2024 के आम चुनाव से पहले बीजेपी (BJP Telangana Strategy) नेतृत्व की जिन विधानसभा चुनावों पर खास नजर है, तेलंगाना भी उनमें से एक है. 2023 में तेलंगाना के साथ ही राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में भी विधानसभा चुनाव होने हैं. फिलहाल पांच में से सिर्फ मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार है. 2018 में तो राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बीजेपी को चुनावी हार का मुंह देखना पड़ा था.
तेलंगाना की मुनुगोड़े विधानसभा सीट (Munugode Bypoll) पर 3 नवंबर, 2022 को होने जा रहा उपचुनाव का रिजल्ट ये भी साफ कर देगा कि 2023 में राज्य की सत्ता में कोई बदलाव होने जा रहा है भी या नहीं. बीजेपी के लिए मुनुगोड़े उपचुनाव भी महाराष्ट्र के अंधेरी ईस्ट और बिहार के मोकामा उपचुनावों जैसा ही है - और तीनों ही सीटों पर बीजेपी को बाहरी उम्मीदवारों के भरोसे ही चुनाव लड़ना पड़ रहा है.
मुनुगोड़े उपचुनाव में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे के. राजगोपाल रेड्डी 2018 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने थे. अब वहां चुनाव भी इसीलिए कराना पड़ा कि क्योंकि रेड्डी विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाइन कर लिये. अंधेरी ईस्ट उपचुनाव में बीजेपी ने 2019 में निदर्लीय चुनाव लड़ चुके मुरजी पटेल को टिकट दिया है. तब मुरजी पटेल शिवसेना के रमेश लटके से चुनाव हार कर दूसरे स्थान पर रहे. ऐसे ही मोकामा सीट पर बीजेपी ने जेडीयू छोड़ने वाले इलाके के एक बाहुबली नेता की पत्नी को उम्मीदवार बनाया है.
बीजेपी का हौसला इसलिए भी बुलंद है क्योंकि ऐसे दो उपचुनावों में वो के. चंद्रशेखर राव (K. Chandrashekhar Rao) को शिकस्त देकर कामयाबी का जश्न मना चुकी है - और एक उपचुनाव में तो किस्सा बिलकुल मुनुगोड़े विधानसभा जैसा ही रहा. फर्क बस ये रहा कि तब बीजेपी ने कांग्रेस की जगह टीआरएस नेता के मामले...
2024 के आम चुनाव से पहले बीजेपी (BJP Telangana Strategy) नेतृत्व की जिन विधानसभा चुनावों पर खास नजर है, तेलंगाना भी उनमें से एक है. 2023 में तेलंगाना के साथ ही राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में भी विधानसभा चुनाव होने हैं. फिलहाल पांच में से सिर्फ मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार है. 2018 में तो राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बीजेपी को चुनावी हार का मुंह देखना पड़ा था.
तेलंगाना की मुनुगोड़े विधानसभा सीट (Munugode Bypoll) पर 3 नवंबर, 2022 को होने जा रहा उपचुनाव का रिजल्ट ये भी साफ कर देगा कि 2023 में राज्य की सत्ता में कोई बदलाव होने जा रहा है भी या नहीं. बीजेपी के लिए मुनुगोड़े उपचुनाव भी महाराष्ट्र के अंधेरी ईस्ट और बिहार के मोकामा उपचुनावों जैसा ही है - और तीनों ही सीटों पर बीजेपी को बाहरी उम्मीदवारों के भरोसे ही चुनाव लड़ना पड़ रहा है.
मुनुगोड़े उपचुनाव में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे के. राजगोपाल रेड्डी 2018 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने थे. अब वहां चुनाव भी इसीलिए कराना पड़ा कि क्योंकि रेड्डी विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाइन कर लिये. अंधेरी ईस्ट उपचुनाव में बीजेपी ने 2019 में निदर्लीय चुनाव लड़ चुके मुरजी पटेल को टिकट दिया है. तब मुरजी पटेल शिवसेना के रमेश लटके से चुनाव हार कर दूसरे स्थान पर रहे. ऐसे ही मोकामा सीट पर बीजेपी ने जेडीयू छोड़ने वाले इलाके के एक बाहुबली नेता की पत्नी को उम्मीदवार बनाया है.
बीजेपी का हौसला इसलिए भी बुलंद है क्योंकि ऐसे दो उपचुनावों में वो के. चंद्रशेखर राव (K. Chandrashekhar Rao) को शिकस्त देकर कामयाबी का जश्न मना चुकी है - और एक उपचुनाव में तो किस्सा बिलकुल मुनुगोड़े विधानसभा जैसा ही रहा. फर्क बस ये रहा कि तब बीजेपी ने कांग्रेस की जगह टीआरएस नेता के मामले में हाथ की सफाई दिखायी थी. देखा जाये तो मुनुगोड़े उपचुनाव में बीजेपी कारगर हो चुकी अपनी पुरानी रणनीति पर ही आगे बढ़ रही है - जैसे कंफर्म होने के लिए कोई टेस्ट कर रही हो.
उपचुनावों के जरिये बीजेपी 2023 के विधानसभा चुनावों के लिए अपनी रणनीति की पैमाइश कर रही है. और एक बार फिर ये जुगाड़ सही साबित होता है तो चुनाव तक कांग्रेस ही नहीं, टीआरएस से बीआरएस बनी सत्ताधारी पार्टी को ऐसे और भी झटके झेलने के लिए तैयार हो जाना चाहिये.
तेलंगाना में बीजेपी की तैयारी
2018 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव के नतीजे आये तो बीजेपी को 119 में से सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल हुई थी - और बीजेपी के एकमात्र विधायक बने थे ठाकुर राजा सिंह ने गोशमहल विधानसभा की अपनी सीट बचा ली थी. 2014 के मुकाबले 2019 का आम चुनाव बीजेपी के लिए बेहतर रिजल्ट लेकर आया था, जब पार्टी के चार उम्मीदवार चुनाव जीत कर लोक सभा पहुंचे. तेलंगाना से सांसद जी. किशन रेड्डी फिलहाल मोदी कैबिनेट का हिस्सा हैं.
बाद में हुए उपचुनावों में बीजेपी ने 2020 में एक और फिर 2021 में भी एक विधानसभा सीट जीत ली थी. मुनुगोड़े उपचुनाव के बाद देखना है कि बीजेपी का नंबर दो ही रहता है या बढ़ जाता है? अव्वल तो अभी बीजेपी के तीन विधायक होते, लेकिन विवादित बयान देने को लेकर हुई गिरफ्तारी के बाद बीजेपी ने ठाकुर राजा सिंह को सस्पेंड कर दिया है.
तेलंगाना को लेकर बीजेपी की दिलचस्पी तो तभी सामने आ गयी थी, जब 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव खत्म होते ही बीजेपी नेता अमित शाह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को छोड़ कर पार्टी के सारे ही वरिष्ठों को सड़क पर उतार दिया था - और खुद भी रोड शो कर रहे थे.
जुलाई, 2022 में एक बार फिर देश भर के बीजेपी नेताओं का हैदराबाद में जमावड़ा लगा, जब पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलायी गयी थी - और उसके आगे पीछे तो कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कभी अमित शाह के दौरे लगातार चलते ही रहे हैं. मोदी-शाह दोनों मिल कर मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव को घेर रहे हैं और लोगों से अपील कर रहे हैं कि अगले चुनाव में वे अपने राज्य को परिवारवाद की राजनीति से मुक्ति दिलायें.
बीजेपी को उपचुनावों में मिलती कामयाबी का राज: 2020 में हुए डूबक चुनाव में बीजेपी को कोई प्रयोग करने की जरूरत इसलिए भी नहीं पड़ी क्योंकि 2018 के चुनाव में हारे हुए उम्मीदवार पर ही भरोसा जताया था.
डूबक सीट पर उपचुनाव केसीआर के विधायक एस रामलिंगा रेड्डी के निधन की वजह से हुआ था. तब टीआरएस ने उनकी पत्नी सुजाता रेड्डी को उपचुनाव में उतारा था, लेकिन बीजेपी के एम. रघुनंदन राव ने 2018 का हिसाब बराबर कर लिया था.
2021 में हुजूराबाद सीट पर हुआ उपचुनाव भी बिलकुल अभी होने जा रहे मुनुगोड़े उपचुनाव जैसा ही रहा. हुआ ये था कि किसानों की जमीन हड़प लेने आरोपों के बाद मुख्यमंत्री केसीआर ने अपने मंत्री ई. राजेंद्र की कैबिनेट से छुट्टी कर दी थी. ई. राजेंद्र इतने नाराज हुए कि विधानसभा की सदस्यता से ही इस्तीफा दे डाला.
जब चुनाव आयोग ने हुजूराबाद सीट पर उपचुनाव कराया तो ई. राजेंद्र फिर से मैदान में उतरे, लेकिन इस बार बीजेपी के टिकट पर - और चुनाव जीत भी गये. डूबक के बाद हुजूराबाद सीट पर मिली कामयाबी ने बीजेपी में जश्न का माहौल बना दिया. उसके बाद से आगे उसी रणनीति पर बढ़ रही है.
हुजूराबाद की ही तरफ बीजेपी को मुनुगोड़े विधानसभा सीट पर राजगोपाल रेड्डी की जीत तय लगने लगी है - और फिर 2023 की मंजिल भी धीरे धीरे काफी नजदीक लगने लगी है.
कांग्रेस से पाला बदल कर बीजेपी के हो चुके राजगोपाल रेड्डी समझाते हैं, 'ये चुनाव मुनुगोड़े के स्वाभिमान की लड़ाई है. यहां के लोगों ने मुझे बड़ी उम्मीदों के साथ विधानसभा भेजा था, ताकि इलाके का विकास हो सकेगा लेकिन मौजूदा सरकार में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. मेरे पास इस्तीफा देने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा था.'
और चुनाव प्रचार का जो हाल है: आपको याद होगा कुछ ही दिन पहले तेलंगाना में एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें टीआरएस नेता लोगों को शराब और मुर्गे बांट रहे थे - इस वाकये के बाद मुख्यमंत्री केसीआर तक सवालों के घेरे में आ गये थे. ये तभी की बात है जब केसीआर अपनी पार्टी का नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति से बदल कर भारत राष्ट्र समिति करने में जुटे हुए थे.
मुनुगोड़े उपचुनाव को लेकर अब टीआरएस बीजेपी को जिम्मेदार बता रहा है. टीआरएस से बीआरएस बन चुकी पार्टी का कहना है कि ये बीजेपी के तेलंगाना में विस्तार के तौर तरीके की वजह से ही मुनुगोड़े में उपचुनाव की नौबत आई है.
बीजेपी उम्मीदवार राजगोपाल रेड्डी ने विधानसभा से इस्तीफे की जो वजह बतायी है, बीआरस नेता उसे गलत बता रहे हैं. बीआरएस नेताओं का दावा है कि इस्तीफे के बदले राजगोपाल रेड्डी की कंपनी को कोरोड़ों का प्रोजेक्ट मिला है.
बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामा राव तो यहां तक दावा कर रहे हैं कि राजगोपाल रेड्डी चुनाव जीतने के लिए नेताओं को कार, बाइक और दूसरे सामान देने का प्लान कर रहे थे, लेकिन केटीआर का दावा है कि ऐसा करने से कुछ नहीं होने वाला है.
कांग्रेस क्यों अभी से लूजर लग रही है
राजगोपाल रेड्डी तो लगता है कांग्रेस नेताओं को पार्टी छोड़ने के लिए मोटिवेट करने वाले रोल मॉडल बन चुके हैं. चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस नेता पल्ले रविकुमार और उनकी पत्नी कल्याणी पाला बदल कर सत्ताधारी बीआरएस में शामिल हो गये हैं.
आगे भी ऐसे मामले देखने को मिल सकते हैं, लेकिन धीरे धीरे जो माहौल बन रहा है उसमें बीजेपी तो पाला बदलने को तैयार बैठे तेलंगाना के नेताओं के लिए पनाहगाह बनने जा रही है. केसीआर सरकार में मंत्री रह चुके ई. राजेंद्र के बाद के बड़े नेताओं में गिने जाने वाले तीन कांग्रेसी भी भगवा धारण कर चुके हैं - के. विश्वेश्वर रेड्डी, के राजगोपाल रेड्डी और श्रवण डी.
मुनुगोड़े तेलंगाना के नलगोंडा जिले में आता है जिसे लेफ्ट का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन अब तो लग रहा है जैसे बीजेपी तेजी से पांव पसार ही नहीं रही, जमाने भी लगी है - क्या ये कांग्रेस के स्थानीय नेतृत्व की वजह से हो रहा है.
तेलंगाना में भी राहुल गांधी ने अपनी पसंद के ही रेवंत रेड्डी को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया हुआ है, लेकिन राज्य के नेताओं को उनका कामकाज कभी ठीक नहीं लगा. असल में रेवंत रेड्डी भी महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले की ही तरह संघ और बीजेपी की पृष्ठभूमि से ही कांग्रेस में आये थे और राहुल गांधी तो ऐसे नेताओं को हाथों हाथ लेते ही हैं. ऐसे नेताओं को कमान सौंपने का असर क्या होता है, पंजाब और हरियाणा जैसे कई राज्यों में देखा ही जा चुका है.
मुनुगोड़े सीट पर कांग्रेस ने स्थानीय विधायक और मंत्री रहे पी. गोवर्धन रेड्डी की बेटी पीएस रेड्डी को उम्मीदवार बनाया है. गोवर्धन रेड्डी मुनुगोड़े विधानसभा सीट से पांच बार विधायक रह चुके हैं - और 2018 में भी कांग्रेस ने ये सीट केसीआर की पार्टी के हाथों से छीन ही ली थी, लेकिन इस बात तो कांग्रेस के विधायक ने ही पाला बदल कर पार्टी को मुश्किल में डाल दिया है.
2018 में बीजेपी तो एक ही सीट जीत पायी थी, लेकिन तेलंगाना में कांग्रेस 19 विधायक चुन कर आये थे. कुछ ही दिन बाद 19 में से 12 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ कर केसीआर के साथ चले गये - मुनुगोड़े के जख्म तो हरे हैं ही, डूबक और हुजूराबाद में भी कांग्रेस का प्रदर्शन कोई संतोषजनक नहीं रहा है.
संयोग से एक प्रयोग कांग्रेस की तरफ से ये जरूर हो रहा है कि भारत जोड़ो यात्रा के रूट में तेलंगाना को भी शामिल किया गया है. राहुल गांधी की ये यात्रा कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच दो बार तेलंगाना में हो रही है. दूसरी बार ये यात्रा 23 अक्टूबर को तेलंगाना पहुंचेगी और फिर 6 नवंबर को महाराष्ट्र में दाखिल होगा. मतलब, ये कि मुनुगोड़े उपचुनाव के दौरान भारत जोड़ो यात्रा के तेलंगाना में ही होने की संभावना है - अभी कोई फायदा तो नहीं नजर आ रहा है, लेकिन नतीजे आने तक इंतजार तो कर ही लेना चाहिये.
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