कुछ ही महीनों में मध्य प्रदेश में 230 सीटों विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. राज्य में कांग्रेस और भाजपा में सीधी टक्कर रहती है. दोनों ही पार्टियों ने अपनी रणनीति को धार देना शुरु कर दिया है. पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा हार गयी थी. कांग्रेस ने कुछ छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी.लेकिन कुछ दिनों बाद कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से हाथ छुड़ा लिया और अपने समर्थक विधायकों के साथ भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया.कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिर गई और सत्ता की कुंजी एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान के हाथों में आ गयी थी. दिलचस्प ये है कि भाजपा कांग्रेस की इस सीधी टक्कर आम आदमी पार्टी भी अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने में जुट गई है. यहाँ भी उसका चुनावी दंगल गुजरात की तर्ज़ पर सजता हुआ दिख रहा है. दिल्ली, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, गुजरात जैसे राज्यों के बाद आम आदमी पार्टी का काफिला मध्य प्रदेश जा पहुंचा है. मध्य प्रदेश ऐसा राज्य हैं जहां कांग्रेस और भाजपा ही अदल-बदलकर सत्ता में आती है.
ऐसे में लोगों को लगता है अब चुनावी रण में आम आदमी पार्टी की एंट्री से जनता को एक नया विकल्प मिल गया है. बीते कुछ दिनों से अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सुर्खियों में है. मामला उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के घर पर पड़े सीबीआई से जुड़ा छापे है. दरअसल, दिल्ली की नई शराब नीति में हुए घोटाले पर बवाल हो रहा. भाजपा केजरीवाल और आप पर निशाना साध रही है. वहीं, आप इसे दिल्ली के शिक्षा मॉडल पर हमला बता रही है. इसके साथ ही आप नेता दावा कर रहे हैं कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा का मुकाबला आम आदमी पार्टी से होगा.
चर्चा ये भी होने लगी है कि क्या गुजरात चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी पूरे देश में कांग्रेस का विकल्प बनने की कोशिश कर रही है? क्या ये दिल्ली-पंजाब की तरह अन्य राज्यों से भी कांग्रेस को खत्म करने की कोशिश है? क्या भाजपा के कांग्रेस मुक्त अभियान को आप आगे बढ़ा रही है कांग्रेस देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है. अभी लोकसभा में उसके 53, राज्यसभा में 31 सदस्य हैं. देशभर में कांग्रेस के 692 विधायक और 43 एमएलसी हैं. वहीं, आम आदमी पार्टी अपने जन्म के बाद महज 10 साल में दो राज्यों में सरकार बन चुकी है. कई राज्यों में उसकी मजबूत दावेदारी है.
अभी आप के 10 राज्यसभा सांसद हैं. 156 विधायक हैं.' राजनीतिक जानकर कहते हैं, 'जहां भी कांग्रेस सत्ता में रही है, वहां आम आदमी पार्टी की मजबूत विकल्प के तौर पर उभरी है. दिल्ली, पंजाब इसके उदाहरण हैं. गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड जैसे राज्यों में कांग्रेस की सीधी लड़ाई भाजपा से होती है. यहां भी आम आदमी पार्टी ने खुद का तेजी से विस्तार करना शुरू किया. उत्तराखंड में आप को सफलता नहीं मिली, लेकिन पूरे चुनाव में आप की चर्चा खूब रही.
अब केजरीवाल की नजर हिमाचल प्रदेश और गुजरात पर थी . यहां भी आप ने कांग्रेस को किनारे करके मुख्य लड़ाई आप और भाजपा के बीच में करने की कोशिश शुरू कर दी थी.' देखा जाय तो तीन बिंदु ऐसे है कि आखिर क्यों आम आदमी पार्टी का बढ़ना कांग्रेस के लिए खत्म होने का संकेत है. पहला , पंजाब में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति पहले भी ज्यादा अच्छी नहीं थी. यहां की क्षेत्रीय पार्टी शिरोमणि अकाली दल भी कुछ खास नहीं कर पाई. आम आदमी पार्टी ही यहां कांग्रेस का विकल्प बनी.
वह भी ऐसी कि कांग्रेस पूरी तरह से साफ ही हो गई. इस बार चुनाव में पंजाब की 117 में से 92 सीटों पर आम आदमी पार्टी ने कब्जा जमाया, जबकि कांग्रेस 77 से 18 पर आकर सिमट गई. भाजपा को दो और शिरोमणिक अकाली दल को तीन सीटों पर जीत मिली. 2017 में पंजाब में आम आदमी पार्टी को 20 सीट पर जीत मिली थी. ये आंकड़े साफ बता रहे हैं कि कैसे अरविंद केजरीवाल ने पंजाब में कांग्रेस को साफ कर दिया. दूसरा : गोवा-मध्य प्रदेश में भी आम आदमी पार्टी मजबूत होती दिखी.
गोवा में पहली बार आम आदमी पार्टी के दो विधायक चुनाव जीते. इनमें एक सीट पर 2017 में कांग्रेस जबकि दूसरे पर एनसीपी की जीत हुई थी. मतलब ये दोनों सीटों पर गैर भाजपाई दलों को नुकसान हुआ. गोवा की करीब 25 ऐसी सीटें थीं, जहां आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का ही वोट काटा. इसका फायदा भाजपा को मिल गया.
वहीं, मध्य प्रदेश की बात करें तो यहां पहली बार आम आदमी पार्टी का मेयर बना है. सिंगरौली में आप प्रत्याशी रानी अग्रवाल ने भाजपा के उम्मीदवार को हराया. रानी भाजपा की नेता रह चुकी हैं. हालांकि, जब ओवरऑल आंकड़ों को देखते हैं तो यहां भी आम आदमी पार्टी ने करीब 60 से ज्यादा वार्डों में कांग्रेस का खेल बिगाड़ा. बुरहानपुर, खंडवा और उज्जैन में मेयर सीट पर भाजपा की जीत हुई. इन तीनों सीटों पर भी आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम की वजह से ही कांग्रेस की हार हुई.
बुरहानपुर में एआईएमआईएम प्रत्याशी को 10 हजार से ज्यादा वोट मिले. इसी तरह उज्जैन में भाजपा उम्मीदवार केवल 736 वोटों से जीती. अब यह मन जा रहा है कि जहां कांग्रेस – भाजपा की लड़ाई हो , वहीँ आप की एंट्री होती है : आमतौर पर कई राज्यों में कांग्रेस को आसानी से मुस्लिम वोटर्स का साथ मिल जाता है. अब एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और अरविंद केजरीवाल इसी को तोड़ने में जुटे हैं.
जहां-जहां कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से है, वहां आम आदमी पार्टी की एंट्री होती है. ऐसी स्थिति में भाजपा की तरफ से भी कांग्रेस को छोड़कर आम आदमी पार्टी पर ही निशाना साधा जाता है. मतलब कुल मिलाकर कांग्रेस को लड़ाई से ही गायब कर दिया जाता है. अब केजरीवाल 2023 के मध्यप्रदेश के चुनाव में दल – बल के साथ उतर चुके है . मंगलवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भोपाल में आयोजित एक रैली में चुनावी बिगुल फूंकते हुए ये घोषणा की कि राष्ट्रीय राजधानी और पंजाब की तर्ज पर ही मध्य प्रदेश में अगर उनकी सरकार आई तो बिजली, स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाओं को मुफ़्त कर दिया जाएगा.
केजरीवाल यहाँ वही पुराना रिकॉर्ड बजाते है कि मध्य प्रदेश में भी एक मौक़ा दीजिए. यहां भी सब मुफ़्त कर देंगे. काम न करूं तो दोबारा वोट मांगने नहीं आऊंगा." इससे पहले केजरीवाल ने प्रदेश की सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान करते हुए भेल क्षेत्र के दशहरा मैदान में आई जनता से कहा कि आम आदमी पार्टी मध्य प्रदेश के अंदर आ चुकी है और अब पूरा प्रदेश बदलाव चाह रहा है. केजरीवाल के अनुसार मध्यप्रदेश को ईमानदार पार्टी का विकल्प मिल गया है. वे कहते है "जैसे हमने दिल्ली को बदला है. वैसे ही मध्य प्रदेश को भी बदल देंगे. ट्रेलर मिल चुका है.
सिंगरौली में रानी अग्रवाल मेयर बन गई हैं. विधानसभा चुनाव में आपको पूरी फ़िल्म दिखाएंगे."( भले ही उनके तीन मंत्री जेल में है पर वो इमानदार पार्टी है !) मंगलवार को अपनी रैली में केजरीवाल ने ये भी कहा कि उन्हें रोकने के लिए हर तरह के षड्यंत्र किए गए. वे बोले, 'हर तरह के षड्यंत्र किए गए, लेकिन हम दिल्ली से पंजाब पहुंच गए और शेर की मांद से गुजरात में 14 प्रतिशत वोट भी ले लिए.' इस दौरान उन्होंने ये भी दावा किया कि 2027 में गुजरात में आम आदमी पार्टी की सरकार बनेगी.
गुजरात में 2017 में आम आदमी पार्टी ने 29 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन सभी उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई थी. वहीं 2022 में पार्टी को जीत तो केवल पांच सीटों पर ही मिली, लेकिन 35 सीटों पर उनके प्रत्याशी नंबर-2 पर रहे. वहीं 12.02 फ़ीसद वोट शेयर भी उसे हासिल हुआ.फिर घूम फिर कर वही सवाल उठता है कि क्या आम आदमी पार्टी मध्य प्रदेश में अपनी राजनीतिक छाप छोड़ पाएगी? केजरीवाल की पार्टी के यहां से चुनाव लड़ने पर किसे सबसे अधिक नुक़सान होगा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मध्य प्रदेश में आम आदमी पार्टी का पहला चुनाव है, लिहाज़ा वह कैसा प्रदर्शन करेगी यह तो देखने वाली बात होगी, हालांकि उन्होंने अनुमान लगाया कि कांग्रेस को वो नुक़सान पहुंचा सकती है.कांग्रेस पर नज़र रखने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि यह कांग्रेस के लिए चिंता की बात है, जबकि भारतीय जनता पार्टी को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला. उन्होंने कहा, 'इसका आना कांग्रेस के लिए सीधा नुक़सान है. 2018 में हुए पिछले चुनाव में हमने देखा कि भाजपा और कांग्रेस लगभग बराबर ही रहे थे.
इस बार कांग्रेस पर दबाव है कि वो कम से कम 25 सीटों के अंतर से जीत दर्ज करे क्योंकि पिछली बार पार्टी टूट गई थी.' गुजरात का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि वहां पर भी कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को कुछ नहीं समझने की भूल की थी जिसका उन्हें नुक़सान उठाना पड़ा था. ग्वालियर के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक जानकार का भी मानना है कि आम आदमी पार्टी बहुत कुछ तो नहीं कर सकेगी, लेकिन नुक़सान पहुंचाने का माद्दा ज़रूर रखती है.
वे कहते हैं, 'ये नुक़सान पहुंचाने का माद्दा रखती है और जब नुक़सान की बात की जाएगी तो वो कांग्रेस को होगा.' वे बताते हैं कि आमतौर पर मध्य प्रदेश की राजनीति अब तक दो दलीय ही रही है और यहां दो मुख्य राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस रहे हैं."बीच में हमने बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टियों को भी कुछ सीटों पर जीतते देखा है. वो उत्तर प्रदेश से लगे क्षेत्रों में कुछ सीटें जीतने में कामयाब रही हैं.
हालांकि बाद में सत्ताधारी पार्टी उन्हें अपने दल में मिलाने में सफल रही थी.' वे कहते हैं, 'इस बार भी चुनाव दोनों पार्टियों के बीच ही है, लेकिन आम आदमी पार्टी कांग्रेस का खेल बिगाड़ने का काम करेगी.' उनका मानना है कि यदि ''आप पार्टी अगर 100 सीटों पर चुनाव लड़ती तो भी कांग्रेस के लिए ख़तरा होता. हालांकि पार्टी को सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए सही प्रत्याशी मिलने में मुश्किल होगी.'
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि 'आप' या ओवैसी की पार्टी के मध्य प्रदेश से चुनाव लड़ने से भाजपा के लिए राह आसान ही होगी, वहीं वे ये भी कहते हैं कि इससे यहां की दो मुख्य पार्टियों से नाराज़ लोगों को तीसरा विकल्प भी मिलेगा.' सब से बड़ी बात ये है कि 'आप' का जो एजेंडा है वो कांग्रेस के अनुरूप ही है और काफ़ी आकर्षक भी है.'
वे कहते हैं, ' अभी तक की दलीय स्थिति में हमने प्रदेश की सीमा से लगे इलाके में ही नई पार्टियों का असर देखा है, लेकिन 'आप' पूरी तरह से शहरी पार्टी है और किसी को भी आकर्षित करने का माद्दा रखती है.' उनके मुताबिक़, "आप प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस से नाराज़ मतदाताओं के लिए एक तीसरा विकल्प भी उपलब्ध कराता है जो पहले यहां के लोगों के पास नहीं था.' हालांकि उनका ये भी मानना है कि इन पार्टियों के आने से सत्तारूढ़ भाजपा की राह आसान हो रही है.वे आगे कहते हैं, ' असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी भी प्रदेश में अपने हाथ आज़माएगी और वो भी काग्रेंस के ही वोट कम करेगी.'
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