भाजपा ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अस्थि विसर्जन का कार्यक्रम तैयार किया है. देश की अलग अलग नदियों में भाजपा कार्यकर्ता वाजपेयी जी की अस्थियों को प्रवाहित कर रहे हैं. इसी कड़ी में नागालैंड के वोखा जिले की दोयांग नदी में भी अस्थि प्रवाहित करने की योजना बनाई गई थी. ईसाई बहुल होने के कारण अस्थि विसर्जन कार्यक्रम को नागालैंड में विरोध का सामना करना पड़ा है. नागालैंड बैप्टिस्ट चर्च काउंसिल (एनबीसीसी) और जनजातीय संगठनों के दबाव में आकर तय स्थान के बजाए अस्थियों को दीमापुर के धनसिरी नदी में प्रवाहित किया गया.
इसमें कोई दोराय नहीं कि कोई भी कार्यक्रम स्थानीय जन भावना को ध्यान में रखकर ही आयोजित होना चाहिए. प्रश्न यह उठता है कि अविरल बहती नदी के जल में अस्थि प्रवाह करने से किसी व्यक्ति विशेष की भावनाएं कैसे आहत होती हैं? न तो किसी को जबरदस्ती उस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए मजबूर किया गया, न इस कार्यक्रम में किसी स्थानीय परंपरा, रीति का अपमान किया गया. इस कार्यक्रम में न ही किसी धार्मिक स्थल का प्रयोग हुआ. फिर भी स्थिति, स्थान, लोगों के विचारों को सम्मान देते हुए अस्थि विसर्जन दूसरे स्थान पर किया गया.
यदि अस्थि विसर्जन कार्यक्रम का विरोध केवल नागालैंड के जनजातीय संगठनों द्वारा होता तो इस विरोध पर शक न होता परंतु नागालैंड बैप्टिस्ट चर्च काउंसिल (एनबीसीसी) का विरोध कुछ और संकेत देता है. एनबीसीसी वही संगठन है जिसने इस वर्ष के आरंभ में हुए विधानसभा चुनावों में अपना विशेष घोषणा पत्र जारी किया था. घोषणा पत्र में मतदाताओं से आग्रह किया गया था कि 'मैं ईसाई पहले हूं, बाद में एक मतदाता'. नागालैंड बैप्टिस्ट चर्च काउंसिल ने ईसाई धर्म में...
भाजपा ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अस्थि विसर्जन का कार्यक्रम तैयार किया है. देश की अलग अलग नदियों में भाजपा कार्यकर्ता वाजपेयी जी की अस्थियों को प्रवाहित कर रहे हैं. इसी कड़ी में नागालैंड के वोखा जिले की दोयांग नदी में भी अस्थि प्रवाहित करने की योजना बनाई गई थी. ईसाई बहुल होने के कारण अस्थि विसर्जन कार्यक्रम को नागालैंड में विरोध का सामना करना पड़ा है. नागालैंड बैप्टिस्ट चर्च काउंसिल (एनबीसीसी) और जनजातीय संगठनों के दबाव में आकर तय स्थान के बजाए अस्थियों को दीमापुर के धनसिरी नदी में प्रवाहित किया गया.
इसमें कोई दोराय नहीं कि कोई भी कार्यक्रम स्थानीय जन भावना को ध्यान में रखकर ही आयोजित होना चाहिए. प्रश्न यह उठता है कि अविरल बहती नदी के जल में अस्थि प्रवाह करने से किसी व्यक्ति विशेष की भावनाएं कैसे आहत होती हैं? न तो किसी को जबरदस्ती उस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए मजबूर किया गया, न इस कार्यक्रम में किसी स्थानीय परंपरा, रीति का अपमान किया गया. इस कार्यक्रम में न ही किसी धार्मिक स्थल का प्रयोग हुआ. फिर भी स्थिति, स्थान, लोगों के विचारों को सम्मान देते हुए अस्थि विसर्जन दूसरे स्थान पर किया गया.
यदि अस्थि विसर्जन कार्यक्रम का विरोध केवल नागालैंड के जनजातीय संगठनों द्वारा होता तो इस विरोध पर शक न होता परंतु नागालैंड बैप्टिस्ट चर्च काउंसिल (एनबीसीसी) का विरोध कुछ और संकेत देता है. एनबीसीसी वही संगठन है जिसने इस वर्ष के आरंभ में हुए विधानसभा चुनावों में अपना विशेष घोषणा पत्र जारी किया था. घोषणा पत्र में मतदाताओं से आग्रह किया गया था कि 'मैं ईसाई पहले हूं, बाद में एक मतदाता'. नागालैंड बैप्टिस्ट चर्च काउंसिल ने ईसाई धर्म में विश्वास रखने वालों से आग्रह किया था कि पैसे और विकास के खातिर ईसाई सिद्धांतों का आत्म-समर्पण उन लोगों के आगे न करें जो "यीशु मसीह के हृदय को भेदना चाहते हैं". एनबीसीसी ने ईसाई धर्म में विश्वास रखने वालों से त्रिशूल और क्रॉस के बीच में किसी एक में चुनाव करने का आह्वान तक कर दिया था.
जिस संस्था ने कुछ महीने पहले ही ऐसे विचार रखे हों, उस संस्था का प्रत्येक कदम शक की नज़र से देखा ही जाएगा. जो संस्थाएं स्वयं लोगों को धर्म के आधार पर बांटने में लगी हैं वह किस मुंह से दूसरों पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगा सकती हैं? भाजपा भी अटल बिहारी वाजपेयी के अस्थि विसर्जन कार्यक्रम से देश में वाजपेयी की विरासत बनाना चाहती है. यदि नागालैंड बैप्टिस्ट चर्च काउंसिल (एनबीसीसी) नहीं चाहती की भाजपा उत्तर पूर्व भारत में पैठ बनाए तो उसे भाजपा का राजनीतिक मैदान में मुकाबला करना चाहिए. अस्थि विसर्जन के नाम पर विरोध उसे कुछ लाभ नहीं देगा.
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