राजनीति टाइमिंग का खेल है और राजनेता के लिए ये बेहद ज़रूरी भी है कि उसकी टाइमिंग अच्छी हो. चाहे सत्ता पक्ष हो या फिर विपक्ष, सभी इस बात के कायल हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टाइमिंग बहुत अच्छी है. प्रधानमंत्री बनने के बाद कई ऐसे मौके आए हैं जब अपने द्वारा लिए गए "ऑन द स्पॉट" फैसले से मोदी ने न सिर्फ विपक्ष को बल्कि मीडिया तक को हैरत में डाल दिया.
वर्तमान परिपेक्ष में, आज आम लोगों के अलावा राजनेता तक ये मान चुके हैं कि जब तक कोई नरेंद्र मोदी के एक फैसले को समझे वो दूसरा फैसला ले लेते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, एक स्थानीय समाचार पत्र के प्लैटिनम जुबली समारोह और डॉ. टीवी सोमनाथन की बेटी की शादी में शामिल होने के सिलसिले में तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में थे.
कोई आम आदमी हो तो वो यही सोचेगा कि इतना कर मोदी वापस चले जाएंगे. मगर नहीं ऐसा नहीं हुआ. प्रधानमंत्री ने तब सबको हैरत में डाल दिया जब वो तमिलनाडु की सियासत में मजबूत पकड़ रखने वाले डीएमके नेता और वरिष्ठ राजनीतिज्ञ एम करुणानिधि से मिलने उनके आवास पर चले गए. मोदी और लम्बे समय से बीमार चल रहे करुणानिधि की ये मुलाकात करीब 10 मिनट तक चली, इस मुलाकात में मोदी ने करूणानिधि को अपने आवास पर आने का न्योता दिया और वहां आराम करने का आग्रह भी किया.
गौरतलब है कि, मोदी और एम करुणानिधि की इस मुलाकात ने उन राजनीतिक विशेषज्ञों को भी आश्चर्य में डाल दिया है जिनका मानना था कि तमिलनाडु में बीजेपी, डीएमके की धुर विरोधी और एआईएडीएमके के करीब है और जहां हमेशा ही डीएमके केंद्र सरकार की नीतियों की कट्टर आलोचक रही है. बताया जा रहा है कि करुणानिधि के बेटे और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष एम. के. स्टालिन,...
राजनीति टाइमिंग का खेल है और राजनेता के लिए ये बेहद ज़रूरी भी है कि उसकी टाइमिंग अच्छी हो. चाहे सत्ता पक्ष हो या फिर विपक्ष, सभी इस बात के कायल हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टाइमिंग बहुत अच्छी है. प्रधानमंत्री बनने के बाद कई ऐसे मौके आए हैं जब अपने द्वारा लिए गए "ऑन द स्पॉट" फैसले से मोदी ने न सिर्फ विपक्ष को बल्कि मीडिया तक को हैरत में डाल दिया.
वर्तमान परिपेक्ष में, आज आम लोगों के अलावा राजनेता तक ये मान चुके हैं कि जब तक कोई नरेंद्र मोदी के एक फैसले को समझे वो दूसरा फैसला ले लेते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, एक स्थानीय समाचार पत्र के प्लैटिनम जुबली समारोह और डॉ. टीवी सोमनाथन की बेटी की शादी में शामिल होने के सिलसिले में तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में थे.
कोई आम आदमी हो तो वो यही सोचेगा कि इतना कर मोदी वापस चले जाएंगे. मगर नहीं ऐसा नहीं हुआ. प्रधानमंत्री ने तब सबको हैरत में डाल दिया जब वो तमिलनाडु की सियासत में मजबूत पकड़ रखने वाले डीएमके नेता और वरिष्ठ राजनीतिज्ञ एम करुणानिधि से मिलने उनके आवास पर चले गए. मोदी और लम्बे समय से बीमार चल रहे करुणानिधि की ये मुलाकात करीब 10 मिनट तक चली, इस मुलाकात में मोदी ने करूणानिधि को अपने आवास पर आने का न्योता दिया और वहां आराम करने का आग्रह भी किया.
गौरतलब है कि, मोदी और एम करुणानिधि की इस मुलाकात ने उन राजनीतिक विशेषज्ञों को भी आश्चर्य में डाल दिया है जिनका मानना था कि तमिलनाडु में बीजेपी, डीएमके की धुर विरोधी और एआईएडीएमके के करीब है और जहां हमेशा ही डीएमके केंद्र सरकार की नीतियों की कट्टर आलोचक रही है. बताया जा रहा है कि करुणानिधि के बेटे और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष एम. के. स्टालिन, राज्यसभा सांसद कणिमोझी के साथ दरवाजे पर पीएम को रिसीव करने पहुंचे और फिर ये लोग इन्हें छोड़ने भी आए.
हालांकि पार्टी भले ही इसे एक साधारण मुलाकात कहे मगर इस मुलाकात के मायने कहीं गहरे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री की करुणानिधि से ये मुलाकात तमिलनाडु की पूरी राजनीति का खाका बदल सकती है. ध्यान रहे कि पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की मृत्यु के बाद खुद एआईएडीएमके दो धड़ों में बंट गयी है, जिसमें पहला धड़ा सीएम पलानिसामी और ओ. पन्नीरसेल्वम के नेतृत्व वाला है, जबकि दूसरा धड़ा शशिकला के नेतृत्व वाला है. और राजनीति में ये किसी से छुपा नहीं है कि पलनिसामी और पन्नीर धड़े को एक करने में बीजेपी की भूमिका अहम है.
हम ऊपर बता चुके हैं, प्रधानमंत्री कई आश्चर्यजनक फैसले लेकर अपनी यात्राओं में फेर बदल कर लोगों को हैरत में डालते हैं. याद शायद आपको भी हो इससे पहले भी 2015 में भी प्रधानमंत्री ने लोगों को तब हैरत में डाला था जब वो अचानक ही पाकिस्तान चले गए थे और वहां उन्होंने नवाज शरीफ से मुलाकात कर उनका हाल चाल लिया था. उधर प्रधानमंत्री नवाज का हाल चाल ले रहे थे इधर आलोचकों को सांप सूंघ गया था और उनको ये समझ नहीं आ रहा था कि अब वो किन बिन्दुओं को उठाकर प्रधानमंत्री की आलोचना करें.
बहरहाल भले ही इस मुलाकात से मोदी के आलोचकों के मुंह पर ताला जड़ गया हो मगर खुद पाकिस्तान के अलगाववादी नेताओं ने इसे 'अंतर्राष्ट्रीय संबंधों' के लिहाज से एक अच्छी पहल माना था और इस मुलाकात का स्वागत किया था. खैर इस मुलाकात से 'अंतर्राष्ट्रीय संबंध' कितने मजबूत बने ये कहना अभी जल्दबाजी है. मगर हां इतना तो है कि लोगों ने ये जान लिया है कि प्रधानमंत्री के फैसलों पर संदेह जताने के लिए आपको प्रधानमंत्री जैसा दिमाग चाहिए.
वैसा दिमाग, जिसने उस समय विरोधियों को हैरत में डाल पुनः उनका मुंह बंद कर दिया था जब उन्होंने 2015 में, मोदी को दिल्ली में लालू यादव की बेटी और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के भतीजे की शादी में देखा था. आज मोदी और लालू का रिश्ता कैसा है ये सबने देखा है. रही बात मुलायम की तो उनके बारे में ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि वो पहले भी मोदी सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धुर विरोधी थे और आज भी हैं.
अंत में ये कहते हुए अपनी बात खत्म करना सही रहेगा कि भले ही आज राहुल, सोनिया, केजरीवाल, अखिलेश समेत मोदी के तमाम अलोचक उनकी तीखी आलोचना और कड़ी निंदा करें मगर अंतर्मन के किसी कोने में कहीं न कहीं ये बात वो भी जानते हैं कि मोदी के फैसलों पर संदेह जताना या फिर वैसे फैसले लेना उनके बस की बात नहीं. साथ ही ये बात ये लोग भी अच्छे से जानते हैं कि राजनीति में मोदी की टाइमिंग अच्छी है और अपनी खराब टाइमिंग के कारण ही ये लोग कुछ मामलों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आगे नहीं निकल पा रहे.
ये भी पढ़ें -
गुजरात में महाभारत की कहानी सुनाकर राहुल ने तो कांग्रेस को और उलझा दिया
बीजेपी के गढ़ दक्षिण गुजरात में कांग्रेस सेंध लगा पायेगी?
राहुल गांधी का Pidi : भारतीय राजनीति में कुत्तों का महत्व
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.