मेन बात ये है कि गुड्डू मुस्लिम ... ठाएं.... और कई दशकों का खेल महज 40 सेकण्ड्स में उस वक़्त ख़त्म हुआ, जब अभी बीते दिनों माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को प्रयागराज स्थित मेडिकल कॉलेज के सामने गोलियों से छलनी कर दिया. अतीक और अशरफ की मौत के बाद मिश्रित प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. अतीक के समर्थक जहां इस हत्या को गहरी साजिश बता रहे हैं. तो वहीं अखिलेश, ओवैसी और ममता बनर्जी जैसे नेताओं को माफिया डॉन अतीक अहमद की मौत ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी कार्यप्रणाली को घेरने का मौका दे दिया है. मौत पर समर्थक और विरोधियों के अपने तर्क हो सकते हैं. होने को तो ये भी हो सकता है कि यदि अशरफ अपनी बात कहने में कामयाब हो जाता तो कई मामले खुलते और कई सफेदपोश बेनकाब होते.
पूरा देश उस मेन बात को जानना चाहता है जिसका खुलासा अशरफ करने वाला था
बहरहाल जो बात अब भी लोगों के जेहन में है, वो है वो मेन बात. जिसे अशरफ बता पाने में नाकाम रहा हो लेकिन उस बात को अब से ठीक 19 साल पहले अतीक ने खुद बता दिया था. शायद आपको जानकार आश्चर्य हो अपनी मौत की भविष्यावाणी अतीक ने कई साल पहले कर दी थी. 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान एक सवाल के जवाब में अतीक ने खुद इस बात को स्वीकार किया था कि 'एनकाउंटर होई या पुलिस मारी. या फिर अपनी ही बिरादरी का सिरफिरा. सड़क के किनारे पड़ल मिलब.'
यानी पहले ही अतीक को इस बात का अंदाजा था कि यदि पुलिस की गोली से बच भी गया तो आज नहीं तो कल किसी नए उभरते अपराधी या पुराने माफिया की गोली पर उसका नाम लिखा होगा. ध्यान रहे अतीक ठीक वैसे ही मरा जिस मौत के विषय में उसने अब से 19 साल पहले ही सोच लिया था.
इस मौत को देखकर या ये कहें किअतीक और अशरफ के मारे जाने को देखकर वो पुरानी कहावत सही साबित हुई. जिसमें कहा गया था कि, जुल्म से बनाई इमारत कितनी भी मजबूत क्यों न हो एक दिन गिरती जरूर है. यूं देखा जाए तो इस मौत में सीखने समझने लायक कुछ नहीं है. बावजूद इसके अतीक और अशरफ की ये मौत उन तमाम लोगों के लिए सबक है जो गलत के रास्ते पर हैं और समझ रहे हैं कि अपराध की दुनिया में उनका सिक्का चलता है.
हमें इस बात को समझना होगा कि चाहे वो भारत हो या विश्व का कोई भी कोना कोई अपराधी अपने को कितना भी दुर्दांत क्यों न समझ ले लेकिन जब उसका अंत होता है तो वो ऐसा होता है जिसकी इजाजत सभ्य समाज नहीं देता. ऐसी लोग कभी गन्ने, गेहूं या अरहर के खेत में ढेर कर दिए जाते हैं या फिर इनके काफिले पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दी जाती है और इनका सारा भौकाल सारा वर्चस्व धरा का धरा रह जाता है और व्यक्ति कुत्ते की मौत मरकर लाश के ढ़ेर में तब्दील हो जाता है.
जिक्र अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ का हुआ है तो हमें उन बातों को भी अपने जेहन में रखना होगा जो उन्होंने 2004 के लोकसभा चुनावो के दौरान कही थी. तब मीडिया से मुखातिब होते हुए अतीक ने कहा था कि हम सभी अपराधी के रूप में जानते हैं कि हमारा भविष्य क्या होगा. इस अग्निपरीक्षा जैसी स्थिति से बचने और जो होना तय है उसको आगे टालने के लिए हमलोग हर रोज संघर्ष करते हैं.
तब उस समय अतीक से एक सवाल ये भी हुआ कि आखिर उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला क्यों किया? तब इस सवाल का जवाब देते हुए अतीक ने एक मेन बात और बताई थी. तब अतीक ने कहा था कि अपराध की दुनिया में सबको पता होता है, अंजाम क्या होना है? इसको कब तक टाला जा सकता है? यह सब यानी लोकसभा चुनाव लड़ना, इसकी ही जद्दोजहद है.
बहरहाल भले ही अतीक अहमद इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र से पांच बार विधायक और फूलपुर से सांसद रहा हो लेकिन अंत में वो एक दुर्दांन्त अपराधी ही था जिसका जैसा अंत हुआ है वो दुनिया ने देख लिया है. सरेराह अतीक की निर्मम हत्या के बाद हमें इस बात को भी समझना होगा कि अपराध सिर्फ अपराधी को अपनी चपेट में नहीं लेता बल्कि उसका घर परिवार दोस्त रिश्तेदार सब इसकी चपेट में आ जाते हैं.
हो सकता है अशरफ गुड्डू मुस्लिम की आड़ में इस बात को समझ चुका हो और इसे दुनिया को बताना छह रहा हो लेकिन फिर हुआ वही जो अपराधी के साथ होता है एक मेन बात कमाल की बात बनते बनते रह गयी.
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