भारतीय जनता पार्टी जनता पार्टी का स्वर्णिम काल चल रहा है. ऐसा दावा अमित शाह तो नहीं करते, लेकिन ये राय बनने लगी है. असल में, अमित शाह के गोल्डन एरा का कंसेप्ट पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक बीजेपी का शासन है.
सर्जिकल स्ट्राइक को छोड़ दें तो मोदी सरकार के पास तीन साल बाद भी ऐसी कोई चीज नहीं है जिसे वो अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश कर सकें, सिवा कुछ राज्यों में चुनाव जीत कर और कुछ में जोड़ तोड़ कर सरकार बनाने के. वैसे दावे का क्या है, दावा तो जोर शोर से नोटबंदी की कामयाबी के भी हो रहे हैं - और हकीकत सबके सामने है.
न गंगा साफ हुई, न नौजवानों को रोजगार मिला - और किसानों की डबल इनकम की कौन कहे, वे तो जस के तस कर्ज में डूबे और बदहाल हैं.
नमामि गंगे!
2014 में हर हर गंगे और हर हर महादेव से लेकर हर हर मोदी तक सभी नारे लगे. यहां तक कि जब नरेंद्र मोदी वाराणसी पहुंचे तो आगमन का कारण भी अनोखा ही बताया - मैं न तो आया हूं, और न ही मुझे भेजा गया है... मुझे तो मां गंगा ने यहां बुलाया है. सुन कर लोगों ने फिर से नारे लगाये, खूब ताली भी बजाया और खुश होकर फूल माला के साथ वोट भी बरसाये.
जब सरकार बनी तो नया मंत्रालय ही बना दिया - जल संसाधन मंत्रालय, नदी विकास और गंगा पुनरूद्धार. मंत्री बनीं मंदिर आंदोलन में अगुवा रहीं उमा भारती. मंत्री बनते ही उन्होंने अपना इरादा भी जाहिर कर दिया - वह गंगा को साफ करके ही मानेंगी, वरना जल समाधि ले लेंगी.
सबसे हैरानी की बात ये है कि तीन साल बाद भी मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में ‘नमामि गंगे’ के एक भी प्रोजेक्ट पर काम शुरू नहीं हो पाया है. गंगा के नाम पर घाटों की सफाई जरूर हुई है जो हर बरसात के बाद होती रहती है. हां, अब सिर्फ नगर निगम ही नहीं कुछ...
भारतीय जनता पार्टी जनता पार्टी का स्वर्णिम काल चल रहा है. ऐसा दावा अमित शाह तो नहीं करते, लेकिन ये राय बनने लगी है. असल में, अमित शाह के गोल्डन एरा का कंसेप्ट पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक बीजेपी का शासन है.
सर्जिकल स्ट्राइक को छोड़ दें तो मोदी सरकार के पास तीन साल बाद भी ऐसी कोई चीज नहीं है जिसे वो अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश कर सकें, सिवा कुछ राज्यों में चुनाव जीत कर और कुछ में जोड़ तोड़ कर सरकार बनाने के. वैसे दावे का क्या है, दावा तो जोर शोर से नोटबंदी की कामयाबी के भी हो रहे हैं - और हकीकत सबके सामने है.
न गंगा साफ हुई, न नौजवानों को रोजगार मिला - और किसानों की डबल इनकम की कौन कहे, वे तो जस के तस कर्ज में डूबे और बदहाल हैं.
नमामि गंगे!
2014 में हर हर गंगे और हर हर महादेव से लेकर हर हर मोदी तक सभी नारे लगे. यहां तक कि जब नरेंद्र मोदी वाराणसी पहुंचे तो आगमन का कारण भी अनोखा ही बताया - मैं न तो आया हूं, और न ही मुझे भेजा गया है... मुझे तो मां गंगा ने यहां बुलाया है. सुन कर लोगों ने फिर से नारे लगाये, खूब ताली भी बजाया और खुश होकर फूल माला के साथ वोट भी बरसाये.
जब सरकार बनी तो नया मंत्रालय ही बना दिया - जल संसाधन मंत्रालय, नदी विकास और गंगा पुनरूद्धार. मंत्री बनीं मंदिर आंदोलन में अगुवा रहीं उमा भारती. मंत्री बनते ही उन्होंने अपना इरादा भी जाहिर कर दिया - वह गंगा को साफ करके ही मानेंगी, वरना जल समाधि ले लेंगी.
सबसे हैरानी की बात ये है कि तीन साल बाद भी मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में ‘नमामि गंगे’ के एक भी प्रोजेक्ट पर काम शुरू नहीं हो पाया है. गंगा के नाम पर घाटों की सफाई जरूर हुई है जो हर बरसात के बाद होती रहती है. हां, अब सिर्फ नगर निगम ही नहीं कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं भी हिस्सा लेने लगी हैं.
कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्राइब्युनल ने सरकार को लगातार फटकार लगाई है, लेकिन गंगा सफाई को लेकर कोई खास बदलाव नहीं देखने को मिल रहा है. 'नमामि गंगे' प्रोजेक्ट के तहत नदी किनारे के 48 औद्योगिक इकाइयों को बंद करने का आदेश जारी हुआ था, लेकिन कचरा तो अब भी गंगा में ही जा रहा है.
उमा भारती ने 2020 तक काम पूरा होने और 2018 से काम का असर दिखने का दावा किया था. गंगा की किस्मत में सिर्फ इंतजार ही लिखा है - जिसे बुलाया उसका भी और जिसे भेजा गया उसका भी.
बीजेपी की पहले ये दलील थी कि यूपी की समाजवादी पार्टी की सरकार केंद्र के प्रोजेक्ट को आगे बढ़ने ही नहीं देती. अब तो योगी सरकार के भी छह महीने पूरे होने जा रहे हैं. अब क्या कहना चाहेंगे?
कृषि पृष्ठभूमि से आने के चलते संजीव बालियान को पहले कृषि मंत्रालय में लाया गया था, लेकिन बाद में उन्हें गंगा वाले जल संसाधन मंत्रालय में शिफ्ट कर दिया गया. देश के किसानों की तकदीर कहें या गंगा की, बालियान के कामकाज का हाल दोनों मंत्रालयों में एक जैसा ही रहा. नौबत ये आ चुकी है कि बालियान की विदायी तो हो ही रही है उनके दोनों ही सीनियर पर भी तलवार लटकी हुई है.
कृषि
कहां बीजेपी ने किसानों की आय दोगुना कर देने का वादा किया था और कहां उनके खाने के लाले पड़े हैं. मोदी सरकार के आने के तीन साल बाद भी किसानों को कर्ज से निजात नहीं मिल रही है. हालत ये है कि तमिलनाडु के किसान दिल्ली में अपने मरे हुए साथियों की खोपड़ी लेकर धरना देते रहे हैं - महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के किसान लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. मध्य प्रदेश में तो किसान आंदोलन इतना उग्र हो गया कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अनशन करना पड़ा.
यूपी में जरूर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी मैनिफेस्टो के मुताबिक किसानों के 36 हजार करोड़ रुपये का कर्ज माफ करने की घोषणा की - और वैसा ही पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार ने किया. केंद्र की मोदी सरकार का स्टैंड है कि राज्य सरकार अपने स्तर पर जो भी करे केंद्र के लिए पूरे देश के किसानों के लिए कर्ज माफ करना मुमकिन नहीं है.
सरकार की ओर से जितनी भी कोशिशें हो रही हों, किसानों की खुदकुश थम तो नहीं रही. कृषि मंत्री राधामोहन सिंह से प्रधानमंत्री मोदी को बड़ी उम्मीदें थीं, मगर वो निराश किये और नतीजा ये है कि मंत्रालय से उनकी छुट्टी तय मानी जा रही है.
जॉब
बीजेपी का चुनावी वादा था कि उसकी सरकार बनने पर हर साल दो करोड़ नौजवानों को रोजगार देगी. इस ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए भी अलग से मंत्रालय बना - स्किल डेवलममेंट मंत्रालय. इस मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गयी युवा जोश से भरपूरी और कमर्शियल पायलट राजीव प्रताप रूडी को.
स्किल डेवलपमेंट मंत्रालय के तहत स्किल डेवलपमेंट यूनिवर्सिटी और स्किल डेवलपमेंट सेंटर बनाये जाने जैसी बड़ी बड़ी बातें भी सुनने को मिलीं, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ खास नजर नहीं आया.
इतना ही नहीं, नोटबंदी की तरह रोजगार के मामले में भी सरकार के गोल पोस्ट बदलते देखे गये. बाद में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारा लक्ष्य रोजगार देना ही नहीं बल्कि रोजगार बनाने वाले युवाओं को तैयार करना है.
विश्व बैंक द्वारा भारत में युवाओं को कौशल प्रशिक्षण के लिए 25 करोड़ डॉलर का कर्ज मंजूर किये जाने के अलावा स्किल डेवलपमेंट के क्षेत्र में बहुत कुछ उल्लेखनीय तो नहीं रहा. प्रधानमंत्री के इस ड्रीम प्रोजेक्ट का हश्र ये हुआ कि सबसे पहले राजीव प्रताप रूडी के इस्तीफे की खबर आई. रूडी अब इसे अपनी पार्टी का फैसला बता रहे हैं.
बिजनेस
कारोबार के क्षेत्र में कृषि और रोजगार जैसा हाल तो नहीं कहा जाएगा, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई उल्लेखनीय उपलब्धि तो नहीं देखने को मिल रही. जिस नोटबंदी को लेकर बड़े बड़े दावे किये जा रहे हैं उसी के चलते छोटे उद्यमी को मुश्किलों से उबरने में लंबा वक्त लग गया. मेक इन इंडिया पर सरकार का पूरा जोर है - और 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' को लेकर भी सरकार ऐसे बता रही है जैसे सारी मुश्किलें खत्म हो चुकी हों. इस मामले में दस साल के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि दुनिया भर में भारत की रैंकिंग 130 के आस पास है. कभी थोड़ा ऊपर कभी थोड़ा नीचे. 2015 में ये रैंकिंग 142 पर पहुंच गयी थी लेकिन 2016 में कवर करते हुए फिर से 142 पर आ गयी - और अब भी वहीं कायम है. अब अगर इसे 12 प्वाइंट की छलांग के रूप में समझाया जाये तो इस मामले में भी फायदा नोटबंदी से जरा भी कम नहीं समझा जाना चाहिये.
जीएसटी लागू करने को सरकार स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े कर सुधार बताने के साथ ही उसे 'गरीब कल्याण' के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है.
नोटबंदी के फायदे के रूप में सरकार महंगाई पर काबू पाना भी बता रही है. वैसे मुख्य खुदरा महंगाई आरबीआई के लक्ष्य दायरे की ऊपरी सीमा के भीतर ही दर्ज की गयी है - अप्रैल में गिरकर ये 2.99 फीसदी के रिकॉर्ड स्तर पर आ गई थी. खास बात ये है कि सरकार राजकोषीय घाटा कम करने में कामयाब रही है.
लेकिन अंत बुरा तो सब बुरा. बिजनेस कैटेगरी में ताकतवर अरुण जेटली को छोड़ दिया जाये तो तीन मंत्रियों - सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री कलराज मिश्रा और उनके सहयोगी गिरिराज सिंह के अलावा वाणिज्य एवं उद्योग (स्वतंत्र प्रभार) मंत्री निर्मला सीतारमण को भी मोदी कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखाया जाना तय माना जा रहा है.
स्वास्थ्य
मोदी सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में खासी स्वास्थ्य सुविधाएं देने की बात कही गई है. स्वास्थ्य नीति के तहत मातृ और शिशु मृत्यु दर घटाने के अलावा पूरे देश में सरकारी अस्पतालों में डायग्नोसिस और दवाइयां उपलब्ध कराने की बात है. बताया गया है कि स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में डिजिटलाइजेशन पर जोर तो होगा ही, प्रमुख बीमारियों के उन्मूलन के लिए लक्ष्य निर्धारित किये जाएंगे.
हालांकि, नयी स्वास्थ्य नीति लाने के सूत्रधार जेपी नड्डा का नाम भी कैबिनेट की संभावित फेरबदल वाली सूची में शामिल माना जा रहा है. नड्डा को तो कोई और जिम्मेदारी सौंपे जाने की चर्चा है लेकिन उनके सहयोगी राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते तो पहले ही इस्तीफा सौंप चुके हैं. हेल्थ सेक्टर में अब भी डाक्टरों की भारी कमी है. सरकार खुद मान चुकी है कि पूरे देश में करीब 14 लाख डॉक्टरों की कमी है और स्थिति ये है कि हर साल सिर्फ 5500 डॉक्टर ही देश को मिल पाते हैं.
इन दिनों हर कोई चाहता है कि बीमारी की स्थिति में वो स्पेशलिस्ट से संपर्क करे, मगर देश में विशेषज्ञ डॉक्टरों की 50 फीसदी से भी ज्यादा कमी है. ये हाल शहरों का है, गांवों में तो ये आंकड़ा 80 फीसदी से ज्यादा है.
नयी स्वास्थ्य नीति में 2025 तक चरणबद्ध तरीके से जीडीपी का कुल 2.5 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च किये जाने का लक्ष्य हासिल करने की बात है जो फिलहाल 1.04 फीसदी है. एक रिपोर्ट बताती है कि सरकारी अस्पतालों की तुलना में लोग निजी अस्पतालों पर आठ गुना अधिक खर्च करते हैं. बीजेपी भले ही खुद को स्वर्णिम काल में पहुंचा ले, लेकिन जिस स्पीड से सरकार और उसके मंत्री प्रदर्शन कर रहे हैं - लोगों की हालत तो नहीं बदलती लग रही. कैबिनेट में कौन रहेगा या नहीं रहेगा और रहेगा तो कहां रहेगा ये प्रधानमंत्री का अधिकार है. उसी तरह कौन संगठन में रहेगा और कौन सरकार में शामिल होगा ये पार्टी अध्यक्ष के अधिकार के दायरे में आता है. मोदी-शाह की जोड़ी केंद्र में मंत्रियों को बदले या राज्यों में मुख्यमंत्री, अगर लोगों को नोटबंदी जैसे एक्सपेरिमेंट में गीनी-पिग बनाया जाता रहा तो कहने की जरूरत नहीं, उनके पास रिकॉल का अधिकार अभी भले न हो - ईवीएम का बटन दबाने का अधिकार तो है ही और उसमें नोटा भी शामिल है.
इन्हें भी पढ़ें :
मोदी-शाह मिल कर 2019 नहीं 2022 के लिए टीम तैयार कर रहे हैं!
कठघरे में खड़ी मोदी सरकार गिना रही है नोटबंदी का फायदा !
बीजेपी इज पार्टी विद ए डिफरेंस ! लेकिन क्या मोदी सरकार भी ऐसी है?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.