मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने अखंड भारत (Akhand Bharat) की डेडलाइन बता दी है - ज्यादा से ज्यादा 10 से 15 साल. ये अवधि तब के लिए है जब लोग मिलजुल कर प्रयास करें. अगर लोगों ने सम्मिलित प्रयास नहीं भी किया तो भी अखंड भारत बन कर ही रहेगा, बस ये अवधि डबल हो जाएगी.
मतलब, अगर लोगों ने अखंड भारत के निर्माण में सहयोग नहीं भी किया, तो भी ऐसा होकर ही रहेगा - हां, समय 20 से 25 साल तक लग सकते हैं, लेकिन कोई ये न सोचे कि ऐसा होना नामुमकिन है.
अगर कोई ऐसा सोचता भी है, किसी के दिमाग के किसी कोने में ऐसा संदेह पैदा भी होता है तो सरसंघचालक मोहन भागवत ने पहले ही साफ कर दिया है - रास्ते में जो आएगा, वो मिट जाएगा.
लेकिन ये कौन होगा जो मिट जाएगा?
या ऐसे लोगों को मिटा दिया जाएगा?
संघ प्रमुख भागवत ने बड़ी ही विनम्रता के साथ कहा है कि वो अहिंसा में विश्वास करते हैं, लेकिन संघ के प्रचारक के हाथों में एक लाठी भी होती है. वो लाठी शक्ति का सिंबल है - तो क्या हर भैंस एक ही लाठी से हांकने का प्लान है?
और ये लाठी अपनी शक्ति कहां तक दिखाने वाली है? क्या ये लाठी सरहदों के पार ललकार रही है? क्या ये अखंड भारत की राह में बाधा खड़ा करने वालों के लिए युद्ध (War) की कोई चेतावनी भी है?
देखा जाये तो अखंड भारत कोई नया कंसेप्ट नहीं है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात पहले से करता रहा है. मतलब, भारतीय संस्कृति के प्रभाव क्षेत्र वाले राष्ट्र की कल्पना. एक थ्योरी ये भी है कि अखंड भारत की कल्पना में भौगोलिक सरहदें बाधा नहीं हैं.
भौगोलिक दायरे में अलग अलग इकाइयों से फर्क नहीं पड़ता अगर वे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के रास्ते में बाधा बनने की कोशिश नहीं करतीं. जगह कोई भी हो, बस ये सुनिश्चित होना चाहिये कि संस्कृति के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिये.
थ्योरी को लागू करने में कम से कम दो बाधाएं हैं. देश की सरहद में तो ये लगभग लागू हो ही चुका है. क्योंकि सर्वोच्च संवैधानक पदों पर संघ की पृष्ठभूमि वाले लोग...
मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने अखंड भारत (Akhand Bharat) की डेडलाइन बता दी है - ज्यादा से ज्यादा 10 से 15 साल. ये अवधि तब के लिए है जब लोग मिलजुल कर प्रयास करें. अगर लोगों ने सम्मिलित प्रयास नहीं भी किया तो भी अखंड भारत बन कर ही रहेगा, बस ये अवधि डबल हो जाएगी.
मतलब, अगर लोगों ने अखंड भारत के निर्माण में सहयोग नहीं भी किया, तो भी ऐसा होकर ही रहेगा - हां, समय 20 से 25 साल तक लग सकते हैं, लेकिन कोई ये न सोचे कि ऐसा होना नामुमकिन है.
अगर कोई ऐसा सोचता भी है, किसी के दिमाग के किसी कोने में ऐसा संदेह पैदा भी होता है तो सरसंघचालक मोहन भागवत ने पहले ही साफ कर दिया है - रास्ते में जो आएगा, वो मिट जाएगा.
लेकिन ये कौन होगा जो मिट जाएगा?
या ऐसे लोगों को मिटा दिया जाएगा?
संघ प्रमुख भागवत ने बड़ी ही विनम्रता के साथ कहा है कि वो अहिंसा में विश्वास करते हैं, लेकिन संघ के प्रचारक के हाथों में एक लाठी भी होती है. वो लाठी शक्ति का सिंबल है - तो क्या हर भैंस एक ही लाठी से हांकने का प्लान है?
और ये लाठी अपनी शक्ति कहां तक दिखाने वाली है? क्या ये लाठी सरहदों के पार ललकार रही है? क्या ये अखंड भारत की राह में बाधा खड़ा करने वालों के लिए युद्ध (War) की कोई चेतावनी भी है?
देखा जाये तो अखंड भारत कोई नया कंसेप्ट नहीं है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात पहले से करता रहा है. मतलब, भारतीय संस्कृति के प्रभाव क्षेत्र वाले राष्ट्र की कल्पना. एक थ्योरी ये भी है कि अखंड भारत की कल्पना में भौगोलिक सरहदें बाधा नहीं हैं.
भौगोलिक दायरे में अलग अलग इकाइयों से फर्क नहीं पड़ता अगर वे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के रास्ते में बाधा बनने की कोशिश नहीं करतीं. जगह कोई भी हो, बस ये सुनिश्चित होना चाहिये कि संस्कृति के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिये.
थ्योरी को लागू करने में कम से कम दो बाधाएं हैं. देश की सरहद में तो ये लगभग लागू हो ही चुका है. क्योंकि सर्वोच्च संवैधानक पदों पर संघ की पृष्ठभूमि वाले लोग ही विराजमान हैं. दूसरी बाधा वो है जो हिंदुत्व के प्रभाव क्षेत्र के बाहर हैं. जो हिंदुत्व या सनातन धर्म को वैसा नहीं मानते जैसा संघ की तरफ से समझाने की कोशिश होती है.
अब तक हिंदू राष्ट्र को लेकर विमर्श चलता रहा, अब अखंड भारत की बात शुरू हो चुकी है - सवाल है कि ये अखंड भारत, हिंदू राष्ट्र से कितना अलग होगा? सबसे पहले समझना यही जरूरी है क्योंकि अखंड भारत का दायरा हिंदू राष्ट्र के मुकाबले काफी बड़ा लगता है.
1. संघ की डेडलाइन का आधार क्या है?
अखंड भारत की मुहिम शुरू होने का मतलब क्या समझा जाये? क्या हिंदू राष्ट्र का लक्ष्य हासिल हो चुका है?
हिंदू राष्ट्र पर बहस जारी है. विवाद है, इसलिए बहस हो रही है. विवाद इसलिए है क्योंकि हिंदू राष्ट्र को लेकर जबरदस्त विरोध भी है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कामकाज और मुहिम का एक हिस्सा परसेप्शन मैनेजमेंट भी समझ में आता है. एक एजेंडा सेट कर लोगों को समझाया जाता है. 2019 के आम चुनाव में बीजेपी के 'संपर्क फॉर समर्थन' के पीछे मंशा यही रही - और 2022 के यूपी चुनाव में 'राष्ट्रवाद के नाम पर वोट...' अभियान भी परसेप्शन मैनेजमेंट का ही पार्ट रहा.
लेकिन ऐसी कोशिशों को प्रभाव उसी पर होगा जो उन बातों को मानने को तैयार हो, जो समझायी जा रही हैं. पहले मानना होता है. बरसों भी लग जाते हैं. ऐसी बातें मनवाने में. संघ का यही अनवरत प्रयास ही आज हाई लेवल पर पहुंच चुका है.
मोहन भागवत के हाल के ज्यादातर भाषणों में हिंदू राष्ट्र की ध्वनि साफ सुनने को मिलती रही है. एक नमूना है, 'भारत हिंदू राष्ट्र है... इसे किसी के प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है... यहां रहने वाले सभी हिंदू हैं... यहां के मुसलमान भी अरब से नहीं आये... बल्कि यहीं के रहने वाले हैं... उनके पूर्वज भी हिंदू ही थे... हम सबका डीएनए एक है...'
हिंदू राष्ट्र की घोषणा नहीं हुई तो क्या, कभी भी हो जाएगी! तरीके तो बहुत हैं. सबसे बड़ा रास्ता तो संसद का है. जैसे बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर से जुड़ी धारी 370 को हटा दिया. संसद के अलावा अदालत का रास्ता भी है. धारा 35 ए को लेकर जम्मू-कश्मीर के नेता शोर मचाते रहे, डर था कि अदालत के रास्ते ऐसी कोशिश की जा रही है. अदालत में पैरवी करनी होती है. अपने केस के पक्ष में मजबूत दलील रखनी होती है. अदालत को संतुष्ट करना होता है. संसद में ये सब करने के लिए बहुमत की जरूरत होती है - और संघ के राजनीतिक फोरम के पास आज की तारीख में ये मैंडेट हासिल है.
अभी ये समझना थोड़ा मुश्किल हो रहा है कि मोहन भागवत ने अखंड भारत को लेकर जो डेडलाइन बतायी है, उसका एक्शन प्लान क्या हो सकता है - क्योंकि वो ज्योतिष की गणना से भी आगे है, और संतों के समय के आकलने से भी.
2. अखंड भारत का स्वरूप क्या होगा?
सबसे जरूरी तो यही समझना है कि अखंड भारत का स्वरूप क्या होगा? स्वरूप से आशय भौगोलिक दायरे से है. अखंड भारत की भौगोलिक सीमा रेखा क्या होगी?
अखंड भारत की अवधारणा में 1947 से पहले के भारत को माना जाता है. जब पाकिस्तान भी भारत का हिस्सा रहा. 1971 से पहले तक बांग्लादेश भी पाकिस्तान का ही हिस्सा रहा - तो क्या अखंड भारत का मतलब विभाजन से पहले वाले भारतीय क्षेत्र से होगा?
अगर इस अवधारणा के व्यापक स्वरूप को समझें तो उसमें अफगानिस्तान, म्यांमार और श्रीलंका तक समाहित समझा जा सकता है - नये स्वरूप में इसे सार्क देशों के एकाकार स्वरूप को भी देख सकते हैं.
क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 में शपथग्रहण के मौके पर सार्क मुल्कों के राष्ट्राध्यक्षों को बुलाने की भी यही वजह रही होगी?
3. क्या 15 साल में ये मुमकिन है?
मोहन भागवत ने अखंड भारत की जो सीमारेखा तय कर दी है, वो संतों की सोच और ज्योतिषीय गणना से भी परे है. जाहिर है इसके लिए स्पेशल इंतजाम करने होंगे.
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का कहते हैं, 'वैसे तो संतों की ओर से, ज्योतिष के अनुसार, 20 से 25 साल में भारत फिर से अखंड भारत होगा ही... अगर हम सब मिलकर इस कार्य की गति बढ़ाएंगे तो 10 से 15 साल में भारत अखंड भारत बन जाएगा.'
अब सवाल ये उठता है कि 15 साल में लोगों को समझा बुझा कर ऐसा करना तो संभव नहीं है. मान लेते हैं कि किसी और तरीके से देश की सरहद के भीतर लोगों को मान लेने के लिए मजबूर भी कर दिया गया, तो ज्यादा से ज्यादा हिंदू राष्ट्र की कल्पना ही मूर्त रूप ले सकती है - लेकिन लक्ष्य तो अखंड भारत का सेट किया जा रहा है?
4. मिट जाएंगे या मिटा दिये जाएंगे?
महात्मा गांधी अहिंसा को सबसे ताकतवर मानते थे. वो मानते थे कि अहिंसा में ही शक्ति है. मोहन भागवत अहिंसा में भरोसे की बात तो करते हैं, लेकिन उसे गांधी की तरह ताकतवर नहीं समझते - और फिर लाठी की ताकत समझाते हैं.
मोहन भागवत का कहना है, 'भारत लगातार प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ता जा रहा है... रास्ते में जो कोई भी आएगा, वो मिट जाएगा... हम अहिंसा की ही बात करेंगे, पर ये बात हाथों में डंडा लेकर कही जाएगी... हमारे में मन में कोई द्वेष... शत्रुता भाव नहीं है, लेकिन दुनिया शक्ति को ही मानती है तो हम क्या करें?'
पहला सवाल तो यही है कि ऐसा क्या होगा कि रास्ते में आने वाले मिट जाएंगे? फिर तो ऐसा लगता है जैसे नहीं मिटे तो मिटा दिये जाएंगे!
खैर, कोई बात नहीं. जब होगा तब देखी जाएगी. लेकिन जो मिट जाएंगे या मिटा दिये जाएंगे वे कौन होंगे?
देश के बाहर के लोग होंगे? या अंदर के भी?
वैसे मोहन भागवत को अखंड भारत के रास्ते में किसके आने का शक है - हिंदू धर्म से इतर लोगों के या राजनीतिक विरोधियों के या फिर पड़ोसी मुल्कों के?
5. क्या युद्ध भी लड़ना पड़ेगा?
संघ प्रमुख की मानें तो अखंड भारत मुहिम में अहिंसा को ही तरजीह दी जाएगी, लेकिन हाथों में लाठी भी रहेगी. ऐसा इसिलए, क्योंकि दुनिया शक्ति को ही मानती है. मतलब, लाठी की ही भाषा समझती है.
देश के भीतर की बात और है, लेकिन बाहर की बात अलग है. अब जो स्वतंत्र राष्ट्र हैं. दुनिया में वे अलग अलग देशों के रूप में मान्यता पा चुके हैं, भला वे अखंड का हिस्सा कैसे और क्यों बनेंगे?
क्या अखंड भारत के सपने को साकार करने के लिए युद्ध भी लड़ना पड़ेगा?
संघ प्रमुख के आइडिया पर सोशल मीडिया पर लोग सपोर्ट भी कर रहे हैं और विरोध भी. अलग अलग तरीके से रिएक्ट कर रहे हैं. सीनियर पत्रकार आशुतोष ट्विटर पर लिखते हैं, '15 साल में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश भारत में होंगे. देश में मुस्लिमों की आबादी हो जाएगी 62 करोड़, जिसमें तालिबान भी होगा और पाकिस्तान के सारे आतंकवादी. व्हाट एन आइडिया सरजी!'
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