प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुंहतोड़ जवाब देने में माहिर हैं. मोदी को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि टारगेट पर कौन है. निशाने पर जो भी उसे उसीकी भाषा में जवाब देना मोदी को बखूबी आता है.
मेरठ से कोरापुट तक प्रधानमंत्री मोदी विपक्ष को कभी नाम लेकर तो कभी बगैर नाम लिये या कभी 'सराब' जैसा नया नाम देकर हमला बोल रहे हैं. लोगों से सवाल जवाब करते हुए प्रधानमंत्री जहां भी जा रहे हैं पूछ रहे हैं - देश को मजबूत सरकार चाहिये कि नहीं चाहिये? दुश्मनों के घर में घुस कर मारने वाली सरकार चाहिये कि नहीं चाहिये?
मिशन शक्ति को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा पर विवाद हो रहा है. सवाल उठ रहा है कि जो घोषणा कोई अधिकारी भी कर सकता था, उसके लिए प्रधानमंत्री खुद क्यों आगे आये? चुनाव आयोग भी विचार कर रहा है कि मोदी का ये कदम आचार संहिता के दायरे में आता है या नहीं. मोदी के विरोधियों का मानना है कि राहुल गांधी के न्याय स्कीम से ध्यान हटाने के लिए ऐसा किया गया.
जब मिशन शक्ति का क्रेडिट कांग्रेस ने लेने की कोशिश की तो बीजेपी की तरफ से कहा गया कि पिछली सरकार ने वैज्ञानिकों को अनुमति ही नहीं दी. प्रधानमंत्री मोदी भी कह रहे हैं कांग्रेस सरकार हर मामले को टाल देती है - और फिर पूछते हैं देश को निर्णय लेने वाली सरकार चाहिये कि नहीं चाहिये? सवालों के पूछने का मोदी का अंदाज भी ऐसा होता है कि भीड़ की ओर से नहीं बोलने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. सवाल-जवाब के बीच मोदी चुनावी रैलियों में लोगों को बताते जा रहे हैं कि बूथ पर जब वोट डालने जायें तो उनके सवाल जरूर याद रखें और उसी हिसाब से बटन दबाएं - कमल के फूल पर.
अपनी चीजों की मार्केटिंग की कोशिश तो राहुल गांधी भी करते हैं, लेकिन यूनीक आइडिया के कारण मोदी कामयाब रहते हैं और राहुल कॉपी करके चूक जाते हैं - अब यूनिक और कॉपी में जैसा फर्क होता है, नतीजे भी तो वैसे ही होंगे.
हमले जो सियासी हथियार बने
प्रधानमंत्री बनने से पहले ही नरेंद्र मोदी सियासी हमलों को अपने बचाव में हथियार बनाने...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुंहतोड़ जवाब देने में माहिर हैं. मोदी को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि टारगेट पर कौन है. निशाने पर जो भी उसे उसीकी भाषा में जवाब देना मोदी को बखूबी आता है.
मेरठ से कोरापुट तक प्रधानमंत्री मोदी विपक्ष को कभी नाम लेकर तो कभी बगैर नाम लिये या कभी 'सराब' जैसा नया नाम देकर हमला बोल रहे हैं. लोगों से सवाल जवाब करते हुए प्रधानमंत्री जहां भी जा रहे हैं पूछ रहे हैं - देश को मजबूत सरकार चाहिये कि नहीं चाहिये? दुश्मनों के घर में घुस कर मारने वाली सरकार चाहिये कि नहीं चाहिये?
मिशन शक्ति को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा पर विवाद हो रहा है. सवाल उठ रहा है कि जो घोषणा कोई अधिकारी भी कर सकता था, उसके लिए प्रधानमंत्री खुद क्यों आगे आये? चुनाव आयोग भी विचार कर रहा है कि मोदी का ये कदम आचार संहिता के दायरे में आता है या नहीं. मोदी के विरोधियों का मानना है कि राहुल गांधी के न्याय स्कीम से ध्यान हटाने के लिए ऐसा किया गया.
जब मिशन शक्ति का क्रेडिट कांग्रेस ने लेने की कोशिश की तो बीजेपी की तरफ से कहा गया कि पिछली सरकार ने वैज्ञानिकों को अनुमति ही नहीं दी. प्रधानमंत्री मोदी भी कह रहे हैं कांग्रेस सरकार हर मामले को टाल देती है - और फिर पूछते हैं देश को निर्णय लेने वाली सरकार चाहिये कि नहीं चाहिये? सवालों के पूछने का मोदी का अंदाज भी ऐसा होता है कि भीड़ की ओर से नहीं बोलने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. सवाल-जवाब के बीच मोदी चुनावी रैलियों में लोगों को बताते जा रहे हैं कि बूथ पर जब वोट डालने जायें तो उनके सवाल जरूर याद रखें और उसी हिसाब से बटन दबाएं - कमल के फूल पर.
अपनी चीजों की मार्केटिंग की कोशिश तो राहुल गांधी भी करते हैं, लेकिन यूनीक आइडिया के कारण मोदी कामयाब रहते हैं और राहुल कॉपी करके चूक जाते हैं - अब यूनिक और कॉपी में जैसा फर्क होता है, नतीजे भी तो वैसे ही होंगे.
हमले जो सियासी हथियार बने
प्रधानमंत्री बनने से पहले ही नरेंद्र मोदी सियासी हमलों को अपने बचाव में हथियार बनाने में महारत हासिल कर चुके थे. गुजरात विधानसभा चुनावों में जब कांग्रेस नेता मोदी और उनके लोगों के सीबीआई जांच में फंसे होने की दुहाई देते रहे तो मोदी कहा करते कि उनके खिलाफ सीबीआई भी चुनाव लड़ रही है. 2014 से अब तक देखा जाये तो 'चायवाला' से 'चौकीदार' तक मोदी हर हमले का मुंहतोड़ जवाब अपने तरीके से देते आ रहे हैं.
1. कर्ज से ज्यादा तो वसूली हो चुकी
राहुल गांधी और उनके साथी कांग्रेस नेता मोदी सरकार पर विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी जैसे बैंकों के बड़े कर्जदारों को देश से भगा देने का आरोप लगाते रहे हैं - मोदी ने यहां भी मुंहतोड़ जवाब दिया है. अब तक विजय माल्या से आखिरी मुलाकात पर अरुण जेटली सफाई देते रहे या फिर सरकार की तरफ से ये बताया जाता रहा है कि कानूनी सख्ती के कारण ऐसे कर्जदारों को भागना पड़ा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब नयी दलील के साथ कांग्रेस के आरोपों को काउंटर कर रहे हैं.
एक टीवी इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया है कि बैंकों के कर्ज से ज्यादा तो विजय माल्या से वसूली की जा चुकी है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'हमने विजय माल्या के कर्ज से तो ज़्यादा संपत्ति जब्त कर ली है. माल्या का कर्ज तो 9 हजार करोड़ था, लेकिन हमारी सरकार ने दुनिया भर में उनकी 14 हजार करोड़ की संपत्ति जब्त कर ली है.'
प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि भागते तो लोग पहले भी थे, लेकिन सरकारें नाम तक नहीं बताती थीं. मोदी के अनुसार केंद्र की बीजेपी सरकार ने कड़े कदम उठाये इसलिए ऐसे लोगों को भागने को मजबूर होना पड़ रहा है.
2. मेरे पास 250 जोड़ी कपड़े हैं
करीब तीन महीने बाद साल के दूसरे इंटरव्यू में मोदी से पूछा जाने वाला एक सवाल रहा - कांग्रेस नेताओं का इल्जाम है कि नरेंद्र मोदी के पास 250 जोड़ी कपड़े और जूते हैं. सोशल मीडिया पर विरोधियों द्वारा मोदी को 'परिधान मंत्री' कहे जाने की वजह भी यही है. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत दौरे के वक्त मोदी के एक सूट को लेकर भी खासा विवाद हुआ था. दरअसल, पूरे सूट पर जो धारियां रहीं वो नाम से बनी हुई थीं - नरेंद्र दामोदर मोदी.
कपड़ों के आरोपों पर मोदी बोले, 'जिस वक्त ये बयान आया उस दिन मेरी पब्लिक मीटिंग थी. मैंने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि मैं इस आरोप को स्वीकर करता हूं. आपने सुना होगा कि लोग भ्रष्टाचार करते हैं आप तय करिये कि आपको 250 करोड़ का गबन करने वाला PM चाहिये या 250 कपड़ों वाला. सारी जनता खड़ी हो गई और अगले दिन से कांग्रेस के आरोप बंद हो गये.'
काफी दिनों तक राहुल गांधी 'सूट बूट की सरकार' कह कर हमला बोलते रहे, लेकिन धीरे धीरे वो भी बंद हो गया. आरोप को स्वीकार कर उसी मोड़ से पलटवार मोदी की राजनीतिक स्टाइल बनती जा रही है.
3. गरीबी मुक्त भारत का नया फॉर्मूला
मोदी सरकार के किसान सम्मान स्कीम के जवाब में राहुल गांधी ने कांग्रेस की सरकार बनने पर गरीबों के खाते में 12 गुणा रकम पहुंचाने का वादा किया है. माना जा रहा है कि कांग्रेस की इस चाल ने बीजेपी नेतृत्व को मुश्किल में डाल दिया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोहे को लोहे से काटने वाले अंदाज में राजनीतिक विरोधी उन्मूलन कार्यक्रम चला दिया है. गरीबी को लेकर प्रधानमंत्री हर कार्यक्रम में कांग्रेस नेताओं को कठघरे में खड़े करने लगे हैं, 'नेहरू जी भी गरीबी की बात करते थे. इंदिरा जी भी गरीबी की बात करती थीं. राजीव जी भी गरीबी की बात करते थे. सोनिया जी भी गरीबी की बात करती थीं - और अब इनकी पांचवीं पीढ़ी भी गरीबी की बात कर रही है.'
गरीबी हटाने का मोदी का नया फॉर्मूला है - कांग्रेस को हटाओ, गरीबी अपनेआप खत्म हो जाएगी. ये 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नया वर्जन है.
4. मैं ही हूं चायवाला
खुद को सरेआम चायवाला मान लेने के सवाल पर भी नरेंद्र मोदी ने अपना पक्ष रखा है. मोदी का कहना है कि जैसे ही उन्होंने दिल्ली का रूख किया विरोधी उनकी निजी जिंदगी को उछालने लगे.
प्रधानमंत्री मोदी का कहना है, 'मैं गुजरात का सीएम रहा लेकिन आपने मेरे परिवार और चायवाले होने की बात नहीं सुनी होगी. जब मैं पीएम पद के लिए उम्मीदवार बनाया गया तो लोगों ने मेरे बचपन को खोजना शुरू किया. लोगों ने इनाम तक घोषित किये कि मोदी की हाथ की चाय पी है तो आओ हम इतना इनाम देंगे.'
ये कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर रहे जिन्होंने मोदी को पहली बार चायवाला बताया था - और फिर तो मोदी ने पूरी दुनिया घूम कर बता डाला - हां, मैं ही हूं चायवाला.
5. मैं भी चौकीदार
2018 के विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी अपनी रैलियों में लोगों से नारे लगवाते रहे - 'चौकीदार चोर है'. राहुल गांधी भी जहां भी जाते खुद 'चौकीदार...' बोलते और लोग पीछे से दोहराते, '...चोर है'.
जब राहुल गांधी ने ये कह दिया कि चौकीदारी ही भागीदार है, तो मोदी ने उसे भी लपक लिया और डंके की चोट पर कहने लगे - हां, मैं ही भागीदार हूं. मोदी के ये कदम उठाते ही कांग्रेस नेता ने कदम पीछे खींच लिये और भागीदार का जिक्र ही खत्म हो गया.
अब मोदी चौकीदार फिर से हथिया लिया है और रैलियों में नारे लगवाने लगे हैं - 'मैं भी चौकीदार हूं'. अब मोदी कह रहे हैं 'मैं भी...' तो लोग बोलते हैं, 'चौकीदार हूं'. ट्विटर पर तो खुद नरेंद्र मोदी के साथ साथ बीजेपी नेताओं और समर्थकों ने भी अपने नाम से पहले चौकीदार लिख रखा है. हां, सुब्रह्मण्यन स्वामी जैसे बीजेपी नेता भी हैं जिन्हें अब भी नाम में चौकीदार जोड़ने से परहेज है.
पल भर के लिए 'पप्पू' भी मान लिया
मोदी की तरह राहुल गांधी भी अपने खिलाफ आरोपों को हथियार में तब्दील की कोशिश कर चुके हैं - लेकिन अगले ही पल ऐसी गलती कर दी कि सब किया धरा चौपट हो गया. अविश्वास प्रस्ताव के दौरान संसद के घटनाक्रम को याद कर सकते हैं.
जिस तरह मोदी ने चायवाले आरोप को स्वीकार कर अपनी ताकत बना ली, वैसे ही राहुल गांधी ने बताने की कोशिश की कि अगर कोई उन्हें पप्पू समझता है तो ठीक है, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता - लेकिन राहुल गांधी इसे 'यूज एंड थ्रो' से ज्यादा अहमियत नहीं दी और किसी तरह का फायदा उठाने में नाकाम रहे.
'चायवाला' और 'चौकीदार' में एक बड़ा फर्क है. मोदी को चायवाला कांग्रेस की ओर से बताया गया था - जबकि चौकीदार मोदी ने अपने लिए खुद ही कहा था.
कांग्रेस नेतृत्व ने राफेल के बहाने चौकीदार नाम लेकर मोदी सरकार को भ्रष्टाचार के मामले में घसीटने की कोशिश की. 2018 के विधानसभा चुनावों में 'चौकीदार चोर है', इसलिए भी काम कर गया क्योंकि बीजेपी ने इसे खास तवज्जो नहीं दी - अब तो मोदी ने इसे पूरी तरह अपना लिया है. ऐसे अपनाया है जो उनका मजबूत आवरण बन चुका है. मोदी के समर्थक भी बोलने लगे हैं - मैं भी चौकीदार.
राहुल गांधी को मालूम है कि यूपीए-दो सरकार भी भ्रष्टाचार के कारण गयी थी. भ्रष्टाचार के खिलाफ ही योद्धा बन कर केजरीवाल राजनीति में आये और स्थापित भी हो गये. लगता है राहुल गांधी ये नहीं समझ पाये कि मोदी के खिलाफ जिस हथियार का वो इस्तेमाल करने जा रहे हैं - वो मिस फायर हो सकता है.
मुमकिन है राहुल गांधी मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को कठघरे में खड़ा करते तो वैसी ही सफलता मिल सकती थी, जैसी किसानों की कर्जमाफी से मिली, लेकिन राहुल ने मोदी के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाने की कोशिश की - ये आरोप तेल पर पानी की तरह फिसल गया.
राहुल गांधी ने यूपीए-दो की हार के पीछे दो गलतियां खोजी थी - एक, रोजगार के मसले को नजरअंदाज करना और दो, सरकार की योजनाओं की मार्केटिंग में पिछड़ जाना. राहुल गांधी ने मार्केटिंग की भी कोशिश की और काउंटर प्रोडक्ट भी लेकर आये.
जब कांग्रेस की कर्जमाफी की काट में बीजेपी ने 6000 वाली किसान सम्मान स्कीम लायी तो राहुल गांधी गरीबों के खाते में पैसे डालने की बातें शुरू कर दिये. कुछ दिनों तक अपनी गरीब स्कीम का प्रचार करने के बाद अब 'न्यूनतम आय योजना' की घोषणा भी कर दी है, जितना बीजेपी सरकार एक साल में देगी उतना कांग्रेस सरकार हर महीने देगी - 72 हजार सालाना. वैसे सीपीएम ने तो हर महीने कांग्रेस के भी तीन गुणा देने का वादा कर डाला है.
राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी को बहस की चुनौती तो देते हैं, लेकिन खुद ही कह भी देते हैं कि वो बढ़िया बोलते हैं. ऐसा भी नहीं कि राहुल गांधी बोल नहीं पाते और हर जगह उन्हें लिखे हुए नोट की ही जरूरत पड़ती है - चेन्नई के स्टेला मैरिस कॉलेज में छात्राओं से राहुल गांधी की बातचीत इसका बेहतरीन नमूना है. हर किसी का अपना कंफर्ट जोन और लेवल होता है, राहुल गांधी के साथ भी ऐसा लगता है.
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि मिशन शक्ति का काम 2012 में ही पूरा हो चुका था. सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर भी कांग्रेस नेताओं का यही कहना रहा कि ये सब मनमोहन सरकार में भी होता रहा - लेकिन हर मामले में खामोशी हजार जवाबों से अच्छी कैसे हो सकती है? मोदी सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक को भी उपलब्धि की तरह पेश किया और मिशन शक्ति की कामयाबी को भी - ये तो बस अपनी अपनी सियासी स्टाइल है.
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