हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa vs Azan Clash) का जो इस्तेमाल होने लगा है, सबसे ज्यादा खुशी तो अरविंद केजरीवाल को ही हो रही होगी. ये हनुमान चालीसा ही है जिसे टीवी पर पढ़ने के बाद AAP नेता के मुंह से 'जय श्रीराम' निकलने लगा. वैसे भी माना तो यही जाता है कि राम तक पहुंचने के लिए पहले हनुमान के पास शरणागत होना पड़ता है.
अरविंद केजरीवाल से पहले चुनावी राजनीति में योगी आदित्यनाथ ने हनुमान को दलित समुदाय का बता कर पेश किया था - और बाद में देखा गया कि योगी की ही तरह दीपावली मनाते हुए केजरीवाल भी अयोध्या पहुंच गये. फिर तो दिल्लीवालों को भी ट्रेन से अयोध्या भेजना शुरू कर दिया.
केजरीवाल के बाद लगता है, राज ठाकरे को भी राम का ही आसरा है और उसी के लिए वो हनुमान का सहारा ले रहे हैं. राम के आसरे होने को अरसे से बीजेपी से जोड़ कर देखा जाता है - और ये भी धीरे धीरे साफ होता जा रहा है कि राज ठाकरे भी थक हार कर बीजेपी की ही तरफ उम्मीदों भरी नजर से देख रहे हैं.
कट्टर हिंदुत्व से इतर राजनीति करने वाले इसके निशाने पर मुस्लिम समुदाय को भले मान रहा हो, लेकिन ये पूरी तरह सही नहीं लगता. समुदाय विशेष तो महज एक राजनीतिक हथियार भर है, निशाने पर तो और लोग हैं.
शिवसेना ने तो राज ठाकरे को बीजेपी का लाउडस्पीकर ही करार दिया है. शिवसेना का ये रिएक्शन राज ठाकरे की राजनीतिक मंशा की आशंका में ही लगता है. वैसे महाराष्ट्र के राजनीतिक हालात भी इशारे तो ऐसे ही कर रहे हैं. निशाने पर तो उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) की सरकार ही है.
राज ठाकरे की अजान के मुकाबले लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा पढ़ने की मुहिम महाराष्ट्र से उत्तर प्रदेश और गोवा तक पहुंच चुकी है - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में तो घरों पर ही लाउडस्पीकर लगाने की मुहिम शुरू...
हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa vs Azan Clash) का जो इस्तेमाल होने लगा है, सबसे ज्यादा खुशी तो अरविंद केजरीवाल को ही हो रही होगी. ये हनुमान चालीसा ही है जिसे टीवी पर पढ़ने के बाद AAP नेता के मुंह से 'जय श्रीराम' निकलने लगा. वैसे भी माना तो यही जाता है कि राम तक पहुंचने के लिए पहले हनुमान के पास शरणागत होना पड़ता है.
अरविंद केजरीवाल से पहले चुनावी राजनीति में योगी आदित्यनाथ ने हनुमान को दलित समुदाय का बता कर पेश किया था - और बाद में देखा गया कि योगी की ही तरह दीपावली मनाते हुए केजरीवाल भी अयोध्या पहुंच गये. फिर तो दिल्लीवालों को भी ट्रेन से अयोध्या भेजना शुरू कर दिया.
केजरीवाल के बाद लगता है, राज ठाकरे को भी राम का ही आसरा है और उसी के लिए वो हनुमान का सहारा ले रहे हैं. राम के आसरे होने को अरसे से बीजेपी से जोड़ कर देखा जाता है - और ये भी धीरे धीरे साफ होता जा रहा है कि राज ठाकरे भी थक हार कर बीजेपी की ही तरफ उम्मीदों भरी नजर से देख रहे हैं.
कट्टर हिंदुत्व से इतर राजनीति करने वाले इसके निशाने पर मुस्लिम समुदाय को भले मान रहा हो, लेकिन ये पूरी तरह सही नहीं लगता. समुदाय विशेष तो महज एक राजनीतिक हथियार भर है, निशाने पर तो और लोग हैं.
शिवसेना ने तो राज ठाकरे को बीजेपी का लाउडस्पीकर ही करार दिया है. शिवसेना का ये रिएक्शन राज ठाकरे की राजनीतिक मंशा की आशंका में ही लगता है. वैसे महाराष्ट्र के राजनीतिक हालात भी इशारे तो ऐसे ही कर रहे हैं. निशाने पर तो उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) की सरकार ही है.
राज ठाकरे की अजान के मुकाबले लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा पढ़ने की मुहिम महाराष्ट्र से उत्तर प्रदेश और गोवा तक पहुंच चुकी है - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में तो घरों पर ही लाउडस्पीकर लगाने की मुहिम शुरू हो गयी है - और तपिश इतनी है कि समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) तक को झुलसा सकती है. आखिर आजम खान के नाम पर यूपी में जो मुस्लिम पॉलिटिक्स की आवाज सुनी जा रही है, वो भी अखिलेश यादव के खिलाफ ही है.
मुंबई से पहले बनारस में लगा लाउडस्पीकर
वाराणसी में सबसे पहले साकेत नगर में एक घर की छत पर लाउडस्पीकर लगाया गया, ताकि जब जब अजान का वक्त हो तेज आवाज में हनुमान चालीसा बजाया जा सके. ये घर है काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मुक्ति आंदोलन के अध्यक्ष सुधीर सिंह का. सुधीर सिंह की कोशिश है कि शहर के ज्यादा से ज्यादा घरों की छतों पर लाउडस्पीकर लगाया जाये और अजान के वक्त पूरे पांच बार हनुमान चालीसा का पाठ हो सके.
राजनीति की बात और है, लेकिन बनारस में भोर से ही मंदिरों के घंटे सुने जाते रहे हैं. जब श्रद्धालु आने लगते हैं, फूल माला और जल चढ़ाने के बाद हर कोई एक बार घंटा जरूर बजाता है - और पूरे शहर में न सही, लेकिन घाट किनारे बसे मोहल्ले के लोगों की नींद उसी आवाज के साथ खुलती है.
अजान की आवाज तो बाद में आती है, पहले तो कानों में घंटा-घड़ियाल ही गूंजता है. मंदिरों में भोर की आरती के वक्त ये रोजाना की बात होती है. ये बात अलग है कि कौन सो कर उठता है? देर से सो कर उठने वालों को तो वही आवाज सुनायी देगी जो उस वक्त माहौल में गूंज रही होगी.
अब जैसी जिसकी श्रद्धा. 'जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी'. गोस्वामी तुलसीदास ने ये लाइन भी बनारस में रह कर ही लिखी है. गुजरते वक्त के साथ चीजें भी बदलती जाती हैं. जरूरतें बदल जाती हैं - और शायद यही वजह है कि अजान के मुकाबले हनुमान चालीसा का पाठ लाउडस्पीकर से करने की जरूरत महसूस हो रही है. तब भी जबकि यूपी में विधानसभा के चुनाव बीत चुके हैं और अगले आम चुनाव में भी काफी वक्त बचा है.
पांच वक्त हनुमान चालीसा की ये पहल भी अच्छी लगती है. चलो बहाना कोई और ही सही, लोग हनुमान चालीसा का पाठ तो कर रहे हैं. अरविंद केजरीवाल और राज ठाकरे को छोड़ कर देखें तो ऐसे बहुत लोग हैं जिनके लिए हनुमान चालीसा बरसों बरस बहुत बड़ा संबल रहा है. जैसे कोई मोटिवेशनल उपाय हो - 'संकट कटै मिटै सब पीरा...' कानों में गूंजते ही बड़ी राहत मिलती है, खास कर उन सभी को जो मुश्किलों से जूझ रहे हैं.
हनुमान चालीसा पढ़ते पढ़ते अरविंद केजरीवाल दिल्ली के बाद पंजाब में भी सरकार बना लिये. अब तो पंजाब के आला अफसरों को बुला कर मीटिंग भी लेने लगे हैं. और राज ठाकरे हैं कि 16 साल से संघर्ष कर रहे हैं. 14 साल में तो राम का वनवास भी खत्म हो चुका था. ये ठीक है कि राज ठाकरे को वहां कुछ नहीं मिला जहां राजनीति की ट्रेनिंग मिली, लेकिन राजनीतिक लाइन तो नहीं छोड़ी. बल्कि, जिसकी वजह से शिवसेना छोड़ कर नयी पार्टी बनानी पड़ी वो उद्धव ठाकरे अलग राह पकड़ चुके हैं. महाराष्ट्र में बीजेपी को छोड़ कर कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाकर सरकार बना चुके हैं.
राज ठाकरे की हनुमान चालीसा मुहिम भी तो उद्धव ठाकरे सरकार के खिलाफ ही है. राज ठाकरे ने तो अल्टीमेटम भी दे रखा है - 3 मई तक महाराष्ट्र की मस्जिदों से लाउडस्पीकर नहीं हटाये गये तो वो मस्जिदों के सामने ही लाउडस्पीकर से हनुमान चालीसा बजाएंगे. वो भी जोर जोर से.
राज ठाकरे कह रहे हैं, नमाज के लिए रास्ते और फुटपाथ क्यों चाहिए? घर पर पढ़िये... प्रार्थना आपकी है हमें क्यों सुना रहे हो? मुंबई और बनारस में चलाये जा रहे इस अभियान का असर और नमूना नोएडा में दिखा है. लोग लड़ने लगे हैं और पुलिस का काम भी बढ़ गया है.
महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार को राज ठाकरे ने साफ कर दिया है. हम इस मुद्दे से पीछे नहीं हटेंगे, आपको जो करना है करो. कहते हैं कि वो सरकार के गृह विभाग को साफ कर देना चाहते हैं कि वो दंगे नहीं चाहते. सवाल ये है कि दंगे वो किन सूरत में नहीं चाहते? अगर सरकार ने राज ठाकरे की धमकी की परवाह नहीं की तो?
शिवसेना ने राज ठाकरे को 'लाउडस्पीकर' बताया है
ये तो साफ हो चुका है कि हनुमान चालीसा मुहिम का मकसद महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार को टारगेट करना है. वैसे भी बीजेपी को छोड़ कर नये गठबंधन की सरकार बना लेने के बाद से उद्धव ठाकरे बीजेपी को फूटी आंख नहीं सुहा रहे हैं.
हिंदुत्व के नाम पर शिवसेना को घेरने की तैयारी: बीजेपी की मुश्किल ये है कि उद्धव ठाकरे को एक हद तक ही टारगेट कर पाती है. उद्धव ठाकरे पर निजी हमले मराठी मानुष और मराठी अस्मिता पर सवाल उठा देंगे. ध्यान से देखें तो बीजेपी के केंद्रीय नेताओं और महाराष्ट्र के नेताओं के अक्सर ऐसे मौकों पर अलग अलग बयान सुनने को मिलते हैं.
चाहे वो नारायण राणे की गिरफ्तारी का मामला हो, चाहे कंगना रनौत की तरफ से मुंबई की पीओके से तुलना किया जाना. देवेंद्र फडणवीस, नारायण राणे की गिरफ्तारी का विरोध तो करते हैं, लेकिन उद्धव ठाकरे को थप्पड़ मारने वाले राणे के बयान का सपोर्ट नहीं करते. लिहाजा बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को मोर्चा संभालना पड़ता है.
जैसे कंगना रनौत के मामले में बीजेपी अपने गठबंधन सहयोगी रामदास आठवले को तैनात कर दिया था, राज ठाकरे की भी भूमिका मिलती जुलती ही लगती है. जो काम अभी हो रहा है, काफी पहले शुरू हो चुका होता. अगर पश्चिम बंगाल चुनाव के नतीजे अलग रहे होते. तभी तो यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजों तक इंतजार करन पड़ा था.
अब तेलंगाना से मुंबई आकर के. चंद्रशेखर राव, शरद पवार और उद्धव ठाकरे से मुलाकात करेंगे और विपक्ष का एजेंडा लाये जाने की बात करेंगे तो काउंटर का कोई तरीका बीजेपी को तो ढूंढना होगा ही.
बीजेपी को भी कोई बयान बहादुर चाहिये. क्योंकि रामदास आठवले से काम नहीं चल पा रहा है. वैसे तो आठवले अब तक कई बार महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार के गिर जाने और बीजेपी की सरकार बन जाने का ऐलान कर चुके हैं.
लेकिन बातों बातों में आठवले भूल भी जाते हैं कि वो बीजेपी के साथ हैं, शरद पवार के साथ नहीं. एनसीपी नेता पर राज ठाकरे के हमले पर रामदास आठवले कहते हैं, 'मुझे लगता है कि राज ठाकरे अपना मानसिक संतुलन खो रहे हैं.'
रामदास आठवले का ये रिएक्शन राज ठाकरे के उस बयान पर आया है जिसमें वो शरद पवार पर धर्म को नहीं मानने और जाति की राजनीति करने का इल्जाम लगा देते हैं. अव्वल तो शरद पवार खुद ही राज ठाकरे को जवाब देते हैं और उनके दादा प्रबोधनकर ठाकरे का नाम लेकर नसीहत दे डालते हैं. बाल ठाकरे के पिता प्रबोधनकर ठाकरे का नाम शरद पवार ये कह कर लेते हैं कि जिन लोगों का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव रहा है, वो भी उनमें से एक हैं. प्रबोधनकर ठाकरे का नाम लेकर शरद पवार याद दिलाते हैं, 'हमेशा उन लोगों का विरोध किया जो भगवान और धर्म के नाम पर अपना फायदा करने में जुटे रहते हैं.'
राज ठाकरे के आरोपों के जवाब में शरद पवार ने कहा है कि वो मंदिरों में जाते हैं, लेकिन दिखावा नहीं करते. शरद पवार को लेकर रामदास आठवले ने लातूर में एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा, 'पवार ऐसे नेता हैं जो दलितों और आदिवासियों को साथ लेकर चलते हैं... वो राजनीति में अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि के लिए पहचाने जाते हैं... राज ठाकरे का यह कहना बिल्कुल गलत है कि पवार जातिवादी हैं.'
राज ठाकरे पर जवाबी हमला शिवसेना सांसद संजय राउत की तरफ से किया गया है. संजय राउत कह रहे हैं, 'ये जो लाउडस्पीकर बज रहा है... आजकल... ये भाजपा का ही भोंपू है... ये बात सबको पता है...'
खुद भी जांच एजेंसियों के रडार पर आ चुके संजय राउत का राज ठाकरे के बारे में दावा है, 'ED की कार्रवाई से अभयदान मिले इसलिए ये आजकल बीजेपी की भाषा बोल रहे हैं... बीजेपी जब खुद सामना नहीं कर पाई तो राज ठाकरे के रूप में लाउडस्पीकर को आगे कर दिया...'
राज ठाकरे के लिए मौका तो है ही: असल बात तो ये है कि राज ठाकरे को भी एक मजबूत सपोर्ट सिस्टम की तलाश है. अब तक अकेले तो वो खाक ही छानते रहे हैं. कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिला लेने के बाद बीजेपी शिवसेना पर हिंदुत्व छोड़ देने का आरोप लगा रही है. शिवसेना को अक्सर ये सफाई देनी पड़ती है. उद्धव ठाकरे तो कई बार बाल ठाकरे की परंपरा की दुहाई देते हुए खुद को बीजेपी नेताओं से बड़ा हिंदू होने का दावा करते रहे हैं.
बीजेपी के लिए राज ठाकरे का इस्तेमाल भी बिहार के जीतनराम मांझी और चिराग पासवान जैसा ही है. जैसे बीजेपी ने अलग अलग समय पर दोनों नेताओं का नीतीश कुमार के खिलाफ इस्तेमाल किया, राज ठाकरे तो उद्धव ठाकरे के खिलाफ सबसे ज्यादा सुटेबल हैं ही. जैसे राहुल गांधी या गांधी परिवार के खिलाफ बीजेपी नेता वरुण गांधी के बयान होते हैं. यूपी में मायावती भी तो कांग्रेस के खिलाफ ऐसे ही मोर्चा संभाल लेती हैं, फायदेमंद तो बीजेपी के लिए ही होता है.
मुद्दे की बात तो ये है कि राज ठाकरे के हनुमान चालीसा अभियान में बीजेपी के साथ साथ अरविंद केजरीवाल भी थोड़ा बहुत स्कोप तो देख ही रहे होंगे - मुश्किल ये है कि ऐसा न तो वो गुजरात में कर सकते हैं, न ही हिमाचल प्रदेश में.
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