नारायण राणे (Narayan Rane) की राजनीति का मौजूदा दौर कब तक ऐसे ही कायम रहेगा, कहना मुश्किल है - क्योंकि बीजेपी भी उनको तभी तक सपोर्ट करने वाली है जब तक उद्धव ठाकरे को डैमेज करने में वो सक्षम हैं. उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) की ही तरह नारायण राणे लगे हाथ उनके चचेरे भाई राज ठाकरे को भी नुकसान पहुंचाने लगे हैं. बल्कि, कहें कि उद्धव ठाकरे से कहीं ज्यादा नारायण राणे तो राज ठाकरे को नुकसान पहुंचा रहे हैं.
नारायण राणे, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे (Raj Thackeray) - ये तीनों ही शिवसेना की राजनीति की उपज हैं, लेकिन गुजरते वक्त के साथ तीनों ने अपने अलग रास्ते बना लिये. उद्धव ठाकरे ने तो अपनी मर्जी से ऐसी राजनीतिक राह चुनी जो शिवसेना की आक्रामक राजनीतिक शैली के विपरीत रही, लेकिन राज ठाकरे और नारायण राणे की राजनीति ओरिजिनल शिवसेना स्टाइल वाली ही रही है.
देखा जाये तो नारायण राणे के नये तेवर से राज ठाकरे को ज्यादा नुकसान होता लगता है, बनिस्बत उद्धव ठाकरे के. शिवसेना की पुरानी इमेज से इतर नरम छवि गढ़ने का श्रेय उद्धव ठाकरे को ही हासिल है.
अगर राज ठाकरे और नारायण राणे भी बाल ठाकरे के बेटे होते तो उद्धव ठाकरे को भी काफी हद तक वैसे ही संघर्ष करना पड़ता जैसे लालू यादव की आरजेडी में उनके बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को करना पड़ रहा है. तब बाल ठाकरे भी तेजस्वी की ही तरह राज ठाकरे या नारायण राणे को भी अपना उत्तराधिकारी बनाये होते - वैसे बाल ठाकरे की स्टाइल वाली राजनीति राज ठाकरे और नारायण राणे आज भी करते हैं.
नारायण राणे ने निशाना तो उद्धव ठाकरे को बनया है, लेकिन सबसे ज्यादा साइड इफेक्ट राज ठाकरे पर होता नजर आ रहा है. राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की शुरुआत तो अच्छी रही, लेकिन अब तो बड़ी मुश्किल से महाराष्ट्र विधानसभा में वो अपना एक...
नारायण राणे (Narayan Rane) की राजनीति का मौजूदा दौर कब तक ऐसे ही कायम रहेगा, कहना मुश्किल है - क्योंकि बीजेपी भी उनको तभी तक सपोर्ट करने वाली है जब तक उद्धव ठाकरे को डैमेज करने में वो सक्षम हैं. उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) की ही तरह नारायण राणे लगे हाथ उनके चचेरे भाई राज ठाकरे को भी नुकसान पहुंचाने लगे हैं. बल्कि, कहें कि उद्धव ठाकरे से कहीं ज्यादा नारायण राणे तो राज ठाकरे को नुकसान पहुंचा रहे हैं.
नारायण राणे, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे (Raj Thackeray) - ये तीनों ही शिवसेना की राजनीति की उपज हैं, लेकिन गुजरते वक्त के साथ तीनों ने अपने अलग रास्ते बना लिये. उद्धव ठाकरे ने तो अपनी मर्जी से ऐसी राजनीतिक राह चुनी जो शिवसेना की आक्रामक राजनीतिक शैली के विपरीत रही, लेकिन राज ठाकरे और नारायण राणे की राजनीति ओरिजिनल शिवसेना स्टाइल वाली ही रही है.
देखा जाये तो नारायण राणे के नये तेवर से राज ठाकरे को ज्यादा नुकसान होता लगता है, बनिस्बत उद्धव ठाकरे के. शिवसेना की पुरानी इमेज से इतर नरम छवि गढ़ने का श्रेय उद्धव ठाकरे को ही हासिल है.
अगर राज ठाकरे और नारायण राणे भी बाल ठाकरे के बेटे होते तो उद्धव ठाकरे को भी काफी हद तक वैसे ही संघर्ष करना पड़ता जैसे लालू यादव की आरजेडी में उनके बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को करना पड़ रहा है. तब बाल ठाकरे भी तेजस्वी की ही तरह राज ठाकरे या नारायण राणे को भी अपना उत्तराधिकारी बनाये होते - वैसे बाल ठाकरे की स्टाइल वाली राजनीति राज ठाकरे और नारायण राणे आज भी करते हैं.
नारायण राणे ने निशाना तो उद्धव ठाकरे को बनया है, लेकिन सबसे ज्यादा साइड इफेक्ट राज ठाकरे पर होता नजर आ रहा है. राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की शुरुआत तो अच्छी रही, लेकिन अब तो बड़ी मुश्किल से महाराष्ट्र विधानसभा में वो अपना एक ही विधायक भेज पाये हैं.
राज ठाकरे अब अगले साल होने जा रहे महानगर निगम और जिला परिषद चुनावों की तैयारी कर रहे हैं - और चुनावों को अपने बेटे अमित ठाकरे के लिए लांच पैड बनाने की कोशिश में जुटे हैं.
2019 के आम चुनाव में तो राज ठाकरे मोदी विरोध का झंडा बुलंद किये हुए थे, लेकिन शिवसेना के साथ गठबंधन टूट जाने के बाद बीजेपी और एमएनएस की बीच नजदीकियां बढ़ाने की कोशिशें लगातार जारी है - और दोनों पक्षों के नेताओं की कुछ छिपी हुई और कुछ घोषित मुलाकातें किसी म्युचुअल डील के फाइनल की तरफ बढ़ने का इशारा भी कर रही है.
नारायण राणे की हालिया सक्रियता ने एक तरह से राज ठाकरे की राजनीति को ही, लगता है जैसे किसी बड़े कवर से ढकने की कोशिश हो रही हो. बीजेपी की तरफ से गठबंधन की ऐसी शर्त रखी गयी है जो उनकी राजनीतिक जमीन ही ले डूबे. बीजेपी गठबंधन से पहले राज ठाकरे पर उत्तर भारतीयों को लेकर अपना रुख सार्वजनिक तौर पर बदलने का दबाव डाल रही है.
राज ठाकरे जिस मझधार में फंसे हैं, ऑप्शन भी कम ही बचे हैं, लिहाजा बीजेपी के अलावा किसी के साथ गठबंधन के आसार भी कम ही लगते हैं, लेकिन ये कैसे संभव है कि राज ठाकरे वही मुद्दा छोड़ दें जिसके बूते अभी तक करीब करीब जीरो बैलेंस के साथ मैदान में बने हुए हैं. अब तक ये सब जैसे भी होता आया हो - आगे भी नारायण राणे कदम कदम पर उद्धव ठाकरे के साथ साथ राज ठाकरे के लिए भी सिरदर्द ही साबित होने वाले हैं.
बीजेपी को बढ़ाते राणे और जूझते ठाकरे बंधु
कानूनी अड़चनों के खत्म होने और सेहत की दुश्वारियों से उबर कर केंद्रीय मंत्री नारायण राणे ने अपनी जन आशीर्वाद यात्रा शिवसेना के गढ़ कोंकण से ही शुरू की - और निशाने पर ठाकरे परिवार रहा. ऐसा भी नहीं कि जवाब नहीं मिला, जवाब भी मुंहतोड़ मिला है.
अज्ञानता का मजाक उड़ाने और थप्पड़ मारने की बात बोलने के बाद अब नारायण राणे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को साफ शब्दों में चेताया है कि अगर जल्द हो शिवसेना नेतृत्व के खिलाफ पोल खोल मुहिम भी शुरू करने वाले हैं.
शिवसेना में बिताये अपनी राजनीति के चार दशकों की दुहाई देते हुए नारायण राणे दावा करते हैं कि वो कई राज जानते हैं. सार्वजनिक रूप से कहते भी हैं, 'रमेश मोरे की हत्या कैसे हुई? उसके पीछे क्या कारण है? अपनी भाभी पर एसिड फेकने की बात किसने कही थी? ये सभी मामले एक के बाद एक बाहर निकलूंगा.'
और फिर उद्धव ठाकरे को आगाह करते हुए नारायण राणे कहते हैं, 'मुझे आजमाने की कोशिश मत करो... दादागिरी करना तुम्हारे बस की बात नही है.'
उद्धव ठाकरे तो रिएक्ट नहीं करते, शिवसेना की तरफ से मोर्चा संभालते हैं रत्नागिरी से सांसद विनायक राउत - बिलकुल जैसे को तैसा वाले अंदाज में, 'अपने चचेरे भाई अंकुश राणे की हत्या किसने की? उसे किस गाड़ी में ले जाकर कहा फेंका गया? इसकी भी जांच होने की जरूरत है.'
और नारायण राणे को विनायक राउत सलाह भी देते हैं, 'दूसरों पर इल्जाम लगाने से पहले राणे को अपने गिरेबान में भी झांक कर देखने की जरूरत है.'
मान कर चलना होगा, एक बार ये सिलसिला शुरू हुआ है तो लंबे समय तक चलता रहेगा. दोनों पक्ष एक दूसरे की पोल-खोल का दावा करते हुए ऐसे ही आरोप प्रत्यारोप लगाते रहेंगे. कम से कम तब तक ये चलेगा जब तक राजनीतिक समीकरण बदल नहीं जाते.
बीजेपी नेतृत्व नारायण राणे को आगे बढ़ा कर उद्धव ठाकरे के लिए मुश्किलें खड़ी करने के साथ साथ, एमएनएस नेता राज ठाकरे पर भी नकेल कसने की तैयारी में जुटी है.
नारायण राणे बीजेपी के लिए ऐसी तीर साबित हो रहे हैं जो हर बार डबल निशाने साधने में कामयाब है - अगर पहला शिकार उद्धव ठाकरे हुए हैं तो दूसरे शिकार कोई और नहीं बल्कि राज ठाकरे ही हैं.
महाराष्ट्र में जब से गठबंधन सरकार बनी है, तब से राज ठाकरे से मुलाकात करने वाले बीजेपी नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से लेकर नागपुर से आने वाले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी तक शामिल हैं.
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नेता से सबसे महत्वपूर्ण मुलाकात हाल की वो मीटिंग लगती है जिसके लिए महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल, राज ठाकरे से मिलने उनके घर कृष्णकुंज पहुंचे थे - और खास बात ये रही कि चंद्रकांत पाटिल ने मीटिंग को लेकर जानकारी भी दी.
चंद्रकांत पाटिल की तरह तो नहीं लेकिन उनसे पहले राज ठाकरे और नितिन गडकरी की मुलाकात वर्ली के एक होटल में हुई थी - और ऐसे ही, बताते हैं, राज ठाकरे और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी कम से कम दो बार ऐसी गुपचुप मीटिंग कर चुके हैं.
चंद्रकांत पाटिल ने मीडिया के सामने राज ठाकरे से मुलाकात की बात कंफर्म तो की ही, बताया कि उनको घर पर चाय पीने का न्योता राज ठाकरे ने दिया था. साथ में ये भी बताया कि मीटिंग में राजनीति की भी बातें हुईं, न कि ये शिष्टाचार मुलाकात रही जैसी बातें जो अक्सर हुआ करती हैं.
महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष पाटिल ने उत्तर भारतीय लोगों को लेकर राज ठाकरे के विचार भी बताये और ये भी कि बीजेपी एमएनएस नेता से क्या चाहती है - और अगर वैसा नहीं हुआ तो बीजेपी और एमएनएस के बीच गठबंधन की कोई संभावना नहीं है.
चंद्रकांत पाटिल ने राज ठाकरे को सलाह दी कि उत्तर भारतीयों के प्रति उनको स्टैंड बदलना होगा - और दावा किया कि राज ठाकरे ने माना कि महाराष्ट्र में रह रहे या आने वाले उत्तर भारतीय समुदाय को लेकर उनके मन में कोई कटुता नहीं है.
बेशक ये बातचीत पहले से चलती आ रही हो, लेकिन अब तो साफ है कि नारायण राणे के ताजा उभार के बाद बीजेपी राज ठाकरे के साथ डील भी बेहतर करेगी.
बीजेपी की मुश्किल ये है कि वो उत्तर भारतीयों के वोट, खास कर हिंदू वोट किसी भी सूरत में गंवाना नहीं चाहती, लेकिन मराठी मानुष के वोट के लिए उसे फूंक फूंक कर चलना पड़ता है. तभी तो देवेंद्र फडणवीस और चंद्रकांत पाटिल को नारायण राणे की गिरफ्तारी के विरोध के साथ साथ उनके बयान से पल्ला झाड़ने को मजबूर होना पड़ा क्योंकि संभल कर रिएक्ट नहीं करते तो मराठी मानुष नाराज हो जाता. ऐसी ही तस्वीर तब भी नजर आयी थी जब मुंबई पुलिस और कंगना रनौत के पीओके वाले बयान को लेकर महाराष्ट्र बीजेपी नेताओं को स्टैंड लेना पड़ा था.
राज ठाकरे का चुनावी प्रदर्शन भले ही खराब होता जा रहा हो, लेकिन मुंबई ही नहीं, नासिक, पुणे और ठाणे जैसे शहरों में अच्छा खासा सपोर्ट बेस अब भी है. राज ठाकरे और बीजेपी नेताओं की मुलाकात का मकसद सपोर्ट बेस को वोट में तब्दील करने की ही कोशिश तो है.
जब तक शिवसेना के साथ गठबंधन रहा बीजेपी मराठी मोर्चे को लेकर चिंतामुक्त रहा करती थी, लेकिन अब तो उसे साधने के साथ साथ शिवसेना से छीनना भी है -और ये भी अकेले नारायण राणे के वश की बात नहीं है, लेकिन ये जरूर है कि नारायण राणे और राज ठाकरे दोनों को साथ लेकर मुमकिन भी हो सकता है.
अगले साल महाराष्ट्र के 10 महानगर निगम और 25 जिला परिषदों के लिए चुनाव होने वाले हैं - और अभी जो भी राजनीतिक माहौल बना है वो उसी के लिए है. राजनीतिक माहौल किन वजहों से या किन परिस्थितियों में बना है, ये बात अलग हो सकती है.
आगे की लड़ाई अगली पीढ़ी पर फोकस है
निकाय चुनावों की अहमियत तो सभी राज्यों में होती है, लेकिन महाराष्ट्र में इस बार ये खास मायने रखता है क्योंकि ठाकरे परिवार उसी के रास्ते अपनी नयी पीढ़ी के भविष्य की नींव रखने का प्लान कर चुका है. नारायण राणे के एक बेटे नितेश राणे कंकावली से विधायक हैं, जबकि दूसरे बेटे निलेश राणे कांग्रेस सांसद रह चुके हैं - 2014 में वो शिवसेना के विनायक राउत से चुनाव हार गये थे.
मातोश्री से निकल कर चुनाव मैदान में उतरने का रिकॉर्ड कायम करने वाले आदित्य ठाकरे के बाद, अब उद्धव ठाकरे तेजस ठाकरे को फील्ड में लाने की तैयारी कर रहे हैं - और निकाय चुनावों को तेजस ठाकरे के लिए सियासी पारी शुरू करने का बढ़िया मौका समझा जा रहा है.
ठाकरे परिवार से ही अमित ठाकरे भी निकाय चुनावों की तैयारी में जी जान से जुट गये हैं. अमित ठाकरे, राज ठाकरे के बेटे हैं. अमित ठाकरे चुनाव कैंपेन में तो पहले भी शामिल होते रहे, लेकिन औपचारिक तौर पर उनको पिछले साल महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ज्वाइन कराया गया. मुहूर्त के साथ साथ मौका भी इसके लिए खास चुना गया था - 23 जनवरी यानी शिवसेना संस्थापक बाला साहेब ठाकरे की जयंती.
अमित ठाकरे अभी अपना जौहर दिखा भी नहीं सके थे कि कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन हो गया - हालांकि, उससे पहले ही राज ठाकरे ने बेटे को स्थापित करने का इंतजाम कर दिया था.
एमएनएस के 14वें स्थापना दिवस के मौके पर राज ठाकरे ने ब्रिटेन की तर्ज पर महाराष्ट्र में शैडो कैबिनेट के गठन की घोषणा की. बोले, 'शैडो कैबिनेट... जिसका मकसद है हर मंत्री के पीछे एक जिम्मेदार व्यक्ति को रखना... वे मंत्रियों के कामकाज पर नजर रखेंगे. गलत काम के खिलाफ आवाज उठाएंगे... सही काम पर जनता के बीच उनकी तारीफ भी करेंगे.'
शैडो कैबिनेट का आइडिया तो फ्लॉप ही साबित हुआ, लेकिन उसमें अमित ठाकरे को जो रोल मिला था वो काफी दिलचस्प रहा. राज ठाकरे ने अमित ठाकरे को गठबंधन सरकार के पर्यटन और शहरी विकास विभाग की निगरानी का जिम्मा दिया था - ध्यान रहे, ये वही विभाग हैं जिनके मंत्री आदित्य ठाकरे हैं.
निकाय चुनावों के लिए बीजेपी और एमएनएस के बीच गठबंधन की संभावना जतायी जा रही है. ऐसे में अमित ठाकरे को पूरे चुनाव नहीं, बल्कि, नासिक में एमएनएस के प्रचार का जिम्मा सौंपने की खबर आ रही है.
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