नारायण राणे (Narayan Rane) सिंधुदुर्ग से अपनी जन आशीर्वाद यात्रा (BJP Jan Ashirwad Yatra) फिर से चालू करने वाले थे, लेकिन तबीयत थोड़ी नासाज हो जाने के चलते लीलावती अस्पताल में भर्ती होना पड़ा है - नारायण राणे भी मोदी कैबिनेट के 39 मंत्रियों में से एक हैं जिनके लिए देश के 22 राज्यों में 20 हजार किलोमीटर लंबी यात्रा का प्लान किया गया था.
बाकी मंत्रियों के मुकाबले नारायण राणे की ये यात्रा उनकी गिरफ्तारी के कारण चर्चित हो गयी. राणे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को लेकर थप्पड़ मारने की बात बोल दी थी और उसी पर मामला गिरफ्तारी तक पहुंच गया, हालांकि, 8 घंटे की हिरासत के बाद उनके खराब सेहत के आधार पर ही जमानत भी मिल गयी.
राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में छाये रहने के बाद नारायण राणे को काफी फायदा हुआ है. वैसे भी एक नेता के लिए चर्चित होने से ज्यादा क्या चाहिये होता है. नारायण राणे को तो महाराष्ट्र में गली गली लोग जानते हैं, लेकिन अभी तो पूरा देश जान गया है.
ऐसा लग रहा है जैसे नारायण राणे ने महाराष्ट्र बीजेपी में जोश भर दिया हो. महाराष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और अमित शाह की पसंद तो देवेंद्र फडणवीस ही रहे हैं, लेकिन अभी तो ऐसा लगता है जैसे राणे ने फडणवीस और चंद्रकांत पाटिल सहित अक्सर बयानों के जरिये सुर्खियों में रहने वाले नेताओं को पीछे छोड़ दिया है.
कांग्रेस में भी नारायण राणे को मंत्री बनाने के पीछे तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख की खास रणनीति रही. वो अशोक चव्हाण जैसे अपने राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने लगाना चाहते थे, लेकिन आगे चल कर विलासराव को मालूम हुआ कि राणे उनके लिए ही सिरदर्द बन गये.
देवेंद्र फडणवीस को भी मन ही मन ऐसा लग रहा होगा, लेकिन बोल तो सकते नहीं. फडणवीस ने बस राणे के बयान का समर्थन नहीं किया है, लेकिन कहा है कि बीजेपी उनके साथ खड़ी है. फडणवीस ने बड़ी मुश्किल से विनोद तावड़े, पंकजा मुंडे और एकनाथ खडसे जैसे नेताओं के पर कतर कर ठिकाने लगाया था, राणे जिस तरह से उभरे...
नारायण राणे (Narayan Rane) सिंधुदुर्ग से अपनी जन आशीर्वाद यात्रा (BJP Jan Ashirwad Yatra) फिर से चालू करने वाले थे, लेकिन तबीयत थोड़ी नासाज हो जाने के चलते लीलावती अस्पताल में भर्ती होना पड़ा है - नारायण राणे भी मोदी कैबिनेट के 39 मंत्रियों में से एक हैं जिनके लिए देश के 22 राज्यों में 20 हजार किलोमीटर लंबी यात्रा का प्लान किया गया था.
बाकी मंत्रियों के मुकाबले नारायण राणे की ये यात्रा उनकी गिरफ्तारी के कारण चर्चित हो गयी. राणे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को लेकर थप्पड़ मारने की बात बोल दी थी और उसी पर मामला गिरफ्तारी तक पहुंच गया, हालांकि, 8 घंटे की हिरासत के बाद उनके खराब सेहत के आधार पर ही जमानत भी मिल गयी.
राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में छाये रहने के बाद नारायण राणे को काफी फायदा हुआ है. वैसे भी एक नेता के लिए चर्चित होने से ज्यादा क्या चाहिये होता है. नारायण राणे को तो महाराष्ट्र में गली गली लोग जानते हैं, लेकिन अभी तो पूरा देश जान गया है.
ऐसा लग रहा है जैसे नारायण राणे ने महाराष्ट्र बीजेपी में जोश भर दिया हो. महाराष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और अमित शाह की पसंद तो देवेंद्र फडणवीस ही रहे हैं, लेकिन अभी तो ऐसा लगता है जैसे राणे ने फडणवीस और चंद्रकांत पाटिल सहित अक्सर बयानों के जरिये सुर्खियों में रहने वाले नेताओं को पीछे छोड़ दिया है.
कांग्रेस में भी नारायण राणे को मंत्री बनाने के पीछे तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख की खास रणनीति रही. वो अशोक चव्हाण जैसे अपने राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने लगाना चाहते थे, लेकिन आगे चल कर विलासराव को मालूम हुआ कि राणे उनके लिए ही सिरदर्द बन गये.
देवेंद्र फडणवीस को भी मन ही मन ऐसा लग रहा होगा, लेकिन बोल तो सकते नहीं. फडणवीस ने बस राणे के बयान का समर्थन नहीं किया है, लेकिन कहा है कि बीजेपी उनके साथ खड़ी है. फडणवीस ने बड़ी मुश्किल से विनोद तावड़े, पंकजा मुंडे और एकनाथ खडसे जैसे नेताओं के पर कतर कर ठिकाने लगाया था, राणे जिस तरह से उभरे हैं, उनके लिए नयी चुनौती बनते लग रहे हैं.
बाकी बातें अपनी जगह हैं, लेकिन नारायण राणे ने वो काम तो कर ही दिया है जो सोच कर मोदी-शाह ने अपना कैबिनेट साथी बनाया था. मोदी-शाह चाहते थे कि महाराष्ट्र में कोई एक नेता तो ऐसा हो जो आगे बढ़ कर उद्धव ठाकरे को ललकारने की कुव्वत रखता हो - नारायण राणे उन उम्मीदों पर खरे से भी ज्यादा खरा उतरे हैं.
ये तो उद्धव ठाकरे को उकसाने के लिए बीजेपी की एक सोची समझी रणनीति रही जिसकी अगुवाई नारायण राणे कर रहे थे और हड़बड़ी में शिवसेना उसमें फंस गयी. बॉम्बे हाई कोर्ट में आये एक केस में तो महाराष्ट्र सरकार के वकील ने यहां तक बोल दिया है कि नारायण राणे के खिलाफ पुलिस कोई एक्शन नहीं लेने जा रही है, हालांकि ये नासिक केस को लेकर ही है - और वो भी अगली तारीख 17 सितंबर तक.
राणे की गिरफ्तारी का हासिल
7 जुलाई 2021 को हुए मोदी मंत्रिमंडल के फेरबदल में कई रंग और रूप दिखे थे. हर रंग की अपनी कहानी थी. रविशंकर प्रसाद से लेकर बाबुल सुप्रियो तक - और पशुपति कुमार पारस से लेकर आरसीपी सिंह तक - महाराष्ट्र से नारायण राणे को मंत्री बनाये जाने के पीछे भी यही समझा गया कि प्रधानमंत्री मोदी के निशाने पर शिवसेना नेतृत्व है और राणे एक मजबूत कंधा साबित हो सकते हैं. नारायण राणे ने उम्मीद से ज्यादा साबित किया है.
संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंत्रियों का परिचय कराना चाहते थे, लेकिन विपक्ष के हंगामे ने खलल डाल दी और फिर जन आशीर्वाद यात्रा की नींव पड़ी - ये सोचकर कि अब मंत्री खुद अपने इलाकों में जाएंगे और परिचय देंगे. नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित कई नेता अपनी यात्राओं के दौरान ये बात दोहराते भी सुने गये.
मोदी कैबिनेट को ओबीसी मंत्रिमंडल के तौर पर पेश और प्रचारित किया जा रहा है. निश्चित रूप से ये राज्य विधानसभा चुनावों और विपक्षी दलों की जातीय जनगणना की डिमांड को काउंटर करने के मकसद से ही हो रहा है. वैसे तो मोदी सरकार ने ओबीसी बिल लाकर विपक्ष को चुप करा दिया था, लेकिन उसका असर लंबे समय तक बरकार रखने की अलग ही चुनौती है.
विपक्ष के हंगामे पर सदन में प्रधानमंत्री मोदी का कहना रहा, 'मैं सोच रहा था कि आज सदन में उत्साह का वातावरण होगा... क्योंकि बहुत बड़ी संख्या में हमारी महिला सांसद, एससी-एसटी समुदाय के भाई, किसान परिवार से आए सांसदों को मंत्री परिषद में मौका मिला है... उनका परिचय करने का आनंद होता... लेकिन शायद देश के दलित, महिला, ओबीसी, किसानों के बेटे मंत्री बनें ये बात कुछ लोगों को रास नहीं आती है - उनका परिचय तक नहीं होने देते.'
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, मौजूदा मोदी कैबिनेट में 27 ओबीसी मंत्री हैं - ठीक वैसे ही 12 SC और 8 SC सांसद मंत्री बनाये गये हैं. कुछ और भी जातियों को कैबिनेट में प्रतिनिधित्व दिया गया है. मंत्रिमंडल में शामिल बीजेपी के 39 मंत्रियों में 14 ओबीसी समुदाय से आते हैं, जबकि 9 अनुसूचित जाति से हैं.
चूंकि संसद में विपक्ष ने हंगामा कर ये प्रचार प्रसार नाकाम कर दिया, लिहाजा जन आशीर्वाद यात्रा का प्लान ऐसे तैयार किया गया कि हर मंत्री की ट्रिप में वे स्थान भी शामिल हों जहां वो खास आबादी रहती हो. ओबीसी चेहरों में से एक केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के यात्रा वृतांत भी यही किस्सा सुनाते हैं. भूपेंद्र यादव ने हरियाणा के गुड़गांव से अपनी यात्रा की शुरुआत की और उसका रुख राजस्थान की तरफ मोड़ दिया गया. यात्रा अगला चरण भिवंडी से शुरू हुआ और अलवर के साथ साथ जयपुर और अजमेर इलाकों तक चला. चूंकि अलवर और अजमेर में भी ओबीसी कम्युनिटी का दबदबा माना जाता है, इसलिए कार्यक्रम भी उसी हिसाब से बनाया गया.
निश्चित तौर पर हाल ही में आये मूड ऑफ द नेशन सर्वे में प्रधानमंत्री मोदी की घटती लोकप्रियता भी एक वजह रही ही होगी. सर्वे के मुताबिक अगस्त, 2020 में जो मोदी 66 फीसदी और जनवरी, 2021 में 38 फीसदी लोगों की पसंद रहे, वही अगस्त, 2021 आते आते मात्र 24 फीसदी लोगों की पसंद रह गये हैं.
पश्चिम बंगाल की चुनावी हार की भी इसमें एक बड़ी भूमिका लगती है - और ऐसे में जबकि यूपी सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की उतरने की तैयारी है, बीजेपी को एक बूस्टर डोज की जरूरत तो रही ही.
कोविड 19 की दूसरी लहर के प्रकोप में बदइंतजामी का जो आलम रहा, उससे आम लोगों के साथ साथ बीजेपी कार्यकर्ता, नेता और मंत्री तक परेशान रहे - ये बात अलग है कि मोदी और शाह अपनी सार्वजिनक सभाओं में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बहाने अपनी भी पीठ ठोकने की कोशिश कर रहे हैं और खुद को क्लीन चिट देने की भी, लेकिन बीजेपी कार्यकर्ताओं से भी हकीकत तो छिपी नहीं है.
जन आशीर्वाद यात्रा का एक मकसद बीजेपी कार्यकर्ताओ में जोश भरना भी रहा. नारायण राणे ने बीजेपी की चाल से उद्धव ठाकरे को अपनी जाल में फंसाकर रिटर्न गिफ्ट में वो सब दे डाला है जो मोदी-शाह की तरफ से सौगात के रूप में मंत्री पद मिला है - और ये जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान नारायण राणे की गिरफ्तारी का सबसे बड़ा हासिल है.
ताकि मोदी के मंत्री भी रॉकस्टार लगें
विपक्ष दलों के आरोपों के चलते एक अवधारणा बनायी गयी है कि मोदी सरकार में मंत्रियों की व्यावहारिक हैसियत कोई होती ही नहीं. कोरोना संकट काल में भी ऐसा ही बताया गया कि सारा काम तो नौकरशाह देखते हैं, मंत्रियों की भूमिका तो निमित्त मात्र होती है - लेकिन जन आशीर्वाद यात्रा ऐसे सारे आरोपों को झुठला रही है.
मोदी सरकार के मंत्रियों के लिए जन आशीर्वाद यात्रा वैसी ही लगती है जैसे बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मैडिसन स्क्वायर पर कार्यक्रम रखा था और दुनिया भर में मोदी की रॉक स्टार जैसे परफॉर की तरफ भीड़ जुटाने के लिए देखा जाने लगा - अनुराग ठाकुर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अश्विनी वैष्णव और मनसुख मंडाविया जैसे केंद्रिय मंत्रियों ने तो जन आशीर्वाद यात्रा में ऐसा ही महसूस किया होगा.
अनुराग ठाकुर कैबिनेट मंत्री बनने के बाद पहली बार हिमाचल प्रदेश पहुंचे थे और स्वागत में नारे लग रहे थे - "कौन आया, कौन आया - शेर आया, शेर आया."
मालूम हुआ अनुराग ठाकुर के स्वागत के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर पीटरहॉफ में घंटा भर पहले ही पहुंच गये थे - भई, ऐसा स्वागत तो प्रधानमंत्री का ही होता है, मंत्रियों को तो मुख्यमंत्री से मुलाकात करने के लिए सीएम आवास पहुंचना होता है. ऐसे देखा जाये तो मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने पर शिवराज सिंह चौहान तब भी आव भगत में कोई कसर बाकी नहीं रखते थे जब वो कैबिनेट में शामिल नहीं किये गये थे.
आईचौक पर आपने मंत्रिमंडलीय फेरबदल के वक्त ही पढ़ा था कि कैसे मोदी कैबिनेट भविष्य के बीजेपी के मुख्यमंत्रियों के लिए नर्सरी बन रहा है. अनुराग ठाकुर के हिमाचल दौरे में यही तस्वीर देखने को मिली है. सुनने में आया है कि अनुराग ठाकुर के प्रमोशन के बाद लौटने से ज्यादा खुश वे बीजेपी नेता हैं जो जयराम ठाकुर की वजह से खुद को हाशिये पर महसूस कर रहे हैं.
वैसे अनुराग ठाकुर के स्वागत में मुख्यमंत्री के पलक पांवड़े बिछाने के पीछे उनकी ऐसी कौन सी उपलब्धि है जो उल्लेखनीय है. दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान अनुराग ठाकुर के भड़कीले बयान? जिसे लेकर केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने भी माना था कि विपक्ष उसे चुनावी मुद्दा बनाने में सफल रहा. या ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों का बेहतरीन प्रदर्शन - तस्वीरें तो ऐसे ही तैयार की जा रही थीं. वैसे भी जब हॉकी खिलाड़ियों की मदद के लिए ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की तारीफ करते नहीं थक रहे थे तो प्रधानमंत्री मोदी ने हॉकी खिलाड़ियों की मेहनत को अयोध्या में बन रहे राम मंदिर और जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने जैसी बीजेपी सरकार की उपलब्धियों से जोड़ कर पेश कर ही दिया है.
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव भी कहीं राखी बंधवाते तो कहीं डांस करते नजर आये - और उनके लिए तो रेल यात्रा को ही मैडिसन स्क्वायर बना दिया गया था. जैसे ट्रेन पर सवार होकर अश्विनी वैष्णव ओडिशा पहुंचे थे, ठीक वैसे ही मनसुख मंडाविया गुजरात मे पाटीदारों के बीच समझा रहे थे कि बीजेपी तो उनकी ही है.
जन आशीर्वाद यात्रा मोदी सरकार की योजनाओं के प्रचार के मकसद से तो तैयार हुई ही थी, चुनावी राज्यों में बीजेपी सरकार की उपलब्धियां बताना और मोदी-शाह की बातों को बार बार याद दिलाना भी मंत्रियों को मिले असाइनमेंट का ही हिस्सा रहा.
राणे जैसा तो नहीं, लेकिन मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की यात्रा में भी विवाद हुआ - भगवा रंग के घोड़े को लेकर. ये मामला भी तूल पकड़ लिया और इंदौर के संयोगितागंज थाने में पशु प्रेमियों की तरफ से शिकायत भी दर्ज करायी गयी है. असल में सिंधिया की रैली में एक घोड़ा लाया गया था जिसे भगवा रंग में रंगने के बाद उस पर बीजेपी का चुनाव निशान कमल भी बना दिया गया था. जाहिर है, ये काम तो बीजेपी सांसद मेनका गांधी को भी ठीक नहीं लगा होगा, लेकिन अपनी ही सरकार के मंत्री के खिलाफ बोलें भी तो क्या बोलें - अपने साथ साथ बेटे के लिए भी मंत्री पद का इंतजार तो इंतजार ही रह गया.
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