मध्य प्रदेश में उपचुनाव तो महज दो सीटों के लिए हो रहे हैं, लेकिन लगते हैं जैसे शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया के आन, बान और शान की जंग हों. चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री चौहान और कांग्रेस नेता सिंधिया के रोड शो देख कर ऐसा लगता है जैसे सड़क पर शक्ति प्रदर्शन चल रहा हो.
मध्य प्रदेश की मुंगावली और कोलारस विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हो रहे हैं. ये दोनों ही सीटें गुना संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती हैं जिसका प्रतिनिधित्व ज्योतिरादित्य सिंधिया करते हैं.
साफ समझा जा सकता है कि दोनों नेता 2019 के क्वालिफाईंग मैच के लिए मैदान में उतरे हों और चूक गये तो कप्तानी से हाथ धो बैठेंगे. दरअसल, दोनों पर परफॉर्म करने का दबाव तो है ही, अपने अपने राजनीतिक विरोधियों को पछाड़ते हुए मुकाबले और मैदान में डटे रहना जरूरी हो गया है.
रोड शो कम, शक्ति प्रदर्शन ज्यादा
ज्योतिरादित्य सिंधिया के रोड शो का असर कहें या कुछ और कम से कम एक मामले में तो शिवराज सिंह चौहान को घुटने टेकने ही पड़े हैं. चौहान पिछले तीन महीने से उपचुनावों के लिए लगातार दौरे और पब्लिक मीटिंग कर रहे हैं. बावजूद इसके यशोधरा राजे सिंधिया चुनाव प्रचार से दूर रहीं. वजह तो यशोधरा से शिवराज के मतभेद ही हैं. यशोधरा राजे मध्य प्रदेश की शिवराज कैबिनेट में खेल एवं युवा कल्याण मंत्री हैं. पहले उनके पास इससे ज्यादा अहम विभाग रहा लेकिन मुख्यमंत्री ने वापस ले लिये.
31 जनवरी को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने रोड शो किया था जिसके बाद बीजेपी पर ज्यादा भीड़ जुटाने का दबाव हो गया. समझा जा रहा है कि सिंधिया घराने के गढ़ में शिवराज का उतना असर नहीं हो रहा था - और यशोधरा को अलग रखने के चलते बीजेपी नेतृत्व को...
मध्य प्रदेश में उपचुनाव तो महज दो सीटों के लिए हो रहे हैं, लेकिन लगते हैं जैसे शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया के आन, बान और शान की जंग हों. चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री चौहान और कांग्रेस नेता सिंधिया के रोड शो देख कर ऐसा लगता है जैसे सड़क पर शक्ति प्रदर्शन चल रहा हो.
मध्य प्रदेश की मुंगावली और कोलारस विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हो रहे हैं. ये दोनों ही सीटें गुना संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती हैं जिसका प्रतिनिधित्व ज्योतिरादित्य सिंधिया करते हैं.
साफ समझा जा सकता है कि दोनों नेता 2019 के क्वालिफाईंग मैच के लिए मैदान में उतरे हों और चूक गये तो कप्तानी से हाथ धो बैठेंगे. दरअसल, दोनों पर परफॉर्म करने का दबाव तो है ही, अपने अपने राजनीतिक विरोधियों को पछाड़ते हुए मुकाबले और मैदान में डटे रहना जरूरी हो गया है.
रोड शो कम, शक्ति प्रदर्शन ज्यादा
ज्योतिरादित्य सिंधिया के रोड शो का असर कहें या कुछ और कम से कम एक मामले में तो शिवराज सिंह चौहान को घुटने टेकने ही पड़े हैं. चौहान पिछले तीन महीने से उपचुनावों के लिए लगातार दौरे और पब्लिक मीटिंग कर रहे हैं. बावजूद इसके यशोधरा राजे सिंधिया चुनाव प्रचार से दूर रहीं. वजह तो यशोधरा से शिवराज के मतभेद ही हैं. यशोधरा राजे मध्य प्रदेश की शिवराज कैबिनेट में खेल एवं युवा कल्याण मंत्री हैं. पहले उनके पास इससे ज्यादा अहम विभाग रहा लेकिन मुख्यमंत्री ने वापस ले लिये.
31 जनवरी को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने रोड शो किया था जिसके बाद बीजेपी पर ज्यादा भीड़ जुटाने का दबाव हो गया. समझा जा रहा है कि सिंधिया घराने के गढ़ में शिवराज का उतना असर नहीं हो रहा था - और यशोधरा को अलग रखने के चलते बीजेपी नेतृत्व को जवाब देना भी मुश्किल हो रहा था. वैसे यशोधरा के रोड शो ज्वाइन करने का असर भी दिखा. यशोधरा के चुनाव प्रचार में उतरते ही कार्यकर्ताओं का बढ़ा हुआ जोश देखा गया. कोलारस में बीजेपी उम्मीदवार देवेंद्र जैन भी यशोधरा राजे के ही समर्थक माने जाते हैं.
यशोधरा के चुनाव प्रचार में कूदने से मुकाबला सिंधिया बनाम सिंधिया जैसा हो चला है. यशोधरा राजे कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ हैं - और राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया की सगी बहन. वसुंधरा के राजस्थान में अभी अभी कांग्रेस ने बीजेपी को उपचुनावों में भारी शिकस्त दी है. जहां तक रिश्ते की बात है तो यशोधरा और ज्योतिरादित्य में न सिर्फ बरसों से बातचीत बंद है बल्कि संपत्ति का विवाद भी कोर्ट में चल रहा है.
शिवराज बनाम सिंधिया बनाम दोनों के सियासी दुश्मन
जिस तरह बीजेपी में शिवराज सिंह चौहान के विरोधी मौके की तलाश में हैं उसी तरह कांग्रेस में भी ज्योतिरादित्य सिंधिया के विरोधी ताक में बैठे हैं. कोई मामूली सी चूक भी मुश्किलें हजार कर सकती है.
17 जनवरी को मध्य प्रदेश में नगर निकाय और पंचायतों के आम और उपचुनाव हुए थे. नतीजे आये तो मालूम हुआ मुकाबला बराबरी पर छूटा है. बीजेपी को ऐसे नतीजों की कतई उम्मीद नहीं रही होगी. शिवराज के शासन में बीजेपी की शानदार जीत देखी गयी है. मगर, इस बार कांग्रेस ने न सिर्फ गुजरात जैसी कड़ी चुनौती दी, बल्कि बीजेपी के कई अभेद्य किले ढहा भी दिये.
ऐसे कई मौके देखे गये हैं जब शिवराज की कुर्सी को लेकर तो कभी उन्हें केंद्र में बुलाये जाने को लेकर अटकलें लगायी जाती रही हैं. सफाई भी खुद शिवराज को ही देनी पड़ती है तब कहीं जाकर मामला ठंडा पड़ता है. लेकिन अब कहीं कुछ ऊंच नीच हुई तो क्या वैसा ही होगा?
ऐसा लगता है अमित शाह उपचुनावों के बहाने बीजेपी के मुख्यमंत्रियों का टेस्ट ले रहे हैं - और इन नतीजों से 2019 में, उसके बाद और फिर अगले विधानसभा चुनावों में उनकी भूमिका तय की जाएगी. राजस्थान इसका ताजा उदाहरण है.
सिंधिया का मामला भी शिवराज की कार्बन कॉपी ही है. मध्य प्रदेश में सिंधिया के अलावा दो कद्दावर नेता और हैं - कमलनाथ और दिग्विजय सिंह. कमलनाथ 70 साल के हैं तो दिग्विजय 71 के. इनमें सिंधिया ही 47 साल के युवा हैं, जो टीम राहुल के सबसे प्रभावी और सक्रिय सदस्य हैं. दिग्विजय सिंह इन दिनों नर्मदा परिक्रमा कर रहे हैं जिसके बारे में उनका दावा है कि वो कहीं से भी सियासी गतिविधि नहीं है.
विधानसभा चुनाव और 2019 का आम चुनाव अभी दूर है, फिर भी सिंधिया और कमलनाथ अपने अपने तरीके से एड़ी चोटी का जोर लगाये हुए हैं. दोनों ही नेताओं ने राहुल गांधी को मध्य प्रदेश जीतने का फॉर्मूला दिया हुआ है - और फैसले का इंतजार है.
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