12 साल पुराने INX मीडिया मामले में पी चिदंबरम जेल से छूटे भी नहीं है कि 35 साल पुराने सिख दंगों को लेकर कमलनाथ पर संकट आ गया है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज के सामने कथित रूप से दंगा भड़काने का जिम्मेदार बताया गया है, जहां दो सिखों को जिंदा जला दिया गया था. इस शिकायत पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) से इस बंद मामले की फिर जांच का आदेश दिया है. शिरोमणी अकाली दल नेता और दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा कहते हैं कि उस घटना के गवाह अपने बयान देने के लिए तैयार हैं.
कमलनाथ पर दबाव बनाने के लिए राजनीति शुरू हो गई है. विपक्ष उनके इस्तीफे की मांग कर रहा है. सोनिया गांधी से कार्रवाई करने को कहा जा रहा है. इन सबके बीच कांग्रेस फिलहाल खुलकर सामने नहीं आई है. कुछ कांग्रेस नेता और समर्थक इसे बदले की कार्रवाई बता रहे हैं. और इसे राजनीतिक रूप से काफी हद तक सच भी माना जा सकता है, लेकिन इसकी जड़ में भी कांग्रेस की सियासत ही है.
84 के दंगों में गृह मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद कमलनाथ पर गाज गिरनी तय मानी जा रही है
सिरसा ने एक ट्वीट में कहा है कि, 'अकाली दल के लिए एक बड़ी जीत है. 1984 में सिखों के नरसंहार में कमलनाथ के कथित तौर पर शामिल होने के मामलों को SIT ने दोबारा खोला. पिछले साल मैंने गृह मंत्रालय से अनुरोध किया था जिसके बाद मंत्रालय ने कमलनाथ के खिलाफ ताजा सबूतों पर विचार करते हुए केस नंबर 601/84 को दोबारा खोलने का नोटिफिकेशन जारी किया है.'
सिरसा का दावा है कि उन्होंने दोनों गवाहों से बातचीत की है और ये दोनों ही गवाह किसी भी वक्त एसआईटी के सामने जाने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं. इन बातों के आलवा सिरसा ने ये भी कहा है कि 1984 के दौरान दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज में हुए सिख विरोधी दंगों में मध्य प्रदेश के सीएम कमलनाथ गिरफ्तार होने वाले नेता होंगे.
कमलनाथ का शुमार कांग्रेस के उन नेताओं में है जिन्हें सिख दंगों से जोड़कर देखा जाता है. मध्य प्रदेश चुनाव के वक़्त भी सिख दंगे एक बड़ा मुद्दा बने थे और इन्हें लेकर भारतीय जनता पार्टी ने इनकी जबरदस्त घेराबंदी की थी. अब इस मामले पर कांग्रेस कितनी ही दलील क्यों न दे. मगर अपने नेताओं पर एक्शन के लिए खुद कांग्रेस ने ही भाजपा को मौका दिया है. कांग्रेस एक मुश्किल दौर से गुजर रही है ऐसे में जिस तरह एक के बाद एक उसके नेताओं को टारगेट किया जा रहा है साफ़ है कि भाजपा ने ठान लिया है कि वो कांग्रेस से गिन गिन कर बदले लेगी. चूंकि कांग्रेस मृत्यु शैया पर है इसलिए उसके पास भी इन बदलों को सहने के सिवा कोई अन्य विकल्प नहीं है.
जब कांग्रेस ने ही कमलनाथ को हटाया था...
ये कोई पहली बार नहीं है जब सिख दंगों में कमलनाथ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से घिरे हैं. 2016 में कमलनाथ को पंजाब चुनावों का प्रभारी बनाने पर बवाल हो गया था. उस दौरान पंजाब में सत्ताधारी पार्टी, अकाली दल और आम आदमी पार्टी ने उन पर जमकर हमला बोला था. 2016 में लिए गए उस फैसले के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने मुखर होकर इस बात को कहा था कि कमलनाथ को पंजाब का इंचार्ज बनाकर कांग्रेस ने सिख कम्युनिटी को ठेस पहुंचायी है और उनके दर्द को ताजा कर दिया है. वहीं आम आदमी पार्टी ने अकाली दल से दो हाथ आगे निकलते हुए यहां तक कह दिया था कि कमलनाथ को '84 के सिख विरोधी दंगों में उनकी भूमिका के लिए कांग्रेस अवॉर्ड दे रही है.
कांग्रेस को फौरन ही इस बात का एहसास हुआ कि पार्टी की ये गलती पंजाब चुनावों में उसके गले की हड्डी बन सकती है. फ़ौरन ही कांग्रेस बैकफुट पर आ गई. लोगों की इस नाराजगी को आधार बनाकर कमलनाथ को पंजाब चुनावों से दूर कर दिया गया. पार्टी को अपना इस्तीफ़ा सौंपते हुए कमलनाथ ने कहा था कि इस मामले में उन्हें बेवजह खींचा जा रहा है. दंगों के दौरान कहीं भी उनका जिक्र नहीं है.
तब पुराने दोस्त होने के नाते पंजाब के वर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह कमलनाथ के समर्थन में आए थे जिन्हें इस मामले के अंतर्गत सिखों के रोष का सामना करना पड़ा. अब इसे राजनितिक मजबूरियां कहें या कुछ और अमरिंदर सिंह ने भी कमलनाथ को बीच मझधार में अकेला छोड़ दिया.
2016 में कांग्रेस द्वारा लिए गए इस फैसले या फिर इस अहम मामले को लेकर उसके बैकफुट में आने पर अगर नजर डाली जाए तो मिलता है कि कहीं न कहीं कांग्रेस भी इस बात को मानती है कि 84 के अंतर्गत उसके नेताओं से कई बड़ी चूक हुई है. सिख दंगों को लेकर हमेशा सवालों में घिरी रहने वाली कांग्रेस के लिए मुसीबत तो लोकसभा चुनाव के दौरान भी आई थी, जब वरिष्ठ कांग्रेस नेता सेम पेत्रोदा ने भी सिख दंगों को लेकर कह दिया था 'हुआ तो हुआ'. कांग्रेस दुविधा में पड़ गई थी कि इस बेतुके बयान का कैसे बचाव किया जाए. संभव है कि सिख दंगे का आरोप लगने पर कमलनाथ को अपना बचाव खुद ही करना पड़े. जिस तरह सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर जैसे नेताओं ने किया.
1984 के अंतर्गत क्या थे कमलनाथ पर आरोप
1984 में हुए सिख दंगों के मद्देनजर हमेशा ही कमलनाथ अपने को तमाम आरोपों से बचाते हैं. इस मामले को लेकर उनकी भूमिका पर सवाल तब खड़ा हुआ जब उन्होंने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. ज्ञात हो कि कमलनाथ पर पार्टी के दिल्ली के नेताओं जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार के साथ 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भीड़ को उकसाने का आरोप था. चश्मदीदों का कहना था कि उन्होंने दिल्ली के रकाबगंज गुरूद्वारे के बाहर भीड़ को भड़काया जिसके कारण बवाल शुरू हुआ और उनके सामने ही दो सिख युवकों की हत्या हुई.
मामले की जांच नानावटी आयोग ने की और कमल नाथ को बेनिफिट ऑफ डाउट दिया गया. बताया जाता है कि तब आयोग ने दो लोगों की गवाही सुनी थी, जिसमें तत्कालीन इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर संजय सूरी शामिल थे और सूरी ने कहा था कि कमलनाथ मौके पर मौजूद थे. बाद में कमलनाथ ने भी इस बात को स्वीकार किया था कि वो मौके पर थे मगर उनके वहां होने का उद्देश्य दंगा भड़काना नहीं बल्कि उपस्थित भीड़ को शांत कराना था. आपको बताते चलें कि दिल्ली में जिस हिसाब से दंगे भड़के थे उनके कारण तकरीबन 3000 सिखों की मौत हुई थी. घटना की जांच 25 साल बाद हुई थी और इसमें ये माना गया था कि कमलनाथ के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं.
अपने बचाव में कमलनाथ की दलील:
अब इसे विपक्ष की साजिश कहें या कुछ और, 84 में घटे उस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद, इतना तय माना जा रहा है कि कमलनाथ के बुरे दिनों की शुरुआत हो चुकी है. जांच में क्या आता है इसका फैसला भविष्य की गर्त में छुपा है. मगर जिस हिसाब से एक के बाद एक, कांग्रेस के बड़े नेताओं पर केंद्र सरकार अटैक कर रही है इसके दूरगामी परिणाम कहीं से भी कांग्रेस के हित में नहीं हैं. कमलनाथ के चुनौती सिर्फ बीजेपी की ओर से नहीं है. उन्हें मध्यप्रदेश में ही ज्योतिरादित्य सिंधिया के खेमे के बढ़ते सियासी दबाव को भी झेलना है. क्या पता सिख दंगे का कमलनाथ पर लगा ये आरोप कांग्रेस के भीतर ही कमलनाथ-विरोधी नेताओं को हथियार की तरह दिखाई देने लगे.
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