भारतीय जनता पार्टी ने जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में एक अहम कदम उठाया है. असम की सर्बानंद सोनोवाल सरकार ने राज्य में टू चाइल्ड पॉलिसी लागू करने का फैसला किया है. यानी आप दो से अधिक बच्चे पैदा नहीं कर सकते हैं, अगर ऐसा करते हैं तो आपको तमाम सुविधाओं से वंचित कर दिया जाएगा. असम सरकार ने तय किया है कि 1 जनवरी 2021 से उन लोगों को सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी, जिनके दो से अधिक बच्चे होंगे. पीएम मोदी भी लाल किले की प्राचीर से लोगों से ये अपील कर चुके हैं कि वह जनसंख्या नियंत्रण पर ध्यान दें. बल्कि उन्होंने तो इसे देशभक्ति से भी जोड़ दिया और कहा कि छोटा परिवार रखना भी एक तरह से देशभक्ति ही है. वैसे देखा जाए तो हमारे देश में 'हम दो, हमारे दो' का कॉन्सेप्ट दशकों से चला आ रहा है. अभी तक लोगों को जागरुक किया जा रहा था, लेकिन अब थोड़ी सख्ती भी बरतने की तैयारी हो रही है. वजह है जनसंख्या विस्फोट, जिस पर लगाम कसना जरूरी हो गया है. लेकिन क्या टू चाइल्ड पॉलिसी भी भारत जैसे देश में काम आएगी? इस वक्त तो चीन की तरह वन चाइल्ड पॉलिसी लाने की जरूरत है. भले ही ये बात आपको थोड़ी अजीब लग रही हो, लेकिन आंकड़े आपकी सोच बदल सकते हैं.
लोग पहले ही 2 बच्चों की पॉलिसी के करीब आ चुके हैं !
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे यानी NFHS के 2015-16 के आंकड़ों को देखें तो जनसंख्या प्रति महिला 2.4 के करीब पहुंच चुकी है. हिंदुओं में ये संख्या 2.1 है और मुस्लिम समुदाय में 2.6 है. अगर 1992-93 के आंकड़ों के देखें तो पता चलता है कि तब प्रति महिला 3.8 बच्चों का औसत था. यानी करीब 30 सालों में ये संख्या करीब 1.4 कम हुई है. हां ये जरूर है कि हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों में बच्चे...
भारतीय जनता पार्टी ने जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में एक अहम कदम उठाया है. असम की सर्बानंद सोनोवाल सरकार ने राज्य में टू चाइल्ड पॉलिसी लागू करने का फैसला किया है. यानी आप दो से अधिक बच्चे पैदा नहीं कर सकते हैं, अगर ऐसा करते हैं तो आपको तमाम सुविधाओं से वंचित कर दिया जाएगा. असम सरकार ने तय किया है कि 1 जनवरी 2021 से उन लोगों को सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी, जिनके दो से अधिक बच्चे होंगे. पीएम मोदी भी लाल किले की प्राचीर से लोगों से ये अपील कर चुके हैं कि वह जनसंख्या नियंत्रण पर ध्यान दें. बल्कि उन्होंने तो इसे देशभक्ति से भी जोड़ दिया और कहा कि छोटा परिवार रखना भी एक तरह से देशभक्ति ही है. वैसे देखा जाए तो हमारे देश में 'हम दो, हमारे दो' का कॉन्सेप्ट दशकों से चला आ रहा है. अभी तक लोगों को जागरुक किया जा रहा था, लेकिन अब थोड़ी सख्ती भी बरतने की तैयारी हो रही है. वजह है जनसंख्या विस्फोट, जिस पर लगाम कसना जरूरी हो गया है. लेकिन क्या टू चाइल्ड पॉलिसी भी भारत जैसे देश में काम आएगी? इस वक्त तो चीन की तरह वन चाइल्ड पॉलिसी लाने की जरूरत है. भले ही ये बात आपको थोड़ी अजीब लग रही हो, लेकिन आंकड़े आपकी सोच बदल सकते हैं.
लोग पहले ही 2 बच्चों की पॉलिसी के करीब आ चुके हैं !
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे यानी NFHS के 2015-16 के आंकड़ों को देखें तो जनसंख्या प्रति महिला 2.4 के करीब पहुंच चुकी है. हिंदुओं में ये संख्या 2.1 है और मुस्लिम समुदाय में 2.6 है. अगर 1992-93 के आंकड़ों के देखें तो पता चलता है कि तब प्रति महिला 3.8 बच्चों का औसत था. यानी करीब 30 सालों में ये संख्या करीब 1.4 कम हुई है. हां ये जरूर है कि हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों में बच्चे पैदा करने की संख्या का अंतर घटा है. यानी दोनों ही समुदायों ने परिवार नियोजन पर ध्यान दिया है और जनसंख्या नियंत्रण करने में अपना योगदान दिया है. 1992-93 में ये अंतर सबसे अधिक 33.6 फीसदी था, जो करीब 30 सालों में घटकर 23.8 फीसदी हो गया है.
अब जरूरत है 1 बच्चे की पॉलिसी लाने की
देश की आबादी पहले ही 135 करोड़ के करीब पहुंच चुकी है. ऐसे में अगर आज 2 बच्चे पैदा करने की पॉलिसी लागू हो भी गई तो भी जनसंख्या पर काबू नहीं पाया जा सकता है. जरूरत है 1 बच्चा पैदा करने की पॉलिसी अपनाने की. चीन को ही देख लीजिए, जिसने वन चाइल्ड पॉलिसी लागू कर के सफलतापूर्वक अपने देश की आबादी पर नियंत्रण किया. 1979 में चीन ने आबादी पर नियंत्रण पाने के लिए वन चाइल्ड पॉलिसी लागू की थी. यहां आपको बता दें कि इससे पहले चीन ने 1970 में टू चाइल्ड पॉलिसी लागू की थी, लेकिन लगा कि उससे कुछ खास फायदा नहीं होगा, इसलिए करीब एक दशक बाद ही वन चाइल्ड पॉलिसी भी लागू कर दी. हालांकि, तानाशाही रवैये वाले चीन ने नसबंदी और जबरन गर्भपात जैसे उपाय भी अपनाए थे, जो बेशक गलत थे. आपको बता दें कि 1979 में चीन की आबादी करीब 97 करोड़ थी, जो अब तक बढ़कर करीब 140 करोड़ हो चुकी है. समझा जा सकता है कि अगर चीन ने 1979 में वन चाइल्ड पॉलिसी लागू नहीं की होती तो आज जनसंख्या कहां पहुंची होती. चीनी सरकार के अनुसार इस दौरान वन चाइल्ड पॉलिसी से चीन ने करीब 40 करोड़ बच्चों को पैदा होने से रोका, जिसने जनसंख्या नियंत्रण में मदद की.
अगर जनसंख्या की तुलना करें तो भारत और चीन की आबादी में करीब 5-7 करोड़ का फर्क है, लेकिन अगर क्षेत्रफल देखें तो भारत के मुकाबले चीन करीब 3 गुना बड़ा है. भारत का क्षेत्रफल करीब 32.87 लाख स्क्वायर किलोमीटर है, जबकि चीन का क्षेत्रफल लगभग 95.96 लाख स्क्वायर किलोमीटर है. यानी जितनी जगह में चीन का एक शख्स रहता है, भारत के 3 लोगों को उतनी ही जगह में एडजस्ट होना पड़ रहा है. भले ही भारत की आबादी चीन से कम हो, लेकिन इसका घनत्व बहुत अधिक है, जिस पर जल्द ही नियंत्रण करना होगा.
सिर्फ सख्ती नहीं, कुछ प्रोत्साहन भी देना होगा
चीन ने तानाशाही रवैये से लोगों पर सख्ती जरूर दिखाई, लेकिन साथ ही उन्हें प्रोत्साहन देने का भी काम किया. एक बच्चे वाला परिवार को सरकार ने प्रति माह 5 युआन यानी 50 भारतीय रुपए देना शुरू किया. साथ ही ऐसे परिवारों को वन चाइल्ड ग्लोरी सर्टिफिकेट भी दिया. इसी तरह भारत सरकार को पहले तो वन चाइल्ड पॉलिसी पर काम करना होगा, लोगों को जागरुक करना होगा, इसके फायदे-नुकसान समझाने होंगे फिर सख्ती से नियम लागू करने के साथ-साथ लोगों को कुछ प्रोत्साहन भी देना होगा, ताकि लोगों को इसमें अपना फायदा दिखे.
असम ऐसा कानून लाने वाला पहला राज्य नहीं
वैसे यहां एक बात ये भी ध्यान देने की है कि असम ऐसा पहला राज्य नहीं है जिसने टू चाइल्ड पॉलिसी की बात की है. इससे पहले भी कुछ राज्यों ने अलग-अलग लेवल पर इसे लागू करने की कोशिश की है.
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना: 1994 में पंचायती राज एक्ट ने एक शख्स पर चुनाव लड़ने से सिर्फ इसीलिए रोक लगा दी थी, क्योंकि उसके दो से अधिक बच्चे थे.
महाराष्ट्र: जिन लोगों के दो से अधिक बच्चे हैं उन्हें ग्राम पंचायत और नगर पालिका के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई है. महाराष्ट्र सिविल सर्विसेस रूल्स ऑफ 2005 के अनुसार तो ऐसे शख्स को राज्य सरकार में कोई पद भी नहीं मिल सकता है. ऐसी महिलाओं को पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के फायदों से भी बेदखल कर दिया जाता है.
राजस्थान: असम की तरह ही राजस्थान में भी ये नियम है कि अगर किसी के दो से अधिक बच्चे हैं तो उसे सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य माना जाता है. राजस्थान पंचायती एक्ट 1994 के अनुसार दो से अधिक बच्चे वाले शख्स को सिर्फ तभी चुनाव लड़ने की इजाजत दी जाती है, अगर उसके पहले के दो बच्चों में से कोई दिव्यांग हो.
गुजरात: लोकल अथॉरिटीज एक्ट को 2005 में बदल दिया गया था. उस समय पीएम मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. ये नियम बना दिया गया था कि दो से अधिक बच्चे वाले शख्स को पंचायतों के चुनाव और नगर पालिका के चुनावों में लड़ने की इजाजत नहीं होगी.
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़: यहां पर 2001 में ही टू चाइल्ड पॉलिसी के तहत सरकारी नौकरियों और स्थानीय चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई थी. 2005 में दोनों ही राज्यों ने चुनाव से पहले फैसला उलट दिया, क्योंकि शिकायत मिली थी कि ये विधानसभा और लोकसभा चुनाव में लागू नहीं है. हालांकि, सरकारी नौकरियों और ज्यूडिशियल सेवाओं में अभी भी टू चाइल्ड पॉलिसी लागू है.
ओडिशा: दो से अधिक बच्चे वालों को अरबन लोकल बॉडी इलेक्शन लड़ने की इजाजत नहीं है.
बिहार: यहां भी टू चाइल्ड पॉलिसी है, लेकिन सिर्फ नगर पालिका चुनावों तक सीमित है.
उत्तराखंड: बिहार की तरह ही उत्तराखंड में टू चाइल्ड पॉलिसी है, लेकिन यहां भी सिर्फ नगर पालिका चुनावों तक सीमित है.
टू चाइल्ड पॉलिसी और धर्म
भारत में टू चाइल्ड पॉलिसी को भारत में अक्सर धर्म के चश्मे से देखा जाता है. लगभग हर धर्म के लोगों ने ही टू लाइल्ड पॉलिसी का विरोध किया है. आरएसएस ने पिछले सालों में जनसंख्या नियंत्रण की बात जरूर की है, लेकिन 2013 में आरएसएस ने ही ये भी कहा था कि हिंदू जोड़ों को कम से कम तीन बच्चे पैदा करने चाहिए. हालांकि, 2015 में रांची में हुई बैठक में आरएसएस ने टू चाइल्ड पॉलिसी की वकालत की. पीएम मोदी ने भी लाल किले की प्राचीर से जनसंख्या नियंत्रण की गुहार लगाई.
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