दिल्ली के विज्ञान भवन में मोहन भागवत के भाषण के साथ ही संघ का कार्यक्रम समाप्त हो गया. हिंदुत्व से लेकर 'कांग्रेस मुक्त भारत' के जुमलों तक मोहन भागवत ने सभी मुद्दों पर संघ की राय का खुलकर इजहार किया. ऐसे तो संघ इस तरह के कार्यक्रम करता रहता है लेकिन इस बार संघ प्रमुख ने लोगों के सवालों का न सिर्फ जवाब दिया बल्कि उन मुद्दों पर भी संघ की राय बताई जिन पर बोलने से अभी तक संघ बचता रहा है. संघ प्रमुख ने मुस्लिमों के बिना हिंदुत्व की अवधारणा को ही खारिज कर दिया. मोहन भागवत के अनुसार कांग्रेस मुक्त भारत के जुमले से संघ का कोई सरोकार नहीं है, संघ के कार्यकर्ता किसी भी पार्टी को वोट दे सकते हैं. समर्थक हो या विरोधी संघ सभी को अपना मानता है. संघ प्रमुख के विचारों से लग रहा था कि संघ अब खुद की विचारधारा को मुख्यधारा में लाने की कोशिश कर रहा है. हिन्दुओं के लिबरल जमात को संघ अपने साथ जोड़ने की कोशिश करता नजर आया.
अपने भाषण के बाद संघ प्रमुख ने लोगों के सवालों के जवाब दिए जिनमें उन्होंने समलैंगिकता से लेकर जाति प्रथा और अंतरजातीय विवाह से लेकर संघ और समाज में महिलाओं की भागीदारी पर अपने विचार रखे. आइये जानते हैं ऐसे तमाम मुद्दों पर संघ प्रमुख की क्या राय थी.
अंतरजातीय विवाह
मोहन भागवत ने सामाजिक एकता के लिए अंतरजातीय विवाह को समाज का सबसे मजबूत पक्ष बताया. उन्होंने रोटी और बेटी के सम्बन्ध पर जोर देते हुए कहा कि देश में पहला अंतरजातीय विवाह महाराष्ट्र में 1942 में हुआ. इस शादी के बाद शुभकामना सन्देश देने वालों में संविधान निर्माता भीमराव आंबेडकर के साथ संघ के दूसरे सरसंघचालक माधव राव सदाशिव गोलवलकर उर्फ गुरु जी भी थे. जिसमें उन्होंने वर और वधु को अपना...
दिल्ली के विज्ञान भवन में मोहन भागवत के भाषण के साथ ही संघ का कार्यक्रम समाप्त हो गया. हिंदुत्व से लेकर 'कांग्रेस मुक्त भारत' के जुमलों तक मोहन भागवत ने सभी मुद्दों पर संघ की राय का खुलकर इजहार किया. ऐसे तो संघ इस तरह के कार्यक्रम करता रहता है लेकिन इस बार संघ प्रमुख ने लोगों के सवालों का न सिर्फ जवाब दिया बल्कि उन मुद्दों पर भी संघ की राय बताई जिन पर बोलने से अभी तक संघ बचता रहा है. संघ प्रमुख ने मुस्लिमों के बिना हिंदुत्व की अवधारणा को ही खारिज कर दिया. मोहन भागवत के अनुसार कांग्रेस मुक्त भारत के जुमले से संघ का कोई सरोकार नहीं है, संघ के कार्यकर्ता किसी भी पार्टी को वोट दे सकते हैं. समर्थक हो या विरोधी संघ सभी को अपना मानता है. संघ प्रमुख के विचारों से लग रहा था कि संघ अब खुद की विचारधारा को मुख्यधारा में लाने की कोशिश कर रहा है. हिन्दुओं के लिबरल जमात को संघ अपने साथ जोड़ने की कोशिश करता नजर आया.
अपने भाषण के बाद संघ प्रमुख ने लोगों के सवालों के जवाब दिए जिनमें उन्होंने समलैंगिकता से लेकर जाति प्रथा और अंतरजातीय विवाह से लेकर संघ और समाज में महिलाओं की भागीदारी पर अपने विचार रखे. आइये जानते हैं ऐसे तमाम मुद्दों पर संघ प्रमुख की क्या राय थी.
अंतरजातीय विवाह
मोहन भागवत ने सामाजिक एकता के लिए अंतरजातीय विवाह को समाज का सबसे मजबूत पक्ष बताया. उन्होंने रोटी और बेटी के सम्बन्ध पर जोर देते हुए कहा कि देश में पहला अंतरजातीय विवाह महाराष्ट्र में 1942 में हुआ. इस शादी के बाद शुभकामना सन्देश देने वालों में संविधान निर्माता भीमराव आंबेडकर के साथ संघ के दूसरे सरसंघचालक माधव राव सदाशिव गोलवलकर उर्फ गुरु जी भी थे. जिसमें उन्होंने वर और वधु को अपना आशीर्वाद भेजते हुए सामाजिक एकता के लिए उनकी तारीफ की थी.
धर्म-परिवर्तन
जो लोग कहते हैं कि सभी धर्म एक समान हैं, वही धर्म परिवर्तन भी करवा रहे हैं. जब सभी धर्म एक समान हैं तो सवाल उठता है कि आप लोगों को इधर से उधर क्यों ले जा रहे हैं. धर्म-परिवर्तन किसी भी इंसान की आध्यात्मिक उन्नति के लिए नहीं होता. छल और कपट के द्वारा किया गया धर्म-परिवर्तन गलत होता है और संघ ऐसे धर्म-परिवर्तन के ख़िलाफ़ है. स्वेच्छा से किया गया धर्मपरिवर्तन से संघ को कोई दिक्कत नहीं है. आदमी किसी भी मार्ग को चुनकर आध्यात्म के शीर्ष पर पहुँच सकता है.
गौ-रक्षा और मॉब लिंचिंग
न सिर्फ़ गाय के लिए, बल्कि अन्य किसी भी वजह से क़ानून को अपने हाथ में लेना अपराध है. गाय के जितने सारे उपयोग हैं, उन्हें कैसे अपनाया जाये, इसपर काम होना चाहिए. जो लोग इस तरह से सोच रहे हैं वो लिंचिंग करने वाले नहीं है. अच्छी गौशालायें चलाने वाले, भक्ति से चलाने वाले लोग हमारे यहाँ हैं, मुस्लिम भी इसमे शामिल हैं. जो लोग तस्करी कर रहे हैं, वो ही गाय के नाम पर हिंसा कर रहे हैं. संघ का मानना है कि गाय ही ऐसा पशु है जो देश में ग़रीब लोगों के लिए आर्थिक सहायक साबित हो सकती है.
जाति-व्यवस्था
संघ का विचार है कि 'जाति-व्यवस्था' को 'जाति-अव्यवस्था' कहा जाना चाहिए. जाति-व्यवस्था को भगाने में लगे रहेंगे तो वो नहीं जायेगी. उसके बदले कोई बेहतर व्यवस्था लायेंगे, तो उसका अंत होगा. इसलिए अंधेरे में लाठी चलाने से बेहतर है, दीप जलाये जाएं. इसी आधार पर 'रोटी-बेटी व्यवहार' का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थन करता है. रोटी व्यवहार तो कुछ लोग अब मजबूरी में भी रखने लगे हैं, लेकिन ये मन से होना चाहिए. बेटी व्यवहार को लेकर अभी कई तरह की चुनौतियाँ हैं. हालांकि, भारत में गणना करवाकर प्रतिशत निकाला जाये तो संघ के स्वयंसेवकों में अंतरजातीय विवाह करने वालों का प्रतिशत सबसे ज़्यादा मिलेगा.
हिंदुत्व
गांधी जी ने कहा है कि सत्य की अनवरत खोज का नाम हिंदुत्व है. सतत चलने वाली प्रक्रिया है. हिंदुत्व को हिंदुइज़्म नहीं कहना चाहिए. भारत में जो लोग रहते हैं वो सभी राष्ट्रीयता और पहचान की दृष्टि से हिंदू ही हैं. जनजातीय समाज भी हिंदू ही हैं. हिंदुत्व ही है जो सबके साथ तालमेल का आधार हो सकता है. हिन्दुत्व को लेकर दुनिया भर में सम्मान का भाव है और उसकी स्वीकृति है जबकि भारत में हिंदुत्व को लेकर आक्रोश है. ऐसा इसीलिए है क्योंकि लोगों ने हिंदुत्व के मूल स्वरुप को भुला दिया है. हिंदुत्व का मतलब एकता होता है.
शिक्षा
परंपराओं पर आधारित शिक्षा प्रणाली ज़्यादा प्रभावी थी जिसे हमने छोड़ दिया. इसलिए अपनी परंपरा के मुताबिक़ एक नई शिक्षा नीति बनानी चाहिए. देश में नई शिक्षा नीति आने वाली है, उम्मीद है उसमें हमारी परंपरा समाहित होगी. ग्रंथों का अध्ययन शिक्षा में अनिवार्य है, ऐसा संघ का मत है.
हिन्दी भाषा
मातृभाषाओं को सम्मान देना ज़रूरी है. अपनी भाषा का पूरा ज्ञान होना चाहिए. किसी भाषा से शत्रुता नहीं करनी चाहिए. अंग्रेजी हटाओ नहीं, यथास्थान रखो. देश की उन्नति के नाते हमारी राष्ट्रभाषा को स्थान मिले, यह ज़रूरी है. हिंदी में काम करना पड़ता है, इसलिये अन्य प्रांतों के लोग हिंदी सीखते हैं. हिंदी बोलने वालों को भी दूसरे प्रांत की एक भाषा को सीखना चाहिये. इससे लोगों में मन मिलाप जल्दी होगा.
समलैंगिकता
समाज के कुछ लोगों में समलैंगिकता है. ऐसे लोग समाज के अंदर ही हैं इसलिए समाज को इनकी व्यवस्था करनी चाहिए. मुद्दा बनाकर हो-हल्ला करने से फायदा नहीं होगा और समाज स्वस्थ रहे ताकि उन लोगों को अलग-थलग होकर गर्त में गिरने से बचाया जा सके.
कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न- आईचौक)
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