दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों.
कई बसंत पहले ये बेशकीमती शेर मशहूर शायर बशीर बद्र ने क्या सोचकर लिखा था उसपर लंबा विमर्श हो सकता है लेकीन २०२२ के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ को लेकर जो रंग एक दूसरे शायर मुनव्वर राणा के हैं, शायद बशीर साहब जब इस शेर के लिए रदीफ़ काफ़िया गढ़ रहे थे, मां को अपनी शायरी में फिट करके बुलंदियों पर पहुंचने वाले शायर मुनव्वर उनके जेहन में रहे हों. शेर ऊपर है. मुनव्वर हमारे सामने हैं. चूंकि योगी और मुनव्वर कभी दोस्त होंगे नहीं, तो भले ही टेक्निकल रूप से ये शेर गलत साबित हो. लेकिन अब जब बात निकल गई है तो दूर तक जाएगी और शायद पलायन को मजबूर मुनव्वर को भी अपने साथ लेकर चली जाए.
न कोई इधर उधर की बात ही नहीं है. चुनाव हैं तो मुनव्वर के अंदर का भी पुष्पा... पुष्पराज जाग गया है जो अपने फैंस के आगे योगी के लिए फ्लावर नहीं बल्कि फायर है. शायद एक ऐसी फायर जिसमें चुनावों तक रह रहकर चिंगारी उठेगी फिर 10 मार्च के बाद राख का ढेर ही बचेगा.
जैसा कि लाजमी था. यूपी चुनावों से पहले देश के जाने माने शायरों में शुमार मुनव्वर राना ने हमारे सहयोगी आजतक से मन की बात की है और सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ जमकर जहर उगला है. मुनव्वर ने कहा है कि अगर भाजपा की सरकार आती है और योगी दोबारा सीएम बनते हैं तो वो उत्तर प्रदेश से पलायन कर जाएंगे. अपनी बातें कहते हुए मुनव्वर थोड़ा पोएटिक भी हुए और कहा किअपनी मिट्टी को छोड़ना दुख तो देगा लेकिन जब घोसला खतरे...
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों.
कई बसंत पहले ये बेशकीमती शेर मशहूर शायर बशीर बद्र ने क्या सोचकर लिखा था उसपर लंबा विमर्श हो सकता है लेकीन २०२२ के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ को लेकर जो रंग एक दूसरे शायर मुनव्वर राणा के हैं, शायद बशीर साहब जब इस शेर के लिए रदीफ़ काफ़िया गढ़ रहे थे, मां को अपनी शायरी में फिट करके बुलंदियों पर पहुंचने वाले शायर मुनव्वर उनके जेहन में रहे हों. शेर ऊपर है. मुनव्वर हमारे सामने हैं. चूंकि योगी और मुनव्वर कभी दोस्त होंगे नहीं, तो भले ही टेक्निकल रूप से ये शेर गलत साबित हो. लेकिन अब जब बात निकल गई है तो दूर तक जाएगी और शायद पलायन को मजबूर मुनव्वर को भी अपने साथ लेकर चली जाए.
न कोई इधर उधर की बात ही नहीं है. चुनाव हैं तो मुनव्वर के अंदर का भी पुष्पा... पुष्पराज जाग गया है जो अपने फैंस के आगे योगी के लिए फ्लावर नहीं बल्कि फायर है. शायद एक ऐसी फायर जिसमें चुनावों तक रह रहकर चिंगारी उठेगी फिर 10 मार्च के बाद राख का ढेर ही बचेगा.
जैसा कि लाजमी था. यूपी चुनावों से पहले देश के जाने माने शायरों में शुमार मुनव्वर राना ने हमारे सहयोगी आजतक से मन की बात की है और सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ जमकर जहर उगला है. मुनव्वर ने कहा है कि अगर भाजपा की सरकार आती है और योगी दोबारा सीएम बनते हैं तो वो उत्तर प्रदेश से पलायन कर जाएंगे. अपनी बातें कहते हुए मुनव्वर थोड़ा पोएटिक भी हुए और कहा किअपनी मिट्टी को छोड़ना दुख तो देगा लेकिन जब घोसला खतरे में हो तो चिड़िया भी अपना आशियाना छोड़ जाती है.
बातें अतार्किक हैं लेकिन जनता को उनमें तर्क दिखाना है. इसलिए मुनव्वर ने जात पात का तान छेड़ा. कोरोना की बातें की. लॉक डाउन के वक़्त कई सौ किलोमीटर पैदल चलकर अपने घरों को पहुंचे प्रवासी मजदूरों का जिक्र किया. मुनव्वर ने कहा कि कोरोना में कितने लोग मरे, कितने लोग पैदल गुजरते मर गए, इस चुनाव में सब का हिसाब किताब होना है.
मुनव्वर राना ने अपने को मजलूम और मजबूर दिखाते हुए ये भी कहा कि योगी आदित्यनाथ दोबारा मुख्यमंत्री बने तो यूपी छोड़ दूंगा. दिल्ली-कोलकाता चला जाऊंगा. अपने पिता का जिक्र करते हुए मुनव्वर ने कहा कि मेरे पिता ने पाकिस्तान जाना मंजूर नहीं किया लेकिन अब बड़े दुख के साथ मुझे यह शहर, यह प्रदेश, अपनी मिट्टी को छोड़ना पड़ेगा.
कहीं पढ़ा था कि शायरों या कवियों की अपनी एक अलग दुनिया होती है. ऐसी दुनिया जिसमें सिर्फ प्यार और सौहार्द बसता है और नफरत की गुंजाइश तो रहती ही नहीं है. लेकिन अब जबकि मुनव्वर ने चुनावों के चलते अपने मन की बात की है और जैसे इल्जाम उन्होंने मौजूदा सरकार पर लगाए हैं. एक बार तो संदेह होता है उनकी आइडेंटिटी पर.
मन तमाम तरह के सवाल करता है और पूछता है कि जो आदमी अपने को उर्दू अदब का खादिम कहता है. अपने शेरों में जो खुदको हिंदू मुस्लिम एकता का पैरोकार बताता है वो क्या अंदर से इस हद तक जहरीला हो सकता है?
बात एकदम सीधी और साफ है. वो मुनव्वर जो रेख्ता, कविता कोष या प्रतिलिपि जैसी वेबसाइट पर हैं और जो मुनव्वर हमारे सामने हैं उन दोनों में जमीन आसमान का अंतर है. वो मुनव्वर किताबों और वेबसाइटों से इतर जिन्हें हम देख रहे हैं. जिनकी बातों को हम सुन रहे हैं महसूस होता ही नहीं कि वो शायर है. ऐसा लगता है जैसे विपक्षी पार्टी का कोई चोट खाया प्रवक्ता है जिसके सामने जब चैनल की आईडी लिए पत्रकार आता है तो वो बस फट पड़ता है.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की खूबसूरती है लेकिन अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर ये कह देना कि योगी का कार्यकाल इमरजेंसी के दौर से भी कहीं ज्यादा बुरा है इस बात की तस्दीख कर देता है कि देश के आम मुसलमान की आड़ लेकर मुनव्वर राना अपनी व्यक्तिगत रंजिशें निकाल रहे हैं.
हिंदुस्तान एक आजाद मुल्क है. मुनव्वर राना भी एक आजाद व्यक्ति हैं वो कहीं भी आने जाने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र हैं. लेकिन जिस तरह वो प्रदेश छोड़ने की बात कर रहे हैं और योगी पर निशाना साध रहे हैं यकीन जानिए ये चुनावों तक है. कोई बड़ी बात नहीं कि भाजपा और सीएम योगी का कोई विरोधी नेता अपनी रहम की निगाह से मुनव्वर को देख ले और योगी मोदी विरोधियों में मुनव्वर राना का इक़बाल बुलंद करते हुए उनके घर का एक मंजिला और बढ़वा दे.
बतौर शायर मुनव्वर भले ही अपनी शायरी के जरिये तमाम लोगों के दिल में उतरते हों मगर जब हम उन्हें एक इंसान के रूप में देखते हैं और उनकी बातें सुनते हैं तो तमाम तरह की गफलत छू मंतर हो जाती है और दिल इस बात पर यकीन करने को मजबूर हो जाता है कि पीली दिखने वाली हर वस्तु सोना कदापि नहीं होती कई बार वो पीतल भी निकलती है.
हमें ऐतराज मुनव्वर के विरोध पर नहीं है. हमारे ऐतराज का सबब मुनव्वर राना का सिलेक्टिव आउटरेज है जो एक पार्टी के खिलाफ है और एक व्यक्ति के विरोध तक सीमित है. बहरहाल यूपी चुनाव को कम ही दिन बचे हैं. ऐसे में उन्हें बस इतना याद रखना चाहिए कि उनका एक बड़ा फैन बेस या ये कहें कि उनकी मां समर्पित शायरी को पसंद करने वाले लोगों की एक बड़ी तादाद यहां यूपी में ही रहती है.
बाकी मुनव्वर ये भी याद रखें मुख्यमंत्री चाहे योगी आदित्यनाथ हों या फिर अखिलेश यादव या कोई और दिनकर ने तो रश्मिरथी में बहुत पहले ही कह दिया था कि
वसुधा का नेता कौन हुआ?
भूखंड विजेता कौन हुआ?
अतुलित यश क्रेता कौन हुआ?
नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ?
जिसने न कभी आराम किया.
विघ्नों में रहकर नाम किया.
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