एग्जिट पोल के बाद फाइनल रिजल्ट (Loksabha Election Results 2019) का बेसब्री से इंतजार रहा - और अब तो दिलचस्पी ये है कि मोदी सरकार 2.0 में किसे जगह मिलने वाली है यानी Modi govt new cabinet कौन होगा और कौन नहीं. एक बात तो तय है कि दूसरी पारी में भी मोदी सरकार के सामने कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं होगा. एक सवाल और है कि अब स्पीकर कौन बनेगा? सुमित्रा महाजन तो चुनाव लड़ीं नहीं. अमित शाह की कैबिनेट में बहुप्रतिक्षित एंट्री, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली की खराब सेहत के अलावा मनोज सिन्हा के चुनाव हार जाने के बाद देखना होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या रूख अपनाते हैं?
प्रधानमंत्री मोदी ने वैसे संकेत दिया है कि मंत्रिमंडल में बहुत सारे नये चेहरे भी हो सकते हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने करीब सवा सौ मौजूदा सांसदों के टिकट काट लिये थे - और जिन्हें अवसर दिया उनमें से करीब 100 चुनाव जीतने में कामयाब रहे, जाहिर है ऐसे नेताओं को भी मौका मिल सकता है. वैसे सहयोगी दलों को भी तो अपेक्षा होगी ही - और अब तक प्रधानमंत्री मोदी ने जो सम्मान बख्शा है, लगता तो यही है कि वे निराश नहीं होंगे.
अमित शाह गृह मंत्री बनेंगे या वित्त मंत्री?
पहले राज्य सभा और अब लोक सभा में पहुंच रहे अमित शाह के लिए कैबिनेट में एक कुर्सी तो पक्की मानी जा रही है. बीजेपी में नंबर दो होने के नाते कैबिनेट में भी ये पोजीशन अमित शाह को मिलेगी ये भी तय लगती. ऐसा होने पर कुछ नाराजगी भी हो सकती है लेकिन ऐसी जीत दिलाने के बाद जबान कोई खोलेगा, ये तो नहीं लगता.
चुनाव से पहले ही अमित शाह के मंत्रालय को लेकर चर्चा होने लगी थी कि मोदी सरकार आयी तो वो गृह मंत्री बनेंगे. सवाल ये है कि अमित शाह गृह मंत्री बनेंगे तो राजनाथ सिंह क्या करेंगे? राजनाथ सिंह को कोई और मंत्रालय मिलेगा या बराबरी की कोई नयी जिम्मेदारी?
अब अमित शाह कैबिनेट में भी आ रहे हैं...
अमित शाह के वित्त मंत्री बनने की भी चर्चा है. इस चर्चा को बल मिल रहा है अरुण जेटली की खराब सेहत के चलते. यही वजह रही कि अंतरिम बजट पीयूष गोयल को पेश करना पड़ा. वैसे भी मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर अरुण जेटली निशाने पर ही रहे - हालांकि, पूरे पांच साल जेटली ही सरकार का बचाव भी करते रहे. जब मीडिया के सामने आना संभव न था तब ब्लॉग के जरिये हमला बोलते रहे - असर तो उतना ही होता था.
मोदी के मंत्रिमडलीय मित्रों की संभावित सूची लंबी है
अरुण जेटली की ही तरह सुषमा स्वराज का स्वास्थ्य ठीक नहीं रह रहा है. यही वजह रही कि सुषमा स्वराज ने लोक सभा चुनाव न लड़ने का फैसला पहले ही कर लिया था. अब देखना होगा कि अरुण जेटली और सुषमा स्वराज की जगह कौन लेता है.
1. अरुण जेटली की जगह अगर अमित शाह नहीं लेते तो पीयूष गोयल पहले दावेदार होंगे. अंतरिम बजट पेश कर चुके पीयूष गोयल के लिए मुख्य बजट पेश करना भी बाकियों के मुकाबले आसान ही होगा. ज्यादा संभावना तो यही है कि अमित शाह के गृह मंत्री बनने की स्थिति में पीयूष गोयल ही अरुण जेटली की जगह लें.
2. सुषमा स्वराज की जगह एक दावेदार तो जनरल वीके सिंह भी हैं. पूरे पांच साल विदेश मंत्रालय में सुषमा स्वराज के साथ काम करने का उन्हें अनुभव भी है. वैसे खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश मामलों में इतने एक्टिव रहते हैं कि विभागीय मंत्री के जिम्मे बचे खुचे काम ही रह जाते हैं. वैसे भी वीके सिंह 2014 के मुकाबले ज्यादा ही वोटों से गाजियाबाद से चुनाव जीते हैं.
अगर वीके सिंह को प्रधानमंत्री मोदी प्रमोशन देने के मूड में नहीं होंगे तो रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण को विदेश मंत्री बनाया जा सकता है. निर्मला सीतारमण को विदेश मंत्रालय दिये जाने के बाद रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी राजनाथ सिंह को भी सौंपी जा सकती है.
3. नितिन गडकरी के पिछले पांच साल के कामकाज को देखते हुए तो नहीं लगता कि उनका मंत्रालय बदला जाएगा क्योंकि अभी बहुत सारी योजनाएं हैं जो पहले से चल रही हैं. अगर नितिन गडकरी की जगह कोई और आता है तो पहले तो उसे एक एक चीज समझनी होगी - और हर किसी को आंकड़े रटने का शौक भी तो नितिन गडकरी जैसा नहीं हो सकता.
हो सकता है नितिन गडकरी के काम को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी उन्हें कोई ऐसी जिम्मेदारी सौंपे जहां कामकाज पिछली पारी में कमजोर रहा है. मिसाल के तौर पर विभाग बदलने के बावजूद स्किल डेवलपमेंट के काम में कोई सुधार तो देखने को नहीं मिला.
4. बिहार से चुनाव जीत कर आने वालों में राधा मोहन सिंह और रविशंकर प्रसाद जैसे मंत्री हैं. राधामोहन सिंह के पास कृषि मंत्रालय जरूर रहा लेकिन किसानों के मामलों को लेकर मोदी सरकार लगातार निशाने पर रही है जिस पर इस बार ज्यादा फोकस हो सकता है. राधामोहन सिंह अपने बयानों को लेकर भी विवादों में रहे हैं. जरूरी नहीं कि दूसरी पारी में राधामोहन सिंह को मंत्रिमंडल में मौका मिले ही या कम से कम महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी मिले.
5. रविशंकर प्रसाद के लिए चुनाव लड़ना काफी चुनौतीपूर्ण रहा. एक तो वो पहली बार लोक सभा का चुनाव लड़ रहे थे, दूसरे उनके खिलाफ बीजेपी के बागी और पटना साहिब से मौजूदा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा मैदान में थी - लेकिन रविशंकर प्रसाद सफल रहे. कैबिनेट में उनकी जगह तो पक्की है, लेकिन विभाग में फेरबदल हो सकती है.
जिस तरह से बीजेपी के विजयोत्सव में थावरचंद गहलोत की मंच पर बैठाया गया था, ये तो मान कर चलना चाहिये कि उनका कद बढ़ने वाला है. वैसे अभी तक वो सामाजिक न्याय मंत्री रहे हैं.
6. बीजेपी में सबसे चमत्कारिक जीत के साथ लोक सभा पहुंच रहीं स्मृति जुबिन ईरानी तो जबर्दस्त फॉर्म में होंगी. राहुल गांधी को गांधी परिवार के गढ़ अमेठी में एक चुनाव हार कर दूसरे ही चुनाव में शिकस्त दे देना बहुत बड़ी बात है. कभी डिग्री को लेकर विपक्ष तो कभी बयानबाजी को लेकर अमित शाह के निशाने पर रहीं स्मृति ईरानी ने अमेठी की जीत से इतना तो हासिल कर ही लिया है कि तमाम विरोधियों का मुंह बंद कर सकें. स्मृति ईरानी को पहले HRD मंत्री बनाया गया था, लेकिन बाद में कपड़ा मंत्रालय भेज दिया गया. स्मृति ईरानी की जगह लेने वाले प्रकाश जावड़ेकर भी मोदी ब्रिगेड के संकटमोचकों में रहे हैं - कैबिनेट में पक्की तो उनकी भी जगह होनी चाहिये.
7. 2018 के हारे हुए मुख्यमंत्रियों ने भी लोक सभा चुनाव में उम्दा प्रदर्शन किया है. अगर आलाकमान शिवराज सिंह, वसुंधरा राजे और रमन सिंह को उनके राज्यों में बने रहने देना ठीक नहीं मानता तो जाहिर है वो मोदी की अगली कैबिनेट का हिस्सा बनाया जा सकता है.
8. मुख्तार अब्बास नकवी अब तक अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री रहे हैं और हो सकता है वो आगे भी अपनी इसी भूमिका में बने रहें. नाजुक मौकौं पर सरकार के बचाव में मुख्तार अब्बास नकवी मोर्चे पर तो डटे ही रहते हैं. ऐसा भी हो सकता है कि उनकी जगह सैयद शाहनवाज हुसैन को मौका दिया जाये. 2014 में चुनाव हार जाने और इस बार भागलपुर से टिकट न मिलने के बावजूद शाहनवाज हुसैन अपनी ओर से कोई कसर बाकी तो रखते नहीं. यथाशक्ति योगदान देते ही रहते हैं.
9. पूरे देश में मोदी लहर और यूपी में सपा-बसपा गठबंधन फेल हो जाने के बावजूद मोदी मनोज सिन्हा गाजीपुर से चुनाव हार गये है. जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी मनोज सिन्हा के कामकाज को देखते हुए पसंद करते हैं उससे ये तो नहीं लगता कि चुनाव हारने का उनकी सेहत पर बहुत असर पड़ेगा. आखिर 2014 में लोक सभा चुनाव हारने के बावजूद अरुण जेटली मंत्री तो बने ही - और अब भी उनके हटने की बात सिर्फ स्वास्थ्य कारणों से ही हो रही है.
10. मेनका गांधी और वरुण गांधी सीटों की अदला-बदली कर चुनाव तो जीत गये हैं, अब देखना होगा मंत्री पद के मामले में क्या फैसला होता है. ये तो होने से रहा कि दोनों मंत्रिमंडल में जगह पा सकेंगे - ऐसी सूरत में हो सकता है मेनका गांधी बेटे वरुण गांधी को आगे करना चाहें. वैसे भी बेटे के लिये ही तो मेनका गांधी सुल्तानपुर में सीट हारते हारते जीती हैं.
ऐसा ही मामला रामविलास पासवान का भी लगता है. रामविलास पासवान इस बार लोक सभा चुनाव नहीं लड़े और तय हुआ था कि जो भी राज्य सभा की सीट पहले खाली होगी, बीजेपी पासवान को राज्य सभा भेजेगी. अब देखना दिलचस्प होगा कि मंत्री पद का कोटा भी पासवान खुद अपने पास रखना चाहते हैं या बेटे चिराग पासवान को आगे बढ़ाते हैं?
11. कांग्रेस छोड़ कर 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी में आयीं रीता बहुगुणा जोशी यूपी की योगी सरकार में मंत्री हैं. बीजेपी ने रीता बहुगुणा को उनके पिता की सीट रही इलाहाबाद से इस बार टिकट दिया था - जिसमें वो सफल रही हैं. लगता तो यही है कि बीजेपी नेतृत्व के मन में रीता बहुगुणा को केंद्र में लाने को लेकर मन में कुछ चल ही रहा होगा. केंद्र में लाकर मंत्री भी बनाया ही जा सकता है.
गिरिराज सिंह, जेपी नड्डा, धर्मेंद्र प्रधान जैसे नेताओं की कैबिनेट में जगह तो पक्की ही मान कर अभी चलना होगा, संभव है महत्वपूर्ण सीटों से चुनाव जीत कर आये कुछ नये चेहरों को भी नयी कैबिनेट में जगह मिले.
12. गिरिराज सिंह की ही तरह वीरेंद्र सिंह मस्त को भदोही से बलिया भेज दिया गया था और वो चुनाव भी जीत चुके हैं. वीरेंद्र सिंह मस्त को क्षेत्रीय संतुलन बनाये रखने के नाम पर मौका दिया भी जा सकता है. वीरेंद्र सिंह चौथी बार सांसद बने हैं और बुजुर्ग हो चुके हैं जिससे उनके मंत्री बनने की संभावना कम ही नजर आती है.
13. कन्नौज में मुलायम सिंह यादव की बहू और अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को हराने वाले सुब्रत पाठक, मुलायम परिवार के ही एक सदस्य धर्मेंद्र यादव को बदायूं में हराने वाली संघमित्रा मौर्य को भी नये चेहरों के नाम पर मौका मिल सकता है. साथ ही, गोरखपुर से जीते रवि किशन, बेंगुलुरू साउथ से तेजस्वी सूर्या, दिल्ली से गौतम गंभीर और हंसराज हंस, और मेरठ से आ रहे राजेंद्र प्रसाद अग्रवाल भी मंत्री पद के दावेदारों की सूची में जगह तो पा ही सकते हैं.
कौन बनेगा स्पीकर? और नेता प्रतिपक्ष?
मौजूदा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने चुनाव लड़ने से तो मना कर दिया था, लेकिन नये सदस्यों के स्वागत की तैयारियां कराने में आखिर तक जुटी रहीं. टारगेट रहा कि किसी भी सांसद को होटल में रहने की नौबत न आये.
अब सवाल है कि प्रधानमंत्री मोदी की नयी पारी में सुमित्रा महाजन की जगह कौन लेगा. स्पीकर के लिए सबसे जरूरी ये होता है कि उसे संसदीय प्रक्रिया की अच्छी जानकारी और लंबा अनुभव हो. अमूमन वरिष्ठ सदस्यों में से ही किसी को स्पीकर बनाया जाता है.
विजयोत्सव में मिली तवज्जो को देखते हुए पहला नाम थावर चंद गहलोत का लगता है - और सम्मान सहित ऐडजस्टमेंट की स्थिति आन पड़ी तो राजनाथ सिंह भी प्रबल दावेदार लगते हैं.
ये भी तो देखना होगा कि अमित शाह के कैबिनेट में आने के बाद बीजेपी की कमान कौन संभालेगा? पहले दावेदार तो नितिन गडकरी ही हैं, लेकिन लगता तो नहीं कि चुनाव से पहले के उनके बयानों को देखते हुए मोदी-शाह ऐसा कोई रिस्क लेने की जहमत उठाएंगे. फिर तो हो सकता है कि राजनाथ सिंह को ही एक बार फिर मोर्चा संभालना पड़े.
एक सवाल ये भी है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष कौन होगा?
मुश्किल तो ये है कि पांच साल बाद भी कांग्रेस की स्थिति में इतना सुधार नहीं हुआ है कि इस बार भी उसे ये मौका मिल सके. नियमों के तहत सबसे बड़ी पार्टी के पास 10 फीसदी सांसद होने चाहिये - यानी 55. कांग्रेस पांच साल में 44 से 52 तक का ही सफर पूरा कर पायी है. दिलचस्प बात ये भी है कि पांच साल तक ये रस्म निभाने वाले मल्लिकार्जुन खड्गे तो चुनाव भी हार चुके हैं.
पिछले पांच साल में तो यही देखने को मिला कि कैबिनेट में फेरबदल ज्यादा नहीं हुई - सिर्फ दो बार. एक फेरबदल की वजह चुनावों की तैयारी के लिए नेताओं की तैनाती रही - और कुछ नेताओं का खराब प्रदर्शन. मोदी है तो मुमकिन ये भी है कि इस बार ऐसी टीम बने जो पूरे पांच साल बिना रुके, बिना झुके और नरेंद्र मोदी के साथ बिना रुके काम करती रहे.
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