हर हार जीत के पीछे भी टीम वर्क ही होता है - जैसे कांग्रेस की हार में सैम पित्रोदा और मणिशंकर अय्यर जैसे नेताओं के योगदान को दरकिनार करना उनके साथ 'न्याय' नहीं होगा. आखिरी दौर में अखबार में आया अय्यर का लेख और पित्रोदा का 'हुआ तो हुआ' तो राहुल गांधी की मेहनत पर तो कहर बन कर ही टूट पड़ा.
चुनाव प्रचार में एक बड़ी भूमिका स्टार प्रचारकों की होती है. स्टार प्रचारक भी वैसे हों जो भीड़ तो खींचें ही, अपने भाषण से जनता को पार्टी पक्ष में वोट देने के लिए राजी कर लेना उनकी सबसे बड़ी खूबी होती है. लालू प्रसाद ऐसे नेता रहे हैं जो महाराष्ट्र जाकर भी शरद पवार से ज्यादा भीड़ जुटा लेते रहे - लेकिन अपना ये टैलेंट आरजेडी नेता ने दोनों बेटों में बराबर बांट दिया. तेज प्रताप भाषण देते हैं तो लोग खूब मजे लेकर सुनते हैं, लेकिन उसमें राजनीति के हिसाब से तत्व की कोई बात ही नहीं होती. तेजस्वी यादव के भाषण में कंटेंट तो होता है, लेकिन वो लोगों को लालू प्रसाद की तरह बांध नहीं पाते.
पहले तो राहुल गांधी खुद मानते थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा भाषण वो कभी नहीं दे सकते, लेकिन जैसे जैसे चुनाव प्रचार जोर पकड़ता गया वो बहस के लिए मोदी को चैलेंज करने लगे. राहुल गांधी ने ऐसा 2018 के विधानसभा चुनावों में भी किया था और इस बार भी किया.
प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस नेता का ये चैलेंज स्वीकार तो नहीं किया - लेकिन अपनी रैलियों के स्ट्राइक रेट से राहुल गांधी को काफी पीछे छोड़ दिया है. इस मामले में तो राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी पिछड़ गये.
हम देश के छह स्टार प्रचारकों की रैलियों पर गौर करने के बाद बता रहे हैं कि उनकी कैंपेन से पार्टी को कितना फायदा और नुकसान हुआ -
1. नरेंद्र मोदी, स्टार प्रचारक, बीजेपी
चुनाव प्रचार की टॉपर लिस्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले नंबर पर हैं. सभी चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी के सुपर स्टार प्रचारक होते हैं और अपने दम पर चुनाव जिताने का माद्दा रखते...
हर हार जीत के पीछे भी टीम वर्क ही होता है - जैसे कांग्रेस की हार में सैम पित्रोदा और मणिशंकर अय्यर जैसे नेताओं के योगदान को दरकिनार करना उनके साथ 'न्याय' नहीं होगा. आखिरी दौर में अखबार में आया अय्यर का लेख और पित्रोदा का 'हुआ तो हुआ' तो राहुल गांधी की मेहनत पर तो कहर बन कर ही टूट पड़ा.
चुनाव प्रचार में एक बड़ी भूमिका स्टार प्रचारकों की होती है. स्टार प्रचारक भी वैसे हों जो भीड़ तो खींचें ही, अपने भाषण से जनता को पार्टी पक्ष में वोट देने के लिए राजी कर लेना उनकी सबसे बड़ी खूबी होती है. लालू प्रसाद ऐसे नेता रहे हैं जो महाराष्ट्र जाकर भी शरद पवार से ज्यादा भीड़ जुटा लेते रहे - लेकिन अपना ये टैलेंट आरजेडी नेता ने दोनों बेटों में बराबर बांट दिया. तेज प्रताप भाषण देते हैं तो लोग खूब मजे लेकर सुनते हैं, लेकिन उसमें राजनीति के हिसाब से तत्व की कोई बात ही नहीं होती. तेजस्वी यादव के भाषण में कंटेंट तो होता है, लेकिन वो लोगों को लालू प्रसाद की तरह बांध नहीं पाते.
पहले तो राहुल गांधी खुद मानते थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा भाषण वो कभी नहीं दे सकते, लेकिन जैसे जैसे चुनाव प्रचार जोर पकड़ता गया वो बहस के लिए मोदी को चैलेंज करने लगे. राहुल गांधी ने ऐसा 2018 के विधानसभा चुनावों में भी किया था और इस बार भी किया.
प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस नेता का ये चैलेंज स्वीकार तो नहीं किया - लेकिन अपनी रैलियों के स्ट्राइक रेट से राहुल गांधी को काफी पीछे छोड़ दिया है. इस मामले में तो राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी पिछड़ गये.
हम देश के छह स्टार प्रचारकों की रैलियों पर गौर करने के बाद बता रहे हैं कि उनकी कैंपेन से पार्टी को कितना फायदा और नुकसान हुआ -
1. नरेंद्र मोदी, स्टार प्रचारक, बीजेपी
चुनाव प्रचार की टॉपर लिस्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले नंबर पर हैं. सभी चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी के सुपर स्टार प्रचारक होते हैं और अपने दम पर चुनाव जिताने का माद्दा रखते हैं. यूपी से लेकर गुजरात चुनाव तक बीजेपी अगर जीतने में कामयाब रही तो उसकी वजह सिर्फ और सिर्फ मोदी ही रहे. वैसे दिल्ली, बिहार और कर्नाटक चुनाव में मोदी का जादू नहीं चल पाया - लेकिन त्रिपुरा में तो मोदी ने लाल रंग पर भगवा ही चढ़ा दिया.
आम चुनाव में इस बार प्रधानमंत्री मोदी ने कुल 145 रैलियां की और उनका स्ट्राइक रेट 75 फीसदी रहा. मोदी ने जिन इलाकों में रैलियां की उनमें से 109 बीजेपी जीतने में कामयाब रही - हालांकि, 36 सीटें उसके हाथ से निकल भी गयीं.
प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों में एक और ट्रेंड देखने को मिला चुनाव कैंपेन में वो यूपी पर तो ध्यान दे ही रहे थे - उसके बाद उनका जोर पश्चिम बंगाल पर ही देखने को मिला. यूपी की 80 संसदीय सीटों के लिए मोदी ने 31 रैलियां की जबकि पश्चिम बंगाल की 42 सीटों के लिए 17. यूपी और पश्चिम बंगाल की तुलना करें तो रैलियां बराबर लगती हैं, लेकिन महाराष्ट्र की 48 सीटों के लिए तो मोदी ने सिर्फ 9 रैलियां ही की - हैरानी वाली बात तो ये रही कि नौ रैलियों में ही मोदी ने तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे चार राज्य निपटा डाले. बंगाल के मुकाबले बिहार में सिर्फ दो सीटें कम यानी 40 हैं. बिहार में बीजेपी ने मोदी की सिर्फ 10 रैलियां करायी. 2018 में जिन तीन राज्यों में बीजेपी ने सत्ता गवां दी थी - मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़, तीनों को मिलाकर 65 सीटें हैं और वहां मोदी की सिर्फ 20 रैलियां हुईं.
2. अमित शाह, स्टार प्रचारक, बीजेपी
प्रधानमंत्री मोदी के बाद दूसरे नंबर पर आये हैं बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह. अमित शाह ने कुल 137 रैलियां की और उनका स्ट्राइक रेट 72 फीसदी आया है. अमित शाह ने जिन इलाकों में रैलियां की उनमें 99 संसदीय सीटों पर तो बीजेपी जीतने में कामयाब रही लेकिन 38 सीटों पर हार का भी मुंह देखना पड़ा.
प्रधानमंत्री मोदी की ही तरह अमित शाह भी मौका मिलते ही पश्चिम बंगाल हो आते थे - और एक बार तो जब रैली के लिए कोर्ट की इजाजत नहीं मिली तो दिल्ली में बीजेपी के दफ्तर से प्रेस कांफ्रेंस कर रैली जैसा फायदा उठा लिया था.
3. योगी आदित्यनाथ फॉर्म में लौटे
देश के कामयाब स्टार प्रचारकों की सूची में तीसरे नंबर पर हैं यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. योगी आदित्यनाथ ने फॉर्म में जबरदस्त वापसी करते हुए ये कामयाबी हासिल की है.
2018 में त्रिपुरा चुनावों में तो योगी आदित्यनाथ की बल्ले बल्ले रही, लेकिन मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव आते आते उनका वो तेज फीका पड़ने लगा. विधानसभा चुनावों में योगी आदित्यनाथ ने 'जिन्ना बनाम गन्ना' और 'अली बनाम बजरंगबली' माहौल तो खूब बनाये लेकिन फेल साबित हुए. एक रैली में तो योगी आदित्यनाथ ने अपना अनुसंधान भी साझा किया कि बजरंगबली दलित समुदाय से थे और उस पर खूब विवाद भी हुआ. आम चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने कुल 95 रैलियां की और मोदी-शाह के बाद उनका स्ट्राइक रेट 67 फीसदी रहा. योगी आदित्यनाथ की प्रचार वाली 64 सीटें तो बीजेपी के हिस्से में आयीं लेकिन 31 सीटें फिसल भी गयीं.
4. ममता बनर्जी, स्टार प्रचारक, तृणमूल कांग्रेस
कामयाब स्टार प्रचारकों की इस सूची में चौथे नंबर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आ रही हैं. ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में मोदी-शाह के खिलाफ बड़ी ही जुझारू पारी खेली है. ममता बनर्जी लाख कोशिश करके भी बीजेपी को पांव जमाने से रोक तो नहीं पायीं लेकिन मोदी की सुनामी में तृणमूल कांग्रेस की काफी सीटें बचा ली हैं.
रैलियों की कामयाबी के मामले में ममता बनर्जी का स्ट्राइक रेट 52 फीसदी दर्ज हुआ है. ममता बनर्जी ने अपने उम्मीदवारों के लिए कुल 33 रैलियां की थी और उनमें 17 सीटों पर टीएमसी को जीत मिली है. ममता के कैंपेन के बावजूद टीएससी को ऐसी 16 सीटें गंवानी पड़ी है.
5. राहुल गांधी, स्टार प्रचारक, कांग्रेस
राहुल गांधी का स्ट्राइक रेट मोदी-शाह और ममता से तो खराब है, लेकिन उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा से बेहतर आया है. राहुल गांधी का स्ट्राइक रेट 19 फीसदी है. राहुल गांधी ने देश भर में कुल 115 रैलियां की जिनमें उनके खुद के दोनों चुनाव क्षेत्र भी शामिल हैं - अमेठी और वायनाड. राहुल गांधी ने जिन इलाकों में रैलियां की उनमें से सिर्फ 22 में कांग्रेस उम्मीदवारों को जीत हासिल हो पायी. राहुल गांधी के चुनाव प्रचार के बावजूद कांग्रेस 81 सीटें हार गयी - और उनमें अमेठी भी शुमार है.
6. प्रियंका गांधी, स्टार प्रचारक, कांग्रेस
स्टार प्रचारकों में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा फिसड्डी साबित हुई हैं. कांग्रेस में पद मिलने से पहले तो वो सौ फीसदी कामयाब रही हैं. पहले, दरअसल, प्रियंका वाड्रा सिर्फ रायबरेली और अमेठी तक ही चुनाव प्रचार से वास्ता रखती थीं - लेकिन पूर्वी यूपी का प्रभार मिलने के बाद प्रियंका ने देश भर में 38 रैलियां की लेकिन सिर्फ चार सीटें ही कांग्रेस की झोली में डाल पायीं जबकि 34 सीटों पर पार्टी को हार से ही संतोष करने पड़ा.
चुनाव कैंपेन से एक बार फिर साबित हो गया कि योगी आदित्यनाथ भी तभी सफल हो पाते हैं जब प्रधानमंत्री मोदी का भी जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोलता है, वरना अकेले तो वो फेल हो जाते हैं. चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद प्रेस कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि चुनाव का उनका एक भी कार्यक्रम रद्द नहीं हुआ - मोदी के सुपरस्टार प्रचारक बनने की एक बड़ी वजह ये भी लगती है.
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