बात 2019 की है. जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) की फ़िज़ा में तनाव था. क्या उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) क्या महबूबा मुफ़्ती (Mehbooba Mufti) सब अपने अपने तरीके से युवाओं को रिझाने और अपने पाले में डालने की कोशिशों में थे. उधर अलगाववादी और आतंकी देश की सरकार के लिए एक अलग ही चुनौती खड़ी कर रहे थे जिनसे निपटने के लिए सेना को भी खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. कुलमिलाकर उस वक़्त कश्मीर के हालात कुछ ऐसे थे कि कुछ भी प्रिडिक्ट करना बड़ा मुश्किल था. इन्हीं जटिल हालातों के बीच चर्चा में आए शाह फैसल (Shah Faesal), जिन्होंने आईएएस (IAS) से इस्तीफा देकर राजनीति में एंट्री की और समर्थकों के साथ साथ आलोचकों तक को हैरत में डाल दिया. तब मेन स्ट्रीम पॉलिटिक्स के जरिये कश्मीर के हालात बदलने की बात कहकर शाह फैसल ने जम्मू कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट पार्टी की स्थापना की. इसके बाद जब सरकार ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 (Article 370) और अनुच्छेद 35 ए हटाया तो तमाम बड़े छोटे नेताओं की तरह इसका खामियाजा शाह फैसल को भी भुगतना पड़ा. तब उस दौर में शाह फैसल ने भी ऐसे तमाम Tweets किये थे जिनमें उनका लहजा काफ़ी तल्ख और तेवर तीखे थे. शाह फैसल ने अपनी पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है ख़बर है कि फैसल दोबारा प्रशासनिक सेवाओं में एंट्री कर सकते हैं.
अगर ये ख़बर सही है तो भले ही शाह फैसल ने सरकार की तीखी आलोचना की हो, मगर सरकार को उनके साथ नर्मी बरतनी चाहिए और उन्हें उनकी नौकरी वापस दे देनी चाहिए. हम शाह फैसल के लिए ऐसा क्यों कहा रहे हैं? आखिर क्यों सरकार को शाह फैसल को रहम की निगाह से देखना चाहिए इसकी माकूल वजह हमारे पास है.
वजह क्या...
बात 2019 की है. जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) की फ़िज़ा में तनाव था. क्या उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) क्या महबूबा मुफ़्ती (Mehbooba Mufti) सब अपने अपने तरीके से युवाओं को रिझाने और अपने पाले में डालने की कोशिशों में थे. उधर अलगाववादी और आतंकी देश की सरकार के लिए एक अलग ही चुनौती खड़ी कर रहे थे जिनसे निपटने के लिए सेना को भी खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. कुलमिलाकर उस वक़्त कश्मीर के हालात कुछ ऐसे थे कि कुछ भी प्रिडिक्ट करना बड़ा मुश्किल था. इन्हीं जटिल हालातों के बीच चर्चा में आए शाह फैसल (Shah Faesal), जिन्होंने आईएएस (IAS) से इस्तीफा देकर राजनीति में एंट्री की और समर्थकों के साथ साथ आलोचकों तक को हैरत में डाल दिया. तब मेन स्ट्रीम पॉलिटिक्स के जरिये कश्मीर के हालात बदलने की बात कहकर शाह फैसल ने जम्मू कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट पार्टी की स्थापना की. इसके बाद जब सरकार ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 (Article 370) और अनुच्छेद 35 ए हटाया तो तमाम बड़े छोटे नेताओं की तरह इसका खामियाजा शाह फैसल को भी भुगतना पड़ा. तब उस दौर में शाह फैसल ने भी ऐसे तमाम Tweets किये थे जिनमें उनका लहजा काफ़ी तल्ख और तेवर तीखे थे. शाह फैसल ने अपनी पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है ख़बर है कि फैसल दोबारा प्रशासनिक सेवाओं में एंट्री कर सकते हैं.
अगर ये ख़बर सही है तो भले ही शाह फैसल ने सरकार की तीखी आलोचना की हो, मगर सरकार को उनके साथ नर्मी बरतनी चाहिए और उन्हें उनकी नौकरी वापस दे देनी चाहिए. हम शाह फैसल के लिए ऐसा क्यों कहा रहे हैं? आखिर क्यों सरकार को शाह फैसल को रहम की निगाह से देखना चाहिए इसकी माकूल वजह हमारे पास है.
वजह क्या है इसे समझने के लिए हम अभी बीते दिनों सिविल सर्विस परीक्षा में 350वीं रैंक हासिल करने वाली नदिया बेग का रुख कर सकते हैं. नदिया बेग जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा की रहने वाली हैं. जिनके बीते ट्वीट्स और पोस्ट अगर हम देखें तो मिलता है कि साफ तौर पर वो एन्टी गवर्नमेंट हैं. परीक्षा परिणाम आने के बाद नादिया के ट्वीट्स और फेसबुक पोस्ट इंटरनेट पर बड़ी ही तेजी के साथ वायरल हो रहे हैं.
इन ट्वीट्स और फेसबुक पोस्ट पर अगर नजर डालें तो मिलता है कि 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के नाम पर उन्होंने अपनी सिविल सर्विसेज की तैयारी के दिनों में ऐसा बहुत कुछ लिखा है जो उन्हें मुसीबत में डाल सकता था मगर तारीफ होनी चाहिए देश की सरकार की जिसने नादिया बेग के साथ बदले की भावना का परिचय नहीं दिया और 350वीं रैंक के रूप में नतीजा हमारे सामने है.
अपने ट्वीट्स में नादिया के तेवर बागी थे. मौका कोई भी रहा हो उन्होंने जमकर केंद्र, गृह मंत्री अमित शाह और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पानी पी पीकर कोसा है. सरकार चाहती तो इस आलोचना का पूरा बदला नादिया बेग के साथ उसके इंटरव्यू में निकाल सकती थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. नदिया बेग से जो सवाल हुए, वो न तो मुस्लिम होने के आधार पर हुए. न ही ये देखा गया कि नदिया के तेवर बागी हैं.
नादिया के आईएएस बनने में एक दिलचस्प बात ये भी है कि जिस तरह का पैनल आईएएस के इंटरव्यू में बैठाया जाता है उसमें इतने काबिल लोग होते हैं जो चंद ही सवालों के जवाब सुनकर इस बात का अंदाजा लग जाता है की व्यक्ति की राजनीतिक विचारधारा क्या है. यानी जब पैनल ने नादिया के जवाब सुने होंगे तो उन्हें पता चल ही गया होगा कि नादिया का मिजाज क्या है मगर तब भी उनके साथ कोई भेदभाव नहीं हुआ.
इतना जानकर इस बात को डंके की चोट पर कहा जा सकता है कि कोई कितनी भी आलोचना करे सरकार देश के प्रत्येक नागरिक को समान नजर से देखती है. ये तो बात हो गयी आईएसएस में 350वीं रैंक पाने वाली नादिया बेग की. हमनें जिक्र किया था शाह फैसल का.
तो अब जबकि शाह फैसल ने राजनीति से इस्तीफा दे दिया है और वापस अपनी नौकरी जॉइन करने का विचार बनाया है तो सरकार को नादिया की तरह इस मामले में भी फैसला को उनकी नौकरी वापस कर देनी चाहिए. यदि ऐसा हो जाता है तो सरकार न सिर्फ जम्मू कश्मीर बल्कि पूरे देश के लोगों को प्रेरणा देगी. और बताएगी कि सरकार सबकी है. उसकी नजर में देश का प्रत्येक नागरिक समान है.
बहरहाल नादिया का तो हला भला हो गया. अब देखना दिलचस्प रहेगा कि शाह फैसल का क्या होता है? उनके अच्छे दिन आ पाते हैं या नहीं. फिलहाल एक अच्छी नौकरी छोड़कर राजनीति में आना फिर राजनीति छोड़ देना जैसा वर्तमान है शाह फैसल न घर के हैं. न घाट के.
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