लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी ने शानदार जीत हासिल की. मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में एक बार फिर देश को संभाल लिया है. नई सरकार का नया मंत्रिमंडल भी गठित हो चुका है. और देश के महत्वपूर्ण मंत्रालयों की कमान मोदी की नई टीम ने संभाल ली है.
2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें जिस तरह का बहुमत मिला, उससे कहा जा सकता है कि वे बीजेपी के संकल्प पत्र पर खुलकर काम कर सकेंगे. लेकिन इस संकल्प पत्र का एक पन्ना ऐसा है, जिस पर पहुंचते ही विवाद और बवाल नजर आने लगता है. ये पन्ना है कश्मीर से जुड़ा.
बात अगर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने बड़ी चुनौतियों की हो तो उस लिस्ट में कश्मीर नंबर वन है. हम ऐसा इसलिए भी कह रहे हैं क्योंकि बीते दिनों जिस हिसाब से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान देश के अलग अलग स्थानों पर कश्मीर का वर्णन किया था. उम्मीद की जा रही थी कि सरकार 'घाटी और वहां की समस्याओं' के मद्देनजर कुछ बड़ा करने वाली है. 2019 के चुनाव के फौरन बाद घाटी का मुद्दा एक बार फिर इसलिए भी गरमाया है क्योंकि इसकी शुरुआत खुद घाटी के नेताओं ने की है.
कश्मीर की सियासत
2019 चुनाव के एग्जिट पोल्स के बाद जो रुख घाटी के नेताओं ने दिखाया उसे देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगा लिया गया था कि जनता का ये जनादेश महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला जैसे घाटी के बड़े नेताओं से पच नहीं पाएगा. इन नेताओं के ट्विटर प्रोफाइल का रुख करने पर आगे की बात समझने में हमें आसानी होगी.
शुरुआत राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती...
लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी ने शानदार जीत हासिल की. मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में एक बार फिर देश को संभाल लिया है. नई सरकार का नया मंत्रिमंडल भी गठित हो चुका है. और देश के महत्वपूर्ण मंत्रालयों की कमान मोदी की नई टीम ने संभाल ली है.
2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें जिस तरह का बहुमत मिला, उससे कहा जा सकता है कि वे बीजेपी के संकल्प पत्र पर खुलकर काम कर सकेंगे. लेकिन इस संकल्प पत्र का एक पन्ना ऐसा है, जिस पर पहुंचते ही विवाद और बवाल नजर आने लगता है. ये पन्ना है कश्मीर से जुड़ा.
बात अगर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने बड़ी चुनौतियों की हो तो उस लिस्ट में कश्मीर नंबर वन है. हम ऐसा इसलिए भी कह रहे हैं क्योंकि बीते दिनों जिस हिसाब से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान देश के अलग अलग स्थानों पर कश्मीर का वर्णन किया था. उम्मीद की जा रही थी कि सरकार 'घाटी और वहां की समस्याओं' के मद्देनजर कुछ बड़ा करने वाली है. 2019 के चुनाव के फौरन बाद घाटी का मुद्दा एक बार फिर इसलिए भी गरमाया है क्योंकि इसकी शुरुआत खुद घाटी के नेताओं ने की है.
कश्मीर की सियासत
2019 चुनाव के एग्जिट पोल्स के बाद जो रुख घाटी के नेताओं ने दिखाया उसे देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगा लिया गया था कि जनता का ये जनादेश महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला जैसे घाटी के बड़े नेताओं से पच नहीं पाएगा. इन नेताओं के ट्विटर प्रोफाइल का रुख करने पर आगे की बात समझने में हमें आसानी होगी.
शुरुआत राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती से-
Most news anchors can’t hide their glee about exit poll results like kids left unattended in a candy store! Teray Aanay say Yun Khush Hai dil Jaisay Ki Bulbul Bahar Ki Khatir
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) May 19, 2019
BJP winning or losing isn’t the end of the world. True that institutions were subverted & press standards plummeted.Yet many in the system & journalists with integrity stood up & raised their voices. Hope these results don’t deter their resolve to fight for what’s right
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) May 20, 2019
महबूबा के बाद जब उमर अब्दुल्ला की ट्विटर प्रोफाइल का रुख किया गया तो मिला कि उन्हें भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ये प्रचंड जीत बेचैन कर रही है.
Every single exit poll can’t be wrong! Time to switch off the TV, log out of social media & wait to see if the world is still spinning on its axis on the 23rd.
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) May 19, 2019
If your exit poll doesn’t have a ???? flying around the studio you’ve already lost the battle for the viewers attention.
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) May 19, 2019
वहीं बात अगर हुर्रियत के चेयरमैन मीरवाइज उमर फारूक की हो तो उन्होंने आशा व्यक्त की है कि भारत का नया शासन कश्मीर का रिव्यू कर कश्मीर नीति को बदलेगा. कश्मीर मुद्दे पर मीरवाइज ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का हवाला देते हुए कहा है कि देश के पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने भी महसूस किया था कि सैन्य दृष्टिकोण समस्या का समाधान नहीं है.
Seminar at Hurriyat office, in connection with #HaftaShadat, Kashmir issue a reality, new dispensation in India has to engage with the reality of the Kashmir issue and address it. Hurriyat ready to support all IndoPak efforts aimed at ending hostility &seeking a peaceful solution pic.twitter.com/vDpNQzsxBB
— Mirwaiz mar Farooq (@MirwaizKashmir) May 19, 2019
श्रीनगर में आयोजित एक सेमिनार में कश्मीर मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त करते हुए हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक ने कहा है कि कश्मीर की समस्या न तो सेना के जरिये खत्म की जा सकती है और न ही हिंसक गतिविधियों से. मुझे आशा है कि देश की जो नई सरकार बन रही है वो कश्मीर पालिसी का अवलोकन कर समाधान निकालेगी.
मीरवाइज ने जिस लहजे में अपनी बातें रखी वो विचलित करने वाली है. ऐसा इसलिए क्योंकि कहीं न कहीं मीरवाइज को मोदी के आने से बहुत पहले ही इस बात का एहसास हो गया है कि आने वाले दिनों में मोदी सरकार घाटी की सियासत में भारी उथल पुथल लाने वाली है जो कश्मीर के रहनुमानों के लिए परेशानी का सबब होगा.
आइये एक नजर डालते हैं उन मुद्दों पर जिनपर आते साथ ही मोदी सरकार बड़ा हमला कर सकती है.
धारा 370 और 35 A
घाटी में धारा 370 और 35 A पर भाजपा का रुख कैसा है? इसे हम बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के उस भाषण से समझ सकते हैं. जो उन्होंने हिमाचल प्रदेश में दिया था. शाह ने कहा था कि, अगर नरेंद्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री चुने जाते हैं तो कश्मीर को विशेष शक्तियां देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया जाएगा. शाह ने चंबा में अपनी पहली रैली में कहा था कि मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो अनुच्छेद 370 को निश्चित तौर पर हटा लिया जाएगा.
वहीं बात अगर देश के पूर्व गृह मंत्री राजनाथ सिंह की हो तो जयपुर में आयोजित एक सभा में उन्होंने भी इस बात पर बल दिया था कि, जम्मू-कश्मीर में धारा 370 व 35A के लाभ की समीक्षा करने का समय आ गया है. सभा के बाद पत्रकारों से हुई बातचीत में राजनाथ सिंह ने कहा था कि, जम्मू-कश्मीर में धारा 370 के बारे में कहना चाहूंगा कि धारा 370 संविधान की एक अस्थायी व्यवस्था है. अब इस बात की समीक्षा करने का समय आ गया है कि धारा 370 व 35A से जम्मू-कश्मीर को कितना लाभ हुआ है. अब कुछ लोग भारत में दो प्रधानमंत्री होने की बात कर रहे हैं तो धारा 370 व 35A का क्या औचित्य रह जाता है?
इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी रैलियों में कश्मीर के मुद्दे का बड़ी ही प्रमुखता से जिक्र कर चुके हैं. कश्मीर के प्रति भाजपा के बड़े नेताओं का रुख इस बात को खुद ब खुद साफ कर देता है कि आने वाले वक़्त में धारा 370 और 35A पर बड़ी कार्रवाई की जा सकती है.
अलगाववाद और आतंकवाद
अलगाववाद और आतंकवाद हमेशा से ही कश्मीर के लिहाज से बड़े मुद्दे रहे हैं. बात पहले अलगाववाद पर. अलगाववाद ने घाटी में किस तरह का नासूर कर दिया है इसे समझना हो तो हम कश्मीर के युवाओं का रुख कर सकते हैं. अपने नेताओं की बदौलत ये भारत और भारत की नीतियों के खिलाफ हैं. सेना और सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी करते हैं. देश विरोधी या फिर पाकिस्तान परस्त नारे लगाते हैं.
शुरू शुरू में ये सोचकर कि एक न एक दिन हालात सही हो जाएंगे, सरकारों ने भी इस ओर कम ही ध्यान दिया. मगर जैसे जैसे दिन बढ़े ये समस्या गहराती चली गई. आज हालात ये है कि अलगाववाद से दो हाथ आगे जाते हुए घाटी के युवाओं ने आतंकवाद का रास्ता अपना लिया है.
चाहे बुरहान वानी रहा हो या फिर पुलवामा हमले में 49 CRPF जवानों को शहीद करने वाला आदिल अहमद डार, अलगाववाद ने राज्य के युवाओं के अन्दर इस हद तक जहर भर दिया है कि अब वो लगातार हिंसा का मार्ग चुन रहे हैं.
आज घाटी के हालात उस जगह पहुंच गए हैं जहां से उसे निकालने या ये कहें कि हालात सही करने में देश की सरकार को लम्बा वक़्त लगने वाला है. चुनाव से पहले सरकार कश्मीर के लिए सख्त हुई थी और इसी कड़ी में हम उन तमाम नेताओं की गिरफ़्तारी देख चुके हैं जिनके भड़काऊ बयानों के कारण कश्मीर के लोगों ने बंदूक उठाई है.
अब चूंकि नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं तो इस बात के भी कयास लगाए जा रहे हैं कि सरकार अलगाववाद और आतंकवाद दोनों ही समस्याओं पर और सख्त होगी और इस दिशा में प्रभावी कदम उठाकर इसपर हमेशा के लिए लगाम कसेगी.
सेना और सुरक्षाबल
भले ही कश्मीर के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्र इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत का जिक्र किया हो और कहा हो कि घाटी की समस्या का समाधान बातचीत है मगर जब हम कश्मीर के हालात का जायजा लेते हैं तो मिलता है कि वहां जितनी जरूरत सरकार और लोगों के बीच बातचीत की है उतनी ही जरूरत सेना और सुरक्षाबलों की है.
इसलिए माना ये भी जा रहा है कि भले ही आम लोगों से संवाद करने के लिए सरकार सामने आए मगर घाटी की सुरक्षा और शांति के मद्देनजर वहां से सेना को नहीं हटाया जा सकता. ध्यान रहे कि कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में मुखर होकर इस बात को कहा है कि यदि कांग्रेस केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब होती है तो वो घाटी से सेना हटा देगी.
बात चूंकि भाजपा की हो रही है तो कह सकते हैं जैसे कश्मीर के हालात हैं और जैसा पार्टी का रुख रहा है दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी घाटी के लोगों और नेताओं से बात तो करेंगे मगर वहां से सेना नहीं हटाएंगे.
उपरोक्त बातों से साफ है कि प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी के दोबारा सत्ता में आने के बाद कश्मीर के हालात बदल जाएंगे. सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है घाटी के नेताओं के अच्छे दिन गए अब आने वाले वक़्त में इनका काउंट डाउन शुरू होने वाला है.
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