एक बात कभी नहीं भूलना चाहिये. बाप-बेटे के झगड़े में जो भी पड़ा झंडू हो गया. मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के मामले में ये बात अमर सिंह अरसे पहले कह चुके हैं. वैसे सियासत में ये सिलसिला चलता रहता है. बाप-बेटे की एक जंग खत्म हो गयी तो दूसरे बाप-बेटे यानी यशवंत सिन्हा और जयंत सिन्हा आमने सामने आ गये हैं.
समाजवादी पार्टी का झगड़ा एक बार फिर बड़े ही नाजुक दौर में पहुंच गया है. बाप-बेटे का झगड़ा अब करवट बदल रहा है. मुलायम की मुश्किल ये है कि वो भाई को छोड़ना नहीं चाहते और बेटे के साथ भी खड़े रहना चाहते हैं. मन की ये दोनों बातें तो होने से रहीं, इसलिए दोनों में से किसी एक को ही चुनना होगा - और वही हो रहा है.
पहले अखिलेश, अब शिवपाल को नसीहत
कहा जाता है कि समाजवादी पार्टी के झगड़े कि स्क्रिप्ट खुद मुलायम सिंह ने ही लिखी थी. वैसे स्क्रिप्ट के हिसाब से भला होता क्या है? जब फिल्म में ही पूरी स्क्रिप्ट बदल दी जाती हो, फिर ये तो सियासत है. वैसे भी मुलायम के किसी भी स्क्रिप्ट में समाजवादी पार्टी की हार तो लिखी नहीं होगी. मुलायम की स्क्रिप्ट में लीड रोल तो अखिलेश के लिए ही था, इसलिए बचा हुआ साइड रोल शिवपाल को मिलना था. सब कुछ जानते समझते हुए शिवपाल भी जंग जारी रखे हुए थे.
जो बात मुलायम सिंह अभी तक सार्वजनिक तौर पर अखिलेश से कहा करते थे अब वही बात उन्होंने शिवपाल के कान में कह दी है - 'मेरी चिंता छोड़ो और पहले अखिलेश से अपने संबंध सुलझाओ.'
सार्वजनिक तौर पर शिवपाल ने भी किसी तरह के गुस्से का इजहार नहीं किया है. शिवपाल का कहना है कि उनके लिए मुलायम सिंह यादव का सम्मान सर्वोपरि है.
नेताजी को न्योता
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक शिवपाल...
एक बात कभी नहीं भूलना चाहिये. बाप-बेटे के झगड़े में जो भी पड़ा झंडू हो गया. मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के मामले में ये बात अमर सिंह अरसे पहले कह चुके हैं. वैसे सियासत में ये सिलसिला चलता रहता है. बाप-बेटे की एक जंग खत्म हो गयी तो दूसरे बाप-बेटे यानी यशवंत सिन्हा और जयंत सिन्हा आमने सामने आ गये हैं.
समाजवादी पार्टी का झगड़ा एक बार फिर बड़े ही नाजुक दौर में पहुंच गया है. बाप-बेटे का झगड़ा अब करवट बदल रहा है. मुलायम की मुश्किल ये है कि वो भाई को छोड़ना नहीं चाहते और बेटे के साथ भी खड़े रहना चाहते हैं. मन की ये दोनों बातें तो होने से रहीं, इसलिए दोनों में से किसी एक को ही चुनना होगा - और वही हो रहा है.
पहले अखिलेश, अब शिवपाल को नसीहत
कहा जाता है कि समाजवादी पार्टी के झगड़े कि स्क्रिप्ट खुद मुलायम सिंह ने ही लिखी थी. वैसे स्क्रिप्ट के हिसाब से भला होता क्या है? जब फिल्म में ही पूरी स्क्रिप्ट बदल दी जाती हो, फिर ये तो सियासत है. वैसे भी मुलायम के किसी भी स्क्रिप्ट में समाजवादी पार्टी की हार तो लिखी नहीं होगी. मुलायम की स्क्रिप्ट में लीड रोल तो अखिलेश के लिए ही था, इसलिए बचा हुआ साइड रोल शिवपाल को मिलना था. सब कुछ जानते समझते हुए शिवपाल भी जंग जारी रखे हुए थे.
जो बात मुलायम सिंह अभी तक सार्वजनिक तौर पर अखिलेश से कहा करते थे अब वही बात उन्होंने शिवपाल के कान में कह दी है - 'मेरी चिंता छोड़ो और पहले अखिलेश से अपने संबंध सुलझाओ.'
सार्वजनिक तौर पर शिवपाल ने भी किसी तरह के गुस्से का इजहार नहीं किया है. शिवपाल का कहना है कि उनके लिए मुलायम सिंह यादव का सम्मान सर्वोपरि है.
नेताजी को न्योता
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक शिवपाल यादव ने अपने समर्थकों से कहा है कि उन्हें तो बस नेताजी यानी मुलायम के सम्मान से मतलब है. अगर अखिलेश यादव सम्मान देते हैं और उससे नेताजी खुश हैं तो उसके अलावा उन्हें कुछ भी नहीं चाहिये.
शिवपाल असल में अखिलेश से कहते रहे हैं कि वो मुलायम को समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष पद सौंप दें. उनकी इस मांग का परिवार में अपर्णा यादव ने भी सपोर्ट किया था. यूपी चुनावों से पहले मची उठापटक के दौरान ही समाजवादी पार्टी का सम्मेलन बुलाया गया था और उसी में अखिलेश यादव को अध्यक्ष बना दिया गया.
5 अक्टूबर को आगरा में समाजवादी पार्टी का सम्मेलन होने जा रहा है. अखिलेश यादव ने मुलायम से मिलकर सम्मेलन में आने का न्योता दिया है. इस दौरान दोनों की लंबी बात भी हुई है - और बताया जाता है कि मुलायम ने सम्मेलन में पहुंचने का भरोसा भी दिलाया है.
नये संविधान के तहत इस बार राष्ट्रीय अध्यक्ष भी पांच साल के लिए चुने जाएंगे. अखिलेश यादव के नाम पर तो सहमति बन ही चुकी है - सम्मेलन में मुहर भी लग जाएगी.
अखिलेश से विवाद खत्म करने के लिए शिवपाल को मुलाकात करनी होगी. अगर मुलायम की बात मान कर शिवपाल ऐसा करते हैं तो जाहिर है सम्मेलन में भी जाएंगे ही. लेकिन क्या वास्तव में ऐसा ही होगा? कहना मुश्किल है क्योंकि लखनऊ के सियासी गलियारों में तमाम चर्चाएं बहस का मुद्दा हैं.
नीतीश के साथ शिवपाल?
अव्वल तो मुलायम सिंह यादव से शिवपाल को नयी पार्टी की घोषणा की उम्मीद थी, लेकिन कहा जाता है कि नेताजी ने वे पन्ने प्रेस कांफ्रेंस में पढ़े ही नहीं. उल्टे शिवपाल पर अखिलेश से सुलह का दबाव बनाने लगे. ये दबाव भी जोर पकड़ा जब अखिलेश ने घर जाकर मुलायम से मुलाकात कर ली. फौरन बाद पहुंचे तो शिवपाल भी लेकिन फरियाद मंजूर न हुई, ऊपर से नसीहत लेकर लौटना पड़ा.
नतीजा ये हुआ है कि शिवपाल को इधर उधर हाथ पांव मारने को मजबूर होना पड़ा है. सवाल ये है कि शिवपाल के पास विकल्प क्या क्या हो सकते हैं? कांग्रेस में वे जा नहीं सकते. पहले तो उन्हें वहां कोई उम्मीद नजर नहीं आती, दूसरे अखिलेश के साथ कांग्रेस का गठबंधन अब भी कायम है. रही बात बीएसपी की तो चुनावों के वक्त मायावती ने शिवपाल के प्रति खूब सहानुभूति जतायी थी, लेकिन बाद में तो और बीएसपी का ही हाल बुरा हो गया. चर्चा में सबसे ऊपर है कि शिवपाल जल्द ही नीतीश कुमार के साथ जा सकते हैं. तो क्या इसमें बीजेपी की भी कोई भूमिका हो सकती है?
कहा जा रहा है कि शिवपाल जेडीयू ज्वाइन करने के बाद यूपी के प्रभारी बनाये जा सकते हैं. अगर इतना हुआ तो एनडीए में होने के चलते शिवपाल योगी सरकार में मंत्री भी बन सकते हैं. जहां तक शिवपाल के रिश्तों की बात है तो नीतीश के शपथग्रहण में मुलायम की जगह वो ही गये थे - और योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद शिवपाल मिलने भी गये थे.
इन्हें भी पढ़ें :
शिवपाल ने चुपके से पंचर कर दी अखिलेश की साईकिल
अपर्णा यादव की मेनका गांधी से तुलना की वजह बहुत वाजिब है
यूपी के लड़के साथ साथ हैं - राहुल गांधी की तरह अखिलेश यादव ने भी दिये बयान
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.