मुख्तार अब्बास नकवी (Mukhtar Abbas Naqvi) और आरसीपी सिंह दोनों ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से एक ही साथ इस्तीफा दिया, लेकिन ट्विटर पर एक ही नाम ट्रेंड कर रहा था. मुख्तार अब्बास नकवी का नाम ट्विटर पर करीब करीब वैसे ही ट्रेंड कर रहा था जैसे राष्ट्रपति चुनाव की घोषणा होने के बाद केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का.
ट्विटर पर कुछ लोग मुख्तार अब्बास नकवी के नाम पर अपने अकाउंट से पोल भी करा रहे हैं - और पूछ रहे हैं कि नकवी को उपराष्ट्रपति (Vice President) बनाया जाएगा या किसी राज्य का गवर्नर?
मुख्तार अब्बास नकवी के साथ इस्तीफा देने वाले आरसीपी सिंह का राज्य सभा का कार्यकाल एक साथ खत्म हो रहा था. 6 जुलाई को अपने जन्मदिन की बधाइयां स्वीकार करते हुए आरसीपी सिंह ने भी इस्तीफा दे दिया. पहले दोनों नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और फिर अपने इस्तीफे सौंप दिये.
आरसीपी सिंह जेडीयू कोटे से केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए थे और अपने नेता नीतीश कुमार से मनमुटाव के कारण राज्य सभा टिकट पाने से रह गये, मंत्री पद तो जाना ही था. हाल ही में आरसीपी सिंह हैदराबाद पहुंचे तो उनके बीजेपी में शामिल होने की संभावना जतायी जाने लगी. फिर बीजेपी की तरफ से बताया गया कि वो वहां एनडीए के नेता के तौर पर पहुंचे थे.
लेकिन मुख्तार अब्बास नकवी को जब बीजेपी ने राज्यसभा नहीं भेजा तो तरह तरह के कयास लगाये जाने लगे. पहले लगा कि बीजेपी रामपुर उपचुनाव में नकवी को उम्मीदवार बनाएगी, लेकिन वैसा नहीं हुआ. नकवी एक बार रामपुर से बीजेपी (BJP) के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं.
फिर राष्ट्रपति चुनाव में नकवी को उम्मीदवार बनाये जाने की चर्चा चल रही थी. मुख्तार अब्बास नकवी के शिया होने की वजह से भी माना जा रहा था कि बीजेपी उनको उम्मीदवार बना सकती है - और जब अपनी मां के जन्म दिन पर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने बचपन के दोस्त अब्बास का का किस्सा सुनाया तो नकवी का नाम काफी हद तक पक्का लगने लगा था.
कहीं ऐसा तो नहीं कि जिस अब्बास का नाम राष्ट्रपति चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा था, वो असल में उप राष्ट्रपति चुनाव की तरफ इशारा कर रहा था? उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त को खत्म होने जा रहा है - और 6 अगस्त को उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने वाले हैं. उपराष्ट्रपति पद के लिए नामांकन की आखिरी तारीख 19 जुलाई है.
नकवी के पहले से ही उपराष्ट्रपति पद के लिए राज्य सभा की उपसभापति रहीं नजमा हेपतुल्ला के अलावा पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का नाम भी संभावितों में लिया जा रहा है - और राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू को एनडीए का उम्मीदवार बना दिये जाने के बाद अब केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का नाम उपराष्ट्रपति पद के संभावित उम्मीदवारों में शुमार हो गया है.
अब अगर मुख्तार अब्बास नकवी और आरिफ मोहम्मद खान दोनों को दावेदार समझा जाता है तो थोड़े आगे पीछे की बात और है, मामला करीब करीब बराबरी पर ही छूटेगा. मुख्तार अब्बास नकवी बरसों से बीजेपी के निष्ठावान और अनुशासित कार्यकर्ता रहे हैं. अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री होने के साथ साथ, हिंदू-मुस्लिम बहसों में जब भी कोई दिक्कत वाली बात होती, बचाव के लिए नकवी को ही आगे कर दिया जाता रहा.
नकवी का इस्तीफे देते ही नड्डा से मिलना
मुख्तार अब्बास नकवी अभी 64 साल के ही हैं यानी बीजेपी में रिटायर किये जाने की अघोषित उम्र सीमा में भी अभी 11 साल बचा हुआ है. एक बात जरूर साफ रही कि प्रधानमंत्री मोदी को किसी मुस्लिम राष्ट्रपति की वैसी जरूरत नहीं थी, जैसी गुजरे जमाने में तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को गठबंधन की राजनीति चलाने के लिए हुआ करती थी.
और अब तो ये दलील भी खत्म हो चुकी है कि मुस्लिम उम्मीदवार के खिलाफ विपक्ष के लिए चैलेंज करना मुश्किल होता. बीजेपी ने तो आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू को ही राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बना कर पूरे विपक्ष की हवा निकाल दी है. राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की संयोजक बनीं ममता बनर्जी तो मुर्मू की जीत का चांस बनाकर तृणमूल कांग्रेस नेता यशवंत सिन्हा की फजीहत तक करा चुकी हैं.
नकवी को लेकर मोदी-शाह के मन में क्या चल रहा है?
राष्ट्रपति चुनाव 2024 के आम चुनाव के हिसाब से विपक्ष के एकजुट होने के लिए बेहतरीन मौका था, लेकिन वो एक बार फिर चूक गये. और चूक जाने की वजह भी रही. एक तरफ राहुल गांधी को नेशनल हेराल्ड मनी लॉन्ड्रिंग केस में प्रवर्तन निदेशालय के सामने पूछताछ के लिए पेश होना पड़ा, दूसरी तरफ सोनिया गांधी को कोविड पॉजिटिव होने के बाद तबीयत ज्यादा खराब होने पर अस्पताल में भी कई दिन गुजारने पड़े.
सोनिया गांधी अस्पताल से तो 10, जनपथ लौट आयी हैं, लेकिन ठीक होने पर विपक्ष की राजनीति फिर से शुरू करने से पहले कांग्रेस अध्यक्ष को भी ईडी के सामने पूछताछ के लिए पेश होना है. जरूरी नहीं कि उसके बाद भी गांधी परिवार की मुश्किलें खत्म हो जायें - क्योंकि उसके बाद ऐसी भी आशंका जतायी जा रही है कि राहुल गांधी को गिरफ्तार भी किया जा सकता है.
कानूनी पचड़ों में फंसे होने की वजह से ही राष्ट्रपति चुनाव में सारी जिम्मेदारी ममता बनर्जी पर आ गयी थी. ममता बनर्जी को भी कई झटके लगे क्योंकि जिस किसी के सामने वो राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने का प्रस्ताव रखतीं, वो इनकार कर देता. आखिर में कोई तैयार नहीं हुआ तो टीएमसी से ममता बनर्जी ने यशवंत सिन्हा से नामांकन दाखिल करवाया.
राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष को जीत की उम्मीद तो कम ही रही होगी, लेकिन ममता बनर्जी के लिए सबसे बड़ा झटका रहा महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार का गिर जाना. 2024 के लिए उद्धव ठाकरे को ममता बनर्जी का नेतृत्व भले ही मंजूर न हो, लेकिन विपक्षी गठबंधन का एक मजबूत प्रयोग औंधे मुंह गिर जाना काफी निराशाजनक रहा.
जिस महाविकास आघाड़ी सरकार के बूते शरद पवार दिल्ली पर दबाव बनाये हुए थे, वो तो एक झटके में खत्म हो गया. ये बात अलग है कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनके संबंध ऐसे हैं कि शिवसेना सांसद संजय राउत को ईडी की तरफ से नोटिस मिलता है तो मिलने पहुंच जाते हैं. ये बात शरद पवार ने ही बतायी थी, लेकिन अपडेट ये भी है कि संजय राउत एक बार पूछताछ के लिए पेश हो चुके हैं - और कहा है कि आगे भी बुलाया जाएगा तो जाऊंगा. वैसे ये कोई बात तो हुई नहीं. ईडी की तरफ से बुलावा आएगा तो जाना ही पड़ेगा. हर कोई शरद पवार तो है नहीं कि ईडी की तरफ से कहा जाएगा कि वो पेशी का अपना कार्यक्रम रद्द कर दें.
रही बात मुख्तार अब्बास नकवी और जेपी नड्डा की मुलाकात की तो, ये वाकया ध्यान तो खींचता ही है. मोदी कैबिनेट से इस्तीफे के बाद आरसीपी सिंह की जेपी नड्डा से मुलाकात को तो उनके बीजेपी में शामिल होने से जोड़ कर देखा जा सकता था, लेकिन मुख्तार अब्बास का बीजेपी अध्यक्ष से इस्तीफे के तत्काल बाद मिलना कुछ अलग इशारे तो करता ही है. अगर ऐडजस्ट करने की ही बात है तो संगठन में नकवी को कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने से भी मुलाकात को जोड़ कर देखा जा सकता है.
अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को मुख्तार अब्बास नकवी को किसी राज्य का गवर्नर बनाना होता तो बीजेपी अध्यक्ष नड्डा से मिलने की कतई जरूरत नहीं होती. नड्डा से मुलाकात का मतलब ही है कि नकवी को लेकर मोदी-शाह के मन में कोई महत्वपूर्ण बात चल रही है.
नकवी की उम्मीदवारी की संभावना
नुपुर शर्मा को लेकर केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी चाहे जो भी दावा करें, अभी तक बीजेपी की तरफ से कोई भी संकेत नहीं मिला है कि उनको दिल से माफी मिल चुकी है. अजय मिश्रा टेनी को यूपी चुनाव के दौरान बीजेपी के मंचों से झलक दिखा कर ये संकेत देने की कोशिश भी हुई थी, लेकिन नुपुर शर्मा के मामले में तो अब तक ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है. केंद्रीय मंत्री टेनी कम से कम दो बार सार्वजनिक तौर पर देखे गये थे - एक बार अमित शाह के साथ लखनऊ की रैली में और दूसरी बार रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ सीतापुर के कार्यकर्ता सम्मेलन में.
अव्वल तो बीजेपी को उपराष्ट्रपति चुनाव में भी किसी मुस्लिम उम्मीदवार की जरूरत नहीं है. राष्ट्रपति चुनाव में ही विपक्ष का जोश पूरी तरह ठंडा पड़ चुका है, इसलिए उपराष्ट्रपति चुनाव में भी बिलकुल वही हालत होने वाली है - लेकिन ये कोई आखिरी चुनाव तो हैं नहीं.
जरूरी न होकर भी मुख्तार अब्बास नकवी का चेहरा सामने रखना बीजेपी के लिए कई मायनों में फायदेमंद साबित हो सकता है - देश के अंदर भी और देश के बाहर भी.
1. मुख्तार अब्बास नकवी किसी राज्य का गवर्नर बन कर बीजेपी को वो फायदा नहीं दिला सकते तो उपराष्ट्रपति बनाने पर पार्टी को मिल सकता है. गवर्नर बनाये जाने पर नकवी मार्केट में एक और आरिफ मोहम्मद खान जैसी आवाज बन कर रह जाएंगे, लेकिन उपराष्ट्रपति के तौर पर ज्यादा भारी पड़ेंगे.
2. पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को अक्सर ही मुस्लिम समुदाय से जुड़े मुद्दों पर सक्रिय देखा जाता है. हामिद अंसारी के बयान हमेशा ही मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाले ही होते हैं - ऐसे में नकवी अगर नयी भूमिका में आते हैं तो एक तरह से बीजेपी की तरफ से काउंटर करने जैसा ही होगा.
3. मुख्तार अब्बास नकवी को उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए का उम्मीदनवार बनाये जाने की सूरत में बीजेपी के लिए नुपुर शर्मा विवाद से जूझने में मदद मिल सकती है - और उनकी मुख्यधारा में वापसी भी आसान हो सकती है.
4. जैसे द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बना कर बीजेपी पहली बार आदिवासी समुदाय से किसी व्यक्ति को राष्ट्रपति भवन भेजने का क्रेडिट लेने जा रही है, नकवी को उपराष्ट्रपति बना कर बीजेपी चाहे तो प्रधानमंत्री मोदी के नारे 'सबका साथ सबका विकास' को सही मायने में जस्टिफाई कर सकती है.
5. मुख्तार अब्बास नकवी को उपराष्ट्रपति बनाने के बाद बीजेपी राज्य सभा में कोई भी मुस्लिम चेहरा न होने की तोहमत से भी बच जाएगी - क्योंकि राज्य सभा का सभापति तो देश का उपराष्ट्रपति ही होता है.
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