चुनाव तो फिलहाल कहीं भी नहीं हो रहा है, लेकिन माहौल में कहीं कोई कमी नहीं है. आखिर कर्नाटक में क्या चल रहा है. गोवा में जो हुआ है वो भी तो चुनाव नतीजे आने के बाद सरकार बनाने की कोशिशों में सपोर्ट देने न देने जैसा ही है.
आम चुनाव के नतीजे 23 मई को आये थे और अभी तक हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव की तारीख भी नहीं आयी है - लेकिन बीजेपी पूरे चुनावी मोड में बनी हुई है. गोवा में 10 विधायक कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में ही गये हैं और कर्नाटक में इस्तीफा देने वाले 16 विधायकों में से जिनके भी बयान आये हैं एक स्वर से बीजेपी में जाने की बात कर रहे हैं. कांग्रेस के आरोप जहां के तहां हैं - बीजेपी लोकतंत्र की हत्या कर रही है. अगर आचार संहिता लागू होती तो कांग्रेस के इल्जाम उसके उल्लंघन बताते.
बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी सांसदों को नया टास्क दे दिया है. ताजा टास्क के तहत भी सभी सांसदों को हर बूथ से गुजरना है और वो भी चमचमाती गाड़ियों के काफिले के साथ नहीं - उमस भरी गर्मी में पसीना बहाते हुए.
पदयात्रा का हाल भी गांव में रात गुजारने जैसा न हो जाये?
आम बजट पेश होने के अगले ही दिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र पहुंचे तो वो सब समझा दिये जो बही-खाता भाषण में सबके ऊपर से गुजर गया था. मोदी ने बजट की गूढ़ बातों को हंसते-हंसाते तो सुनाया ही, ये भी बता दिया कि बही-खाता में जो चीजें हैं वो अगले 10 साल का विजन हैं. पांच साल का वित्तीय वर्ष तो महज एक पड़ाव है. विजन तो विजन डॉक्युमेंट में होता है, क्यों? तो वही समझ लो. अगर किसी के मन में ऐसे सवाल उठे भी हों तो जवाब पहले ही दे दिये गये थे.
जब प्रधानमंत्री ने बनारस में 'सौगंध मुझे इस मिट्टी की...' वाले अंदाज में कविता भी सुना डाली तो पक्का हो गया कि अभी से मोदी ने 2024 के चुनाव प्रचार की नींव रख दी है. वाराणसी से लौटने के बाद छोटे मोटे काम निपटाने के बाद मोदी बीजेपी सांसदों से मुखातिब हुए. सभी की धड़कनें तेज थीं - मालूम नहीं माननीय...
चुनाव तो फिलहाल कहीं भी नहीं हो रहा है, लेकिन माहौल में कहीं कोई कमी नहीं है. आखिर कर्नाटक में क्या चल रहा है. गोवा में जो हुआ है वो भी तो चुनाव नतीजे आने के बाद सरकार बनाने की कोशिशों में सपोर्ट देने न देने जैसा ही है.
आम चुनाव के नतीजे 23 मई को आये थे और अभी तक हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव की तारीख भी नहीं आयी है - लेकिन बीजेपी पूरे चुनावी मोड में बनी हुई है. गोवा में 10 विधायक कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में ही गये हैं और कर्नाटक में इस्तीफा देने वाले 16 विधायकों में से जिनके भी बयान आये हैं एक स्वर से बीजेपी में जाने की बात कर रहे हैं. कांग्रेस के आरोप जहां के तहां हैं - बीजेपी लोकतंत्र की हत्या कर रही है. अगर आचार संहिता लागू होती तो कांग्रेस के इल्जाम उसके उल्लंघन बताते.
बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी सांसदों को नया टास्क दे दिया है. ताजा टास्क के तहत भी सभी सांसदों को हर बूथ से गुजरना है और वो भी चमचमाती गाड़ियों के काफिले के साथ नहीं - उमस भरी गर्मी में पसीना बहाते हुए.
पदयात्रा का हाल भी गांव में रात गुजारने जैसा न हो जाये?
आम बजट पेश होने के अगले ही दिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र पहुंचे तो वो सब समझा दिये जो बही-खाता भाषण में सबके ऊपर से गुजर गया था. मोदी ने बजट की गूढ़ बातों को हंसते-हंसाते तो सुनाया ही, ये भी बता दिया कि बही-खाता में जो चीजें हैं वो अगले 10 साल का विजन हैं. पांच साल का वित्तीय वर्ष तो महज एक पड़ाव है. विजन तो विजन डॉक्युमेंट में होता है, क्यों? तो वही समझ लो. अगर किसी के मन में ऐसे सवाल उठे भी हों तो जवाब पहले ही दे दिये गये थे.
जब प्रधानमंत्री ने बनारस में 'सौगंध मुझे इस मिट्टी की...' वाले अंदाज में कविता भी सुना डाली तो पक्का हो गया कि अभी से मोदी ने 2024 के चुनाव प्रचार की नींव रख दी है. वाराणसी से लौटने के बाद छोटे मोटे काम निपटाने के बाद मोदी बीजेपी सांसदों से मुखातिब हुए. सभी की धड़कनें तेज थीं - मालूम नहीं माननीय अब कौन से नये प्रोजेक्ट में लगा दें. बीजेपी सांसद अगर अपने नेता के मन की बात समझते हैं तो वो भी कभी निराश नहीं करते. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी सांसदों से जो कुछ कहा उसे एडिट कर केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सुनाया, 'मोदीजी ने सांसदों से कहा कि हर निर्वाचन क्षेत्र में 150 ग्रुप बनाए जाने चाहिए... जो 150 किलोमीटर की दूरी तय करें और पार्टी के सांसद भी इन ग्रुप का हिस्सा बनें.'
बीजेपी सांसदों का ये बूथ भ्रमण 2 अक्टूर को गांधी जयंती से शुरू होगा और 31 अक्टूबर को सरदार पटेल जयंती के दिन खत्म होगा. वैसे तो 31 अक्टूबर को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि भी है, लेकिन जब से एनडीए की सरकार आयी है तब से उस दिन पटेल जयंती का बोलबाला रहता है - और इस बार तो कुछ ज्यादा ही होने का इशारा लग रहा है.
लोक सभा और राज्य सभा के सांसदों में बाकी मामलों में फर्क होता होगा, इसमें सब बराबर हैं. राज्य सभा के सांसदों को भी वही टास्क मिला है और उतने ही वक्त में उसी तरीके से पूरा भी करना है. खास बात ये है कि राज्य सभा सांसदों को उन इलाकों का रूख करना है जहां बीजेपी कमजोर है.
अप्रैल, 2018 में भी प्रधानमंत्री मोदी ने बीजेपी सांसदों के साथ साथ नेताओं को दलित बस्तियों में रात गुजारने का फरमान दिया था. अंबेडकर जयंती के दौरान बीजेपी सांसदों को उन इलाकों में जाने को कहा गया था जहां दलित आबादी कम से कम 50 फीसदी हो. बिग बॉस के टास्क में एक दलित परिवार के साथ डिनर भी करना पहले से तय था. एक पखवाड़े के इस टास्क को पूरा करने के लिए देश भर में 20 हजार गांव चुने गये थे.
बीजेपी नेताओं ने रात भी गुजारे और डिनर भी किये, ऐसी तस्वीरें तो खूब आयीं - बवाल भी खूब हुए. कभी कोई होटल से खाना लेकर किसी दलित के घर आधी रात को बगैर बताये धावा बोल दिया तो किसी के उल्टे-पुल्टे बयान पर मीडिया में सुर्खियां भी खूब बनीं.
नयी पदयात्रा का हाल भी कहीं गांव में रात गुजारने जैसी तो नहीं होने वाली. ऐसा तो नहीं होगा कि कैमरा देखते ही नेता राष्ट्र के नाम संदेश देना शुरू कर दें? वैसे प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसी घटनाओं की आशंका में एहतियाती उपाय पहले ही बता दिये हैं - लेकिन तब क्या होगा जब कैमरा देखते ही जोश जाग जाये.
ये भी तो चुनाव प्रचार जैसा ही लग रहा है
दलितों के गांवों में रात्रि विश्राम के कार्यक्रम में भी नेताओं को मोदी सरकार की नीतियों के बारे में लोगों को बताने को कहा गया था, ताजा 150 किलोमीटर पदयात्रा में भी ऐसा ही करना है. साथ ही, लोगों को महात्मा गांधी के जीवन और आजादी के आंदोलन में उनके योगदान के बारे में भी बताना होगा. जाहिर है आखिरी पड़ाव आते आते सरदार वल्लभ भाई पटेल के बारे में भी बताना होगा. अब सरदार पटेल के बारे में बीजेपी सांसद बताएंगे तो उनके साथ हुए अन्याय का भी जिक्र होगा और 'चतुर बनिया' का भी. फिर तो स्वतंत्रता आंदोलन के वक्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका पर भी बात होगी ही. बात होगी तो सवाल भी उठेंगे और जवाब भी पूछे जाएंगे.
मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि पदयात्रा के माध्यम से प्रधानमंत्री चाहते हैं कि आम चुनाव 2019 के लिए बीजेपी के संकल्प पत्र में जो विजन पेश किया गया है उसका पूरा स्केच लोगों के जेहन में उतारने की कोशिश होनी चाहिये. बनारस में प्रधानमंत्री का बजट पर विचार भी इसी दायरे में समाहित था.
जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने निर्मला सीतारमण के आम बजट में 5 ट्रिलियन डॉलर इकनॉमी की बारीकियों को सियासी लहजे में समझाया, बीजेपी सांसदों से भी यही अपेक्षा है कि वो शून्य लागत वाली खेती के बारे में लोगों को समझायें. शून्य लागत वाली खेती का भी सीतारमण के बही खाते में विशेष उल्लेख है.
लगता है बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के कैबिनेट साथी बन जाने के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एक्टिव हो गये हैं - और बीजेपी को लेकर उनके गोल्डन पीरियड विजन 'पंचायत से पार्लियामेंट तक' को हकीकत में बदलने से जुट गये हैं. सवाल ये है कि क्या बीजेपी नेता भी मोदी-शाह की स्पीड से चुनावी रेस में दौड़ लगा पाएंगे?
सांसदों की ये पदयात्रा तो देश भर में होने जा रही है, लेकिन इसका तात्कालिक फायदा महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में मिल सकता है. असल में पदयात्रा खत्म होते होते तीनों ही राज्यों में चुनावों की तारीख भी आ चुकी होगी - और नहीं आयी तो चुनाव प्रचार जोर तो पकड़ ही चुका होगा.
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