जैसे-जैसे 2019 नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे मोदी के सहयोगी उनसे दूर जाने लगे हैं. हालात ये हैं कि कई मजबूत साथी मोदी का साथ छोड़ चुके हैं और कई उनका साथ छोड़ने को तैयार हैं. इन सबमें सबसे पहले बात करते हैं नितीश कुमार की. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नोटबंदी को लेकर मोदी पर कड़ा प्रहार किया है. इसके अलावा मोदी के करीब 6-7 बड़े सहयोगी उनका साथ छोड़ चुके हैं.
नितीश कुमार के बहाने
नीतीश कुमार ने पटना में बैंकरों की एक बैठक के दौरान कहा कि जब तक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल जाता, तब तक कोई भी यहां पूंजी नहीं लगाएगा. 2017 में भाजपा के साथ गठबंधन होने के बाद से अब तक नीतीश कुमार ने विशेष राज्य का दर्जा देने की बात पर जोर देना छोड़ दिया था. मतलब साफ है कि वो दूरियां बढ़ाने का बहाना ढूंढ रहे हैं.
नोटबंदी के विरोध में बयान
इसी बैठक में उन्होंने कहा- पहले मैं नोटबंदी का समर्थक था, लेकिन इससे फायदा कितने लोगों को हुआ? आप छोटे लोगों को लोन देने के लिए सख्त हो जाते हैं लेकिन उन ताकतवर लोगों का क्या जो लोन लेकर गायब हो जाते हैं? मैं आलोचना नहीं कर रहा हूं, मैं चिंतित हूं.’ इस बयान के बाद बीजेपी सफाई देती नजर आई. इसके बाद उन्होंने ट्वीट किया और लिखा- ‘माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को सरकार के गठन के 4 साल पूरे होने पर बधाई. विश्वास है कि सरकार जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगी.’ बधाई के साथ-साथ नीतीश ने अपनी दबी नाराजगी भी जाहिर कर दी कि सरकार लोगों की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर रही है.
चले गए...
जैसे-जैसे 2019 नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे मोदी के सहयोगी उनसे दूर जाने लगे हैं. हालात ये हैं कि कई मजबूत साथी मोदी का साथ छोड़ चुके हैं और कई उनका साथ छोड़ने को तैयार हैं. इन सबमें सबसे पहले बात करते हैं नितीश कुमार की. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नोटबंदी को लेकर मोदी पर कड़ा प्रहार किया है. इसके अलावा मोदी के करीब 6-7 बड़े सहयोगी उनका साथ छोड़ चुके हैं.
नितीश कुमार के बहाने
नीतीश कुमार ने पटना में बैंकरों की एक बैठक के दौरान कहा कि जब तक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल जाता, तब तक कोई भी यहां पूंजी नहीं लगाएगा. 2017 में भाजपा के साथ गठबंधन होने के बाद से अब तक नीतीश कुमार ने विशेष राज्य का दर्जा देने की बात पर जोर देना छोड़ दिया था. मतलब साफ है कि वो दूरियां बढ़ाने का बहाना ढूंढ रहे हैं.
नोटबंदी के विरोध में बयान
इसी बैठक में उन्होंने कहा- पहले मैं नोटबंदी का समर्थक था, लेकिन इससे फायदा कितने लोगों को हुआ? आप छोटे लोगों को लोन देने के लिए सख्त हो जाते हैं लेकिन उन ताकतवर लोगों का क्या जो लोन लेकर गायब हो जाते हैं? मैं आलोचना नहीं कर रहा हूं, मैं चिंतित हूं.’ इस बयान के बाद बीजेपी सफाई देती नजर आई. इसके बाद उन्होंने ट्वीट किया और लिखा- ‘माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को सरकार के गठन के 4 साल पूरे होने पर बधाई. विश्वास है कि सरकार जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगी.’ बधाई के साथ-साथ नीतीश ने अपनी दबी नाराजगी भी जाहिर कर दी कि सरकार लोगों की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर रही है.
चले गए चंद्रबाबू नायडू
आपको याद होगा कि चंद्रबाबू नायडू चुनाव से ठीक पहले ही मोदी से किनारा कर चुके हैं. उन्होंने आंध्र प्रदेश को स्पेशल स्टेटस देने की मांग की थी. इसके बाद मोदी मनाते रह गए और वो चले गए. तेलुगु देशम पार्टी के 16 सांसद हैं और मोदी के लिए वो बेहद अहम हो सकते थे.
शरद पवार भी दूर
6 सीटों के साथ मोदी को मजबूती दे रहे शरद पवार भी अब उनके साथ नहीं हैं. उनके जाने का मतलब है महाराष्ट्र में बीजेपी को नुकसान होना. शरद पवार के नजदीकी लोगों का कहना है कि मोदी के साथ रहकर उन्हें चुनाव में नुकसान हो सकता है. मोदी के वापसी की उम्मीद कम है इसलिए जोखिम नहीं लिया जा सकता. मोदी आ गए तो चुनाव के बाद देखा जाएगा.
शिव सेना भी गुस्से में
शिव सेना हर दिन मोदी सरकार पर निशाना साध रही है. उद्धव ठाकरे ने तो यहां तक कह दिया कि योगी आदित्यनाथ को जूते मारना चाहिए. 18 सदस्यों के साथ शिव सेना मोदी की संसद में मजबूत साथी है.
वाइएसआर भी दूर हुए
वाईएसआर कांग्रेस से चंद्र शेखर रेड्डी गुस्से में हैं. वो तेलंगाना के मुद्दों को बहाना बनाकर मोदी से दूर जा चुके हैं. उन्हें भी 2019 में मोदी के साथ नाव डूबने का डर सताने लगा है. इतना ही नहीं कई छोटे दल भी मोदी से दूरियां बनाने में जुटे हैं.200 सीटों से ज्यादा की उम्मीद नहीं.
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हर राज्य में अधिकतम सीटें जीती थीं. कई राज्यों में उसे सभी सीटें मिल गई थीं. लेकिन इस बार हालात ऐसे नहीं रहने वाले हैं. पार्टी को राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, कर्नाटक, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में जितनी सीटें मिली थीं. उतनी दोबारा मिलना संभव ही नहीं है. बीजेपी की हालत अगर सबसे अच्छी रहती है तो भी 200 सीटों तक उसे मिल सकती हैं और इस हालत में वो सरकार तभी बना सकेगी जब सहयोगी साथ हों लेकिन सहयोगियों के दूर होते जाने का मतलब है कि जिसकी ताकत ज्यादा होगी वो उसी का दामन थाम लेंगे.
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