सबसे पहले इस लेख का मुद्दा – परमाणु बम हमला.
नहीं..नहीं.. अभी कोई विश्वयुद्ध शुरू नहीं हुआ है और न ही कोई ऐसा देश है जिसने किसी दूसरे शहर पर परमाणु बम से हमला बोला है. हम बात कर रहे हैं उस वक्त की जब दुनिया ने पहली बार परमाणु हमला झेला था. 9 अगस्त. 9 अगस्त को नागासाकी-डे भी कहा जाता है. क्योंकि, इस दिन जापान के नागासाकी शहर ने न्यूक्लियर बम का धमाका झेला था. हिरोशिमा-नागासाकी. इन दो शहरों के नाम तो लगभग सभी को याद होंगे. हमने पढ़ाई करते वक्त जापान के इन दो शहरों के बारे में इतना तो पढ़ा ही है कि सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए गए थे और ये शहर तबाह हो गए थे.
9 अगस्त 1945 से तीन दिन पहले यानी 6 अगस्त 1945 को अमेरिकी सेना ने एक परमाणु बम जापान के हिरोशिमा शहर पर भी गिराया था. इन शहरों में हुए बम धमाकों में लाखों लोग मारे गए थे और उसके रेडिएशन से धमाके से दूर-दूर तक के इलाके कई साल तक बर्बादी झेलते रहे. आज तक उस तबाही के निशान मिलते हैं. 77 साल बाद वर्तमान पीढ़ी में भी बच्चों समेत कई लोगों में परमाणु बम के रेडिएशन का असर दिखता है और उनमें कोई न कोई कमी रह जाती है जिसका खामियाजा वे लोग जीवनभर उठाते हैं.
इस वक्त भी दुनिया में एक युद्ध चल रहा है रूस-यूक्रेन का. जिसमें अक्सर ये खबरें आती रहती हैं कि परमाणु बम का प्रयोग कर लिया जाएगा. दूसरी ओर, चीन अक्सर ताइवान को धमकाता रहता है और युद्ध की आशंकाएं उठती रहती हैं. कहने का मतलब ये कि अगर कोई भी युद्ध हुआ और विश्वयुद्ध की तरफ बढ़ा तो मुश्किल बहुत बड़ी हो सकती है. क्योंकि, आज की तारीख में कई देश परमाणु हथियार...
सबसे पहले इस लेख का मुद्दा – परमाणु बम हमला.
नहीं..नहीं.. अभी कोई विश्वयुद्ध शुरू नहीं हुआ है और न ही कोई ऐसा देश है जिसने किसी दूसरे शहर पर परमाणु बम से हमला बोला है. हम बात कर रहे हैं उस वक्त की जब दुनिया ने पहली बार परमाणु हमला झेला था. 9 अगस्त. 9 अगस्त को नागासाकी-डे भी कहा जाता है. क्योंकि, इस दिन जापान के नागासाकी शहर ने न्यूक्लियर बम का धमाका झेला था. हिरोशिमा-नागासाकी. इन दो शहरों के नाम तो लगभग सभी को याद होंगे. हमने पढ़ाई करते वक्त जापान के इन दो शहरों के बारे में इतना तो पढ़ा ही है कि सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए गए थे और ये शहर तबाह हो गए थे.
9 अगस्त 1945 से तीन दिन पहले यानी 6 अगस्त 1945 को अमेरिकी सेना ने एक परमाणु बम जापान के हिरोशिमा शहर पर भी गिराया था. इन शहरों में हुए बम धमाकों में लाखों लोग मारे गए थे और उसके रेडिएशन से धमाके से दूर-दूर तक के इलाके कई साल तक बर्बादी झेलते रहे. आज तक उस तबाही के निशान मिलते हैं. 77 साल बाद वर्तमान पीढ़ी में भी बच्चों समेत कई लोगों में परमाणु बम के रेडिएशन का असर दिखता है और उनमें कोई न कोई कमी रह जाती है जिसका खामियाजा वे लोग जीवनभर उठाते हैं.
इस वक्त भी दुनिया में एक युद्ध चल रहा है रूस-यूक्रेन का. जिसमें अक्सर ये खबरें आती रहती हैं कि परमाणु बम का प्रयोग कर लिया जाएगा. दूसरी ओर, चीन अक्सर ताइवान को धमकाता रहता है और युद्ध की आशंकाएं उठती रहती हैं. कहने का मतलब ये कि अगर कोई भी युद्ध हुआ और विश्वयुद्ध की तरफ बढ़ा तो मुश्किल बहुत बड़ी हो सकती है. क्योंकि, आज की तारीख में कई देश परमाणु हथियार सम्पन्न देश हैं और अगर बात परमाणु बम धमाकों तक पहुंच गई तो दुनिया के हाल बेहद बुरे हो सकते हैं.
उसका सबसे बड़ा कारण ये कि आज जो न्यूक्लियर बम देशों के पास हैं उनकी ताकत तो 'लिटिल बॉय' और 'फैट मैन' से बहुत ज्यादा है. अब अगर आपके मन में 'लिटिल बॉय' और 'फैट मैन' के बारे में कोई सवाल उठ रहे हैं तो मैं आपको बता दूं कि ये नाम हैं उन दो परमाणु बमों के जो जापान पर अमेरिका ने गिराए थे. हिरोशिमा पर 'लिटिल बॉय' बम गिराया गया था और 3 दिन बाद नागासाकी पर 'फैट मैन'. इनकी विस्तार से चर्चा करेंगे हम अपने इतिहास वाले सेगमेंट में लेकिन उससे पहले ये तो जान लें कि न्यूक्लियर बम के इस्तेमाल के पीछे का पूरा मामला क्या था?
6 और 9 अगस्त 1945 को हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराकर तबाह कर दिया गया था. मानव इतिहास की सबसे भयावह घटनाओं में इसे शामिल किया जाता है. इस त्रासदी को हुए 77 साल हो गए हैं लेकिन आज भी अगस्त के महीने में इसकी यादें डराती है. कैसा रहा होगा बर्बादी का वो मंजर. ये सोचकर ही दिल दहल जाता है. नागासाकी पर परमाणु बम गिराने की पूरी कहानी और उसका इतिहास बताऊं उससे पहले आपको कुछ ऐसी बातें बता दूं जिसे जानने के बाद आप कहेंगे कि फिर कभी दुनिया में कोई देश किसी दूसरे देश पर परमाणु हमला ना करे.
गर्मी में पारा 50 के पार हो जाए तो हम बेचैन हो जाते हैं. कई लोगों की जान भी चली जाती है. अभी यूरोप के कई देशों में 40-45 डिग्री के टेम्परेचर में ही हाल खराब हैं. सोचिए जब आपके आसपास का तापमान 4000 डिग्री के करीब हो जाए तो क्या होगा? हिरोशिमा पर जब परमाणु बम गिराया गया था तो 4000 डिग्री के बराबर गर्मी पैदा हुई थी. जिसने पूरे शहर को पलभर में तबाह कर दिया था. 1939 में शुरू हुए दूसरे विश्व युद्ध को छह साल हो चुके थे, लेकिन जंग खत्म नहीं हो रही थी. जापान लगातार हमले कर रहा था, जापानी सेना ने अमेरिका के नौसैनिक अड्डे पर्ल हार्बर पर हमला कर दिया था. हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका का हमला पर्ल हार्बर के तबाही का जवाब माना जाता है.
अमेरिका ने 6 अगस्त 1945 की सुबह करीब 8 बजे हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया था. धमाका होते ही 80,000 से ज्यादा लोगों की एक झटके में मौत हो गई थी. कहते हैं कि दो मिनट में शहर का 80 फीसदी इलाका खाक हो गया. 29 किलोमीटर के इलाके में आसमान से काली बारिश हुई. हजारों लोग न्यूक्लियर रेडिएशन की चपेट में आकर तिल-तिल कर मर गए. 9 अगस्त 1945 को जापान के नागासाकी पर दूसरा परमाणु बम गिराया गया. 9 अगस्त को सुबह 11 बजे जब नागासाकी पर बम गिरा तो वहां पलभर में 40,000 लोगों की मौत हो गई थी. परमाणु हमले के कई सालों बाद तक जापान के इन शहरों के आसपास के शहरों में न्यूक्लियर रेडिएशन के कारण अपंग बच्चे पैदा होते रहे.
जापान पर अमेरिका ने एकदम से परमाणु बम नहीं गिराया इससे पहले दुनिया में द्वितीय विश्व युद्ध के साथ बहुत कुछ चल रहा था.. लेकिन एक घटना ऐसी हुई जिसे जापान के दो शहरों में तबाही मचाने का प्रमुख कारण माना जाता है. दरअसल 7 दिसंबर 1941 को प्रशांत महासागर के बीच एक द्वीप समूह पर दो घंटे तक लगातार बमबारी होती रही. जापान ने सुबह-सुबह हवाई द्वीप समूह पर स्थित अमेरिकी नौसेना के एक अड्डे पर सबको हैरान करते हुए हमला कर दिया था. क्योंकि बाकी दुनिया तब जंग में घिरी थी लेकिन अमेरिका इससे अलग था. जापान के इस हमले ने अमेरिका को हैरान कर दिया और अमेरिका भी मित्र राष्ट्रों की ओर से युद्ध में लड़ने के लिए मैदान में उतर गया.
द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका की किसी जमीन पर ये पहला हमला था. हमले में 2400 से ज्यादा अमेरिकी जवान मारे गए थे और 19 जहाज नष्ट हो गए थे जिसमें आठ जंगी जहाज थे. चार जहाज डूब भी गए थे. जानकारों का मानना है कि इस तबाही के अलावा 328 अमेरिकी विमान या तो क्षतिग्रस्त हुए थे या फिर पूरी तरह से नष्ट हो गए थे. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि जापान ने एक घंटे और 15 मिनट तक पर्ल हार्बर पर बमबारी की थी. हालांकि इस हमले में जापान के भी 100 सैनिक मारे गए थे. दिलचस्प ये है कि जब जापान ने पर्ल हार्बर पर ये हमला किया था उसी दौरान वॉशिंगटन में जापानी प्रतिनिधियों की अमरीकी विदेश मंत्री कॉर्डेल हल के साथ जापान पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को खत्म करने को लेकर बातचीत चल रही थी.
अमेरिका ने ये प्रतिबंध चीन में जापान के बढ़ते हस्तक्षेप के बाद लगाए थे. खुद पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों और चीन को मित्र सेना की मदद से नाराज होकर ही जापान ने अमेरिका के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया था. उसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलीन डी रूजवेल्ट ने भी जापान के खिलाफ लड़ाई की घोषणा कर दी थी. पर्ल हार्बर के हमले ने दूसरे विश्वयुद्ध के समाप्त होने के बाद लंबे समय तक जापान और अमेरिका के संबंध और दोनों देशों के लोगों की जिंदगी बदल डाली थी.
अब बात इतिहास की एक ऐसी जानकारी कि जिसे सुनकर शायद आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे. हिरोशिमा और नागासाकी की बात तो आपने जान ली लेकिन एक और शहर है जो तब काफी चर्चा में था. शहर का नाम है क्योटो. जी हां पहले नागासाकी की जगह क्योटो पर ही परमाणु हमला होने वाला था. अमेरिकी जनरलों, परमाणु वैज्ञानिकों, सेक्रेटरी ऑफ वार और प्रेसिडेंट हेनरी ट्रूमैन के बीच काफी जिरह के बाद जब नागासाकी को टारगेट लिस्ट में शामिल किया भी गया तो ये शहर 10-15 शहरों की लिस्ट में सबसे नीचे था. मतलब कि यहां न्यूक्लियर अटैक की आशंका सबसे कम थी. लेकिन ऐसा लगता है कि तबाही इस शहर की किस्मत में लिखी हुई थी... तो क्योटो से पहले सुनिए कहानी नागासाकी की..
दो पहाड़ों के बीच बसा नागासाकी कभी भी अमेरिकी हमले का अहम टारगेट था ही नहीं. 6 अगस्त को हिरोशिमा को बर्बाद करने के बाद 9 अगस्त को अमेरिकी वायुसेना का B-29 बमवर्षक विमान जापान के कोकुरा शहर पर दूसरा परमाणु हमला करने वाला था. लेकिन बादलों ने उस शहर को घेर रखा था. साथ ही अमेरिकी एयरफोर्स के हमले से निकले धुएं ने भी आसमान काला कर रखा था. अमेरिकी विमानों को टारगेट नजर नहीं आया. जिसके बाद अपना प्राइमरी टारगेट एबोर्ट कर सेकेंडरी टारगेट नागासाकी की ओर कूच करना पड़ा. 9 अगस्त 1945 को नागासाकी को B-29 फाइटर प्लेन BOCKSCAR ने नागासाकी पर अंडाकार परमाणु बम 'फैटमैन' से तबाही मचा दी.
अब कहानी क्योटो की..
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका के निशाने पर था क्योटो. लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि क्योटो की किस्मत बदल गई. 1920 के दशक में अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ वार Henry L. Stimson ने क्योटो की वादियों में ही अपना हनीमून गुजारा था. यहां की यादें उनके जेहन में इस तरह से बसीं थी कि वो इस शहर की तबाही की कल्पना नहीं कर पा रहे थे. जब एटमी हमले की फाइनल लिस्ट बनी तो Stimson अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन के सामने अड़ गए.
1945 आते-आते दूसरे विश्व युद्ध का नतीजा लगभग लिखा जा चुका था. 30 अप्रैल को हिटलर ने सुसाइड कर लिया था. एक हफ्ता गुजरते-गुजरते 7 मई को जर्मनी की सेना ने फ्रांस में सरेंडर कर दिया. मुसोलिनी की लीडरशिप वाला इटली तो 1943 की जंग में मुंह की खा ही चुका था. लेकिन जापान अभी भी लड़ रहा था. जापान के सम्राट हिरोहितो मित्र राष्ट्रों के सामने झुकने को तैयार नहीं थे. 27 अप्रैल 1945 को अमेरिका की टारगेट कमेटी की पहली मीटिंग पेंटागन में हुई. इस मीटिंग में अमेरिकी सैन्य अधिकारियों ने कई मानक तय किए जिसके आधार पर परमाणु हमले के लिए शहर का चुनाव किया जाना था. इसमें तय किया गया कि हमला टारगेट को देखकर किया जाएगा न कि रडार से मिले सिग्नलों के आधार पर. मीटिंग में तय हुआ कि तीन तरह के शहरों को टारगेट बनाया जाएगा. पहला- बड़े शहरों को, दूसरा- आबादी वाले शहरों और तीसरा- उन शहरों को जो रणनीतिक रूप से जापान के लिए अहम हैं. एक बात और तय हुई थी कि ऐसे शहर को टारगेट किया जाएगा जिसपर अभी तक अमेरिकी सेना ने हमला न किया हो...
टोक्यो, कावासाकी, योकोहामा, नगोया, ओसाका, कोबे, क्योटो, हिरोशिमा, कुरे, यवाता, कोकुरा, शिमोसेंका, यामागुची, कुमामताओ, फुकुओका, नागासाकी और ससेबो जैसे शहरों को हमले के लिए चुना गया. हिरोशिमा को अमेरिकी हमले में अबतक कम नुकसान हुआ था इसलिए परमाणु टारगेट में इसे टॉप पर रखा गया. टोक्यो पहले ही तबाह हो चुका था इसलिए दूसरे नंबर पर क्योटो को रखा गया और योकोहोमा तीसरे नंबर पर.टारगेट कमेटी के वैज्ञानिकों ने क्योटो को प्राथमिकता दी क्योंकि ये शहर कई विश्वविद्यालयों का केंद्र था और उन्हें लगा कि वहां के लोग ये समझ पाएंगे कि परमाणु बम और अस्त्रों जैसा एक सामान्य हथियार नहीं था, ये मानव इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था. अब क्योटो टारगेट हिट लिस्ट में टॉप पर था और नागासाकी नीचे.
स्टिमसन जंग से जुड़े फैसलों को प्रभावित करने की क्षमता रखते थे. उनके अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रूमैन से अच्छे संबंध थे. वो ट्रूमैन को ये समझाने में कामयाब रहे कि अगर क्योटो पर हम परमाणु हमला करते हैं तो आनेवाले कई सालों तक जापान और अमेरिकी के रिश्ते में नरमी नहीं आ सकती क्योंकि क्योटो जापानियों के लिए एक शहर नहीं, एक धरोहर है, उनकी संस्कृति है... ये खत्म हो गया तो दोनों देशों के बीच की दूरी पाटने में सदियों लग सकते हैं... और इस तरह क्योटो शहर परमाणु हमले से बच गया...
अब बात कर लेते हैं जापान पर परमाणु हमले में इस्तेमाल हुए उन परमाणु बमों की जिनकी खूब चर्चा हुई थी. साल 1945 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा दो परमाणु बम 'लिटिल बॉय' और 'फैट मैन' का इस्तेमाल किया गया था. 'लिटिल बॉय' कितना प्रभावी था वो इसी बात से समझा जा सकता है कि 8 बजकर 15 मिनट पर अमेरिकी बॉम्बर 'एनोला गे' से लिटिल बॉय हिरोशिमा शहर के ऊपर गिरना शुरू हुआ. लिटिल बॉय को एनोला गे से नीचे आने में पूरे 43 सेकेंड का समय लगा. एक ही क्षण में वहां की इमारतों को छोड़ धरती पर मौजूद हर चीज गायब हो गई. विस्फोट का असर इतना भयंकर था कि ग्राउंड जीरो से 15 किलोमीटर दूर तक हर इमारत की खिड़कियों के शीशे चकनाचूर हो गए. ये अपने लक्ष्य अओई ब्रिज से 250 मीटर दूर शीमा सर्जिकल क्लीनिक के ऊपर फटा. इसकी शक्ति 12500 टन टीएनटी के बराबर थी. हिरोशिमा शहर की करीब दो तिहाई इमारतें एक सेकंड के अंदर ध्वस्त हो गईं. एक क्षण में ही हिरोशिमा शहर के करीब 80 हजार लोगों की मौत हो गई.
धमाके की वजह से हवा से ऑक्सीजन खत्म हो गई थी और इसकी वजह से शेल्टर में छिपे हुए लोग भी सांस न ले पाने की वजह से मारे गए थे. बम गिरने पर उसके केंद्र बिंदु के 1 किलोमीटर के क्षेत्र की एक-एक चीज भाप बन कर उड़ गई. बिजली से चलने वाली ट्राम का भी नामोनिशान नहीं बचा. ऐसी तबाही दुनिया ने कभी नहीं देखी थी और ये तबाही मचाई थी लिटिल बॉय परमाणु बम ने.
हिरोशमा पर हमला किए जाने के तीन दिन बाद यानी 9 अगस्त को अमेरिका ने जापान के एक अन्य शहर नागासाकी को निशाना बनाया और यहां फैट मैन नाम का परमाणु बम गिरा दिया. इसका वजन 4.8 टन था. इसे बी-29 बॉक्सकार बमवर्षक विमान से नीचे गिराया गया था. बम गिरते ही बड़ी संख्या में लोग और जानवर उसी वक्त मर गए क्योंकि ऊष्मा की किरणों ने उनके शरीर की पानी की लगभग हर बूंद को सोख लिया था. विस्फोट से निकली ऊष्मा इतनी घातक थी कि उसने त्वचा को थर्ड डिग्री बर्न्स से जला दिया. ये धमाका बेहद जबरदस्त था, जहां बम गिरा, उससे 500 किलोमीटर दूर स्थित एक प्राइमरी स्कूल का नामोनिशान तक मिट गया था. एक किलोमीटर के दायरे में मौजूद हर चीज भाप बनकर उड़ने लगी. तब ऐसा लगा मानो शहर अचानक से राख में तब्दील हो गया हो. एक सेकेंड से भी कम समय में नागासाकी जेल की तीन इमारतें ढह गईं.
जब बात परमाणु बम को लेकर हो रही है तो ये भी जानना जरूरी है कि सबसे पहले इसका विचार कहां से आया था. दरअसल अल्बर्ट आइंस्टाइन ने 1939 में पत्र लिख कर अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलीन डी रूजवेल्ट को न्यूक्लियर फ्यूजन की विनाशकारी ताकत के बारे में बताया था. जर्मन रसायनविज्ञानी ऑटो हान ने इसकी खोज की थी. पत्र में कहा गया था कि इस प्रक्रिया का नतीजा 'एक नए तरह का अत्यंत शक्तिशाली बम' होगा. रूजवेल्ट ने इसके बाद यूरेनियम पर सलाहकार बोर्ड का गठन किया.
साल 1942 में अगस्त के महीने में अमेरिका ने आधिकारिक रूप से परमाणु बम बनाने के लिए एक बेहद खुफिया कार्यक्रम का फैसला किया. इस प्रोजेक्ट का नाम बाद में मैनहटन प्रोजेक्ट रखा गया था. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने 2 अरब डॉलर का बजट दिया. न्यू मेक्सिको के लॉस अलामोस की एक खुफिया लैब में बम बनाने का काम शुरू हुआ. इसके लिए रॉबर्ट ओपेनहाइमर को साइंटिफिक डायरेक्टर बनाया गया. इस प्रोजेक्ट के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के शीर्ष भौतिकविज्ञानियों की टीम बनी. इसके साथ ही हजारों ऐसे लोग भी काम पर लगे जो नाजी शासन से भाग कर आए थे. 1943 में 12 अप्रैल को रूजवेल्ट की मौत हुई और हैरी ट्रूमैन अमेरिका के राष्ट्रपति बने. तब उन्हें अब तक बेहद खुफिया रहे मैनहटन प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी मिली.
परमाणु हमला झेलने वाले जापान ने कभी परमाणु बम नहीं बनाने का संकल्प लिया, लेकिन दुनियाभर में परमाणु होड़ आज भी जारी है. 2020 में दुनियाभर में परमाणु बम की संख्या 3,720 थी. 2021 में ये बढ़कर 3,825 हो गई.
ये खास लेख है नागासाकी-डे के बारे में तो आज के संदर्भ में उसकी कुछ मुख्य बातें बताता चलूं.
- परमाणु हथियारों के खतरे के बारे में जागरूकता पैदा करने और शांति को बढ़ावा देने के लिए दुनिया भर में नागासाकी दिवस मनाया जाता है.- नागासाकी दिवस पर कई देशों में युद्ध-विरोधी और परमाणु-विरोधी प्रदर्शन आयोजित किए जाते हैं.- जापान में हर साल 9 अगस्त को 'ब्लैक डे' के रूप में मनाया जाता है क्योंकि परमाणु हमले ने कई पीढ़ियों को तबाह किया और मानव जीवन और संपत्ति दोनों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था.- परमाणु हमले में अपनी जान गंवाने वाले और हमलों का सामना करने वाले लोगों के लिए सहानुभूति और शांति प्रदान करने के लिए ये दिन मनाया जाता है.- नागासाकी, जापान के सबसे पुराने शहरों में से एक था जो जापान के दक्षिण में स्थित है.- नागासाकी पर 11 बजकर, 1 मिनट पर 6.4 किलो. का प्लूटोनियम-239 वाला 'फैट मैन' नाम का बम गिराया गया था. - नागासाकी बमबारी के छह दिनों के अंदर, जब जापानी सम्राट ने अपने भाषण में आत्मसमर्पण की घोषणा कर दी थी, तब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया था. - हालांकि, युद्ध समाप्ति की आधिकारिक तौर घोषणा 2 सितंबर को हुई क्योंकि हस्ताक्षर तभी हो पाए थे.
अब वक्त है हमारे विश्लेषण का
जापान के सरेंडर के साथ सेकेंड वर्ल्ड वॉर समाप्त हो गया था और तब से अब तक चाहे कई देशों के बीच झड़पें और आपसी युद्ध चलते रहे हों लेकिन उन्होंने कभी तीसरे विश्व-युद्ध का रूप नहीं लिया और हम यही चाहते हैं कि ऐसा कभी न हो क्योंकि जिस तरह से बहुत सारे देश न्यूक्लियर वेपन से लैस हैं उससे तो ये खतरा हमेशा बना रहेगा कि फिर कोई परमाणु धमाका हो सकता है. हमें हिरोशिमा-नागासाकी से सीख लेनी चाहिए कि फिर वैसा कोई विध्वंस न हो, वैसी चीख-पुकार न हो, मानव-जाति का वैसा सर्वनाश न हो कि उसका दंश आने वाली पीढियां तक भुगतती रहें जबकि उन निर्दोषों की तो कोई गलती भी नहीं. नागासाकी दिवस पर जो शांति और जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं उनका असर दिखना चाहिए और दुनिया में हर ओर अमन-चैन होना चाहिए.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.