बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections ) की मतगणना चालू है. ये मतगणना इतनी चालू है कि एक्जिट पोल की पोल भी खोल दे रहा है. हालांकि पिक्चर अभी बाकी है मेरे भाई लोग. लेकिन जिस तरह से एक्जिट पोल अंदाजा लगा रहा था कि राजद की अगुवाई में महागठबंधन (Mahagathbandhan) भारी जीत की तरफ अग्रसर है वैसा कुछ होता दिख नहीं रहा है. इस समय 243 सीटों पर एनडीए (NDA) के दलों में भाजपा सबसे ज्यादा लगभग 74 सीटों पर बढ़त बनाए है. जबकि महागठबंधन के दलों में राजद दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा सीटों पर कुल 67 सीट पर बढ़त बनाए हुए है. कुल मिलाकर एनडीए को अभी तक कि बढ़त में बहुमत की (127 सीट पर बढ़त) तरफ जाते हुए देखा जा सकता है. लेकिन नीतीश की जदयू की लोकप्रियता में कमी भी देखी जा रही है. उनके इस ऐलान को कि यह उनका अन्तिम चुनाव है जनता पर कोई ख़ास भावुक असर नहीं डाल पाया.
उल्टे यही लग रहा है कि नीतीश के इस अपील पर बिहार के लोगों ने भाजपा को उनका उत्तराधिकारी मान कर वोट दिया हो. एनडीए की पूर्व सहयोगी एलजेपी भी इस बार स्वतंत्र चुनाव लड़ रही थी. राम विलास पासवान की मृत्यु के बाद चिराग पासवान ने दल की बागडोर एक योग्य संतान की तरह सम्हाले रखी है. पिता के बिना यह उनका पहला चुनाव भी है.
इस इलेक्शन मे यह देखना बड़ा रोचक रहा कि चिराग एक तरफ तो ख़ुद को मोदी का हनुमान बता रहे थे दूसरी तरफ नीतीश के ख़िलाफ़ में बयानबाज़ी कर रहे थे. चिराग को शायद उम्मीद होगी कि नतीजों के बाद उनका दल सोन चिरैया यानि कि किंग मेकर बन कर उभरेगा। किन्तु अभी तक के रुझान में एलजेपी कोई खास संख्या में सीट जीतती नहीं दिख रही.
जैसा कि चुनावों के दौरान तेजस्वी के 10 लाख सरकारी नौकरी देने...
बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections ) की मतगणना चालू है. ये मतगणना इतनी चालू है कि एक्जिट पोल की पोल भी खोल दे रहा है. हालांकि पिक्चर अभी बाकी है मेरे भाई लोग. लेकिन जिस तरह से एक्जिट पोल अंदाजा लगा रहा था कि राजद की अगुवाई में महागठबंधन (Mahagathbandhan) भारी जीत की तरफ अग्रसर है वैसा कुछ होता दिख नहीं रहा है. इस समय 243 सीटों पर एनडीए (NDA) के दलों में भाजपा सबसे ज्यादा लगभग 74 सीटों पर बढ़त बनाए है. जबकि महागठबंधन के दलों में राजद दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा सीटों पर कुल 67 सीट पर बढ़त बनाए हुए है. कुल मिलाकर एनडीए को अभी तक कि बढ़त में बहुमत की (127 सीट पर बढ़त) तरफ जाते हुए देखा जा सकता है. लेकिन नीतीश की जदयू की लोकप्रियता में कमी भी देखी जा रही है. उनके इस ऐलान को कि यह उनका अन्तिम चुनाव है जनता पर कोई ख़ास भावुक असर नहीं डाल पाया.
उल्टे यही लग रहा है कि नीतीश के इस अपील पर बिहार के लोगों ने भाजपा को उनका उत्तराधिकारी मान कर वोट दिया हो. एनडीए की पूर्व सहयोगी एलजेपी भी इस बार स्वतंत्र चुनाव लड़ रही थी. राम विलास पासवान की मृत्यु के बाद चिराग पासवान ने दल की बागडोर एक योग्य संतान की तरह सम्हाले रखी है. पिता के बिना यह उनका पहला चुनाव भी है.
इस इलेक्शन मे यह देखना बड़ा रोचक रहा कि चिराग एक तरफ तो ख़ुद को मोदी का हनुमान बता रहे थे दूसरी तरफ नीतीश के ख़िलाफ़ में बयानबाज़ी कर रहे थे. चिराग को शायद उम्मीद होगी कि नतीजों के बाद उनका दल सोन चिरैया यानि कि किंग मेकर बन कर उभरेगा। किन्तु अभी तक के रुझान में एलजेपी कोई खास संख्या में सीट जीतती नहीं दिख रही.
जैसा कि चुनावों के दौरान तेजस्वी के 10 लाख सरकारी नौकरी देने का वादा किया था और यूपी बिहार में सरकारी नौकरी के प्रति जो लगाव है एक्जिट पोल के अनुमानों ने तेजस्वी को मुख्यमंत्री बना ही डाला था.लेकिन लग रहा है प्रधानमंत्री मोदी का जादू और कोरोना वैक्सीन का वादा नौकरी के वादे पर भारी न पड़ जाए.
सही भी है पहले जान फिर जहान. वैसे राजद की अगुवाई में महागठबंधन में कांग्रेस तो वही करती दिख रही है जो उसने यूपी इलेक्शन में उसने किया. यानि कि फिर कांग्रेस सबसे कमजोर कड़ी साबित होती दिख रही है.निश्चित रूप से कांग्रेस हाईकमान अभी भी राजनीति के बदले तौर तरीकों को और अच्छे से समझना होगा नहीं तो उसके लिए हर इलेक्शन दिक्कतों में इज़ाफ़ा ही करेगा.
फ़िलहाल लोकसभा के मुकाबले देखा जाए तो विधानसभा के चुनावों में वोटिंग पैटर्न का आंकलन अच्छे अच्छे चुनावी विश्लेषक भी नहीं कर पाते.यही भारतीय लोकतंत्र की ख़ूबसूरती भी है और विडम्बना कि प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक के चुनाव में कई गणित होती है. पिछले बिहार इलेक्शन में यह देखा गया था कि एक्जिट पोल में एनडीए के जीत के दावों के बाद महागठबंधन को जीत मिली थी.
यह अलग बाद थी कि तब नीतीश लालू के साथ महागठबंधन का हिस्सा थे.वैसे जिस बात पर अब सबसे ज्यादा लोगों की दृष्टि है वह यह है कि यदि यही रुझान अन्तिम परिणाम में बदलेंगे तो नीतीश और भाजपा की केमेस्ट्री कैसी बनती है. रुझान से तो भाजपा की बढ़ी सीट अब उसे बड़े भाई की भूमिका में ला दी है. कहीं यह स्थिति किसी नए समीकरण को जन्म न दे दे. वैसे भी नीतीश के साथ भाजपा ने हर दिन देखे हैं.
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