17 नवंबर से शुरू हुए काशी तमिल संगमम् (Kashi Tamil Sangmam) का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने उद्घाटन कर दिया है. महीने भर का ये कार्यक्रम 16 दिसंबर तक चलेगा. केंद्र के शिक्षा मंत्रालय की तरफ से आयोजित ये कार्यक्रम आजादी के अमृत महोत्सव के तहत कराया जा रहा है. अखबारों में आये विज्ञापन में कहा गया है कि ये कार्यक्रम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' संकल्प को नये आयाम देने वाला है - बीएचयू और आईआईटी मद्रास आयोजन के नॉलेज पार्टनर हैं.
सरकारी विज्ञापनों में इस कार्यक्रम को वाराणसी और तमिलनाडु के बीच राम सेतु के तौर प्रोजेक्ट किया जा रहा है - और अलग अलग तरीके से ये भी समझाने की कोशिश है कि इस संगम के खत्म होने तक तमिलनाडु के लोगों को काशी के बारे में और बनारस के लोगों को तमिलनाडु की सांस्कृतिक समृद्धि के बारे में सब कुछ मालूम हो जाएगा.
अरुणाचल प्रदेश के दौरे से वाराणसी पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तकरीबन वही बातें समझाने की कोशिश की जिसका विज्ञापन में उल्लेख है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'काशी में बाबा विश्वनाथ हैं... तो तमिलनाडु में भगवान रामेश्वरम का आशीर्वाद है...'
काशी और तमिलनाडु को एक ही जैसा शिवमय और शक्तिमय बताते हुए मोदी ने कहा, एक स्वयं में काशी है... तो तमिलनाडु में दक्षिण काशी है... 'काशी-कांची' के रूप में दोनों की सप्तपुरियों में अपनी महत्ता है.
प्रधानमंत्री मोदी ने तमिल भाषा का भी बड़े सम्मान के साथ जिक्र किया. हाल के उत्तर और दक्षिण के बीच चले भाषायी विवाद के साये में भी प्रधानमंत्री मोदी की बातें राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण लगती हैं. कुछ दिनों पहले जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हिंदी भाषा की बात की तो दक्षिण भारत से विरोध के स्वर सुनाई देने लगे थे. फटाफट एमके स्टालिन से लेकर शशि थरूर का हिंदी विरोध अलग अलग रूपों से सामने आ गया था.
पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों के दौरान दक्षिण की राजनीति के प्रति बीजेपी और कांग्रेस के नजरिये में काफी फर्क देखने को मिला था. बीजेपी का पूरा फोकस जहां पश्चिम बंगाल पर रहा, कांग्रेस की गतिविधियों में ज्यादा जोर तमिलनाडु और केरल को लेकर देखने को मिला था. ये भी महसूस किया गया कि जैसे कांग्रेस को पश्चिम बंगाल से कोई मतलब नहीं रहा, बीजेपी का रुख केरल और तमिलनाडु को लेकर मिलती जुलती ही रही. केरल में बीजेपी से ज्यादा मेट्रो मैन ई. श्रीधरन ही दिखे, लेकिन पार्टी के हाथ खींच लेने पर वो भी शांत हो गये. बची खुची चीजें चुनाव नतीजों ने बराबर कर दी थीं.
दक्षिण को लेकर कांग्रेस का एक और पक्ष राहुल गांधी के बयान के जरिये सामने आया, जिसमें उनका कहना था कि राजनीति को लेकर उत्तर भारत के मुकाबले दक्षिण भारत के लोग ज्यादा जागरुक होते हैं. ये दावा राहुल गांधी ने अमेठी में अपने अनुभव के आधार पर कहा था, लेकिन तब जब वहां के लोगों ने कांग्रेस नेता को नकार दिया.
राहुल गांधी को तो पहले भी दक्षिण भारत के दौरों में काफी कंफर्टेबल देखा जाता रहा, लेकिन वायनाड की चुनावी जीत ने एक नया और मजबूत बॉन्ड ही बना दिया. अब अगर काशी तमिल संगमम् के कार्यक्रमों और हिस्सा लेने वाले मेहमानों को ध्यान से देखें और समझने की कोशिश करें तो साफ तौर पर लगता है कि बीजेपी दक्षिण भारत के वोटर से जुड़ने के लिए किस हद तक परेशान है.
और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुनने के बाद तो ऐसा ही महसूस हो रहा था जैसे बगैर नाम लिए वो 'भारत जोड़ो यात्रा' (Bharat Jodo Yatra) के किस्से सुना रहे हैं. आपको तो मालूम ही है, राहुल गांधी फिलहाल कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा पर ही निकले हुए हैं.
दक्षिण को साधने की कवायद काशी से
अपने ही संसदीय क्षेत्र में पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी अलग लग रहे थे. वैसे तो प्रधानमंत्री मोदी जहां भी जाते हैं, हमेशा ही स्थानीय लोगों से सीधे कनेक्ट होने की कोशिश करते हैं, लेकिन बनारस के लोगों के लिए ये नया अनुभव था.
काशी की धरती से दक्षिण भारत के लोगों से जुड़ने की बीजेपी की राजनीति कवायद
राजनीति भी काफी अजीब होती है. कई बार राजनीति अपनों के बीच भी अलग वेश भूषा धारण करने को मजबूर कर देती है - काशी तमिल संगमम् में हिस्सा लेने पहुंचे तो लगा जैसे वो चेन्नई का रास्ता भूल कर बनारस पहुंच गये हों.
बनारस की गलियों में तो हमेशा ही पूरा भारत नजर आता है. घाटों के किनारे वाले मोहल्लों से गुजरें तो पूरा भारत ही बसा नजर आता है. खान-पान से लेकर वेश-भूषा सब कुछ, जैसे कोई अद्भुत समागम हो - पंचक्रोशी की तो बात ही और है, अगर कोई उन गलियों में ही थोड़ी देर घूम ले तो लगता है जैसे किसी भारत जोड़ो यात्रा से लौटा हो.
उत्तर-दक्षिण समागम पर मोदी के 5 मंत्र: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया कि काशी तमिल संगमम् का आयोजन आजादी के अमृत काल में हो रहा है, और बोले, 'भारत वो राष्ट्र है जिसने स्वाभाविक सांस्कृतिक एकता को जिया है.' मोदी ने ये भी समझाया कि किस तरह पिछली सरकारों में उत्तर और दक्षिण को एक करने के लिए जरा भी प्रयास नहीं किये गये.
1. देश में संगमों का बड़ा महत्व रहा है... नदियों और धाराओं के संगम से लेकर विचारों और विचारधाराओं... ज्ञान-विज्ञान और समाजों-संस्कृतियों के हर संगम को हमने सेलीब्रेट किया है... काशी तमिल संगमम् अपने आप में विशेष और अद्वितीय है.
2. काशी में बाबा विश्वनाथ हैं तो तमिलनाडु में भगवान रामेश्वरम का आशीर्वाद है... काशी और तमिलनाडु दोनों शिवमय हैं... दोनों शक्तिमय हैं. एक स्वयं में काशी है, तमिलनाडु में दक्षिण काशी है.
3. काशी और तमिलनाडु संगीत, साहित्य और कला के महान केंद्र रहे हैं... काशी का तबला और तमिलनाडु का तनुमई प्रसिद्ध हैं. काशी की बनारसी साड़ी प्रसिद्ध है... और तमिलनाडु की कांजीवरम् सिल्क प्रसिद्ध है.
4. एक तरफ पूरे भारत को अपनेआप में समेटे काशी है, तो दूसरी ओर भारत की प्राचीनता और गौरव का केंद्र, हमारा तमिलनाडु और तमिल संस्कृति है... ये संगमम् भी गंगा-यमुना के संगम जितना ही पवित्र है.
5. तमिलनाडु में आज भी विवाह परंपरा में काशी यात्रा का जिक्र होता है... तमिलनाडु के महान कवि और लेखक सुब्रमण्यम भारती कई साल काशी में रहे... बीएचयू ने सुब्रमण्यम भारती के नाम से पीठ की स्थापना कर अपना गौरव और बढ़ाया है.
और फिर मोदी ने लगे हाथ राजनीतिक विरोधियों को भी खरी खोटी सुना दी, आजादी के बाद हजारों वर्षों की परंपरा और विरासत को मजबूत करना था, देश का एकता सूत्र बनाना था, लेकिन दुर्भाग्य से इसके लिए बहुत प्रयास नहीं किए गये.
तमिल भाषा की दिल खोल कर तारीफ
सरकारी तौर पर काशी तमिल संगमम् को इस रूप में भी प्रचारित किया जा रहा है कि ये तमिल जैसी प्राचीन भाषा के विकास में मददगार बनने वाला है लेकिन दक्षिण के कुछ लोग आयोजन को तमिल की जगह संस्कृत को बढ़ावा देने वाला बता रहे हैं - क्या इसलिए क्योंकि ये आयोजन वाराणसी में हो रहा है?
तमिल भाषा की तारीफ पहले भी कर चुके प्रधानमंत्री मोदी ने संगमम् में कहा, हमारे पास दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल है... आज तक ये भाषा उतनी ही पॉपुलर है... और उतनी ही जीवंत है... दुनिया में लोगों को जब पता चलता है कि विश्व की सबसे पुरानी भाषा भारत में है तो उन्हें आश्चर्य होता है.
दक्षिण भारत की विभूतियों का जिक्र कर मोदी वहां के लोगों से जुड़ने के लिए शिद्दत से प्रयासरत दिखे, मेरा अनुभव है... रामानुजाचार्य और शंकराचार्य से लेकर राजाजी और सर्वपल्ली राधाकृष्णन तक... दक्षिण के विद्वानों के भारत दर्शन को समझे बिना हम भारत को नहीं जान सकते.
आपको याद होगा बीजेपी नेता अमित शाह ने हिन्दी के इस्तेमाल को लेकर बयान दिया था तो दक्षिण भारत से जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई थी, ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी की तमिल भाषा की तारीफ विरोध करने वालों को बीजेपी की तरफ से कुछ नया न करने को लेकर यकीन दिलाने की कोशिश ही लगती है.
बीजेपी चली दक्षिण की ओर...
सरकारी तौर पर काशी तमिल संगमम् के आयोजन को चाहे जिस रूप में प्रचारित किया जाये, लेकिन बीजेपी की हैदराबाद कार्यकारिणी से आयीं तब की खबरों पर नजर डालें तो तस्वीर काफी हद तक साफ नजर आएगी - ये समागम भी बीजेपी के मिशन साउथ के रोड मैप का हिस्सा ही है.
दक्षिण भारत के केरल से आने वाली पीटी ऊषा, आंध्र प्रदेश से आने वाले विजयेंद्र प्रसाद, कर्नाटक के वीरेंद्र हेगड़े और तमिलनाडु के इलैयाराजा को राज्य सभा भेजा जाना भी तो उसी रणनीति हिस्सा है.
हाल फिलहाल देखें तो प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के निशाने पर अक्सर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ही नजर आते हैं, लेकिन ये नहीं भूलना चाहिये कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को भी बीजेपी उसी लूप में शामिल कर चुकी है - अगर ऐसा नहीं था तो तमिलनाडु से लोगों को बुलाकर महीना भर काशीवास कराने की क्या जरूरत थी?
तमिलनाडु की जरूरत तो 2024 में हैं लेकिन तेलंगाना से भी पहले कर्नाटक का नंबर आने वाला है. और बीजेपी को हर हाल में सत्ता में वापसी करनी है ताकि आगे चल कर 2019 जैसे रिजल्ट कर्नाटक में ला सके. तब बीजेपी ने कर्नाटक की 28 लोक सभा सीटों में से 25 जीत ली थी.
बीजेपी दक्षिण के जिन पांच राज्यों पर अभी फोकस कर रही है, उनमें कर्नाटक के अलावा केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु हैं - 2019 में कर्नाटक की 25 सीटों के अलावा दक्षिण भारत की 130 सीटों में बीजेपी महज पांच ही सीटों पर जीत हासिल कर सकी थी - काशी तमिल संगमम् 2024 के मंजिल का ही एक पड़ाव है.
इन्हें भी पढ़ें :
Modi को बनारस में 'मृत्यु' और पंजाब में 'जिंदा' बचने जैसी बातों की जरूरत क्यों है?
प्रधानमंत्री मोदी के वाराणसी रोड शो की तस्वीरों के मायने
मोदी के लिए बनारस और गुजरात में क्या कोई फर्क नहीं, जो तुरंत मोर्चा संभालना लिया?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.