प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक्रोनिम बेहद पसंद है - और शायद ही कोई मौका हो जब वो ऐसा कोई मंत्र न देते हों. मोदी कैबिनेट 2.0 के विस्तार में भी ऐसा ही लगता है.
केंद्रीय मंत्रिमंडल के ताजा विस्तार (Modi Cabinet Expansion) में AAA का मंत्र साफ साफ सुनायी दे रहा है - एक्शन, एडजस्टमेंट और अचीवमेंट!
प्रधानमंत्री मोदी की दूसरी पारी का ये पहला मंत्रिमंडल विस्तार है और ये एक तरीके से मंत्री बने बीजेपी नेताओं के अप्रेजल जैसा लगता है - और साथ में नये मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के लिए सख्त मैसेज भी है.
मंत्रिमंडल विस्तार में सबसे आशचर्यजनक तो रविशंकर प्रसाद (Ravi Shankar Prasad) का आईटी मिनिस्टर के पद से इस्तीफा रहा - जबकि कोविड 19 के पहले राजनीतिक शिकार डॉक्टर हर्षवर्धन (Harsh Vardhan) हुए हैं.
अनुराग ठाकुर जैसे मंत्रियों का ओहदा बढ़ाया जाना जहां उनकी उपलब्धियों पर मुहर है, वहीं यूपी से अनुप्रिया पटेल, बिहार से पशुपति कुमार पारस और महाराष्ट्र से नारायण राणे को केंद्रीय कैबिनेट का हिस्सा बनाना एडजस्ट करने के साथ ही केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की तरफ से एक बड़ा राजनीतिक बयान भी है.
A फॉर एक्शन
रमेश पोखरियाल निशंक
हर इस्तीफे की लिखित वजह अमूमन व्यक्तिगत कारण ही होते हैं - कुछ मामलों में खराब सेहत भी होती है जैसा कि रमेश पोखरियाल के केस में बताया गया है. कोविड 19 पॉजिटिव होने के बाद से रमेश पोखरियाल की सेहत दुरूस्त नहीं बतायी जा रही है.
उत्तराखंड में शुरू हो चुके चुनावी माहौल का भी कुछ असर तो लगता ही है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रह चुके रमेश पोखरियाल की जगह अब उत्तराखंड से ब्राह्मण नेता अजय भट्ट को एंट्री मिल गयी है. अजय भट्ट नैनीताल से सांसद है.
रविशंकर प्रसाद
2019 के आम चुनाव में पहली बार बिहार के पटना साहिब से शत्रुघ्न सिन्हा को हरा कर लोक सभा सांसद बने रविशंकर प्रसाद का इस्तीफा मोदी कैबिनेट विस्तार का सबसे बड़ा सरप्राइज रहा.
बिहार के चारा घोटाले...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक्रोनिम बेहद पसंद है - और शायद ही कोई मौका हो जब वो ऐसा कोई मंत्र न देते हों. मोदी कैबिनेट 2.0 के विस्तार में भी ऐसा ही लगता है.
केंद्रीय मंत्रिमंडल के ताजा विस्तार (Modi Cabinet Expansion) में AAA का मंत्र साफ साफ सुनायी दे रहा है - एक्शन, एडजस्टमेंट और अचीवमेंट!
प्रधानमंत्री मोदी की दूसरी पारी का ये पहला मंत्रिमंडल विस्तार है और ये एक तरीके से मंत्री बने बीजेपी नेताओं के अप्रेजल जैसा लगता है - और साथ में नये मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के लिए सख्त मैसेज भी है.
मंत्रिमंडल विस्तार में सबसे आशचर्यजनक तो रविशंकर प्रसाद (Ravi Shankar Prasad) का आईटी मिनिस्टर के पद से इस्तीफा रहा - जबकि कोविड 19 के पहले राजनीतिक शिकार डॉक्टर हर्षवर्धन (Harsh Vardhan) हुए हैं.
अनुराग ठाकुर जैसे मंत्रियों का ओहदा बढ़ाया जाना जहां उनकी उपलब्धियों पर मुहर है, वहीं यूपी से अनुप्रिया पटेल, बिहार से पशुपति कुमार पारस और महाराष्ट्र से नारायण राणे को केंद्रीय कैबिनेट का हिस्सा बनाना एडजस्ट करने के साथ ही केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की तरफ से एक बड़ा राजनीतिक बयान भी है.
A फॉर एक्शन
रमेश पोखरियाल निशंक
हर इस्तीफे की लिखित वजह अमूमन व्यक्तिगत कारण ही होते हैं - कुछ मामलों में खराब सेहत भी होती है जैसा कि रमेश पोखरियाल के केस में बताया गया है. कोविड 19 पॉजिटिव होने के बाद से रमेश पोखरियाल की सेहत दुरूस्त नहीं बतायी जा रही है.
उत्तराखंड में शुरू हो चुके चुनावी माहौल का भी कुछ असर तो लगता ही है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रह चुके रमेश पोखरियाल की जगह अब उत्तराखंड से ब्राह्मण नेता अजय भट्ट को एंट्री मिल गयी है. अजय भट्ट नैनीताल से सांसद है.
रविशंकर प्रसाद
2019 के आम चुनाव में पहली बार बिहार के पटना साहिब से शत्रुघ्न सिन्हा को हरा कर लोक सभा सांसद बने रविशंकर प्रसाद का इस्तीफा मोदी कैबिनेट विस्तार का सबसे बड़ा सरप्राइज रहा.
बिहार के चारा घोटाले में शानदार वकालत के लिए जाने जाते रहे रविशंकर प्रसाद केंद्रीय मंत्री होने के साथ साथ मीडिया में आकर मोदी सरकार का बचाव भी करते रहे है, लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार से ठीक पहले उनका इस्तीफा थोड़ा हैरान करने वाला रहा.
कानून मंत्री होने के साथ साथ रविशंकर प्रसाद के पास आईटी मंत्रालय भी रहा और ट्विटर के साथ हाल के हुए विवादों में वो हमेशा ही चर्चा में रहे - यहां तक कि घंटे भर के लिए उनका ट्विटर एकाउंट भी सस्पेंड रहा - और ये जानकारी भी ट्विटर पर ही रविशंकर प्रसाद ने औपचारिक तौर पर दी भी.
देखा जाये तो बतौर आईटी मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद देश के कानून के अनुपालन में ट्विटर का केस तरीके से हैंडल नहीं कर पाये - और कैबिनेट से उनकी छुट्टी किये जाने में ये बड़ी वजह लगती है.
प्रकाश जावड़ेकर
रविशंकर प्रसाद के बाद दूसरे बड़े सरप्राइज प्रकाश जावड़ेकर की तरफ से ही आया - लेकिन प्रकाश जावड़ेकर भी हर्षवर्धन की तरह ही कोविड 19 के राजनीतिक शिकार लगते हैं.
प्रकाश जावड़ेकर के पास सूचना और प्रसारण जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय की जिम्मेदारी रही. 2018 में स्मृति ईरानी को हटाये जाने के बाद जब आम चुनाव के बाद नयी सरकार बनी तो सूचना और प्रसारण मंत्री बनाये गये.
कोविड 19 की पहली लहर में मोदी सरकार ने जहां मीडिया में भी तारीफें बटोरी थी, दूसरी लहर में सरकारी बदइंतजामियां ही सुर्खियों में छायी रहीं. प्रकाश जावड़ेकर ने मोदी सरकार का बचाव करने की काफी कोशिशें भी की, लेकिन न तो नेगेटिव रिपोर्टिंग रोक सके और न ही हेडलाइन मैनेजमेंट में कोई करिश्मा दिखा सके. ऑक्सीजन और जरूरी दवाइयों से लेकर अस्पतालों में एक बेड के लिए सड़कों पर भागदौड़ करते लोगों की तस्वीरें मीडिया में आने से रोकने में चूके प्रकाश जावड़ेकर के साथ तो ये सब होना ही था.
मौजूदा राजनीति में हेडलाइन मैनेजमेंट भी एक हुनर है - लेकिन सच तो यही है कि जब जिंदगी पर आ पड़े तो ऐसे सारे स्किल हवा हवाई साबित होते हैं. बतौर प्रवक्ता बरसों बीजेपी का मीडिया में बचाव करने वाले प्रकाश जावड़ेकर कोरोना संकट में अनुभवी और सरकार के मंत्री होते हुए भी वो सब तो नहीं ही कर पाये जिसकी प्रधानमंत्री मोदी को उनसे अपेक्षा रही होगी, लिहाजा खुशी खुशी विदा होने का मौका भी गवां बैठे.
डॉक्टर हर्षवर्धन
कोविड 19 का अगर कोई राजनीतिक शिकार हुआ है तो सबसे ऊपर एक ही नाम आता है - डॉक्टर हर्षवर्धन. डॉक्टर हर्षवर्धन पेशे से ही चिकित्सक ही हैं और हाल ही में डॉक्टर्स डे के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना संकट के दौरान लगातार मुस्तैदी से डटे रहने के लिए डॉक्टरों की खूब तारीफ की - मुश्किल ये रही कि उसमें डॉक्टर हर्षवर्धन का नाम नहीं था और वो शायद सुन भी नहीं पाये.
देश में कोरोना वायरस पर विजय का जश्न मनाने वालों में हर्षवर्धन भी आगे नजर आये, लेकिन दूसरी लहर इस कदर कहर मचाने वाली है, अंदाजा तो उनको भी नहीं रहा होगा. पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद हालात बेकाबू हो जाने पर अपनी आखिरी रैली रद्द कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक हाई लेवल मीटिंग की थी और उसमें ऊपर से नीचे तक सभी की क्लास ली थी जिनमें एक्सपर्ट कमेटी भी शामिल रही.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री होने के नाते कोरोना वायरस के कहर से बचाने की जिम्मेदारी तो हर्षवर्धन की ही रही, लेकिन कोविड 19 अपडेट देने से ज्यादा कहीं उनकी खास भूमिका समझ में भी नहीं आयी क्योंकि कोविड प्रोटोकॉल की निगरानी तो अफसरों की टीम कर रही थी जो सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करती है.
ऐसे में हर्षवर्धन भी एम्स के डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया, नीति आयोग वाले डॉक्टर वीके पॉल और स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से मेडिकल बुलेटिन पेश करने वाले अफसरों की ही तरह नजर काम करते देखे गये.
बतौर स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के लीक से हटकर किसी और काम के लिए याद किया जाएगा तो वो है कोरोनिल के दूसरे अवतार में पतंजलि आयुर्वेद के कर्ताधर्ता स्वामी रामदेव के साथ मीडिया के सामने उनका प्रस्तुत होना. ये एक तरीके से कोरोना संक्रमण के खिलाफ रामदेव के ब्रांड का एनडोर्समेंट रहा जिसमें उनके तत्कालीन कैबिनेट साथी नितिन गडकरी की भी गौरवमय उपस्थिति भी स्मृतियों में हमेशा के लिए दर्ज रहेगी.
पश्चिम बंगाल की हार तो कैलाश विजयवर्गीय पर भी भारी पड़ी क्योंकि उनको भी कैबिनेट में एंट्री की उम्मीद रही होगी, खासकर मीडिया में संभावितों की सूची में उनका नाम लिये जाने के बाद, लेकिन असली शिकार तो बाबुल सुप्रियो हुए.
वैसे भी केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद बाबुल सुप्रियो के विधानसभा चुनाव भी हार जाने के बाद तो वो नैतिक तौर पर भी अधिकार गवां बैठे थे - पश्चिम बंगाल में बीजेपी को सत्ता दिलाने की अपेक्षा की कौन कहे. बाबुल सुप्रियो के साथ ही बंगाल चुनाव की हार का शिकार देबोश्री चौधरी भी हुई हैं.
A फॉर एडजस्टमेंट
कोरोना संकट और संपूर्ण लॉकडाउन से पहले से ही मंत्री बनने का इंतजार कर रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को एडजस्ट किया जाना बीजेपी की मोदी सरकार के लिए बहुत जरूरी था. असम में हिमंता बिस्व सरमा को मुख्यमंत्री बनाये जाने के बाद सिंधिया की उम्मीद बढ़ी जरूर होगी, लेकिन बेसब्री भी तो हदें पार कर रही होगी.
वैसे भी सिंधिया से बीजेपी की जो अपेक्षा रही, उन सब पर तो वो करीब करीब खरे उतरे ही. कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार गिराकर शिवराज सिंह की सरकार बनवाने के साथ ही उपचुनाव में कांग्रेस से बीजेपी में आने वाले नेताओं को जिताना भी कोई आसान काम तो था नहीं.
बीजेपी ने सिंधिया को राज्य सभा भेज कर ये तो जता ही दिया था कि कांग्रेस छोड़ कर भगवा धारण करने के बाद पार्टी को फायदा पहुंचाने वालों के लिए देर तो है, लेकिन अंधेर नहीं है.
असम में हिमंता बिस्व सरमा के मुख्यमंत्री बनने के बाद सर्बानंद सोनवाल दिल्ली वापस होकर एडजस्ट होने का इंतजार कर रहे थे - वो भी एडजस्ट हो ही गये.
यूपी चुनाव को देखते हुए योगी आदित्यनाथ के दिल्ली दौरे के वक्त अनुप्रिया पटेल की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद उनके भी फिर से मंत्री बनने की चर्चा शुरू हो ही गयी थी. अपना दल नेता अनुप्रिया पटेल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में भी मंत्री रह चुकी हैं.
बिहार कोटे से रविशंकर प्रसाद की विदायी के बाद नीतीश कुमार के प्रतिनिधि के तौर पर जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह तो मंत्री बने ही, अचरज की बात तो पशुपति कुमार पारस का कैबिनेट मंत्री बन जाना रहा.
देखा जाये तो दिल्ली की राजनीति में पशुपति कुमार पारस लोक जनशक्ति पार्टी में बगावत करके अपने भाई रामविलास पासवान के असली उत्तराधिकारी बन गये हैं, जबकि चिराग पासवान मन मसोस कर रह गये हैं.
ऐसा लगता है जैसे नीतीश कुमार दो साल के इंतजार के बाद भी एक ही मंत्री पद मिलने पर संतोष तो कर लिये हैं, लेकिन चिराग पासवान को एनडीए से पूरी तरह दूर रखने में कामयाब हो गये हैं.
A फॉर अचीवमेंट
अचीवमेंट के हिसाब से देखा जाये तो अनुराग ठाकुर न सिर्फ प्रमोशन पाकर कैबिनेट मंत्री बने हैं, बल्कि प्रकाश जावड़ेकर की जगह सूचना और प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी भी उनको मिल चुकी है - और अगले साल के आखिर में हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में वो बीजेपी के मुख्यमंत्री पद का चेहरा होने के भी दावेदार लग रहे हैं.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल को आतंकवादी बताने से लेकर विवादित भाषणों के लिए सुर्खियों में छाये रहे अनुराग ठाकुर के लिए नयी जिम्मेदारी उपलब्धि तो है, लेकिन जिस तरीके से रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर को बाहर किया गया है, प्रदर्शन का दबाव भी बना रहेगा.
कोरोना काल में सिविल एविएशन की भी बड़ी भूमिका रही और हरदीप सिंह पुरी विदेशों में फंसे भारतीयों को निकालने के काम में शिद्दत से जुटे रहे - कैबिनेट रैंक उसी का इनाम है. अगर हरदीप पुरी भी चूक गये होते तो हर्षवर्धन का ही हाल हो सकता था.
भूपेंद्र यादव के खाते में भी बहुत सारी उपलब्धियां जमा होती आ रही हैं और बिहार में लालू परिवार और नीतीश कुमार की राजनीति पर लगाम कसने के साथ साथ अपने चुनाव प्रबंधन कौशल से मोदी-शाह के प्रिय बने भूपेंद्र यादव को कैबिनेट में शामिल किया जाना जरूरी था.
अमित शाह क बाद जब बीजेपी अध्यक्ष बनने की बारी आयी तो भूपेंद्र यादव भी एक बड़े दावेदार के रूप में माने जाते रहे, लेकिन तात्कालिक जरूरतों और समीकरणों को देखते हुए जेपी नड्डा को पार्टी की कमान सौंपने का फैसला लिया गया.
प्रमोशन पाने वालों में किरण रिजिजु और आरके सिंह के नाम भी हैं, लेकिन अचीवमेंट लिस्ट में एक खास नाम भी है - नारायण राणे. नारायण राणे को कैबिनेट मंत्री बनाया जाना महाराष्ट्र की राजनीति और विशेष रूप से शिवसेना नेतृत्व उद्धव ठाकरे के लिए एक राजनीतिक बयान समझा जाना चाहिये.
जब शिवसेना का बीजेपी के साथ गठबंधन रहा उस वक्त उद्धव ठाकरे ने नारायण राणे को बीजेपी की तरफ से राज्य सभा भेजे जाने तक का विरोध किया था. फिर नारायण राणे के लिए बीजेपी ने बीच का रास्ता निकाला और उनके राज्य सभा पहुंचने में सपोर्टर की भूमिका निभायी.
बिहार चुनाव से पहले जब नीतीश कुमार की सिफारिश पर सुशांत सिंह राजपूत केस में सीबीआई जांच की केंद्र सरकार ने मंजूरी दी और फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी तो ठाकरे परिवार के खिलाफ नारायण राणे और उनके विधायक बेटे नितेश राणे बेहद आक्रामक नजर आये थे - ट्विटर पर नितेश 'बेबी पेंग्विन' बोल कर मातोश्री से पहली बार चुनाव लड़ कर मंत्री बने आदित्य ठाकरे के लिए इस्तेमाल किया करते रहे.
मंत्रिपद की शपथ लेने के बाद जब नारायण राणे मीडिया को संबोधित कर रहे थे तो नयी जिम्मेदारी के लिए प्रधानमंत्री मोदी और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का धन्यवाद करने के साथ साथ बार बार यही दोहरा रहे थे - मैं मंत्री बन गया हूं.
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