आपको हर नुक्कड़ पर एक चाय वाला मिल जायेगा. हर चाय वाले के ठेले पर गरीब और आम इंसान का जमावड़ा दिखेगा. एक दो करोड़ नही बल्कि कई करोड़ की गरीब आबादी का गरीब चाय वालों और उनकी चाय पीने का रिश्ता है. इसी तरह देश के हर चार घरों में एक पप्पू भी जरूर मिलेगा. पप्पू और उससे जुड़े परिवार के सदस्यों की संख्या भी करोड़ों मे हैं. अस्सी प्रतिशत आम और गरीब भारतीय आबादी भावना प्रधान है. ये बहुसंख्य आबादी उसकी तरह खिचती है जो उसका जैसा हो, या उनसे समानता का कोई रिश्ता हो.
सबसे पहले नरेंद्र मोदी को कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर ने चाय वाला बोला. मोदी जी ने इसे कांग्रेस का आर्शीवाद समझकर इसका प्रचार खुद भी शुरू कर दिया. और फिर तो लाखों गरीब चाय वाले और उनके फुटपाथी ठेले पर चाय पीने वाले कई करोड़ आम भारतीय भी मोदी की लोकप्रियता के अध्याय से जुड़ते गये. क्योंकि कमजोर तबका भी ये चाहता है कि उनके बीच का आदमी आगे बढ़े, तरक्की करे. मोदी को आम जनता ने जब अपना हीरो मानना शुरु किया उस वक्त इस भाजपा नेता की चाय वाले की ग्राउंड के फलसफे ने अपना बड़ा असर दिखाया था.
ये एक मानव प्रवृत्ति, मनोविज्ञान या इंसानी फितरत है
एक दूसरे किस्म की भी मानव प्रवृत्ति है. अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने की प्रवृत्ति. ऐसी हरकत अक्लमंदों से भी हो जाती है. डाल पर बैठकर उसी डाल को काटने वाले कालीदास महाकवि, ज्ञानी और बुद्धिमान थे. इस सच के दर्शन को समझये तो लगता है कि कभी-कभी अक्लमंदी भी मूर्खता करके अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार लेता है. ऐसा दर्शन अक्सर सियासत में भी नजर आता है. कांगेसियों और नरेंद्र मोदी विरोधियों ने मोदी को चाय वाला कहा तो वो देश के सशक्त प्रधानमंत्री बन...
आपको हर नुक्कड़ पर एक चाय वाला मिल जायेगा. हर चाय वाले के ठेले पर गरीब और आम इंसान का जमावड़ा दिखेगा. एक दो करोड़ नही बल्कि कई करोड़ की गरीब आबादी का गरीब चाय वालों और उनकी चाय पीने का रिश्ता है. इसी तरह देश के हर चार घरों में एक पप्पू भी जरूर मिलेगा. पप्पू और उससे जुड़े परिवार के सदस्यों की संख्या भी करोड़ों मे हैं. अस्सी प्रतिशत आम और गरीब भारतीय आबादी भावना प्रधान है. ये बहुसंख्य आबादी उसकी तरह खिचती है जो उसका जैसा हो, या उनसे समानता का कोई रिश्ता हो.
सबसे पहले नरेंद्र मोदी को कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर ने चाय वाला बोला. मोदी जी ने इसे कांग्रेस का आर्शीवाद समझकर इसका प्रचार खुद भी शुरू कर दिया. और फिर तो लाखों गरीब चाय वाले और उनके फुटपाथी ठेले पर चाय पीने वाले कई करोड़ आम भारतीय भी मोदी की लोकप्रियता के अध्याय से जुड़ते गये. क्योंकि कमजोर तबका भी ये चाहता है कि उनके बीच का आदमी आगे बढ़े, तरक्की करे. मोदी को आम जनता ने जब अपना हीरो मानना शुरु किया उस वक्त इस भाजपा नेता की चाय वाले की ग्राउंड के फलसफे ने अपना बड़ा असर दिखाया था.
ये एक मानव प्रवृत्ति, मनोविज्ञान या इंसानी फितरत है
एक दूसरे किस्म की भी मानव प्रवृत्ति है. अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने की प्रवृत्ति. ऐसी हरकत अक्लमंदों से भी हो जाती है. डाल पर बैठकर उसी डाल को काटने वाले कालीदास महाकवि, ज्ञानी और बुद्धिमान थे. इस सच के दर्शन को समझये तो लगता है कि कभी-कभी अक्लमंदी भी मूर्खता करके अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार लेता है. ऐसा दर्शन अक्सर सियासत में भी नजर आता है. कांगेसियों और नरेंद्र मोदी विरोधियों ने मोदी को चाय वाला कहा तो वो देश के सशक्त प्रधानमंत्री बन गये. हारे हुए राहुल गांधी को भाजपा समर्थकों ने पप्पू कहना शुरू किया तो पप्पू नाम राहुल गांधी की सफलता के पंख के रूप में नजर आने लगा.
जिन दिनों दशकों से देश की सियासी जमीन में जड़ें जमाये कांगेस हुकूमत का वट वृक्ष बन कर भाजपा को लगातार परास्त करती आ रही थी तब भाजपा ने एक मुद्दे को लेकर अपनी जमीन तलाशना शुरू की थी. भाजपा ने जनता को अहसास दिलाना शुरू किया कि नेहरू परिवार लोकतांत्रिक व्यवस्था को आहत करके राजशाही चला रहा है. पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी और फिर राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने.
फिर कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर काबिज होकर सोनिया गांधी ने कांग्रेस के प्रधानमंत्री को कठपुतली बनाकर देश पर बादशाहत चलायी. अब कांग्रेस का शहजादा राहुल देश पर बादशाहत चलाने के लिए भारत का प्रधानमंत्री बनना चाहता है. इस दौरान ही भाजपाइयों ने शहजादे को पप्पू का खिताब देकर राहुल गांधी की विफलताओं की बेड़ियां खोल दीं. जिस राहुल गांधी की छवि ऐसे शहजादे से जोड़ने की कोशिश की थी जो आम जनता से दूर रहता है. गरीब और आम इंसान के दुख-दर्द से कोई मतलब नहीं रखता. इस शहजादे को भाजपाइयों ने पप्पू कहकर देश के आम जनमानस का प्रतीक बना दिया.
सच पूछिए तो किसी को पप्पू कहना उनका मजाक उड़ाना नहीं बल्कि उसे अपना बनाना जैसा है. पप्पू कहना अपमान नहीं सम्मान है. पप्पू नाम भारतीयता और मध्यम वर्ग का प्रतीक है. क्योंकि इस देश की अस्सी प्रतिशत आम आबादी में सबसे कामन, सबसे अधिक और सबसे प्रचलित नामों में पप्पू नाम आता है. पप्पू के अतिरिक्त मुन्ना, राम और मोहम्मद जैसे आठ-दस नाम सबसे बड़ी संख्या मे हैं और प्रचलित हैं.
ऐसे नाम भारतीयता का प्रतीक है जो आम जनमानस को अपनेपन से जोड़ते हैं. पप्पू नाम मां के ममतामयी स्नेह, प्यार और दुलार का प्रतीक है. राहुल गांधी की सियासत की तरक्की की रूकावट बनी उनकी शहजादे की छवि का वृक्ष खुद भाजपाइयों ने पप्पू नाम की कुल्हाड़ी से काटने की भूल कर दी.
पप्पू जैसे जुमलों के साथ जब राहुल का मजाक उड़ाना शुरु हुआ तो राहुल गांधी स्वाभाविक रूप से आक्रामक हो गये. कांग्रेस की संस्कृति वाले शालीन और सौम्य राहुल गांधी को वक्त और मौके ने तक़ाज़े ने खुद को बदलने पर मजबूर कर दिया. पप्पू के ताने खाकर राहुल एंग्री यंग मैन वाली शख्सियत के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे कुशल वक्ता के मुकाबला में ईट का जवाब पत्थर से देने लायक बन गये.
ये सब खासियतें शहजादे राहुल में नहीं थी.राहुल गांधी को पप्पू का खिताब मिलने के बाद कांग्रेस के युवराज की शख्सियत में धार पैदा होती गयी. और इस तरह भाजपाइयों ने राहुल गांधी को एक कुशल राजनेता बनाकर प्रधानमंत्री पद की रेस में आगे बढ़ा दिया. उस तरह ही जिस तरह कांगेसियों ने नरेंद्र मोदी को चाय वाला का ताना देकर देश का सशक्त प्रधानमंत्री बनने में मदद की थी.
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