाएगा... हम जवाब लेके रहेंगे…"
आखिर राहुल गांधी जवाब किससे लेने की बात कर रहे हैं? किसी नेता के सार्वजनिक बयान की अलग अलग तरीके से व्याख्या की जाती है, और ऐसा अक्सर होता है कि कैमरे के सामने बोलने के बाद भी वो नेता पल्ला झाड़ते हुए कहता है कि उसकी बातों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया - ऐसे में बेहतर यही होता है कि नेता के शब्दों को जनता खुद समझने की कोशिश करे. राहुल गांधी के केस में भी हम यही कहना चाहते हैं.
जब दो नेता मिलती जुलती टिप्पणी करने लगें तो ये समझना मुश्किल हो जाता है कि कौन किस हद तक गिर रहा है, लिहाजा फिर से जनता की ही जिम्मेदारी बन जाती है कि वो तथ्यों को अपने तरीके से समझने की कोशिश करे - सर्जिकल स्ट्राइक पर राहुल गांधी और उनको लेकर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की टिप्पणियों आपस में ही एक दूसरे को चैलेंज कर रही हैं.
सर्जिकल स्ट्राइक पर राहुल गांधी के बयान पर हिमंत बिस्वा सरमा का सवाल था, 'क्या हमने आपसे पूछा कि आप राजीव गांधी के ही बेटे हैं, क्या सबूत है?'
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