भाजपा और संघ पर अपनी गहरी पकड़ रखने वाले, या फिर उसे समझने वाले राजनीतिक पंडित हैरान हैं. होना भी चाहिए. वजह राज्यसभा चुनावों के प्रत्याशियों की लिस्ट और उस लिस्ट से मुख़्तार अब्बास नकवी का नाम गायब होना है. राज्यसभा चुनावों के मद्देनजर भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी की है. दिलचस्प ये कि इस बार भाजपा ने किसी भी मुस्लिम नेता पर दांव नहीं खेला है. चूंकि वर्तमान में मुख़्तार राज्य सभा सांसद हैं. इसलिए बात अब उनकी साख पर आ गई है. मुख़्तार के लिए ये वक़्त मुश्किल है. अगर वो पुनः संसद पहुंचने में असमर्थ रहे तो ये चीज उनके मंत्रिपद को प्रभावित करेगी. 6 महीने के अंतराल में नकवी का मंत्री पद भी छिन सकता है. राज्यसभा उम्मीदवारों की सूची में मुख्तार अब्बास नकवी का नाम न होने से कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. एक तो यह कि क्या अब संसद के दोनों सदनों में भाजपा मुस्लिम-विहीन पार्टी बनकर रहेगी, या मुख्तार को रामपुर से उपचुनाव लड़वाया जाएगा?
मुख़्तार के मद्देनजर भले ही तमाम तरह के सवाल और कयास अहम हों. लेकिन हमें इस बात को भी समझना होगा कि मुख़्तार पार्टी में बने रहते हैं या फिर भाजपा बड़ी ही चतुराई से उन्हें बहार का रास्ता दिखाती है इसपर सारे देश की नजर है. ज्ञात हो कि चाहे वो केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी हों या फिर एमजे अकबर और सैयद जफर इस्लाम इन तीनों ही मुस्लिम चेहरों का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है.
ऐसे में अब जब पार्टी ने मुख़्तार को एग्जिट गेट दिखा ही दिया है तो अलग अलग तर्क दिए जा रहे हैं और एक पार्टी के रूप में भारतीय जनता पार्टी आलोचकों के निशाने पर है....
भाजपा और संघ पर अपनी गहरी पकड़ रखने वाले, या फिर उसे समझने वाले राजनीतिक पंडित हैरान हैं. होना भी चाहिए. वजह राज्यसभा चुनावों के प्रत्याशियों की लिस्ट और उस लिस्ट से मुख़्तार अब्बास नकवी का नाम गायब होना है. राज्यसभा चुनावों के मद्देनजर भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी की है. दिलचस्प ये कि इस बार भाजपा ने किसी भी मुस्लिम नेता पर दांव नहीं खेला है. चूंकि वर्तमान में मुख़्तार राज्य सभा सांसद हैं. इसलिए बात अब उनकी साख पर आ गई है. मुख़्तार के लिए ये वक़्त मुश्किल है. अगर वो पुनः संसद पहुंचने में असमर्थ रहे तो ये चीज उनके मंत्रिपद को प्रभावित करेगी. 6 महीने के अंतराल में नकवी का मंत्री पद भी छिन सकता है. राज्यसभा उम्मीदवारों की सूची में मुख्तार अब्बास नकवी का नाम न होने से कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. एक तो यह कि क्या अब संसद के दोनों सदनों में भाजपा मुस्लिम-विहीन पार्टी बनकर रहेगी, या मुख्तार को रामपुर से उपचुनाव लड़वाया जाएगा?
मुख़्तार के मद्देनजर भले ही तमाम तरह के सवाल और कयास अहम हों. लेकिन हमें इस बात को भी समझना होगा कि मुख़्तार पार्टी में बने रहते हैं या फिर भाजपा बड़ी ही चतुराई से उन्हें बहार का रास्ता दिखाती है इसपर सारे देश की नजर है. ज्ञात हो कि चाहे वो केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी हों या फिर एमजे अकबर और सैयद जफर इस्लाम इन तीनों ही मुस्लिम चेहरों का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है.
ऐसे में अब जब पार्टी ने मुख़्तार को एग्जिट गेट दिखा ही दिया है तो अलग अलग तर्क दिए जा रहे हैं और एक पार्टी के रूप में भारतीय जनता पार्टी आलोचकों के निशाने पर है. पूर्व में ऐसे तमाम मौके आए हैं जिसमें भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इस बात पर बल दिया कि भाजपा अपने प्रतिनिधियों को धर्म के आधार पर नहीं देखती. मगर अब जबकि प्रत्याशियों के नाम की लिस्ट हमारे सामने है, साफ़ हो गया है कि मुख़्तार का नाम उनकी पार्टी भक्ति के आड़े आ गया है.
आज भाजपा भले ही कुछ भी कह ले. कितना ही अपने को मुस्लिम हितों का हिमायती क्यों न दर्शा ले मगर मुख़्तार के साथ जो सुलूक भारतीय जनता पार्टी ने किया अब शायद ही कोई भाजपा के दावों पर यकीन करे. जिक्र अगर एक दल के रूप में भाजपा का हो तो वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में बिहार में शाहनवाज हुसैन, यूपी में दानिश आजाद और केरल में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ही हैं, यही वो लोग हैं जिनके नामों का हवाला देकर भाजपा मुसलमानों की नुमाइंदगी देने का उदाहरण दे सकती है. ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि क्या इतना काफी है? जवाब है नहीं. मगर किसी और दल की तरह भाजपा की भी मुसलमानों को लेकर अपनी राजनीतिक मजबूरियां हैं.
तो क्या ये सब अचानक हुआ? क्या अगर राज्यसभा प्रत्याशियों की लिस्ट से मुख़्तार का नाम गायब हुआ तो वो यूं ही जल्दबाजी में ले लिया गया फैसला था? ऐसे सवालों पर बात करने से पहले हमें इस बात का भी अवलोकन करना होगा कि मुसलमानों और भाजपा के बीच की खाई दिन-रात बढ़ती जा रही है. चाहे वो नागरिकता का मुद्दा हो. या फिर मंदिर-मस्जिद का मसला, पहनावे से लेकर खान-पान तक हालिया दिनों में ऐसा बहुत कुछ हो चुका है जिसके बाद कहा यही जाएगा कि अब देश के मुसलमानों और भाजपा के बीच संवाद की सम्भावना शायद ही बची हो.
आए रोज किसी न किसी बात पर बहस हो रही है जो तस्दीख कर देती है कि दिलों की दूरियों को अब शायद ही कोई पुल जोड़ने में कामयाब हो. भाजपा और देश के मुसलमानों के बीच कड़वाहट का लेवल क्या है? इस बात को समझने के लिए हमें कोई बहुत ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है. किसी भी चुनाव में भाजपा को मिलने वाले मुस्लिम वोटों का प्रतिशत 8 प्रतिशत से ऊपर नहीं जाता.
ऐसे में भाजपा ये कह सकती है कि जब उन्हें हम पर भरोसा नहीं है, तो हमसे ही उम्मीद क्यों हो? बात सही भी है लेकिन फिर, ऐसा कहने में पीएम मोदी का वो नारा संदेह के घेरों में आता है जिसमें उन्होंने सारा जोर 'सबका साथ, सबका विकास' पर दिया था. मुख़्तार के साथ अभी जो हुआ है. या फिर भविष्य में जो कुछ भी होगा उसको आधार बनाकर कहा जा सकता है कि मुसलमानों से दूरी बनाकर यदि भाजपा हिंदुओं को पास ले आती है, तो चुनावी लिहाज से ये सौदा बुरा नहीं है.
लेकिन, चूंकि अब भी भारत एक सेक्युलर देश है. इस विचारधारा के दूरगामी परिणाम कहीं से भी सुखद नहीं हैं. खैर हम फिर इस बात को दोहराना चाहेंगे कि मुख़्तार के साथ जो कुछ भी होगा उसके जवाब हमें आने वाले वक़्त में मिल जाएंगे लेकिन जिस तरह राज्य सभा प्रत्याशियों की लिस्ट से मुख़्तार का नाम काटा गया है भाजपा ने बहुत साफ़ लहजे में देश के मुसलमानों को स्पष्ट संदेश दे दिया है.
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