बांद्रा में घर वापसी के लिए लोगों की भीड़ उमड़ने से पहले एक नौजवान अपने कुछ साथियों के साथ बनारस निकल पड़ा था. करीब चार महीने से वो मुंबई के किसी होटल में काम कर रहा था लेकिन लॉकडाउन (Lockdown) के बाद काम बंद हो गया तो सोचा घर लौटते हैं. डेढ़ हजार किलोमीटर से भी ज्यादा का सफर जैसे तैसे भूखे प्यासे तय करने के बाद जब वो अपने घर पहुंचा तो घुसने भी नहीं दिया गया. घर में घुसने से रोकने वाले भी सिर्फ दो लोग थे - एक मां और दूसरा भाई. ये कोरोना वायरस से पैदा हुई वैश्विक महामारी (Coronavirus Pandemic) की ही देन है जो ये भी गलत साबित कर दे रहा है कि अपने तो अपने होते हैं. तमाम खबरें आ रही हैं जिसमें घर वाले मौत के बाद कंधा देने तक से मना कर दे रहे हैं.
कोरोना टेस्ट से लेकर अस्पताल में इलाज करने और मौत के बाद अंतिम संस्कार करने तक कोरोना संकट में हर किसी को अगर साथ देने वाला कोई है तो वो डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी ही हैं - लेकिन विडंबना तो ये है कि ये बात कुछ लोगों को समझ में ही नहीं आ रही है. डॉक्टर अपनी जान पर खेल कर लोगों को बचाने में लगे हैं और लोग हैं कि उनकी जान लेने पर उतारू हैं. भला ये क्यों नहीं समझ में आ रहा है कि अगर डॉक्टर (Doctors) ही नहीं होंगे तो कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के दौर में लोगों को मौत के मुंह से बचाकर वापस कौन लाएगा?
जब एंबुलेंस पर पथराव होने लगे
आम दिनों में एंबुलेंस के हूटर की आवाज सुनते ही लोगों से अपेक्षा की जाती है कि आगे जाने के लिए पहले उसे रास्ता दिया जाये. ऐसा मरीज को अस्पताल तक वक्त रहते पहुंच जाने के लिए किया जाता है. उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में 14 अप्रैल को जिस एंबुलेंस पर हमला हुआ उसमें मरीज नहीं था. डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी कोरोना संक्रमण के संदिग्ध को क्वारंटीन करने के लिए लेने गये थे - और भीड़ ने घेर कर हमला बोल दिया. बताते हैं कि चारों तरफ से पथराव होने की वजह से वहां मौजूद पुलिसवाले भी भाग खड़े हुए.
कोविड 19 नोडल अफसर डॉक्टर जेपी यादव जिनकी ड्यूटी से लौटते वक्त हादसे में दिल्ली में मौत हो गयी
हुआ ये था कि देर रात कोरोना पॉजिटिव एक मरीज की मौत हो गयी थी. मरीज के संपर्क में आये लोगों को क्वारंटीन करने के लिए मेडिकल टीम मौके पर पहुंची थी. एंबुलेंस में मौजूद डॉक्टर एससी अग्रवाल को लोगों ने बाहर खींच लिया और पीटना शुरू कर दिया. मेडिकल स्टाफ से पता चला है कि लोग हमले की तैयारी पहले से ही किये हुए थे.
जब महिला डॉक्टरों को कमरा बंद करना पड़े
दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल से डर के मारे डॉक्टरों के कमरे में बंद करने की बात सामने आयी है. ये घटना उस वक्त हुई जब ड्यूटी पर 2-3 महिला डॉक्टर अस्पताल में तैनात थीं. तभी कुछ कोरोना संदिग्ध मरीजों ने खाने को लेकर हंगामा शुरू कर दिया. हंगामा करने वालों का रंग ढंग देख कर डॉक्टर डर गयीं और खुद को बचाने के लिये कमरे में बंद कर लिया. बाद में मेडिकल स्टाफ ने पहुंच कर रेस्क्यू किया.
एलएनजेपी अस्पताल में रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर पर्व मित्तल के मुताबिक, कोरोना वार्ड के ज्यादातर मरीज तब्लीगी जमात के मरकज से जुड़े लोग थे. डॉक्टर का मानना रहा कि हंगामा करने वाले भी वहीं रहे होंगे.
अस्पताल में ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर पर हमला हो
हैदराबाद के उस्मानिया अस्पताल में एक शख्स को क्वारंटीन किया गया था. जब उसे पता चला कि उसके बेटे की टेस्ट रिपोर्ट भी कोरोना पॉजिटिव है और उसे इलाज के लिए वहीं के गांधी अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया तो वो आग बबूला हो उठा. गांधी अस्पताल में कोरोना पॉजिटिव लोगों के इलाज के खास इंतजाम किये गये हैं. क्वारंटीन तोड़ते हुए वो शख्स बाहर निकला और अस्पताल में मौजूद एक जूनियर डॉक्टर पर हमला बोल दिया. उसका मानना था कि उसके बेटे को एक ऐसे व्यक्ति के साथ रखा गया था जिसकी कोरोना टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आयी थी.
ऐसे में जबकि डॉक्टर किसी भी कोरोना संदिग्ध या पॉजिटिव व्यक्ति के पास प्रोटेक्शन के साथ जा रहे हैं, क्वारंटीन तोड़ कर कोई डॉक्टर पर कोई अटैक कर दे तो हमला तो जानलेवा ही समझा जाना चाहिये. हमले की वजह से PPE के बावजूद वो जूनियर डॉक्टर तो वैसे भी उस शख्स के संपर्क में आ ही गया. जिसका बेटा कोरोना पॉजिटिव पाया गया हो और वो खुद क्वारंटीन में रखा गया हो, उसके भी तो पॉजिटिव होने के चांस बनते ही हैं.
हादसे में कोविड 19 नोडल ऑफिसर की मौत हो जाये
13 अप्रैल को कोविड 19 नोडल ऑफिसर की हादसे में मौत हो गयी. हादसा कभी भी हो सकता है और कोई भी हादसे का शिकार हो सकता है - लेकिन दिल्ली में 53 साल के डॉक्टर जेपी यादव जिन परिस्थितियों में हादसे का शिकार होना बड़े अफसोस की बात लगती है.
डॉक्टर जेपी यादव एसडीएमसी पॉलीक्लिनिक, महरौली के प्रभारी थे और दिल्ली में साउथ जोन के कोविड 19 नोडल ऑफिसर नियुक्त किये गये थे. ड्यूटी के बाद साइकिल से घर लौट रहे थे तभी साकेत के पास पीछे से आ रही सफेद रंग की एक स्विफ्ट डिजायर कार ने धक्का मार दिया. डॉक्टर के साथियों के मुताबिक, चोट इतनी गहरी थी कि अस्पताल पहुंचने के कुछ ही देर बाद डॉक्टर यादव की मौत हो गयी.
साकेत पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 304ए और 279 के तहत केस दर्ज कर लिया गया है - और पुलिस का कहना है कि अरविंदो मार्ग पर घटनास्थल के आस पास के सीसीटीवी फुटेज के जरिये वो कार चालक की तलाश कर रही है. दिल्ली चुनावों में सीसीटीवी कैमरे मुद्दा बने थे, देखते हैं एक डॉक्टर की मौत के लिए जिम्मेदार कार चालक तक पहुंचने में कितने मददगार साबित होते हैं?
बड़े ताज्जुब की बात है कि लॉकडाउन लागू होने और जगह जगह पुलिस की तैनाती के बावजूद कोई तेज रफ्तार कार चलाते निकल जा रहा है - और एक्सीडेंट करने के बावजूद उसे किसी चेक प्वाइंट पर रोका तक नहीं जाता? ऐसा तो है नहीं कि वो कार बगैर पास के दिल्ली की सड़कों पर दौड़ रही होगी - लेकिन एक्सीडेंट होने के बाद जब पीसीआर को जानकारी मिलती है तो क्या सफेद रंग की स्विफ्ट डिजायर कार को खोज पाना इतना मुश्किल हो सकता है?
पुलिस सूत्रों के हवाले से प्रकाशित इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट से मालूम होता है कि डॉक्टर यादव की कार कुछ दिन पहले खराब हो गयी थी और लॉकडाउन के चलते रिपेयर नहीं करायी जा सकी. तब डॉक्टर यादव ने बेटे की साइकिल ली और ग्रेटर कैलाश में अपने घर से ड्यूटी पर महरौली निकल पड़े.
परिवार के लोगों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि कार ठीक होने तक ऑफ लेने की सलाह दी गयी थी, लेकिन डॉक्टर यादव का कहना रहा कि ड्यूटी बहुत जरूरी है और बहुत सारे स्वास्थ्यकर्मी उन पर निर्भर हैं. दरअसल, नोडल अफसर होने के कारण मेडिकल स्टाफ को PPE किट देने की जिम्मेदारी भी डॉक्टर यादव की ही थी.
जब पहले से ही देश में डॉक्टरों की कमी हो, ऐसे में कोविड 19 के नोडल अफसर का जो साइकिल चला कर ड्यूटी पर पहुंचता है और ड्यूटी पूरी कर घर लौट रहा होता है - हादसे में चले जाना सिर्फ दिल्ली ही नहीं पूरे देश के लिए ऐसे संकट की घड़ी बहुत बड़ा नुकसान है.
कोरोना वायरस का प्रकोप शुरू होने के बाद डॉक्टरों से दुर्व्यवहार की घटनाएं तो सुनने को मिल रही थीं, लेकिन बड़ी घटना मध्य प्रदेश के इंदौर से आयी थी. हालांकि, बाद में जब प्रशासन ने एक्शन लेना शुरू किया तो वे लोग माफी भी मांगने लगे थे. दूसरी तरफ, हमले के बावजूद डॉक्टर अगले ही दिन ड्यूटी पर पहुंच चुके थे. उस हमले में भी महिला डॉक्टर को भाग कर जान बचानी पड़ी थी.
कुछ ही दिन पहले नोएडा से खबर आयी कि किस तरह सफदरजंग अस्पताल में तैनात दो महिला डॉक्टरों पर उनके पड़ोसियों ने हमला बोल दिया. ये कहते हुए कि ये कोरोना वायरस फैला रही हैं - हालांकि, केस दर्ज करने के बाद पुलिस ने एक आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था.
गाजियाबाद के अस्पताल में क्वारंटाइन में रखे गये लोगों ने नर्स तथा महिला डॉक्टर्स से अश्लील हरकत की थी तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आदेश दिया था कि तब्लीगी जमात के लोगों के इलाज में किसी भी महिला डॉक्टर और नर्स को ड्यूटी पर न लगाया जाये. मुख्यमंत्री ने मेडिकल स्टाफ के साथ दुर्व्यवहार करने वालों के खिलाफ NSA लगाने का भी आदेश दे रखा है.
मुरादाबाद में डॉक्टरों पर हुए हमले के मामले में भी योगी आदित्यनाथ ने एनएसए के तहत कार्रवाई करने के साथ ही तोड़ फोड़ में हुई सरकारी संपत्ति के नुकसान की भरपायी भी जिम्मेदार लोगों से ही करने का निर्देश दिया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार बार लोगों से कोरोना वॉरियर्स को सम्मान देने और उनका शुक्रिया करने की अपील की है. बीजेपी कार्यकर्ताओं से तो प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना वॉरियर्स के घर जाकर लिखित तौर पर धन्यवाद पत्र देने की सलाह दी है - और जगह जगह से ड्यूटी पर तैनात कोरोना वॉरियर्स पर लोगों के फूल बरसाने की भी खबर और तस्वीरें सामने आ रही हैं - लेकिन कुछ लोगों को ये बात क्यों नहीं समझ में आ रही है. ऐसा भी नहीं है कि डॉक्टरों पर हमले या उनके साथ दुर्व्यवहार बाकी दिनों में नहीं होते और उसके बाद डॉक्टरों के हड़ताल पर चले जाने की भी खबरें आती हैं - लेकिन डॉक्टर फिलहाल ऐसा करने की स्थिति में भी नहीं हैं.
आखिर लोगों को ये क्यों नहीं समझ में आ रहा है कि डॉक्टरों को नहीं आप अपनेआप को जोखिम में डाल रहे हैं. अरे, डॉक्टर ही नहीं रहेंगे तो आपको कौन बचा पाएगा - कोरोना तो बस मौके की ताक में है.
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